सादर अभिवादन
आज का दिन अपने नाम के अनुरूप जायकेदार है
पाठक पढ़ने से पहले ही सावधान हो जाता है
लेखक बंधु भी एतिहात से अपना प्रस्तुति आज ही प्रस्तुति को सम्हाल कर पोस्ट करते हैं,
उन्हें डर रहता है चोरी न हो जाए
भले ही वह चोरी की रचना को चोरी-चोरी पोस्ट कर रहा हो
1 अप्रैल से देश में लागू होंगे ये 5 बड़े बदलाव,
हर घर हर जेब पर होगा असर
आज श्वेता जी नहीं है
शुक्रवार को मिलेगी
सादर
वर्षों पहले यू के में भी ऐसा ही हुआ था
जी भर के साथ रहने के बाद वे अपनी संतान को
चर्च की सीढ़ियों पर रख कर घंटी बजा दिया करते थे
चर्च पूरी जिम्मेदारी लेने के बाद संतान को नया नाम देते
और कॉंव्हेन्ट के हिसाब से जाना जाने लगा
होते हैं रचनाओं से रूबरू
मील के स्टाफ परिसर में देश के तकरीबन हर प्रांत के लोगों के होने के बावजूद वहां एक परिवार का माहौल था ! तीज-त्यौहार, सुख-दुःख सबके साझा होते थे ! बच्चों को खेल-कूद या किसी भी घर में आने-जाने की पूरी छूट तो थी पर लाड-प्यार-डांट-डपट का हक भी सभी बड़ों को था ! उन दिनों वहां के सर्वेसर्वा डागा जी थे ! जो सिर्फ मील के ही नहीं, उसके स्टाफ के परिवारों के भी संरक्षक थे ! हर कोई उन्हें परिवार के मुखिया के रूप में आदर सहित देखता था !
बात हो रही थी शिव की ! जैसा कि मैंने बताया बालकगणों के लिए वहां की हर जगह, हर क्षेत्र, निर्बाध था ! उसी के चलते एक घर में काम करते शिव को देखना हुआ। सांवले रंग का, गोल-मटोल, भोला-भाला, नाटा सा बालक! कोई ऐब नहीं, कोई लत नहीं। उससे कभी बातचीत नहीं होती थी पर जब भी मुझे दिखता उसके चेहरे पर एक बाल सुलभ मुस्कान खिंच जाती ! अच्छा लगता था वह मुझे।
बातों की रट तो है कुछ ऐसे
खुद पे भरोसा ही नहीं जैसे !
आदमी शान से कहे परवाह नहीं
औरत सोचे तो समाज जीने न दे !
मैंने सबसे पहले अपने लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त की।‘अलाने चतुर’ ने देखते ही देखते हमारे सामने इतना परोस दिया,जितना मैंने लिखा भी नहीं होगा।उस ‘शोध-पत्र’ में कुल मिलाकर यही लिखा था कि इस नाम का लेखक उसके संज्ञान में अभी तक नहीं है।इस सूचना को पाने के लिए उसे पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना पड़ा।जानकर दुख हुआ कि हमारे देश में शोध की दिशा में वाक़ई कुछ काम नहीं हुआ।मैंने ‘फलाने चतुर’ से यही पूछा, उसने उत्तर में चार लोगों का उल्लेख किया जो मेरी नामराशि के थे।एक की भटिंडे में पान की मशहूर दुकान है तो दूसरा दिल्ली के दरियागंज में ‘मर्दाना कमजोरी’ का अचूक इलाज करता है।मेरा तीसरा हमनाम लुधियाने में गत्ता-फैक्ट्री चलाता है और चौथा इंटरनेट मीडिया में चुटकुले सुनाता है।इन सबमें आख़िर वाला मुझे अपना लगा पर मैंने अस्वीकार कर दिया।
करती निनाद मंदिर की घंटियाँ
ईश्वर कृपा के मन से हो वशीभूत
अर्चना और प्रार्थना के उच्चारण से
बने थे होंठ ईश्वर के देवदूत ।
श्रद्धा और सुकून की दौलत
समेटने को बिखरी थी अकूत ।
यह सुविधाजनक है ! जब तक अच्छा लगे साथ में रह लिए जब मन भर गया तो साथी भी बदल लिया नई पोशाक की तरह ! न शादी हुई, न बहू बने, न कोई ज़िम्मेदारी निभाई लेकिन विवाह का पूरा सुख उठा लिया ! लड़के भी खुश न शादी की, न पत्नी लाए, अलग हुए तो कोई गुज़ारा भत्ता देने की झंझट भी नहीं
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आज बस
सादर वंदन
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं सहित
आदरणीय , मेरी लिखी "विशेष था शुभ मुहूर्त" को इस गरिमामय मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस अंक में सम्मिलित सभी रचनाएँ बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बधाइयाँ ।
सादर ।
मेरी पोस्ट को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंरचना को मान दे, सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏
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