जय मां हाटेशवरी.....
मन-मोहक लगता है ये सावन.....
हर तरफ भोले की जय-जयकार होती है.....
प्रत्येक घर देवालय बन जाता है.....
ये क्रम प्रत्येक महिने.....
कभी शिवरात्रि के रूप में....
कभी नवरात्रों के रूप में.....
कभी दिवाली, कभी दशहरा.....
कभी एकादशी, कभी पूर्णिमा, कभी संक्रांति......
नयी-नयी उत्तेजना, प्रेरणा तथा संकल्पों के साथ.....
जहां हमे धर्म-परायण बनाता है.....
हमे जीवन कैसे जीना चाहिये.....
मानव-जीवन का उदेश्य क्या है....
...ये भी सिखाता है.....
ये प्राचीन परंपरा ही.....
घर के बच्चों में संस्कारों का संचार करती है.....
पर हम आज अपनी इन पावन परंपराओं को छोड़कर.....
....
विदेशी संस्कृति को अपना रहे हैं...
इसी लिये हमारे बच्चों के संस्कारों में भी कमी आ रही है.....
रेप, चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है....
हम क्या थे.....क्या हो गये हैं....
भारत-भारती की इन पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया है....
अब पेश है.....
आज के लिये मेरी पसंद.....
तू पत्थर सी मूरत बन जा
सीता का दुख और द्रोपदी अपनी महक लिए है।
जितना भी तपता है सोना उतनी चमक लिए है।
वैसे जूझ, बसो यादों में, सबके लिए मुहुरत बन जा।।
कल की एक जरूरत बन जा। तू पत्थर सी मूरत बन जा।।
भूलोगे कैसे
कुछ गीत मेरे, यूं दोहराओगे तुम,
सूने नैने छलक आएंगे,
कोयल, रुक-रुककर गाएंगे,
जलाएंगे, मन व्याकुल कर जाएंगे....
सीमाओं में कहाँ बँधा है
लिए हाथ में श्रम की लाठी
रच लेते ये नव परिपाटी
सपने आसमान के लेकिन
पाँव तले रहती है माटी
अपनी कूवत से कर लेते
सात समंदर पार
गगन के जाना जिनको पार
सावन
बहनें राह देख रहीं
भाई के आने की
साथ साथ रक्षाबंधन
मनाने की प्यार बांटने की |
हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे ...
बिजलियें, न बारिशें, ना बूँद शबनम की गिरी
रात छत से टूटते तारों को हम गिनते रहे
कुछ बड़े थे, हाँ, कभी छोटे भी हो जाते थे हम
शैल्फ में कपड़ों के जैसे बे-सबब लटके रहे
उँगलियों के बीच इक सिगरेट सुलगती रह गई
हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे
इतवारनामा: बच्चे बड़े होते हैं, माएं नहीं
मातृत्व एकतरफा पगडंडी है, चलते जाना होता है, रुकने का मन भी करे तो भी. मैं किताबों के पन्ने पलटने लगती हूं, अब समय सरपट दौड़ेगा.
“कुछ शॉपिंग भी की या बुक स्टोर ही गए”, बच्चे देखते ही पूछते हैं.
मैं चोरी पकड़ी जाने वाली नज़र से उन्हें देखती हूं. साथ-साथ ही तो चल रहे थे इनके, फिर भी बराबर रास्ता कहां तय पाए? ये तो बड़े भी हो गए..और मां?
काश नगर में बगुले ना होते
ज्ञान की तलाश प्रकाश है
और प्रकाश की तलाश में भटके हुए
कुछ गिने चुने लोग है
अब आप की बताओ साहब, कि 'इतने' से लोग
दीपक की टिमटिमाहट से जग को रौशन कर पायेंगे !
अब बारी है साप्ताहिक विषय की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का तीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
'ख्वाब'
...उदाहरण...
रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे आंख उन्हीं से चार हुई
चाहे कहो इसे मेरी मोहब्बत, चाहे हंसी में उड़ा दो
ये क्या हुआ मुझे, मुझको खबर नहीं, हो सके तुम्हीं बता दो
तुमने कदम तो रखा ज़मीन पर, सीने में क्यों झनकार हुई
फिल्मः बुढ्ढा मिल गया
https://youtu.be/jFYlChHSdzo
उपरोक्त विषय पर आप को फिल्मी गीत चुनना है
गीत के बोल की चार पंक्तियाँ तथा वीडियो का लिंक देना है
यदि कोई इस विषय पर कविता देने को इच्छुक है तो
स्वागत है, यह क़दम तनिक मनोरंजक भी होगा ऐसा हमारा मानना है
अंतिम तिथिः शनिवार 04 अगस्त 2018
प्रकाशन तिथि 06 अगस्त 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के
सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
आने वाला समय सब के लिये मंगलमय हो......
ये सावन सब के लिये खुशियां लाए.....
बारिश से कहीं भी तबाही न हो.....
पाकिस्तान की नयी सरकार शांती-प्रीय हो.....
आतंकवाद मुक्त विश्व के सपने को साकार करने वाली हो.....
इसी कामना के साथ.....
मिलेंगे.....अगले मंगलवार को.....
धन्यवाद।
मन-मोहक लगता है ये सावन.....
हर तरफ भोले की जय-जयकार होती है.....
प्रत्येक घर देवालय बन जाता है.....
ये क्रम प्रत्येक महिने.....
कभी शिवरात्रि के रूप में....
कभी नवरात्रों के रूप में.....
कभी दिवाली, कभी दशहरा.....
कभी एकादशी, कभी पूर्णिमा, कभी संक्रांति......
नयी-नयी उत्तेजना, प्रेरणा तथा संकल्पों के साथ.....
जहां हमे धर्म-परायण बनाता है.....
हमे जीवन कैसे जीना चाहिये.....
मानव-जीवन का उदेश्य क्या है....
...ये भी सिखाता है.....
ये प्राचीन परंपरा ही.....
घर के बच्चों में संस्कारों का संचार करती है.....
पर हम आज अपनी इन पावन परंपराओं को छोड़कर.....
....
विदेशी संस्कृति को अपना रहे हैं...
इसी लिये हमारे बच्चों के संस्कारों में भी कमी आ रही है.....
रेप, चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है....
हम क्या थे.....क्या हो गये हैं....
भारत-भारती की इन पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया है....
अब पेश है.....
आज के लिये मेरी पसंद.....
तू पत्थर सी मूरत बन जा
सीता का दुख और द्रोपदी अपनी महक लिए है।
जितना भी तपता है सोना उतनी चमक लिए है।
वैसे जूझ, बसो यादों में, सबके लिए मुहुरत बन जा।।
कल की एक जरूरत बन जा। तू पत्थर सी मूरत बन जा।।
भूलोगे कैसे
कुछ गीत मेरे, यूं दोहराओगे तुम,
सूने नैने छलक आएंगे,
कोयल, रुक-रुककर गाएंगे,
जलाएंगे, मन व्याकुल कर जाएंगे....
सीमाओं में कहाँ बँधा है
लिए हाथ में श्रम की लाठी
रच लेते ये नव परिपाटी
सपने आसमान के लेकिन
पाँव तले रहती है माटी
अपनी कूवत से कर लेते
सात समंदर पार
गगन के जाना जिनको पार
सावन
बहनें राह देख रहीं
भाई के आने की
साथ साथ रक्षाबंधन
मनाने की प्यार बांटने की |
हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे ...
बिजलियें, न बारिशें, ना बूँद शबनम की गिरी
रात छत से टूटते तारों को हम गिनते रहे
कुछ बड़े थे, हाँ, कभी छोटे भी हो जाते थे हम
शैल्फ में कपड़ों के जैसे बे-सबब लटके रहे
उँगलियों के बीच इक सिगरेट सुलगती रह गई
हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे
इतवारनामा: बच्चे बड़े होते हैं, माएं नहीं
मातृत्व एकतरफा पगडंडी है, चलते जाना होता है, रुकने का मन भी करे तो भी. मैं किताबों के पन्ने पलटने लगती हूं, अब समय सरपट दौड़ेगा.
“कुछ शॉपिंग भी की या बुक स्टोर ही गए”, बच्चे देखते ही पूछते हैं.
मैं चोरी पकड़ी जाने वाली नज़र से उन्हें देखती हूं. साथ-साथ ही तो चल रहे थे इनके, फिर भी बराबर रास्ता कहां तय पाए? ये तो बड़े भी हो गए..और मां?
काश नगर में बगुले ना होते
ज्ञान की तलाश प्रकाश है
और प्रकाश की तलाश में भटके हुए
कुछ गिने चुने लोग है
अब आप की बताओ साहब, कि 'इतने' से लोग
दीपक की टिमटिमाहट से जग को रौशन कर पायेंगे !
अब बारी है साप्ताहिक विषय की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का तीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
'ख्वाब'
...उदाहरण...
रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे आंख उन्हीं से चार हुई
चाहे कहो इसे मेरी मोहब्बत, चाहे हंसी में उड़ा दो
ये क्या हुआ मुझे, मुझको खबर नहीं, हो सके तुम्हीं बता दो
तुमने कदम तो रखा ज़मीन पर, सीने में क्यों झनकार हुई
फिल्मः बुढ्ढा मिल गया
https://youtu.be/jFYlChHSdzo
उपरोक्त विषय पर आप को फिल्मी गीत चुनना है
गीत के बोल की चार पंक्तियाँ तथा वीडियो का लिंक देना है
यदि कोई इस विषय पर कविता देने को इच्छुक है तो
स्वागत है, यह क़दम तनिक मनोरंजक भी होगा ऐसा हमारा मानना है
अंतिम तिथिः शनिवार 04 अगस्त 2018
प्रकाशन तिथि 06 अगस्त 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के
सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
आने वाला समय सब के लिये मंगलमय हो......
ये सावन सब के लिये खुशियां लाए.....
बारिश से कहीं भी तबाही न हो.....
पाकिस्तान की नयी सरकार शांती-प्रीय हो.....
आतंकवाद मुक्त विश्व के सपने को साकार करने वाली हो.....
इसी कामना के साथ.....
मिलेंगे.....अगले मंगलवार को.....
धन्यवाद।