निवेदन।


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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

1994...दुनिया के पूर्वी छोर न्यूज़ीलैंड से नव वर्ष का आरंभ होता है...

सादर अभिवादन। 

वर्ष 2020 का आज अंतिम दिन!

दुनिया के पूर्वी छोर न्यूज़ीलैंड से नव वर्ष का आरंभ होता है और उत्सव की लहर भारत होते हुए पश्चिमी छोर पर स्थित अमेरिका में  जाकर थमती है। समय की गणना पूर्व से पश्चिम की ओर चलती है। हालांकि दिसंबर 2019 में ही चीन में करोना की चर्चा फैल गई थी किंतु फरवरी-मार्च 2020 से दुनिया इस बीमारी के प्रति गंभीर हुई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही इसे वैश्विक महामारी घोषित कर चुका था। 

भारत ने लॉकडाउन का भयावह दौर झेला फिर इसमें छूट मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध, अर्थदंड और हिदायतें अब भी ज़ारी हैं। इस बीच वैक्सीन उपलब्ध होने लगी जिसे लेकर अनेक किंतु-परंतु आज भी चर्चा में हैं। इसी बीच इसी माह ब्रिटेन से ख़बर मिली कि करोना ने ख़ुद को अब अपग्रेड कर लिया है अर्थात इसकी नई प्रजाति विकसित हो गई है। 

हमारे देश में इस समय सर्वाधिक चिंता का विषय है 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की सरहदों पर कड़ाके की सर्दी झेलते हुए किसान आंदोलनरत हैं केन्द्र सरकार के तीन नए कृषि सुधार क़ानूनों को निरस्त कराने को लेकर। सरकार की ओर से कल किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत की गई जिसकी एक और तारीख़ 4 जनवरी 2021 तय हुई। इस बीच कई किसानों की आंदोलनस्थल पर मौत हो चुकी है। 

बहरहाल हम आशावान हैं कि वर्ष 2021 सबके लिए सुखमय और आनंददाई हो। 

'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार की ओर से आपको नव वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ।

 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

2020--एक विश्लेषण...उर्मिला सिंह

भूल गया था इंसान अपनी क्षमता और बिसात

अहम भाव उसका समझा था स्वयंको भगवान

दुखी प्रकृति प्रदूषण से दूषित नदिया जलाशय

लॉकआउट होते मानो लौट आई हो सब में जान।

क्या कहें... विभा रानी श्रीवास्तव

 

तारीख और दिन बदल जाएंगे

जंग तो जारी है

तैयारी अभी अधूरी है

बहुत सी कमियों के बाद भी मुस्कुराते हुए

नूतन दिवस की शुभकामनाओं के संग

प्रतीक्षा

नए सूरज की

इन्द्रधनुष सभी के लिए

कैसे भूल सकता हूँ तुम्हें... ज्योति खरे



कैसे भूल सकते हैं तुम्हें

दो हजार बीस

कि, तुमने हमारी पीठ पर

चिपकाकर

निरादर औऱ अपमान की पर्ची

रोजी रोटी के सवालों को धकियाकर

दौड़ा दिया था

राष्ट्रीय राजमार्ग पर

पूर्ण होता देख सपना...अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'

 

है वही संसार सारा

आज लगता देख अपना

प्रेम से पावन धरा ये

पूर्ण होता देख सपना

जीतता है युद्ध जीवन

सोच कर ये मन लहकता।।

 जैसी बहे बयार (लघुकथा )... सुजाता प्रिये 

पड़ोस के बच्चे किलोल करते हुए पूछते क्या दादी! हर महीने आप लोग के नहाने का अंदाज बदल जाता है। कार्तिक में सूर्योदय पूर्व नदी-स्नान और अगहन में धूप में गर्म किए हुए जल-स्नान और पूस में एक-दो दिन बाद-स्नान।यह कौन-सा फार्मूला है स्नान करने का? जरा हमें भी बताइए। झुमनी दादी ने कहा-जैसी बहे बयार,पीठ तब तैसी कीजे। ...

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे 2021 में। 

 रवीन्द्र सिंह यादव

 

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

1993..शउर बताता वर्ष 2020




 ।। उषा स्वस्ति ।।

"  शब्द से खुशी ,

 शब्द से गम!

शब्द से पीड़ा , शब्द ही मरहम!

शब्द भी गज़ब की चीज है!

        महके तो लगाव..और..

          बहके तो घाव..."

अज्ञात

जीवन की हर छोटी बड़ी बातों का महत्व बताती 

2020 नकारात्मकता को साकारात्मकता में बदलने का शउर बताता वर्ष फिसल रहा.. 

हम सभी संभल कर बढ़ रहे..है ..न.. 

तो फिर बढ़ते हैं चुनिंदा लिंको पर..✍️

🔹🔹



ज़िंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं

ज़िंदगी की कई उड़ान अभी बाकी हैं' 

वर्ष 2020 दुनिया भर को हैरान कर देने वाला वर्ष रहा है। 

क्षणिक सी मुस्कान, मायूसी, उदासी, अकेलेपन और 

अफ़सोस का वर्ष। सब तरफ वीराना, 

खामोशी और अशांति का आलम छाया ...

🔹🔹


आसमान खुला है...रिश्ते

बंधे होंगे जो प्रेम के धागे से,

तभी टिक पायेंगे

समय की तेज आंच पर रिश्ते ।।

होगा गहरा विश्वास एक दूजे पर,

तभी बुझ पाएंगे 

एक एक बात मन की,

बंधे होंगे ....

🔹🔹




गिरी शिमला में बर्फ़ 
और यहाँ 
हो रहीं हैं यादें 
गर्म मेरी
वो रोज़ दो घण्टे चलना 
तुम्हारे साथ 
समर हिल के घर से 
जाखू हिल के स्कूल तक

🔹🔹


ज़िद

हरेक बात पर कर रहे जो ये ज़िद

कहाँ से हो सीखे अजी तुम ये ज़िद 

वज़ह-सी वज़ह तो है कोई नहीं ,

बस ज़िदके लिए कर रहे हो ये  ज़िद...

🔹🔹


 मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़ जिसका

उन हाथों की लकीर देखनी है 

 जिसने रांझा के लिए अपना सब कुछ छोड़

 दिया मुझे इश्क़ मे दीवानी हीर देखनी है 

🔹🔹

।। इति शम ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

1992 ..स्वार्थ छोड़कर, करें भलाई, ईशदूत बन, संग चलें हम

सादर वन्दे
आ रहा है
और जा भी रहा है
चलता रहेगा
आना-जाना
सालों का भी
और इंसानों का भी
रुकता नहीं है 
ये आना-जाना..
.....
रचनाएँ..

कारण क्या है...!! .... साझेदारी


जलते देख रहे हो तुम भी 

प्रश्नव्यवस्था के परवत पर

क्यों कर तापस वेश बना के, 

जा बैठै बरगद के तट पर   

हां मंथन का अवसर है ये  

स्थिर क्यों हो कारण क्या है ?



ये कैसी लगन ....आत्म रंजन

वो कभी प्रेम से चूमे गए,

कभी आँसुओं में भीगे ख़त ,

वो सूखे गुलाब जिनमें 

ताज़ा है इश्क की महक,

वो तुम्हारे साथ खिंचवाई तस्वीरें 


साल मुबारक ..अमृता प्रीतम ...उन्मुक्त उड़ान

जैसे दिल के फ़िक़रे से

एक अक्षर बुझ गया

जैसे विश्वास के काग़ज़ पर

सियाही गिर गयी

जैसे समय के होंटो से

एक गहरी साँस निकल गयी

और आदमज़ात की आँखों में

जैसे एक आँसू भर आया

नया साल कुछ ऐसे आया...



सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ....दिव्य नर्मदा

कब्ज़ा, सूद, इजारादारी

नस्लभेद घातक बीमारी

कंकर-कंकर में है शंकर

हर इंसां में है पैगंबर

स्वार्थ छोड़कर, करें भलाई

ईशदूत बन, संग चलें हम

सल्ललाहो अलैहि वसल्लम


दर्द लिखे बूटे .... शरद सिंह

मन के रूमाल पर

दर्द लिखे बूटे।

रिक्शे का पहिया

गिने

तीली के दिन

पैडल पर पैर चलें

तकधिन-तकधिन

....
बस
अब अगले वर्ष
सादर


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