जोर की बारिश
और बर्फबारी
हिमांचल प्रदेश में
बिजली भी गुल
हार गए हिम्मत
भाई कुलदीप जी
फोन कर दिया....
जल्द फोन किया भाई ने...
चलिए रचनाओं की ओर...
बचपन,यौवन,प्रौढ़,बुढ़ापा
तन के साथ-साथ
मन की भावनाओं का आलोड़न
महसूस तो होता है,
पर स्मृतियों में कैद पल
भींच लेते हैं सम्मोहन में
फिर, उलझा मन लौटता है
स्मृतियों के परों से वापस
असंतोष वर्तमान का
कानों में फुसफुसाता है।
हिमालय पर वर्ण पिरामिड ..कुसुम कोठारी
हूँ
मैं, भी
बहती
अनुधारा
अविभाज्य सी
उन्नतशील का
बहता अनुराग।
पास की झुग्गी में बहुत ज़ोर शोरशराबा हुआ
वो दिखा दांत पीसता हुआ
जबड़े कसे ऐसे, जैसे चबा जाएगा
खा जाएगा
उसे कच्चा ही
इतना समझा ही
था कि वह भौंकने लगा
कुत्ते की तरह नोचने लगा
"पहले मैं ही जाऊंगी" ... रीना झा शर्मा
सुनो, इस आंगन में,
तुम ही लेकर आए थे..
इस आंगन से,
तुम ही लेकर जाना....
साथ निभाया तो, है अब तक तुमने...
अंत तक तुम ही साथ निभाना...
तुम कैसी हो कुछ हाल कहो ..अमित 'केवल'
कुछ मेरी भी सुनती जाओ
और कुछ अपने सवाल कहो
अब मिले हो कितने सालों बाद
कैसे गुज़रे ये साल कहो
मेरे भी दिल की कुछ सुन लो
कुछ अपने भी हालात कहो
चलते -चलते..
समझ में
आने तक बहुत देर हो जाना
गली का
व्यक्तित्व में ही शामिल हो जाना
गली का गली में जम जाना
उस दिन का इंतजार
कयामत का इंतजार हो जाना
पता चले जिस दिन
छोड़ दिया है
तूने भी 'उलूक'
अब
उस गली से आना जाना ।
....
बस
सादर
शानदार तुरत-फुरत अंक..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
आभार दिग्विजय जी।
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी नमस्कार! सुन्दर संयोजन, प्रशंसनीय प्रस्तुति के लिए आप का बहुत बहुत आभार..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको मेरा नमन और वंदन..सादर..।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा अंक
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,सभी लिंक मनोहर ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत-बहुत आभार दी।
जवाब देंहटाएंसादर।