सूने तमोमय पंथ पर,
अभ्यस्त मैं अब तक विचर,
नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ
क्यों पथ नया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
निश्चित अँधेरा तो हुआ,
सुख कम नहीं मुझको हुआ,
दुविधा मिटी,
यह भी नियति की है
नहीं कुछ कम दया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
दो-चार किरणें प्यार कीं,
मिलती रहें संसार की,
जिनके उजाले में लिखूँ
मैं जिंदगी का मर्सिया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
नव वर्ष सब के लिये शुभ हो......
इस आशा के साथ.....
आज के लिये मेरी पसंद.....
पड़ने वाले नये साल के हैं कदम
कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है,
अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है,
ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!
पीर बनती पर्वती है
शून्य जीवन हाथ खाली
भेंट में बस मौन पाते
झेलते हैं रोज संकट
घाव मिलते हैं अनेकों।
अमर शहीद ऊधम सिंह जी की १२१ वीं जयंती
डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए।
प्यार की मिसाल कायम करती अनोखी शादी जो आपने कभी नहीं देखी होगी!!
अवधेश की इस जिद पर डॉक्टर्स की टीम ने भी घुटने टेक दिए। डॉक्टर्स से परमिशन लेकर आरती को ऐंबुलेंस से घर लाया गया। स्ट्रेचर पर ही लेटी आरती के साथ अवधेश ने शादी की रस्में निभाईं। उसकी मांग भरी और फेरे लिए। उसे वापस लेकर अस्पताल पहुंचा। अगले दिन आरती का ऑपरेशन हुआ और ऑपरेशन के फॉर्म में भी बतौर पति ही अवधेश ने दस्तखत किये। अपनी शादी के बाद से ही पति अवधेश पत्नी की सेवा में हैं और एक पल के लिए भी उनकी नजरों से ओझल नहीं हो रहे हैं। मामले के मद्देनजर सबसे प्यारी बात ये है कि अवधेश आरती को भरोसा दिला रहे हैं कि वो जल्द से जल्द पहले जैसी हो जाएगी। वाक़ई जो अवधेश ने किया वो काबिले तारीफ है। यदि आरती की बात की जाएं तो ऐसा सच्चा प्यार करनेवाला पति मिलना तो नामुमकिन ही रहता है। क्योंकि अवधेश का ये प्रेम शब्दों में बांधने से परे है। आज के दौर में जब अधिकतर युवाओं के लिए प्रेम शब्द का अर्थ सिर्फ वासना और हवस की पूर्ति है, इस अंधकार में अवधेश एक सूर्य समान है
कठपुतली
हम बेखबर,
बस अपनी ही गाथा बाँचे,
बनते हैं नादान!
ये है उसकी माया,
तू क्यूँ भरमाया! खेल-खेल में,
उसने ये रंग-मंच सजाया,
ख़्वाब कहीं और करवट कहीं बदलते हैं -
ज़माने से मैं कब मुख़ातिब था
मुझे सुनने वाले मुझसे पूछते हैं
अहसास एहसान का होता
तो ये दिन न होते
आज के लिये बस इतना ही.....
फिर मिलेंगे.......
नव-वर्ष में......
बहुत बहुत शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति..
आभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंपल बदलते दिन रात बदलते सप्ताह बदलते माह बदलते साल बदल जाता
काश ना मन बदलते ना नोक झोंक बदलते ना रिश्ते फटेहाल हाल बदल जाता
बहुत सुन्दर रहा पाँच लिंकों का आनन्द।
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मेरी पोस्ट का लिंक साझा करने लिए धन्यवाद।
सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,कुलदीप भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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