निवेदन।


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बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

1202..कुछ कहता रहता बज - बज कर डूबे प्रकाश में दिशा छोर..



।।सरस प्रभात।।

नभ की है उस नीली चुप्पी पर

घंटा है टंगा सुंदर, 

जो घड़ी - घड़ी मन के भीतर

कुछ कहता रहता बज - बज कर

डूबे प्रकाश में दिशा छोर

अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"

"आई सोने की नई प्रात

कुछ नया काम हो ,नई बात 

तुम रहो स्वच्छ मन,स्वच्छ गात,

निद्रा छोड़ो,रे गई ,रात!

सुमित्रा नंदन पंत

💢

इसी सजग, सजल सोच के साथ आज की लिंकों पे नजर डालते हुए रूबरू होते हैंं ब्लॉग  अन्तर्गगन  के गजल से  ..✍




गुजरते ही लोग रख देंगे तुम्हें भी ताख पर।



गुरूर करना ठीक नहीं होता किसी के लिए,

गर्दिशे खाक हुए जो थे जमाने की आंख पर ।



रौशन थे जो सितारे फलक पर कभी,

बुझ गये सभी चिता की ठंडी राख पर।

💢



आज शरद पूर्णिमा है,सुना है चाँद बहुत बड़ा होता है,बहुत चमकिला भी आज के दिन,बड़ा दिल भी होता है उसका, हर किसी के ख्वाब...

💢


पटना के मौर्या लोक में कुल्हड़ की चाय बेचते है दाढ़ी वाले बाबा। चाय प्रेमी होने की वजह से चला गया। कुछ भी पूछिये, हिंदी कम, अंग्रेजी ज्यादा बोलते है।

खैर, चाय ली और जैसे ही होठों से लगाया उसकी कड़क सोंधी खुशबू और स्वाद मन में घुलता चला गया। आह। एक कप और लिया।..

💢



हममें हमको बस...'तुम' दे दो

कुछ उलझा-उलझा सा रहने दो

कुछ मन की हमको कहने दो

आँखों से बोल सको बोलो

कुछ सहमा-सहमा सा चलने दो

हर बात गुलाबी रातों की

हया के पहरे बैठी है..

💢


प्राचीन काल में हर ऐरी-गैरी, नत्थू-खैरी फ़िल्म देखना मेरा फ़र्ज़ होता था. इसका प्रमाण यह है कि मैंने टीवी-विहीन युग में, सिनेमा हॉल्स में जाकर,अपने पैसे और अपना समय बर्बाद कर के,अभिनय सम्राट जीतेंद्र तक की ..
💢
अमित निश्छल जी खूबसूरत रचना के साथ आज यही तक..


भटका फिरता निरा अकेला

कर्तव्यों के मोढ़ों पर

रात चढ़े निर्जन राहों में

ऊँचे गिरि आरोहों पर,

निर्भयता इतनी आख़िर यह

चाँद कहाँ से लाया है?

या, प्रपंच की पूजा करता

सौतन को ले आया है?

💢

हमक़दम के विषय के लिए

यहाँ देखिए


।।इति शम।।

धन्यवाद
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍


मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

1201...बकना जरूरी है ‘उलूक’ के लिये, पढ़ ना पढ़, बस क्या लिखा है ये मत पूछ

सादर अभिवादन....
ऋतु शरद आ ही गई
रहेगी कुछ महीने
फिर चली जाएगी
ग्रीष्मा को छोड़कर
हमारे पास
आना-जाना तो लगा रहता है....
हम भी सोच रहे हैं कुछ दिन शिर्डी हो आएँ
सोच तो सोच ही है...
चलिए देखें आज के पिटारे में क्या है......
विषय हम-क़दम का तिरालीसवाँ अंक
एक चित्र है इस बार
इसी चित्र को देखकर आपको कविता बनानी है
प्रेषण तिथिः 03 नवम्बर 2018
प्रकाशन तिथिः 05 नवम्बर 2018
रचनाएँ प्रारूप में ही आनी चाहिए
अब चलें नियमित अंक की ओर...

नाप के नक़्शे बनाए ... क्या हुआ
क्या खज़ाना ढूंढ पाए ... क्या हुआ

नाव कागज़ की उतारी थी अभी
रुख हवा का मोड़ आए ... क्या हुआ

हर नज़र में तेरी ही तलाश हैं...,
हर धड़कन को तेरा ही इंतज़ार हैं..! 
हर फूल तेरे ही नाम हैं...,
हर ख़ुशबू में तेरा ही ख़ुमार हैं...! 
गिरती बरसात की बूंदे जब भी...,
खोले पिटारा तेरी ही यादों का...! 
ठंडी चलती पुरवाई में तेरा ही एहसास हैं...,

बेइंतेहा खूबसूरत नज़ारा
अमनो-चैन की घड़ी
और दिलों में खुशी
पाकीज़ा चांदनी सी ..
कुछ देर ही सही,
इस बेशुमार दौलत का 
आज हर कोई हक़दार है ।


कुछ वादों की हवा चली
कुछ मुलाकातों की हवा चली
कहीं तानाकशी का दौर है
कहीं झूठी अफवाहों का जोर है

आज और कल...मीना भारद्वाज
जब से मिट्टी के घड़ों का चलन घट गया । 
तब से आदमी अपनी जड़ों से कट गया ।। 

कद बड़े हो गए इन्सानियत घट गई । 
जड़ें जैसे अपनी जमीं से कट गई ।।


सोचता हुआ 
बकवास 
करने वालों की 
कोई नहीं 
होती है पूछ 

जय हिन्द 
भारत माता की जय 
वन्दे मातरम की 
जरूरी है बहुत 
कब्रगाहों में भी गूँज। 

आज बस इतना ही...
अच्छा तो हम चलते हैं
यशोदा









सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

1200....हमक़दम का बयालीसवाँ क़दम

आज पाँच लिंक का 1200 वाँ अंक है।
कारवाँ ख्वाबों भरा अनवरत चलता रहे
हमक़दम जुड़ते रहे दीप तम हरता रहे
"पाँच लिंक का आनन्द" परिवार 
आप सभी पाठकों साहित्य सुधि जनों एवं समस्त सहयोगियों का हृदय से आभार और अभिनंदन करता है।
आप सभी का अमूल्य सहयोग सदैव अपेक्षित है।

हमक़दम के इस अंक में मुनव्वर राणा जी की लिखी ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ दी गयी थी।
त्योहारों के व्यस्त दिनचर्या में भी कुछ रचनाकारों ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा की खुशबू से मंच को सुवासित किया है।
हम आप सभी का हृदय से नमन करते हैं।
इस बार रचनाएँ कम आयी हैं पर जो आयी है उसकी सराहना शब्दों में करना संभव नहीं।

सबसे पहले पढ़िए-
मुनव्वर राणा जी की लिखी पूरी ग़ज़ल
पढ़िए-

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं 

जाओ जा कर किसी दरवेश की अज़मत देखो
ताज पहने हुए पैरों में पड़े रहते हैं

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं

मैंने फल देख के इन्सानों को पहचाना है
जो बहुत मीठे हों अन्दर से सड़े रहते हैं

अब चलिए आपके द्वारा सृजित रचनाओं के संसार में-
★★★★★


अचानक जो पहुँचे तो
सतही बातों के संग रेस्टोरेंट का
ज़ायकेदार खाना और बाज़ार की
मंहगी मिठाई जब खाई तो  
जल्दी-जल्दी में पकी तेरे हाथों की
चूल्हे की गरमागरम रोटी
आलू मटर की चटपटी सब्ज़ी,
धनिये की चटनी और
गुड़ मक्खन की छोटी सी डली
बहुत याद आई !
★★★★★


जतन से रोपे पौधों को अब कहाँ

गाय बकरी और भेंड़ कहा पाएंगे 
अब वो लकड़ियों की आड़ वाली 
दीवार नही, 

★★★★★


अधूरे ख्वाब और टूटे हुए हैं अरमान तो क्या
दिल के कोने में ये भी एक सौगात रखता हूँ
  पूछ सकता हूँ खुदा से दिल टूटने का सबब
खुदा के दर पर इतनी औकात रखता हूँ
★★★★★

 नानी,दादी ,अम्मा ,मौसी
    सब चौके में जुट जाती

     रोज -रोज कुछ नया बनाती

     और प्यार से सबको खिलाती

       न कोई शिकवा ,न शिकन
       रात ढले सबके बिस्तर छत पर ही लग जाते थे
       वाह !! वो दिन भी क्या दिन थे ...
        अब कहाँ वो दिन ,वो आपसी प्रेम

         सब अपने में व्यस्त ..
★★★★★★

कोई अपना कीमती
समय निकाल कर
मिलने आया है
सब यहीं बह जाता 
मिट्टी के घड़े के 
रिसते पानी की तरह
रह जाता है पानी
बिना ठंडा हुए
न तो मिठास
★★★★★★


सीधा-सादा जीवन जिनका,

             और होते हैं उच्च विचार।

वे ही जन इस जगत का,
             करते हैं सदा परिष्कार।

करूणा के बादल बरसाते,
             स्नेह-सुधा लुटाते हैं।
दीन-दुखी की सेवा कर,
             तन-मन से हरषाते हैं।

★★★★★★


छोटे से घर में भी
 मिलजुलकर रहता परिवार
प्रेम बरसता प्रतिफल वहां
होता शांति का आवास
कितने भी हो ऐशो-आराम
पर खुशियां नहीं मिलती

दिल को सुकून मिलता
★★★★★


आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया 
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
 आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।


अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।

अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ।

श्वेता


रविवार, 28 अक्तूबर 2018

1199...."चिट्ठे ‘उलूक टाइम्स’ तक पहुँचे 18 लाख व्यूज़

सादर अभिवादन...
पहली कोशिश..
मोबाईल प्रयोग की..
होंगी गलतियाँ ढेरों...
प्रारम्भ तो कर दिया..
परिणाम चाहे जो हो...
कहते हैं न....
सर डाला ऊखल में..तो
मूसल से क्या डरना......
चलें पसंदीदा रचनाओं की ओर...।

बर्तन माझती कुम्हारिन....ज़फ़र

किसी की आँख  हैं पीली किसीकी आँखे गुलाबी हैं,
बर्तन माझती कुम्हारिन के हुस्न पर ग़रीबी हावी हैं..!!!

प्रेम की दीपक तुमने हज़ारो किताबो में जला रखे,
मुफलिशी और भूख को मैंने कलाम अपनी चढ़ादी हैं,

चाँद सा....पंकज प्रियम

क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

चाहत होगा चकोर का,क्या होगा भोर का
क्यूँ इंतजार करना,ये मुखड़ा तेरा चाँद सा


करवाचौथ....अनुराधा चौहान

माथे पर कुमकुम सजे
करें सोलह श्रृंगार
सुहागिनें मनाएं मिलकर
करवाचौथ का त्यौहार

मेहंदी लगे हाथों में
रंग-बिरंगी चूड़ियां
आलता लगे पैरों में
छनकती हैं पायलिया

तेरी याद आई....साधना वैद

बंद घर के दरवाज़े,
बंद दिल के दरवाज़े
घंटी बजा जब भी अन्दर आई
पग ठिठके, मन उमड़ा,
हूक सी उठी दिल में और
जाने क्यों अम्मा तेरी
बहुत याद आई !


आओ न प्रेम को अमर कर दो....अभिलाषा (अभि)

तुम्हारे लिए कोई कसम न हो
फिर भी पूरा जनम है
सात फेरे न सही
हम तेरे तो हैं,
सुहाग का चूड़ा, बिछुआ, महावर
आरती का थाल
सब कुछ सजाया है

शुभकामनाएँ उलूक को
अट्ठारह लाख पृष्ठ दर्शन लांघने हेतु

डॉ. सुशील कुमार जोशी

किसी को लग रहा है 
कबड्डी चल रही है 

जी नहीं 
ये एक जगह की 
बात नहीं है जनाब 

देश में 

हर गली मोहल्ले में 
ध्यान से देखिये जनाब 

कान खोलिये नाक खोलिये 
आँख खोलिये जनाब 


-*-*-*-

आज्ञा दें
यशोदा




शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

1198... परीक्षा-परिणाम


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
जिन्दगी का हर एक पल है
हमारी नज़र में तुम वह गम हो
बीस ओवरीय प्रतियोगिता में
देश क्या जीता
बाजार के साथ तुम्हारे हाथ लग गया
जैसे जनता को बहलाने वाला एक पपीता


परीक्षा-परिणाम

वैसे इस एक दिन वह जिस बनावटी खुशी और
जिसका श्रेय खुद लेने की खुशफहमी पालते हैं,
वह उनकी है ही नहीं। यह सब वह मकड़जाल है
 जिसमें पूरे तंत्र को उलझाकर एक हौवा बनाया हुआ है।
एक ऐसी कुव्यवस्था का इंतजाम है कि
 बढ़ते बच्चे अधिकाधिक सवाल न करें।


जब डाक आती थी

 दूर गए पति का पत्नी के लिए पत्र मे पैसा
बच्चों के परीक्षा का परिणाम
रिजल्ट पाने के लिए उसके इर्दगिर्द घूमना
डाकिया को मिठाई खिलाना
वह भी घर के सदस्य जैसा

जिंदगी सिर्फ कविता नहीं

काली सूची में डालता
पलकों को गीला करने वाले
कुटिल वाक्यों को
मैं छांट कर
उन शब्दों को
हरी दूब पर
बिखरा देता
जिन शब्दों में
बसते हैं प्यार - दुलार


कविता
रूपक से इस अर्थ में भिन्न होता है कि प्रतीक का अस्तित्व वास्तविक होता है, जबकि रूपक का चिह्न स्वेच्छाचारी बिचौलिए का होता है। यह संकेत से भी भिन्न होता है। संकेत तो जिस के बारे में कहा जा रहा है और जो कहा जा रहा है, उसमें एकता स्थापित करने को होता है। लेकिन प्रतीक में एक के भावमय से दूसरे बात की जाती है। अब शब्द स्वयं ही प्रतीक हैं, तो भी कविता में शब्द एक बिम्ब और अवधारणा को स्युक्त कर बनता है। ये व्यक्तिगत भी हो सकते हैं और सार्वजनिक भी। उनकी एक व्याख्या भी हो सकती है और अमूर्त भी। ये संरचनात्मक भी हो सकते हैं।सर्जनात्मक भी।

<><>
फिर मिलेंगे...
हम-क़दम का बयालिसवाँ अंक का विषय..
आदरणीय मुनव्वर जी राणा का एक अश़आर
.....
उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं
......
आप सभी को को इस श़ेर को दृष्टिगत रखकर
कविताएँ लिखनी है....
रचना भेजने की अंतिम तिथिः आज शनिवार 27 अक्टूबर 2018
प्रकाशन तिथिः 29 अक्टूबर
रचनाएं ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप में ही आनी चाहिए





शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

1197...कौन कहता है पत्थर बेजुबां होते हैं..

कौन कहता है पत्थर बेजुबां होते है
मैंने देखा है उन्हें दर्द से तड़पते हुये।
शान से नभ चूमते बादलों के संग अठखेलियाँ करते पहाड़ प्रकृति का अनुपम वरदान है जो पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पर हम मानव कितने स्वार्थी है न लालच के वशीभूत होकर अपने विनाश को आमंत्रित कर रहे हैं।
राजस्थान के अरावली क्षेत्र की 13 पहाडियाँ गायब 
हो गयी, 115,34 हेक्टेयर पहाड़ का सीना विदीर्ण 
कर दिया गया।  ऐसा ही चलता रहा तो अब डर सता रहा कि विश्वप्रसिद्ध अरावली की पहाड़ियाँ आने 
वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास बनकर 
पुस्तकों में रह जायेंगी।
 ऐसा मात्र राजस्थान में ही नहीं हुआ है ऐसी 
कहानियाँ तकरीब़न देश के हर पहाड़ और पठार आच्छादित राज्य में सुनने 
को मिल जायेंगी।
आखिर क्यों विवेकशील मानव नहीं समझ 
पाता कि प्रकृति की समृद्धि ही उसके स्वास्थ्य 
और सुख की  कुंजी है।
चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
★★★
आदरणीय विश्वमोहन जी

मुंह को सी लो, कुछ न बोलो
चाहे ‘ मा ओ ‘, चाहे ‘ भाई ‘
पंथ पंथ मौसेरे भाई।

और जनता की बात न पूछो
दोनों की बस एक लुगाई!
‘ फेक - नेक ‘  मौसेरे भाई।
★★★★★
आदरणीय रवींद्र जी
ये 
बाग़ 
सागर 
फल फूल 
कारोबार में 
आलय प्रत्यय 
पुल्लिंग अधिकारी।

★★★★★★
हर प्रश्न का उत्तर यदि हाँ या न में होता
आदरणीया डॉ.वर्षा सिंह



सच तो यह है कि एक ख़ामोशी
कह रही आज शोर की गाथा

धुपधुपाती है बत्ती सी
सांस का देह से यही नाता



★★★★★★

आदरणीया नीलम जी 





वृक्षों का जमघट कहाँ लग पता है।
पीड़ा कैसी भी हो,
आँखों के रास्ते बाहर फैल ही जाती है।
दर्द का मंजर समेटे,
काले बादलों में मिल,
बाढ़ ले ही आती है।
ले ही आती है!!!

★★★★★★★
चलते-चलते पढ़िये उलूक के पन्नों.से डॉ.सुशील सर की अभिव्यक्ति

जल्दी मची 

दिखने लगी 
अपनी छोड़ 
दूसरे की पकड़ 

नैया पार हो जाने की
★★★★★
आज का अंक आपको कैसा लगा?
कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव प्रतिक्रिया के द्वारा अवश्य व्यक्त करें।

हमक़दम का विषय जानने के लिए

यहाँ देखिए

एक विशेष सूचना:
इस बार के हमक़दम के विषय पर आपकी रचनाएँ स्पष्ट नहीं हो पा रही हैं तो कृपया आप सबसे विनम्र निवेदन है कि जो रचना हमक़दम के लिए है उस रचना के ऊपर या नीचे  हमक़दम लिखकर हाईलाइट अवश्य करिये।

मुझे आज्ञा दें।

कल आ रही है आदरणीया विभा दी अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।


--श्वेता सिन्हा

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