।।सरस प्रभात।।
नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है टंगा सुंदर,
जो घड़ी - घड़ी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज - बज कर
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"
"आई सोने की नई प्रात
कुछ नया काम हो ,नई बात
तुम रहो स्वच्छ मन,स्वच्छ गात,
निद्रा छोड़ो,रे गई ,रात!
सुमित्रा नंदन पंत
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गुजरते ही लोग रख देंगे तुम्हें भी ताख पर।
गुरूर करना ठीक नहीं होता किसी के लिए,
गर्दिशे खाक हुए जो थे जमाने की आंख पर ।
रौशन थे जो सितारे फलक पर कभी,
बुझ गये सभी चिता की ठंडी राख पर।
आज शरद पूर्णिमा है,सुना है चाँद बहुत बड़ा होता है,बहुत चमकिला भी आज के दिन,बड़ा दिल भी होता है उसका, हर किसी के ख्वाब...
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पटना के मौर्या लोक में कुल्हड़ की चाय बेचते है दाढ़ी वाले बाबा। चाय प्रेमी होने की वजह से चला गया। कुछ भी पूछिये, हिंदी कम, अंग्रेजी ज्यादा बोलते है।
खैर, चाय ली और जैसे ही होठों से लगाया उसकी कड़क सोंधी खुशबू और स्वाद मन में घुलता चला गया। आह। एक कप और लिया।..
हममें हमको बस...'तुम' दे दो
कुछ उलझा-उलझा सा रहने दो
कुछ मन की हमको कहने दो
आँखों से बोल सको बोलो
कुछ सहमा-सहमा सा चलने दो
हर बात गुलाबी रातों की
हया के पहरे बैठी है..
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प्राचीन काल में हर ऐरी-गैरी, नत्थू-खैरी फ़िल्म देखना मेरा फ़र्ज़ होता था. इसका प्रमाण यह है कि मैंने टीवी-विहीन युग में, सिनेमा हॉल्स में जाकर,अपने पैसे और अपना समय बर्बाद कर के,अभिनय सम्राट जीतेंद्र तक की ..
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भटका फिरता निरा अकेला
कर्तव्यों के मोढ़ों पर
रात चढ़े निर्जन राहों में
ऊँचे गिरि आरोहों पर,
निर्भयता इतनी आख़िर यह
चाँद कहाँ से लाया है?
या, प्रपंच की पूजा करता
सौतन को ले आया है?
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍