निवेदन।


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शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

3532....जीवन रीत जायेगा

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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भारतीय हिंदू त्योहारों के समृद्ध परपंरा में
 शक्ति-जागरण के विविध रूप दृष्टिगोचर हैं। । मार्कण्डेय पुराण में दुर्गासप्तशती वर्णित है। पुराण ज्ञान की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं ये पुराने आख्यान को नवीनता देकर सत्य की ओर उन्मुख करने के साधन हैं। दुर्गा के नौ रूपों को क्रम से समझना स्वयं में शक्ति का संधान है। 

शक्ति की उपासना के लिए व्रत, संकल्प, पूजा की नवरात्रियों में व्यवस्था कई कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है। विविध देव-तेज का संघनित-एकीकृत बल ही शक्ति है जिससे अंधकार हार जाता है। देवीकवच में शक्ति के नौ रूपों का वर्णन है। एक-एक रूप के लिए एक-एक दिन निर्धारित है। बिखरी हुई शक्ति को एकीकृत करना और इसी एक महाशक्ति के विविध रूपों को समझना ही नवरात्रि का उद्देश्य है। व्रत करके, पूजा में प्रवृत्ति के माध्यम से संसार से निवृत्त होकर स्वयं में शक्ति को जगा लेने के लिए ही नवरात्रि है। नवरात्रि व्रत शरीर और मन का शोधन करता है। देवी उपासना की महत्ता का गुणगान अनंत है इसलिए
आइये अब अध्यात्मिकता से सांसारिकता की ओर उन्मुख हों, आज के अंक की रचनाओं का आस्वादन करें।

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बरसत भीगी भीज लुकानी

कंबहुँ करी  आनाकानी 

चलनी भीतर रोक  पाई

अपना जोगा निथरा पानी 

ना घइला मैं ना थी रसरिया

ना कुइयाँ की धार बलम जी 


गुमनाम याद



तुम्हे एक बार छूने , महसूस करने 
और सुनने की चाह लिए
जीवन रीत जाएगा,
लेकिन तुम नहीं आओगे।
इसलिए तुम्हें नहीं सोचती


तुम सम्हले नहीं


तुम्हारी यह लड़खड़ाहट 
शायद तुमसे चिपकी ही रहेगी,
दीवार पर चिपके,
किसी इश्तिहार की तरह। । 


सवाल


माँ खामोश थी ! आँखों के सामने कई खूब सम्पन्न मित्रों, परिचितों, नाते रिश्तेदारों के चहरे घूम गए जो विदेशों में बसे अपने होनहार प्रतिभाशाली बच्चों को अंतिम बार देख लेने की साध मन में लिए ही चिर निंद्रा में सो गए ! 



उऋण


"बिना फल वाला और उसकी लकड़ी का भी कोई उपयोग नहीं, भले ही पेड़ पुराना और बुड्ढा हो गया हो लेकिन तपती धूप में लोगो को छाँव देता हो, यदि ऐसा पेड़ आस -पास हो तो प्रदूषण और गर्मी से बेहाल नहीं हो सकते। पेड़ों को बचाना उसके प्रति दया दिखाना नहीं है, बल्कि अपने मानव जीवन के प्रति दया दिखाते हैं।




आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

3530...वही पाना चाहे मन! जो हाथों से परे...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में ताज़ा-तरीन प्रकाशित पॉंच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।  आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

अज्ञात स्वर्ग--

हम
बहुधा उसे
पा कर भी खो देते हैं, बहुत कठिन है अग्नि
वलय से हो कर गुज़रना, हर हाल में तै
है मुट्ठियों में बंद, मोह माया का

एक दिन बिखरना,

जो हाथों से परे

पूर्ण, अतृप्त चाह कहां,

आस लिए, यह मानव, मरता यहाँ,

पाने को, दोनो जहां,

मानव, घृणित पाप करता यहां,

स्वार्थ पले,

वही पाना चाहे मन!

जो हाथों से परे...

जय मैया चंद्रघंटा

पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ जग में विचरण करती।

उग्र कोप और रौद्र रूप में सबका चिंतन करती।

अपने भक्तों के अनुरूप,सबको भाये तेरा रूप।

मैया चंद्रघंटा...

समीक्षा : एक विमर्श

अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है रिपोर्ट इसे हिंदी शब्दकोश में रपट के रूप में भी स्वीकार किया गया है और ग्रामीण अंचल में लोग बहुतायत में रिपोर्ट के स्थान पर रपट शब्द ही प्रयोग करते हैं जो स्वीकार्य है।जैसे थाने में रपट लिखाना,रपट करना आदि। लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा का थोड़ा-बहुत भी जानकार है वह रपट के स्थान पर देवनागरी में भी रिपोर्ट ही लिखना पसंद करता है।

मरीचिका

माँ छोरी न बाप न मिला, प्रेमी बहुत मिले।

कहते हुए माँ से लिपट कांता रोने लगती है। गाँव की सबसे होनहार ज़िद्दी,पढ़ी-लिखी लड़की कांता उस समय की पाँचवी पास। दुनिया से टकराने का जुनून,विधवा हो दूसरा विवाह रचाकर निकली थी गाँव से।

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 28 सितंबर 2022

3530..भीगना जरूरी है...

 ।।प्रातः वंदन ।।

नवरात्रि की धुन है

शुभ,संकल्पों की गुण है

उपासना के कई तरीक़े

शक्ति स्वरूपा की धुन है।

प्रभाती की धुन आजकल इसी से सज रहीं,जादा वक्त नहीं होता आजकल.. प्रस्तुति के क्रम को बढाते हुए नजर डालें..✍️

भीगना ज़रूरी है


भीगना ज़रूरी है ।
मूसलाधार बारिश में ।
रिमझिम बरसती 
बूँदों की आङ में 
रो लेना भी ज़रूरी है ।
धुल जाते हैं 
ह्रदय में उलझे द्वन्द

नवरात्र में रामलीला मंचन की परंपरा

शारदीय नवरात्र शुरू होते ही रामलीलाओं का दौर भी शुरू हो जाता है और जब रामलीला की बात आती है तो बचपन के वे दिन भी बहुत याद आते हैं जब रामलीला..

नूर तेरा 

हर सिम्त है बिखरा

नूर तेरा 

हर शै में

तू ही समाया,

ढूंढ रहे तोहे

मंदिर मस्जिद

हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर ,

पूछता कौन है अब कि सच है किधर?

इस क़लम को ख़ुदा इतनी तौफीक़ दे,

हक़ पे लड़ती रहे बेधड़क उम्र भर ।

शक्तिपूजा



जीना है अगर सम्मान से,

रखना है अपनी प्रतिष्ठा को 

संसार में सर्वोच्च पायदान पर,

रखना है अगर कदम अपना..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


मंगलवार, 27 सितंबर 2022

3529 ...भूखे मरने से प्रसाद ही बेहतर – कुछ तो पेट में जाएगा।

सादर अभिवादन

आई रे आई रे
माताश्री
आ गई रे
ये गीत सुनिए
फिर रचनाएँ




शुभ ललिता आनंददायिनी
जीवन दात्री माँ भवानी,
मुकाम्बिका माँ त्रिपुर सुन्दरी
कुमुदा, कुंडलिनी, रुद्राणी !




शिल्पी उनकी बात चुपचाप सुन रहा था, वह बोला- 'आप लोगों में भले ही कितनी ही पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ जाए पर सबको एक सूत्र में पिरोने वाला तो मैं ही हूँ। यदि मेरा हाथ न लगे तो ईंट, गारा और किवाड़ अपने-अपने स्थान पर ही पड़े रहेंगे। मेरे शिल्प के बिना आपका कोई अस्तित्व नहीं।'




उसने राजनीति की गहन जानकारी एकत्रित की, देशाटन किया और हीरे को तराशता रहा। चतुर तो था ही अतः आवश्यक मार्ग और ज्ञान अपनी समझ से अर्जित कर लेता। अपनी समझदारी अपनी होती है। बुद्ध ने भी अपनी समझदारी से ही निर्वाण प्राप्त किया था – बालक ने यह बात कहीं पढ़ ली थी।






अब वो ही देखेगी
मेरे हिस्से के ख़्वाब
ओढ़ेगी चादर
ख़्वाहिशों की
भोर होने तक

 


घर के दालान को खाली कर
पांव फटते अंधयारे में
पहली रेलगाड़ी से
गाँव से लेकर आया था तुम्हे माँ
तुम्हारी कमजोर आँखों ने
कितना भर देखा होगा
उस सुबह अंतिम बार
अपने घर को माँ


आज बस
सादर

सोमवार, 26 सितंबर 2022

3528 / गयी बात बहू के हाथ

 

नमस्कार  ! आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है ........ एक ओर   पितृ पक्ष का समापन है तो दूसरी ओर माँ का आगमन ........... कल से  ( प्रस्तुति बनाते हुए ) नवरात्रि  की धूम  ...... आज विश्व बेटी दिवस भी है ........ सभी पाठकों को आज के लिए शुभो  महालया .....बेटी दिवस की शुभकामनाएँ और जब आप ये प्रस्तुति पढ़ रहे होंगे तब देवी के नौ रूपों को याद करते हुए नवरात्रि की शुभकामनाएँ  .  

इतने परब -त्यौहार  कि फुरसत ही नहीं मिलती ... दम अलग निकल जाता है , ऊपर से जब किसी ब्लॉग का हैप्पी वाला बर्थडे   आने वाला हो तो पूछो ही मत ........ पढ़िए कि ब्लॉग के जन्मदिन का कैसे मिला था न्योता ....... और साथ में एक कहावत चरितार्थ हो गयी थी ... 

 गयी बात बहू के हाथ


मार बढ़नी.... ई परव-तिहार के.... ! बाप रे बाप ! दम धरे का भी फुरसत नहीं मिल रहा है। हाह...चलिए कौनो तरह सब व्यवस्था-बात हो गया। अब निकले हैं न्योत-हकार देने। हौ मरदे... ! आप भी भकलोले हैं... ! इधर-उधर पतरा-कलंदर का देखे लगे, अरे कल हमरे ब्लॉग का हैप्पी बर्थ डे है ना.... !

चलिए आपने बानगी देख ली कि उस समय  ब्लॉग  के जन्मदिन पर कैसे   आमंत्रित  किया गया था ........खैर अभी मैं आपको ले चल रही हूँ  श्राद्ध  पक्ष के महत्त्व को कहते हुए या ये कहें कि अपने संस्कारों को हस्तगत करते हुए एक कहानी ........हांलांकि कुछ इस तरह के कार्यों को पाखण्ड ही मानते हैं  लेकिन यदि आस्था है तो सब है .... 


जब से नीरज ने होश सम्भाला था ,तबसे दादा जी को अपनी हर ख़ुशी  और परेशानी में अपने साथ खड़े पाया था |दादा जी उसके लिए सिर्फ उसके दादा जी भर नहीं  थे . उसके मार्गदर्शक और दोस्त भी थे |उसकी कोई भी समस्या हो वे उसे चुटकियों में हल कर देते थे |अपने निर्मल स्नेह के साथ   मेहनत , लगन और धैर्य का जो पाठ  दादा जी ने उसे पढ़ाया था , उसने उसके जीवन को बहुत सरल बना दिया था | पढाई के अतिरिक्त समय  में वे उसे अपने साथ रखते और अपने जीवन के अनुभवों  और मधुर यादों को उसके उसके साथ साझा करते ....

बच्चों में संस्कार तब ही आते हैं जब बड़े लोग उनको निष्ठा से मानते हों ...... वैसे कौवों को भोजन  कराने  के पीछे भी एक कथा है .... शायद गूगल करने पर मिल जाए  , लेकिन जिसको नहीं मानना तो कथा भी व्यर्थ ही लगेगी ..... यूँ  हमारे पूर्वजों ने हर त्यौहार और कार्य का समय बहुत सोच समझ कर निर्धारित किया था ....... ऐसा मैं  नहीं कह रही ...... आप स्वयं ही पढ़ें ...



"हिन्दू धर्म" में अनगिनत त्यौहार मनाये जाते हैं। हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई उदेश्य जरूर होता है। अब नवरात्री पूजन को ही लें -  "नवरात्री" के नौ दिन में नौ देवियों का आवाहन अर्थात आठ दिन में देवियों के अष्ट शक्तियों को खुद में समाहित करना ( रोजमर्रा के दिनचर्या के कारण हम अपनी आत्मा के असली स्वरूप को खो देते है..उसका जागरण करना )और नवे दिन देवत्व प्राप्त कर दसवे दिन अपने अंदर के रावण का वध कर उत्सव मनाना .

  पितृ - पक्ष के समापन पर आज   (  जब ये प्रस्तुति  बना रही हूँ )  माता की स्थापना का भी दिन है .......शायद आज ही  घट स्थापना की जाती है ....... तो देवी का एक गीत तो बनता है ..... 



चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


भोर भये रवि आने से पहले

देख नहीं मैं पाईभवानी मोरे अँगनवाँ


बाग हँसन लगेकमल खिलन लगे

कलियाँ हैं लहराईंभवानी मोरे अँगनवाँ



देवी माँ के प्रति मन की आस्था ही सबसे महत्त्वपूर्ण होती है ....... वैसे तो माँ के प्रति भी प्रेम और आस्था ही महत्त्वपूर्ण है ......कुछ लोग माँ को कितना  मान  देते हैं वो स्वयं जानें  लेकिन हमारे एक ब्लॉगर साथी के मन की बात हम भली भांति जानते हैं ....... माँ के जाने के बाद उन्होंने पूरा वर्ष ही माँ को समर्पित रचनाएँ लिखी थीं ..... एक बानगी फिर से .... 


माँ हक़ीक़त में  तू मुझसे दूर है.

पर मेरी यादों में तेरा नूर है.


पहले तो माना नहीं था जो कहा,

लौट कह फिर सेअब मंज़ूर है.



ये प्रेम ही है जो  आज तक उसी गहराई से माँ को याद करता है ....... वैसे प्रेम के अनेक रूप हैं ......किसी के प्रेम में लोग प्रकृति से भी उतना ही  प्यार करते हैं ........ किस तरह अपने प्रेम को          अभिव्यक्त करते हैं   ... एक नज़र देखिये .


मुझे एक प्रेम पत्र लिखना है
इन पड़े-पौधों के लिए
लहराती सी इस घास के लिए 
इठलाते से इस झरने के लिए 

 अब प्रेम की बात चली है तो ज़रा ध्यान से ...... कहीं ऐसा न हो कि  आप जिसे प्रेम समझ रहे हों वो कुछ और ही हो ......  ज़रा संभल कर ...... 

नोरा और वो


नोरा कहने लगी वह बहुत प्यारा है और अभी तो बच्चा है घर में इधर उधर घूमता है कभी कभी मैं नींद में रहती हूँ तो बिस्तर में मेरे आ जाता है और मुझ से लिपट जाता है l मुझे बड़ी हैरानी हुई अभी तो अपने देश में गाय भैंस घोडा खरगोश और कुत्ते ही पालतू पशु के रूप में देखा था और मैं उनसे भी डर जाती थी ये कहाँ मैं घने जंगल में आ गयी और ये महारानी तो मुझे मॉडर्न दिख तो रही है पर है अन्दर से भयंकर जंगली l 

अभी इसको पढ़ते हुए आश्चर्य की मुद्रा  में ही थी कि एक और अजीब औ गरीब किस्सा पढने को मिल गया ......ऐसे ही नहीं अंधविश्वास पैदा होते हैं ....... कुछ तो घटित होता ही है ..... पढ़िए एक घटना ..... और याद कीजिये कि क्या कभी आपके साथ भी ऐसा  हुआ है कभी ..... 


अक्सर सोचती हूँ  इंसान अपने कर्मों और  बातों से जाने किस- किस को, कब- कब यूँ ही आराम से आहत करता है। इँसान अपने फायदे या गुस्से की खातिर दूसरे का गला काट देता है., अपने कर्मों और जहरीली  बातों से किसी का भी दिल तोड़ते जरा नहीं सोचता।


क बार सोचियेगा .......  बेचारा चाक़ू शर्मसार हो रहा लेकिन हम मनुष्य ??????? आज कल तो सबके अन्दर बस जैसे आग ही लगी हुई है ...... आग भी यदि काम की हो तो अच्छा व्यर्थ ही झुलसने के लिए हो तो व्यर्थ ........ आपके अन्दर की आग की तुलना देखिये किससे की गयी है ..... 


मैंने तो नहीं कहा था 

कि मुझे चढ़ाओ चूल्हे पर,

अब तुमने चढ़ा ही दिया है,

तो मुझे भी देखना है 

कि कितना जला सकती हो 

मुझे जीते जी तुम. 


कोई एसेंस की बात कर रहा है तो कोई वक़्त के साथ बदलते चेहरे की ...... लेकिन वक़्त के चेहरे नहीं होते ......




 वक्त 
हमारे
चेहरे बदलता है
वक्त
पढ़ा जा सकता है
हमारे चेहरे पर।
वक्त देखा जा सकता है
शब्दों में
उनके अर्थ और भाव में।


क्सर हम खुद को आईने में नहीं देखते ...... देखते भी हैं तो केवल अपनी सोच के हिसाब से ..... असलियत तो  देखना ही नहीं चाहते  ....... दूसरों के दुःख तकलीफों पर बस शब्दों से ही  ढाढस  बंधा कर अपने  कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं ...... इसी को काव्य रूप में पढ़िए .....


ठूँठ पसंद हैं इन्हें

वृक्ष नहीं!

वृक्ष विद्रोह करते हैं!

जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं

समय शांत दिखता है |


हाँ तो संवेदनशीलता की बात हो रही है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर  क्या चल रहा है इसका जायजा लेते हैं इस लेख से ......



शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
  विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।

   अभी तो बस कयास ही लगाये जा रहे हैं ...... असलियत क्या है ये तो बाद में ही पता चलेगा ...आज की प्रस्तुति को समापन की ओर ले जाते हुए एक रचना पर नज़र पड़ी ....जिसमें बेटियों को पढ़ाने के क्या क्या  नुकसान  उठाने  पड़ सकते हैं इस पर प्रकाश डाला गया है ......अरे ! आप गलत सोच रहे हैं ....... कोई बेटियों को पढ़ाने के विरुद्ध नहीं है .....अप्रत्यक्ष रूप से बताया जा रहा है कि सबको अपनी मानसिकता बदलनी होगी ...... आप पढ़ ही लीजिये न ...... 



 आप ब्लॉग पर ही पढ़ें ....... क्योंकि ताला मजबूत है ....... खैर ...... ताला मजबूत है तो क्या ...... यहाँ हर बेटी को मजबूत होने का मन्त्र  दिया जा रहा है .....  आज के अंतिम पड़ाव पर .....

अपना परचम यश के फलक पर 

तो खुद शक्ति बनो तुम 

किसी अन्य की शक्तिपूजा से 

फल नहीं मिलेगा तुम्हें ।

अपने मनमंदिर में 

अपनी मूर्ति स्थापित करो, 

इसके साथ ही  पुनः नवरात्रि की शुभकामनाएँ ....... फिर मिलते हैं ... अगले सोमवार कुछ नयी - पुरानी रचनाओं के साथ ...... 

नमस्कार 

 संगीता स्वरुप .. 


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