नमस्कार ! आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है ........ एक ओर पितृ पक्ष का समापन है तो दूसरी ओर माँ का आगमन ........... कल से ( प्रस्तुति बनाते हुए ) नवरात्रि की धूम ...... आज विश्व बेटी दिवस भी है ........ सभी पाठकों को आज के लिए शुभो महालया .....बेटी दिवस की शुभकामनाएँ और जब आप ये प्रस्तुति पढ़ रहे होंगे तब देवी के नौ रूपों को याद करते हुए नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
इतने परब -त्यौहार कि फुरसत ही नहीं मिलती ... दम अलग निकल जाता है , ऊपर से जब किसी ब्लॉग का हैप्पी वाला बर्थडे आने वाला हो तो पूछो ही मत ........ पढ़िए कि ब्लॉग के जन्मदिन का कैसे मिला था न्योता ....... और साथ में एक कहावत चरितार्थ हो गयी थी ...
मार बढ़नी.... ई परव-तिहार के.... ! बाप रे बाप ! दम धरे का भी फुरसत नहीं मिल रहा है। हाह...चलिए कौनो तरह सब व्यवस्था-बात हो गया। अब निकले हैं न्योत-हकार देने। हौ मरदे... ! आप भी भकलोले हैं... ! इधर-उधर पतरा-कलंदर का देखे लगे, अरे कल हमरे ब्लॉग का हैप्पी बर्थ डे है ना.... !
चलिए आपने बानगी देख ली कि उस समय ब्लॉग के जन्मदिन पर कैसे आमंत्रित किया गया था ........खैर अभी मैं आपको ले चल रही हूँ श्राद्ध पक्ष के महत्त्व को कहते हुए या ये कहें कि अपने संस्कारों को हस्तगत करते हुए एक कहानी ........हांलांकि कुछ इस तरह के कार्यों को पाखण्ड ही मानते हैं लेकिन यदि आस्था है तो सब है ....
जब से नीरज ने होश सम्भाला था ,तबसे दादा जी को अपनी हर ख़ुशी और परेशानी में अपने साथ खड़े पाया था |दादा जी उसके लिए सिर्फ उसके दादा जी भर नहीं थे . उसके मार्गदर्शक और दोस्त भी थे |उसकी कोई भी समस्या हो वे उसे चुटकियों में हल कर देते थे |अपने निर्मल स्नेह के साथ मेहनत , लगन और धैर्य का जो पाठ दादा जी ने उसे पढ़ाया था , उसने उसके जीवन को बहुत सरल बना दिया था | पढाई के अतिरिक्त समय में वे उसे अपने साथ रखते और अपने जीवन के अनुभवों और मधुर यादों को उसके उसके साथ साझा करते ....
बच्चों में संस्कार तब ही आते हैं जब बड़े लोग उनको निष्ठा से मानते हों ...... वैसे कौवों को भोजन कराने के पीछे भी एक कथा है .... शायद गूगल करने पर मिल जाए , लेकिन जिसको नहीं मानना तो कथा भी व्यर्थ ही लगेगी ..... यूँ हमारे पूर्वजों ने हर त्यौहार और कार्य का समय बहुत सोच समझ कर निर्धारित किया था ....... ऐसा मैं नहीं कह रही ...... आप स्वयं ही पढ़ें ...
"हिन्दू धर्म" में अनगिनत त्यौहार मनाये जाते हैं। हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई उदेश्य जरूर होता है। अब नवरात्री पूजन को ही लें - "नवरात्री" के नौ दिन में नौ देवियों का आवाहन अर्थात आठ दिन में देवियों के अष्ट शक्तियों को खुद में समाहित करना ( रोजमर्रा के दिनचर्या के कारण हम अपनी आत्मा के असली स्वरूप को खो देते है..उसका जागरण करना )और नवे दिन देवत्व प्राप्त कर दसवे दिन अपने अंदर के रावण का वध कर उत्सव मनाना .
पितृ - पक्ष के समापन पर आज ( जब ये प्रस्तुति बना रही हूँ ) माता की स्थापना का भी दिन है .......शायद आज ही घट स्थापना की जाती है ....... तो देवी का एक गीत तो बनता है .....
चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ
भोर भये रवि आने से पहले,
देख नहीं मैं पाई, भवानी मोरे अँगनवाँ
बाग हँसन लगे, कमल खिलन लगे
कलियाँ हैं लहराईं, भवानी मोरे अँगनवाँ
देवी माँ के प्रति मन की आस्था ही सबसे महत्त्वपूर्ण होती है ....... वैसे तो माँ के प्रति भी प्रेम और आस्था ही महत्त्वपूर्ण है ......कुछ लोग माँ को कितना मान देते हैं वो स्वयं जानें लेकिन हमारे एक ब्लॉगर साथी के मन की बात हम भली भांति जानते हैं ....... माँ के जाने के बाद उन्होंने पूरा वर्ष ही माँ को समर्पित रचनाएँ लिखी थीं ..... एक बानगी फिर से ....
माँ हक़ीक़त में तू मुझसे दूर है.
पर मेरी यादों में तेरा नूर है.
पहले तो माना नहीं था जो कहा,
लौट आ, कह फिर से, अब मंज़ूर है.
ये प्रेम ही है जो आज तक उसी गहराई से माँ को याद करता है ....... वैसे प्रेम के अनेक रूप हैं ......किसी के प्रेम में लोग प्रकृति से भी उतना ही प्यार करते हैं ........ किस तरह अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं ... एक नज़र देखिये .
मुझे एक प्रेम पत्र लिखना है
इन पड़े-पौधों के लिए
लहराती सी इस घास के लिए
इठलाते से इस झरने के लिए
अब प्रेम की बात चली है तो ज़रा ध्यान से ...... कहीं ऐसा न हो कि आप जिसे प्रेम समझ रहे हों वो कुछ और ही हो ...... ज़रा संभल कर ......
नोरा कहने लगी वह बहुत प्यारा है और अभी तो बच्चा है घर में इधर उधर घूमता है कभी कभी मैं नींद में रहती हूँ तो बिस्तर में मेरे आ जाता है और मुझ से लिपट जाता है l मुझे बड़ी हैरानी हुई अभी तो अपने देश में गाय भैंस घोडा खरगोश और कुत्ते ही पालतू पशु के रूप में देखा था और मैं उनसे भी डर जाती थी ये कहाँ मैं घने जंगल में आ गयी और ये महारानी तो मुझे मॉडर्न दिख तो रही है पर है अन्दर से भयंकर जंगली l
अभी इसको पढ़ते हुए आश्चर्य की मुद्रा में ही थी कि एक और अजीब औ गरीब किस्सा पढने को मिल गया ......ऐसे ही नहीं अंधविश्वास पैदा होते हैं ....... कुछ तो घटित होता ही है ..... पढ़िए एक घटना ..... और याद कीजिये कि क्या कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है कभी .....
अक्सर सोचती हूँ इंसान अपने कर्मों और बातों से जाने किस- किस को, कब- कब यूँ ही आराम से आहत करता है। इँसान अपने फायदे या गुस्से की खातिर दूसरे का गला काट देता है., अपने कर्मों और जहरीली बातों से किसी का भी दिल तोड़ते जरा नहीं सोचता।
एक बार सोचियेगा ....... बेचारा चाक़ू शर्मसार हो रहा लेकिन हम मनुष्य ??????? आज कल तो सबके अन्दर बस जैसे आग ही लगी हुई है ...... आग भी यदि काम की हो तो अच्छा व्यर्थ ही झुलसने के लिए हो तो व्यर्थ ........ आपके अन्दर की आग की तुलना देखिये किससे की गयी है .....
मैंने तो नहीं कहा था
कि मुझे चढ़ाओ चूल्हे पर,
अब तुमने चढ़ा ही दिया है,
तो मुझे भी देखना है
कि कितना जला सकती हो
मुझे जीते जी तुम.
कोई एसेंस की बात कर रहा है तो कोई वक़्त के साथ बदलते चेहरे की ...... लेकिन वक़्त के चेहरे नहीं होते ......
वक्त
हमारे
चेहरे बदलता है
वक्त
पढ़ा जा सकता है
हमारे चेहरे पर।
वक्त देखा जा सकता है
शब्दों में
उनके अर्थ और भाव में।
अक्सर हम खुद को आईने में नहीं देखते ...... देखते भी हैं तो केवल अपनी सोच के हिसाब से ..... असलियत तो देखना ही नहीं चाहते ....... दूसरों के दुःख तकलीफों पर बस शब्दों से ही ढाढस बंधा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं ...... इसी को काव्य रूप में पढ़िए .....
ठूँठ पसंद हैं इन्हें
वृक्ष नहीं!
वृक्ष विद्रोह करते हैं!
जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं
समय शांत दिखता है |
यहाँ तो संवेदनशीलता की बात हो रही है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या चल रहा है इसका जायजा लेते हैं इस लेख से ......
शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
अभी तो बस कयास ही लगाये जा रहे हैं ...... असलियत क्या है ये तो बाद में ही पता चलेगा ...आज की प्रस्तुति को समापन की ओर ले जाते हुए एक रचना पर नज़र पड़ी ....जिसमें बेटियों को पढ़ाने के क्या क्या नुकसान उठाने पड़ सकते हैं इस पर प्रकाश डाला गया है ......अरे ! आप गलत सोच रहे हैं ....... कोई बेटियों को पढ़ाने के विरुद्ध नहीं है .....अप्रत्यक्ष रूप से बताया जा रहा है कि सबको अपनी मानसिकता बदलनी होगी ...... आप पढ़ ही लीजिये न ......
आप ब्लॉग पर ही पढ़ें ....... क्योंकि ताला मजबूत है ....... खैर ...... ताला मजबूत है तो क्या ...... यहाँ हर बेटी को मजबूत होने का मन्त्र दिया जा रहा है ..... आज के अंतिम पड़ाव पर .....
अपना परचम यश के फलक पर
तो खुद शक्ति बनो तुम
किसी अन्य की शक्तिपूजा से
फल नहीं मिलेगा तुम्हें ।
अपने मनमंदिर में
अपनी मूर्ति स्थापित करो,
इसके साथ ही पुनः नवरात्रि की शुभकामनाएँ ....... फिर मिलते हैं ... अगले सोमवार कुछ नयी - पुरानी रचनाओं के साथ ......
नमस्कार
संगीता स्वरुप ..