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रविवार, 18 सितंबर 2022

3520 ....ढाई आखर में समाया, जीवों का व्यवहार सुनो

सादर अभिवादन
पिछले महीने अगस्त गया
काभी कुछ दिया ...और
बहुत कुछ लिया भी
अब देखिए न
सितम्बर की 18  तारीख निकल रही है
आहिस्ता -आहिस्ता आ रहा है
खर्चीला महिना...
दशहरा- दीपावली और फिर.....
आप ही बताइए  

अब रचनाएं देखें



उसने पुकारा मुझे
दीवार के उस पार से,
मैंने कुछ सुना ही नहीं।
छीन लेती हैं दीवारें
देखने की ही नहीं,
सुनने की भी ताक़त.



निश्छल, निश्चिन्त तू चल,
गंतव्य कोई नही तेरा
कर्म पथ ही बस है प्रशस्त,
सांसो की अंतिम माला तक
चिता की अंतिम ज्वाला तक
तुझे चलना है
तू  चल
चल बटोही, पथ प्रतीक्षारत है





ढाई आखर में समाया,
प्रेम,प्रीत और प्यार सुनो।
ढाई आखर में समाया,
जीवों का व्यवहार सुनो।
देख हुआ व्याकुल मन मेरा,
चंचल चितवन ने ली अंगड़ाई।




सखी सहेली-सी
आशाएँ साथ लिये
हँसी-ठिठोली करतीं
रात के सूने पहर में
देख पाँवों के ज़ख्म
कराह उठती हैं
ये पहाड़ी औरतें।





मध्य रात्रि वह घर में आया,
उसने मुझको बहुत सताया।
उसने मुझको पकड़ा कसकर,
हे सखि साजन!ना सखि तस्कर।




ले प्राणों का प्रिय प्रकम्पन
अर्पित कामना कनक कुंदन
हर विरह में रह रह कर
दाह दुस्सह दुःख सह सह कर

पाषाण हृदयी हे निर्दया
तू चिर जयी मै हार गया
 निश्छल मन मेरा गया छला
अलबिदा! निःशब्द,निष्प्राण चला

आज बस

सादर 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। सुजाता

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर रचना संकलन, बेहतरीन प्रस्तुति
    सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार और हार्दिक बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. आकर्षक लिकों से सजी सुंदर हलचल।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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