सादर
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
---
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 31 अगस्त 2021
3137 ... मुझे अपने वतन से बे-पनाह मोहब्बत है। इस देश की मिट्टी से प्यार है
सादर
सोमवार, 30 अगस्त 2021
3136 .......कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !
नमस्कार ! राधे राधे !
आज कान्हा के जन्म का दिन ......... अधिकतर सब कृष्ण जन्माष्टमी मनाने में व्यस्त होंगे ..... और शायद मन ही मन आह्वान कर रहे होंगे कि हे कृष्ण ! तुम कब आओगे ? और सच है कि बाकी का तो पता नहीं लेकिन मैं तो न जाने कब से पुकार रही हूँ हर साल एक उम्मीद लिए हुए आह्वान करती हूँ .....
हे कृष्ण -
आओ तुम एक बारलेकर कल्की अवतारपापों का नाश कर तुमनेपापियों को मुक्ति दीआज पापों के बोझ सेअवनि है धंस रहीफ़ैल रहा दसों दिशाओं मेंअपरिमित भ्रष्टाचारहे कृष्ण -तुम आओ एक बार |
पूरी रचना के लिए दिए गए लिंक पर जाएँ .....
हे कृष्ण - आओ तुम एक बार
बेड़ियाँ
तुम्हें सच देखना आता है
सच
कहना क्यों नहीं आता।
तुम सच जानते हो
मानते नहीं।
तुम्हें सच की चीख का अंदाजा है
फिर भी चुप हो ही जाते हो।
******************************************************************************
बहुत से सच लोग कहते नहीं .....लेकिन सच्चे लोग बहुत सी बातों का विश्लेष्ण कर अपनी बात हम तक पहुँचाते हैं .......... ऐसे ही एक ब्लॉग है .... बस्तर की अभिव्यक्ति .....
वो हमें आज बता रहा है कि अफगानिस्तान में शिक्षा का क्या मॉडल रहने वाला है ....
सियासत से तालीम का रिश्ता
कोई पक्का तो कोई कच्चा
कोई असली तो कोई गच्चा
कोई बूढ़ा खोल में भी बच्चा
कोई उत्तम तो कोई हेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
अब खुद को कपूर का ढेला न समझते रह जाइयेगा ....आज कृष्ण के जन्मोत्सव पर अनीता जी एक खूबसूरत कविता के रूप में अपने मन के उद्गार लायी हैं .. ..... कृष्ण ने जन्म से १२ वर्षों तक जो मोह और विछोह सहा उसका बहुत सुन्दर चित्रण किया है ....
मथुरा रोयी होगी उस दिन
कान्हा चले जब यमुना पार,
जिस धरती पर हुए अवतरित
दे नहीं पायी उन्हें दुलार !
***************************************************************************
और आज के विशेष दिन ....... आखिर कृष्ण का दिन है ......
हम सब इस रंग में रंगे हुए हैं .......
तो आज की अंतिम पेशकश भी कृष्णमयी. है ..........
कवयित्री कहना चाह रहीं हैं कि कृष्ण
तुम बिना इस संसार में आये सब कुछ कर सकते थे
फिर इतना कष्टकर जीवन क्यों व्यतीत किया ...
ये भाव हैं रश्मि प्रभा जी के ......
कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !
कृष्ण जन्म यानि एक विराट स्वरुप ज्ञान का जन्म
रविवार, 29 अगस्त 2021
3135 ...सब यही चाहते देश बढ़े, उन्नति के विकसित पंथ चले
बस
सादर
शनिवार, 28 अगस्त 2021
3134... उलझन
हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
हमारे विचार हमारे अनुभव पर बनते हैं .... अनुभव होते-होते वक्त निकलता जाता है.... मीठे अनुभव हैं तब तो बहुत अच्छा ... तीखा-खट्टा अनुभव है तो गुजरे पल पर काश लौट पाते ... अजीब हो जाता है...
चिंताओं का घनघोर धुंध आज,
छाया उम्मीदों के अम्बर में,
जो चाहते है जनहित करना,
समर्थन, संसाधन नहीं, उनके संग में,
कौन साथ देगा उनका जो,
प्रयासरत जग सुंदर करने में
अपने परिवार में 2 बच्चे मेरे,
भूखे-प्यासे बिस्तर पे पड़े।
खिलाने को, मेरे पास रोटी नही,
इसके सिवा, कोई दूजा रोजी नही।
उन्होंने 2 दिन से कुछ खाया नही,
मेरे सिवा उनका कोई साया नही।
काम लगन से करने वालों,
मीठे फल है लाती करनी।
रिमझिम बारिश के आने का,
द्वारचार कर जाती गरमी।
उजियारा होने से पहले,
होती है अंधियारी रात।
दुख के पीछे सुख आयेगा,
लगती कितनी प्यारी बात।
पीएस दाधीच स्प्लिट पर्सनैलिटी का शिकार है. उसके अनेक महिलाओं से संबंध हैं. उसकी पत्नी सबीना पाल उसे छोड़कर चली जाती है क्योंकि वह पति का उदासीनता और अपने अकेलेपन को बर्दाश्त नहीं कर पाती. महिला चरित्रों को बहुत मनोवैज्ञानिक ढंग से विकसित किया गया है. पति के सेक्स स्कैंडल से हताश मिसेज लाल की चुप्पी और अंतत: आत्महत्या कर लेना, पृशिला पांडे का लोगों को अपने लिए इस्तेमाल करना, सबीना लाल का झटके से पति को छोड़ जाना, अजरा जहांगीर का जोश और सफलता की कामना और उत्प्रेक्षा जोशी की प्रेम के प्रति उदासीनता उन्हें यादगार बना जाता है.
मेरी मंज़िल आदमी के मन तक पहुँचने की है. मैं जानता हूँ यह बहुत कठिन काम है लेकिन आसानियों में मुझे भी कोई आनंद नहीं आता. मैं अपने लिये सिर्फ़ चुनौतियाँ चुनता हूँ और उनका सामना करने में अपने आप को खपा देता हूँ. सारे खतरे उठाकर सिर्फ़ सामना करता हूँ. जानता हूँ आदमी की ज़िंदगी में न कोई विजय अंतिम है न कोई पराजय.
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021
3133....कहो ना,कौन से सुर में गाऊँ
श्वेता
-----------
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
--------//////-------
राम का वन जाना मुझे असाध्य कष्ट देता है, जितनी बार प्रसंग पढ़ता हूँ, उतनी बार देता है। क्योंकि मन में राम के प्रति अगाध प्रेम और श्रद्धा है। बचपन से अभी तक हृदय यह स्वीकार नहीं कर सका कि भला मेरे राम कष्ट क्यों सहें? राम के प्रति प्रेम और श्रद्धा इसलिये और भी है कि राम पिता का मान रखने के लिये वन चले गये
------
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
----
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
3132...आत्मकेन्द्रित होकर जीना अब रीत है नए ज़माने की!
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
कुछ न कहो
बस देखो-सुनो
क्या रीत है नए ज़माने की!
आत्मकेन्द्रित होकर जीना
अब रीत है नए ज़माने की!
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चले-
निश्छल आचरण पे लांछन कितना दर्द भरा होता है
मन का वृन्दावन पतझर होना कितना दर्द भरा होता है
मुक्त हंसिनी सा जीवन दुभर होना कितना दर्द भरा होता है।
2. खीझ-खीझ रह गई रतिप्रीता ...
प्रीतज्वर ज्वारभाटा बन जावेरह-रह मुख पर हिमजल मारे
तब भी होवे हर पल अनचीता
धत् ! अभंगा दुख अब सहा न जाए
कब तक ऐसे ही कुंवारी रहे परिनीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
अपनों के सह व्यंग बाण,
जब उनके हिय लग जाऊँ ।
सागर की धारा में जैसे,
बूंद बूंद घुल जाऊँ ।।
अपनों पर आश्रित होने के बजाय
हमे खुद को पुकारना होता है
स्वयं को पाना होता है
दूर गयी राह से लौट आना होता है
खुद को भीतर ही भीतर समेटना होता है
कछुए की भाँती एक खोल में,
एक मजबूत खोल में...
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव