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शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

3119.....वक़्त यही अब बोल रहा है

शुक्रवारीय अंक में मैं श्वेता
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।

परसों यानि रविवार १५ अगस्त को स्वतंत्र भारत ७५ वें साल में पाँव रखेगा। हमसभी धूमधाम से पूरी श्रद्धा भक्ति से अपना राष्ट्रीय त्योहार मनायेंगे। सबसे ज्यादा उत्साहित बुद्धिजीवी वर्ग एक बार फिर से बुराइयों का पिटारा खोलकर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रयोग करेगा। चलिए मान लिया लाख़ बुराइयाँ है हमारे देश में गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी, बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनैतिक अराजकता और भी अनगिनत पर इस दिन इन बातों का विश्लेषण क्यों जरूरी है? क्या किसी के जन्मदिन पर उसे ऐसा कोई उपहार देते हैं  हम?  क्या इस विशेष अवसर पर सब भूलकर साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता की खुशी महसूस नहीं कर सकते हम? भावी पीढ़ी  नन्हें बच्चों को आज़ादी के स्वर्णिम इतिहास के प्रेरक प्रसंग बताकर,स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों,गीतों,सैनिकों से संबंधित ज्ञानवर्धक बातें बताकर हम उनके भीतर देश के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना क्यों नहीं भरते?प्रश्न तो अनगिनत हैं वैसे भी पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार  बखानने के हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं यह सोचना भी जरूरी समझते हैं क्या? आप भी सोचिएगा हाँ एक  प्रश्न का उत्तर आप सभी से आपसे जरूर जानने को इच्छुक हूँ- 

आपके लिए स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?

आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं बिना किसी विशेष विश्लेषण के-

-------

भोर होने वाली है


दिन स्याह हैं
कड़वे हैं
कंठ भिंच रहे हैं
रात की कालिख
पूरे दिन पर सवाल
उकेर रही है




-----//////----

वक़्त यही अब बोल रहा है

जान ले अन्तर्मन में जाकर
क्यों तूने ये जीवन पाया
क्या करना बाकी था तुझको
जो फिर फिर धरती में आया
आधे-अधूरे मकसद तेरे
चित्त चितेरा डोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है


हरियाली तीज का कोरस



हरियल तोता ही नहीं होता
हरियल सावन ही नहीं होता
मन भी होता है हरियल
जानते हो न
कुछ उदासियों के विकल्प नहीं होते


---–/////----

उन्मुक्तता



हम खड़े रहे 
अपने अपने छोर को पकड़े
ना डोर तुमने छोड़ी
ना डोर मैंने छोड़ी
बंधी रही मैं
कही न कही उसी छोर से
लेकिन जानती हूँ मैं


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ज़िंदगी जिस ढर्रे पर



इस देश के पालनहार भी हमारी आदतों से वाकिफ हैं. वो भी जानते हैं कि काम आते हैं वही जुमले, वही वादे और फिर उन्हीं वादों से मुकर जाना- किसी को कोई अन्तर नहीं पड़ता. हर बार बदलते हैं बस गुजरे हुए बाबू जी!!


 ----////////--

कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं प्रिय विभा दी।



8 टिप्‍पणियां:

  1. मैं संपूर्ण नहीं थी
    पर मैं सही थी
    बहुत सी जगहों पर
    मेरा सही
    तुम्हारे लिये गलत था
    तुम्हारा सही मेरे लिये गलत था
    सही, गलत नहीं हो पाया
    गलत, सही नहीं हो पाया
    और
    हम खड़े रहे
    अप्रतिम अंक
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात !
    प्रिय श्वेता जी,विविध रंगों से सज्जित आज का आकर्षक और संतुलित संकलन प्रस्तुत करने के लिए आभार और शुभकामनाएं । सादर जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन और बहुत शानदार अंक...खूब बधाई श्वेता जी...। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद। शेष रचनाओं पर टिप्पणी दिन में।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे लिंक्स का चयन, आनंद आया पढ़कर।

    जवाब देंहटाएं
  5. हमारे देश में गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी, बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनीतिक अराजकता और भी अनगिनत पर इस दिन इन बातों का विश्लेषण क्यों जरूरी है?
    –जो इन बातों का विश्लेषण करते हैं और इन कारणों के विस्तार में उनका कोई योगदान नहीं तो विश्लेषण करना उचित है लेकिन पहले अपने आत्मा का अवलोकन कर लेना क्या इस भ्रष्टयुग में सम्भव है...!

    क्या किसी के जन्मदिन पर उसे ऐसा कोई उपहार देते हैं हम?

    क्या इस विशेष अवसर पर सब भूलकर साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता की खुशी महसूस नहीं कर सकते हम?

    भावी पीढ़ी नन्हें बच्चों को आज़ादी के स्वर्णिम इतिहास के प्रेरक प्रसंग बताकर,स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों, गीतों, सैनिकों से संबंधित ज्ञानवर्धक बातें बताकर हम उनके भीतर देश के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना क्यों नहीं भरते?

    –बाकी सवालों के लिए अपना व्हाट्सएप्प का निरीक्षण कर लेंगीं

    –संग्रहणीय प्रस्तुति
    –साधुवाद
    –असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. ज़िन्दगी जिस ढर्रे पर चल रही वहाँ उन्मुक्तता की ख्वाहिश तो सबको होती लेकिन कहीं न कहीं बंधन भी महसूस होता ही है । 11 तारीख को तीज का त्योहार मनाया गया , अब हरियाली तीज का कोरस गा लो लेकिन कुछ आँगन तो भीगने वाले नहीं । वक़्त भी अभी यही बोल रहा है लेकिन फिर भी अभी उम्मीद है कि भोर होने वाली है । सब पढ़ते हुए सोच रही हूँ .... वो सुबह कभी तो आएगी ।
    सुबह आने के लिए ज़रूरी है कि हम स्वतंत्रता का सही अर्थ समझें । स्वयं से पहले देश के लिए सोचें । देश के सम्मान के लिए निज स्वार्थ को त्यागें । अधिकार से पहले कर्तव्य को जानें । लेकिन आम जनता जब अपने नेताओं को स्वार्थी पाती है तो उनका ही अनुसरण करती है । जिस देश में आज़ादी के इतिहास को ही तोड़ मरोड़ कर अपनी सुविधानुसार बताया गया हो वहाँ हम क्या उम्मीद कर सकते हैं । ये विषय ऐसा है कि जितना भी कहा जाय कम होगा । इसलिए यहीं विराम देते हुए 15 अगस्त आने की खुशी को महसूस करते हैं । जय हिंद ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सही कहा आपने श्वैता जी! स्वतंत्रता दिवस पर क्या सब भूलकर साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता की खुशी महसूस नहीं कर सकते हम? भावी पीढ़ी नन्हें बच्चों को आज़ादी के स्वर्णिम इतिहास के प्रेरक प्रसंग बताकर,स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों,गीतों,सैनिकों से संबंधित ज्ञानवर्धक बातें बताकर हम उनके भीतर देश के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना क्यों नहीं भरते?
    एक तरफ हम स्वतन्त्रता दिवस मनाते हैं और दूसरी तर हम अपनी भावी पीढ़ी के सामने साबित करते हैं कि हम अब भी गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी, बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनैतिक अराजकता और भी अनगिनत दशाओं म़े परतन्त्र ही हैं फिर इस विशेष अवसर पर कैसी स्वतंत्रता प्राप्त की है हमने.....? सच में ये विषय विचारणीय है।
    सारगर्भित एवं सार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति...। सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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