सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ-
भारत के पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में 15 अगस्त 2021 को हुआ सत्ता परिवर्तन विश्वभर के लिए गंभीर चिंता का विषय है। अमेरिका की पूँजीपरस्त नीतियाँ दिखावे के लिए शांतिकारक होतीं हैं। 2003 में इराक़ में ज़बरन युद्ध शुरू किया फिर अपनी सेना वहाँ रखी। जब हित पूरे हुए तो 2014 में सेना वापस बुला ली तो वहाँ आईएसआईएस सक्रिय हुआ और अमेरिका ख़ून-ख़राबे का तमाशा देखता रहा।
अफ़ग़ानिस्तान से 1989 में सोवियत संघ ने अपनी सेना वापस बुला ली तो अस्थिरता फैल गई तब 1995 में कट्टरवादी तालिबान ने सत्ता हथिया ली जो अमेरिकी हमले (आरंभ 7 अक्टूबर 2001) के बाद दिसंबर 2001 में समाप्त हुई। 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर सहित रक्षा मंत्रालय व वाइट हाउस पर आतंकी हमला हुआ था जिसका बदला लेने के लिए अमेरिका ने सीधे अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया क्योंकि ओसामा बिन लादेन अफ़ग़ानिस्तान में ही छिपा था। इधर अमेरिका तालिबान को खड़ेड रहा था उधर लादेन पाकिस्तानी सरकार के सहयोग से पाकिस्तान में गुप्त ढंग से फ़ौजी इलाक़े में परिवार सहित सुरक्षित रहने लगा जिसे 10 साल बाद अमेरिका ने खोजकर मार डाला। इससे पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का नज़रिया बदला तो पाकिस्तान को मिलने वाली ख़ैरात और सहूलियतें बंद हुईं तब मौक़े का फ़ाएदा उठाकर चीन पाकिस्तान का सगा बन गया।
2001 से अब तक अमेरिकी फ़ौज अफ़ग़ानिस्तान में रही। अमेरिकी फ़ौज की वापसी पर कट्टरवादी तालिबान ने बड़ी आसानी से अफ़ग़ानिस्तान पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली है जिसमें पाकिस्तान और चीन का अदृश्य सहयोग रहा है वहीं अमेरिका ने उसे सत्ता तश्तरी में रखकर सौंपी है। इस तेज़ी से बदलते घटनाक्रम का अफ़ग़ानिस्तान व दुनिया पर क्या असर होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है किंतु भारत के लिए चुनौती अब और कठिन हो गई है क्योंकि चीन,पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान अब एक राय पर होंगे।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
विपरीत परिस्थिति में
तुम्हें अपनया है
पर तुम्हारे लिए कुछ कर न पाया
है बड़ा संताप मुझे।
माना की - -
इस पथ पर चलना कठिन
है लेकिन दूभर नहीं
है, ये पथ है
शूलों से
भरा, ये कोई अंतःपुर नहीं है, सत्य
का स्वाद माना कि मधुर
नहीं है।
3. ५९७.
सपने
पर कल रात मैंने सपना देखा
और सपने में गाँधी को,
उन्होंने पूछा,
‘स्वाधीनता दिवस कैसा रहा?’
मैंने कहा,
‘हर साल जैसा.’
उन्होंने कहा,
‘इस साल सपने देखना,
शायद अगला कुछ अलग हो.’
जब सरगोशियाँ न हों हवा में
और दिन पलट जाये
जब लफ़्ज़ का वरक़ पर
मरासिम ठहर जाये
जब तू न हो और मेरा वक़्त
बस तेरे साथ गुज़रे
जब तेरी आँखों में सब पढ़ें
चलते-चलते पढ़िए आदरणीया अलकनंदा जी का एक जीवनोपयोगी शोधपरक लेख-
5. ये
उम्मीदों का वजन है… जो विस्फोट तक जा पहुंचा है
इस नगर में,
लोग या तो पागलों की तरह
उत्तेजित होते हैं
या दुबक कर गुमसुम हो जाते हैं।
जब वे गुमसुम होते हैं
तब अकेले होते हैं
लेकिन जब उत्तेजित होते हैं
तब और भी अकेले हो जाते हैं।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार विवेचनात्मक अग्रालेख
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
सादर..
शानदार पठनीय अंक आज का |आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को चुनने के लिए आज के अंक में |
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, पांच लिंकों के आनंद में मुझे शामिल करने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति अमेरिका और तालिबान के मुद्दे पर लिखा किया गया वर्णन बहुत ही उम्दा है! सच ही कहते हैं की ऐसा कोई सगा नहीं जिसको अमेरिका ने ठगा नहीं!
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