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सोमवार, 23 अगस्त 2021

3129 -----पावन सी दुआ !!!

 नमस्कार ........  सभी भाई  बहनों   ने कल हर्षोल्लास से रक्षाबंधन का त्यौहार  मनाया होगा ..... इस बार कई जगह मायूसी भी मिली देखने को ..... जिन लोगों ने कोरोना के कारण अपने भाई या बहनों को खोया सबने  अश्रु पूरित  ह्रदय से याद किया  . उनकी भावनाओं को समझते हुए हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं की उनको धैर्य धारण करने की शक्ति मिले .  इसी कामना के साथ आज की चर्चा ..... 

आज हम केवल कोरोना से दहशत में नहीं हैं ....... दुनिया में जो हालात दृष्टिगत हैं उनसे भी खौफ पैदा हो रहा है .....

एक कविता पेश कर रही हूँ  --- 

एक अफ़ग़ान माँ ने

अपनी बच्ची को

कँटीले तारों के ऊपर से

एयरपोर्ट के भीतर उछाला

और चिल्लाकर कहा -

मेरा जो होसो हो

यह बच्ची शायद ज़िंदा रहे

 

बच्ची से अलग होने के बाद

वह माँ क्या कर रही होगी?

रो-रोकर मर गई होगी

या अपनी बच्ची जैसी बच्चियों को

बचाने के लिए लड़ रही होगी?

( हर भगवान् चावला ) 

यदि  अन्य कवितायेँ पढनी हैं तो  नीचे  दिए लिंक पर जा कर पढ़ें ....

 अफ़ग़ानिस्तान : कुछ कविताएँ / हरभगवान चावला


इतने खौफ के बाद भी जब हम कोई दुआ माँगते हैं तो मन भीग भीग जाता है ....सदा  उर्फ़ सीमा जी अपने भीगे से मन से लेकर आई हैं  एक ........ ...

 पावन सी दुआ !!!

अक्षत से रोली 

हँस के बोली 

तुम भी मेरे भाई के माथे पर  

सितारों से चमकते हो 

मेरे रतनारी रँग पर 

पावन सी दुआ बनते हो .


दुआ के साथ ही जब हमें दिखाई देते हैं आने वाली पीढ़ी में संस्कार तो  बच्चों की ख्वाहिश पूरी करने का किसका मन न होगा ....   गजेन्द्र भट्ट जी ऐसी ही एक लघुकथा लाये हैं ....  

  संस्कार  ( लघु कथा ) 

"पापा, मैं कोर्ट से आ रही हूँ। आप मेरी शादी आशीष से करना चाहते हैं, जबकि विपुल उससे कहीं अधिक अच्छा लड़का है। वह पढ़ने में अच्छा है, स्वभाव से भी अच्छा है और एक चरित्रवान लड़का है। वह गरीब घर से है पापा, पर इसमें उसका तो दोष नहीं है न! आशीष पैसे वाले घर से सम्बन्ध अवश्य रखता है, किन्तु व्यक्तित्व में वह विपुल के आगे कहीं नहीं ठहरता।


हम बच्चों में तो संस्कार डाल सकते हैं लेकिन जब राजनीति की बात करते हैं तब ये संस्कार न तो दिखाई देते हैं और न ही समझ आते हैं ..... सब अंधेर नगरी ही दिखता है ..... आज .... कल .... आने वाला समय सब एक सा ही लगता है ..... इनकी कलम में जो धार है उससे आप परिचित ही हैं .... आज पढ़िए इनके मुहावरे जिससे बड़ी मारक रचना लिखी है ..... जी हाँ बात कर रही हूँ अमृता तन्मय जी की ....

अंधेरनगरी में....


अंधेरनगरी में भी
चलता है अंधेरखाता
अक्ल पर पड़े पहाड़ को
क्यूँ है उठाता
ये उल्टी गंगा
कौन है बहाता
खरी - खरी
किसको है सुनाता ?


लीजिये  अभी अंधेरनगरी की बात कर ही रहे थे की दिगंबर  नासवा  जी   ग़ज़लों की दुनिया से हट कर  नेताओं के रूप का वर्णन कर रहे हैं ...... यूँ हम नेता  का तो बाद में देखेंगे  पहले तो  नासवा जी का रूप देखें ..... इस रूप से शायद पहले परिचय नहीं होगा  आप लोगों का .... .... 



नेता - १

सर पर गाँधी टोपी
मुंह में पान
कुर्सी में अटकी
जिसकी जान . 


 और इसी क्रम में आज एक व्यंग्य रचना     डॉक्टर   शरद  सिंह जी के द्वारा ..... 



एक दिन परमपिता परमेश्वर की कृपा से मेरे ज्ञानचक्षु ठीक उसी प्रकार से खुल गए जैसे ओपनर से खोले जाने पर शीतल पेय की बोतल का ढक्कन खुल जाता है-"खट्". हुआ कुछ यूं कि एक प्रोफेसर साहब ने दुखी होते हुए मुझसे चर्चा की कि आजकल भाषा के क्षेत्र में कोई नया शोध कार्य हो ही नहीं रहा है. 


" प "  अक्षर के महात्म्य को पढ़ते हुए मुझे इजाज़त दें .......  फिर मिलते हैं कुछ नयी -  पुरानी  रचनाओं के साथ .. अगले सोमवार ..... 

प्रतिक्रिया देना न भूलें .....  प्रतिक्रिया पाना अच्छा लगता है  :) 

संगीता स्वरुप ... 




29 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बहुत ही शानदार अंक
    चावला जी का अवलोकन जबरदस्त
    सदा दीदी का वार्तालाप
    तीसरे के पास भी जाऊँगी
    एक बार और सो लूं
    सारी रात सोए-सोए थक गई हूँ
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया यशोदा । उम्मीद है कि अब थकान उतर चुकी होगी । 😄😄

      हटाएं
  2. असीम शुभकामनाओं के संग शुभ प्रभात
    गुदगुदाती रचनाओं की बेमिसाल प्रस्तुति
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. एक राखी प्रेम की मेरी ओर से..
    संस्कार भट्ट जी की बेहतरीन कहानी..
    मन नहीं लग रहा मुम्बई में..
    मेरा भी औऱ उनका भी..
    तीन महीने का बांड पूरा कर वापस आएँगे..
    शांत है अपना छत्तीसगढ़..
    आभार..
    आदरणीय दीदी को नमन..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति पसंद करने के लिए शुक्रिया , दिव्या ।
      मुंबई रास आ जाय तो किसी का छोड़ने का मन नहीं करता और न पसंद आये तो रहा नहीं जाता ।

      हटाएं
  4. अपने इस प्रकाश नगरी (ब्लॉग जगत) में अंधेर नगरी को देख कर दिग्भ्रम हो रहा है । मिश्रित भाव आपस में भिड़े हुए हैं । तत्काल अल्प शबद ही । दिग्भ्रमण के उपरांत पुनः शेष ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमृता जी ,
      बिल्कुल दिग्भ्रमित न हों , वैसे अंधेर नगरी तो हर ओर व्याप्त है ।
      आभार

      हटाएं
    2. आपने तो चौंकाते हुए टाइम ट्रैवल करा दिया । दस साल पहले इन्हीं तारीखों के आस-पास की रचना लेकर न जाने कितने बिछड़ों की याद दिला दीं । और हांँ ! अपने अल्प शब्दों के लिए हम सबों से सदैव क्षमा प्रार्थी हैं । संभवतः हमें क्षमा अवश्य मिलेगी । हार्दिक आभार ।

      हटाएं
    3. अमृता जी ,
      कभी कभी मन पिछले दौर में जाना ही चाहता है , बहुत सी यादें और लोग जुड़े होते हैं । आपसे इतने शब्द लिखवा लेना सच ही मैराथन जीतने जैसा है 😄😄😄 । पुनः शुक्रिया ।

      हटाएं
  5. बहुत ही सुंदर संकलन आदरणीया दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही शानदार लिंक्स ... बहुत-बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर चयनित रचनाओं से सजा सुन्दर अंक! उत्तम प्रस्तुति के लिए आ. संगीता जी को हार्दिक बधाई! मेरी रचना को इस सुन्दर अंक में प्रतिष्ठित करने के लिए आभार स्वीकारें आदरणीया!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गजेंद्र जी ,
      आपकी सराहना पा कर मन मुदित है । आभार ।

      हटाएं
  8. महामारी के दौर की भयावह स्मृतियाँ त्योहार के दिन रूला गयी होंगी,सचमुच उन बहन भाइयों के मन की पीड़ा महसूस हुई दी।
    सभी रचनाएँ लाज़वाब हैं।
    खासकर आपके द्वारा ब्लॉग की खुदाई से निकले हीरों की बात ही निराली है।
    विषयों की विविधता में भी सामयिक समरसता का होना आपकी परिपक्व सुगढ़ता का परिचायक है। रचनाओं के साथ लिखी गयी आपकी पंक्तियाँ विशेष रूप से अच्छी लगती है, ये पंक्तियाँ रचना और रचनाकारों के प्रति आपके आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का द्योतक है।
    बेहतरीन सोमवारीय अंक दी।

    सप्रेम प्रणाम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत ही सुन्दर और सटीक टिपण्णी!

      हटाएं
    2. प्रिय श्वेता ,
      मेरी प्रस्तुति पर तुम्हारी तीक्ष्ण दृष्टि एक एक पंक्ति पर पड़ी है । तुम्हारे द्वारा की गई टिप्पणी मन को असीम सुख देती है । विविध रंग और रस का आस्वादन मिला इससे संतुष्ट हूँ ।
      सस्नेह

      हटाएं
  9. जैसे घट-घट बासी राम को तुलसीदास ने घर-घर बासी बनया । उनके सदृश ही आपका यह पुनीत कार्य है । जौहरी सम सूक्ष्म दृष्टि रचना संकलन में अति प्रशंसनीय है । रसानंद के लिए कुछ कहना अतिश्योक्ति ही होगा । हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी मनमोहक भावाभिव्यक्ति के साथ बहुत ही उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा विशेष रहती है । आभार

      हटाएं
  11. विविध रंगों से सजा अंक, समसामयिक रचनायें आपकी सुंदर उक्तियों से और सुंदर हो गयीं, मनमोहक अंक के लिए बहुत शुभकामनाएँ और बधाई आदरणीय दीदी।

    जवाब देंहटाएं

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