निवेदन।


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सोमवार, 25 सितंबर 2023

3891 ..राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया निर्मल और निष्पाप बनाया

 सादर अभिवादन

तबियत कुछ दिनों से नरम है
डोर का भरोसा नहीं
पता नहीं क्यूं
ऐसा लगती है
अब टूटे तब टूटे
सुहागन जाऊं
बस यही इच्छा है
अब देखिए रचनाएं ....

राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया
निर्मल और निष्पाप बनाया.
घृणित नहीं वन्दित हुई वो
निन्दित नहीं पूजित हुई वो
भरत-जननी श्रेष्ठ थी नारी
महान विदुषी दशरथ प्यारी
उन्होंने की जग पे एहसान
देकर शुभ-सुन्दर परिणाम.




इंतज़ार में
लौटने की ख़ुशबु होती है
जैसे- लौट आता है सावन
चंग के साथ फागुनी धमाल।
परंतु, पहाड़ के अनुराग में
पगी नदी
ज़मीन पर नहीं लौटना चाहती




मेरे मन, भाव, शब्दों और नदी के भरोसे में।
मेरे पदचिन्ह
नदी के मुहाने तक चस्पा हैं
उसके बाद नदी है
नदी है
और
मेरी आचार संहिता।


दे न सका कुछ दे न सकूँगा
जो अर्पित निज कह न सकूँगा।
किन्तु मुझे इतना अशीष दो
तव चरणों नत रहे शीश दो।
तुझ पर श्रद्धा रहे अटल मम
सुबह शाम तू लिख ले।
निज नामावलि में मेरा भी
एक नाम तू लिख ले।
ओ! सबकी सुधि रखने वाले
एक काम तू लिख ले।


निज-धंधा करे चिकित्सक अब,
हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं,
फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर,
जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग,
वंचित न रहे कोई किंचित।।

.....
आज बस
सादर

रविवार, 24 सितंबर 2023

3890.....कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?

जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।
अब पेश है.....
कुछ चुनी हुई रचनाओ के अंश.....

तुम्हारे बंद दरवाज़े पर
दस्तक देते हुए इंटरव्यू लेने वाली महिला अभिभूत है और प्रश्न पुछती है कि आप इतने पॉजिटिव कैसे है ? सामने वाला व्यक्ति बोलता है कि अपनी माँ की वजह से

❣️

आत्मीय जन और मित्रों की 
कई दुआएं,पूजा, भक्ति  मुझे छीन कर मृत्यु मुख से 
फिर से वापस ले आई थी 
और चिकित्सक की मेहनत भी  
धीरे-धीरे रंग लाई थी

रूखी सूखी में कटे, जिनके बीते साल,
सत्ता मिलते ही हुए, कैसे मालामाल,
नेता बनते ही हुए, तेवर बड़े अजीब, कुर्सी पाते ही चलें, ये शतरंजी चाल

सब करते हैं जग में अपने ही मन की
कोई किसी का यहाँ गुनहगार नहीं है  तुम जीयो, मरो या पा जाओ पुरस्कार कोई 
हमें रत्ती भर भी तुमसे कोई सरोकार नहीं है

 

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।* कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।
पीते हैं जब चाय तब कहीं।*
कहते हैं आराम बहुत है।।*
बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*
फोनों पर पैगाम बहुत है।।

धन्यवाद....

शनिवार, 23 सितंबर 2023

3889... पतझड़ के फूल



बहुत दुखद घटना हो गई। राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के सुपुत्र श्री केदार नाथ सिंह जी का निधन,बिहार के बेगुसराय के सिमरिया गाँव में कल हो गया है।

विनम्र श्रद्धांजलि   

एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुँचे। सीढ़ियों से उतरते वक्त वो अचानक लड़खड़ा गए, इसी बीच दिनकर ने उनको सहारा दिया। नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा। इस पर दिनकर तपाक से बोले-जब जब राजनीति लड़खड़ाएगी, तब-तब साहित्य उसे सहारा देगा। रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है। इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना 'मित्र' बताया है।  

विभा रानी श्रीवास्तव: कोई एक ऐसी बात जो आपको इनकी सदैव याद रहती हो?

[22/09, 12:40 pm] राजेन्द्र पुरोहित : समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!

(दिनकर)

[22/09, 12:44 pm] मधुरेश नारायण : जब नाश मनुष्य पर छाता है।

पहले विवेक मर जाता है।

[22/09, 12:57 pm] एकता कुमारी : कर्ण कुंती संवाद

हैं आप कौन? किसलिए यहाँ आयी हैं?

[22/09, 12:44 pm] वर्षा गर्ग: दिनकर जी का नाम सुनते ही उनकी पंक्तियां..

समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!

मस्तिष्क में कौंध जाती हैं,हमेशा ही।

[22/09, 1:04 pm] मीरा श्रीवास्तव: महान कवि श्री दिनकर जी की याद हमेशा ही आती है और आती रहेगी  ।

शूरमा नहीं विचलित होते,

छण एक नहीं धीरज खोते,

      विघ्नों को गले लगाते हैं,

      काँटो में राह बनाते हैं 

 और  .....

कृष्ण की चेतावनी  

  याचना नहीं अब रण होगा,

जीवन जय या की मरण होगा। 

'रश्मि रथि' की इन स्मरणीय पंक्तियाँ 

जो मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं

[22/09, 1:33 pm] राजकांता राज : दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार।

[22/09, 8:19 pm] प्रवीण कुमार श्रीवास्तव: मन कटु वाणी से आहत हो,

भीतर तक छलनी हो जाये।

फिर बाद कहे प्रिय वचनो का,

रह जाता कोई अर्थ नहीं।

[22/09, 8:13 pm] अपराजिता रंजना: सौभाग्य न सब दिन सोता है।

देखें आगे क्या होता है।

[22/09, 1:23 pm] प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र': 

मेंहदी जब सहती है प्रहार

बनती लालनाओ का श्रृंगार

जब फूल पिरोए जाते हैं

हैं उनको गले लगाते हैं।

[22/09, 11:07 pm] पूनम कतरियार: अब तो  भूलने की बीमारी-सी हो गई है, पहले इनके  हिमालय, कलम या कि तलवार,आदि कई कविताएँ,रश्मिरथी एवं कुरूक्षेत्र की बहुत सारी पंक्तियाँ अक्सर गुनगुनाया करती थी। 

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

धरा पर क्यों बिखर गये, तोड़ के साँठगाँठ

 पत्ते नए सिरे से कहे अन्त का कथा पाठ

रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है।संस्कृति के चार अध्याय राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की एक बहुचर्चित पुस्तक है जिसे साहित्य अकादमी ने सन् १९५६ में न केवल पहली बार प्रकाशित किया अपितु आगे चलकर उसे पुरस्कृत भी किया। इस पुस्तक में दिनकर जी ने भारत के संस्कृतिक इतिहास को चार भागों में बाँटकर उसे लिखने का प्रयत्न किया है। वे यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारत का आधुनिक साहित्य प्राचीन साहित्य से किन-किन बातों में भिन्न है और इस भिन्नता का कारण क्या है ? उनका विश्वास है कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रान्तियाँ हुई हैं और हमारी संस्कृति का इतिहास उन्हीं चार क्रान्तियों का इतिहास है।

पतझड़ के फूल

सुकून --- अरसे बाद देखकर सुकून मिला

मानो पतझड़ में कोई फूल खिला।

रिश्तों में अब भी वही गर्माहट संजो रखा है

जहाँ से राह बदलकर तूने

पतझड़ के फूल

गुल्ल्क यूं ही आबाद नहीं हुआ पाई पाई को जोड़ा है मैंने, 

अरमानो से जाकर पूछना किस कीमत पर उन्हें तोडा है मैंने,

हौसला यूं ही बुलंद नहीं हुआ अपने वजूद को निचोड़ा है मैंने,   

दुश्मनों से जाकर पूछना किस हैसियत में उन्हें छोड़ा है मैंने।

खिज़ा का खौफ़

अलग है सब से तबीअ'त ही उस की ऐसी है 

वो बे-वफ़ा है मगर उस पे ए'तिबार भी है 

बहारें जाती हैं जाने दो तुम तो रुक जाओ 

बहुत दिनों से तबीअ'त में इंतिशार भी है

अन्तिम यात्रा

मालूम नही क्यों

हैरान था हर कोई मुझे

सोते

हुए

देख कर...

मात्रा गणना

अनुनासिक की स्वयं की कोई मात्रा नहीं होती, तो किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता, जैसे :- शब्द अँगना = अ की मात्रा एक ही रहेगी

शब्द आँगन = आ की मात्राएँ दो ही रहेंगी

मात्रा कैसे गिरायें

शाश्वत दीर्घ की मात्रा को

कभी नहीं गिरा सकते

सब से पहले समझना जरूरी है

कि दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ क्या है

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पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

3888....इंसान परेशान बहुत है

शुक्रवार अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
आज के दिन की शुरुआत करते हैं एक छोटी सी
कहानी से जो मैंने अपने पापा से सुनी थी-
एक बार की बात है सर्दियों के दिन थे, ठंड बहुत ज्यादा थी। एक नन्हीं चिड़िया खाने की तलाश में उड़ती हुई दूसरे प्रदेश जा रही थी परंतु अत्यधिक ठंड के कारण उसका खून जमने लगा और वह एक मैदान में गिर पड़ी। वहाँ घास खाती एक गाय ने उस चिड़िया पर गोबर कर दिया। गोबर की गर्मी ने चिड़िया को सुकून से भर दिया और वह खुश होकर जोर-ज़ोर से गाने लगी। तभी  वहाँ से एक बिल्ली गुज़र रही थी चिड़िया की गाने की आवाज़ सुनकर वह ठिठक गयी और ध्यान से सुनने लगी चिड़िया की आवाज़ कहाँ से आ रही है, उसने गोबर के ढ़ेर को हटाया और चिड़िया को बाहर निकाला और खा गयी।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि
आपके ऊपर गंदगी फेंकने वाला हर कोई आपका दुश्मन नहीं होता और 
आपको.गंदगी से निकालने वाला हर व्यक्ति आपका दोस्त नहीं होता।
----//----

आइये अब आज की रचनाओं का आस्वादन करें-



उसके हिस्से में
पांव के नीचे की ज़मीन
ही तो मिली थी
इस ज़मीन पर
सदाबहार के पेड़ उगाने लगा
सफेद,बैगनी और हल्के लाल रंगों में
अपने प्यार को महसूसता 
और फुरसत के क्षणों में
कच्ची परछी में बैठकर
प्यार से बतियाते हुए
मुस्कराने लगा

शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।
चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।

वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।
दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।

रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।
दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।



बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।

फोनों पर पैगाम बहुत है।।


आदी हैं ए.सी. के इतने।

कहते बाहर तापमान बहुत है।।


झुके-झुके स्कूली बच्चे।

बस्तों में सामान बहुत है।।


हां, यहीं बसी रहती हैं ये चीजें, 
और सबसे पहले इसी हृदय को तोड़ती हैं,
फिर पैरासाइट की तरह खाती रहती हैं देह
तुम्हारे रक्त-चाप को बढ़ाती-घटाती, 
कभी सांसों की गति तेज करतीं, कभी रोक देतीं
कभी लगता प्राण देतीं, कभी लगता घात
इन्हें हृदय में रखने से मिलता सिर्फ अवसाद. 

और चलते-चलते
प्रतिभा,दृढ संकल्प, निरंतर लगन और ईमानदारी से किया कर्म अपना यथोचित सम्मान प्राप्त कर ही लेते हैं



--------
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

गुरुवार, 21 सितंबर 2023

3887...कल आए गजानन गणनायक साथ ले आगत को अपने...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

साथ तुम्हें लाए गणनायक

घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया

पूरे  स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन दिल खोल के

तुम्हारा  भी पूजन करवाया साथ में अपने रख  कर

कल आए गजानन गणनायक

साथ ले आगत को अपने

ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष

माँगा  वर सर पर रखव़ा कर हाथ।

गणेश उत्सव और महान क्रन्तिकारी तिलक

यह सभी लोगों के लिए था बिना किसी भेदभाव के. यह पूजा पहले भी शिवाजी महाराज जैसे कई राजा व्यक्तिगत तौर पर करते थे लेकिन राष्ट्रव्यापी बनाया महान वकील समाज सुधारक क्रन्तिकारी तिलक ने.तिलक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की विफलता के कारणों से अत्यधिक चिंतित थे.

अनवरत यंत्र

माँ आते ही चप्पल-सेंडल-जूते उतारकर, एक्टिवा की चाबी तय जगह कील पर टाँगती थी। फिर बैग ठिकाने पर रखती थी। उसके बाद सलवार-सूट पहना हुआ हो तो चुनरी सोफे पर रखकर या फिर साड़ी सँभालते हुए, वहीं बगल में पंखे के नीचे सोफे पर ही बैठ जाती थी। जब मैं लाकर देती थी तो एक गिलास पानी पी लेती थी वरना अपने से माँगती कभी नहीं थी। 

घुटने में अभी भी हेड़ेक है

अब जैसा कि रिवाज है, तरह-तरह की नसीहतें, हिदायतें तथा उपचार मुफ्त में मिलने शुरू हो गए ! अधिकाँश सलाहें तो दोनों कानों में आवागमन की सुविधा पा हवा से जा मिले, पर कुछ अपने-आप को सिद्ध करने के लिए, दिमाग के आस-पास तंबू लगा बैठ गए ! सर्व-सुलभ उपायों को आजमाया भी गया ! ''फिलिप्स'' की लाल बत्ती का सेक भी दिया गया ! अपने नामों से मशहूर मलहमें भी खूब पोती गईं ! सेंधा नमक की सूखी-गीली गरमाहट को भी आजमाया गया,पर हासिल शून्य बटे सन्नाटा ही रहा ! फिर आए बाबा रामदेव अपनी ''पीड़ांतक" ले कर, उससे कुछ राहत भी मिली, हो सकता है कि शायद अब तक दर्द भी एक जगह बैठे-बैठे ऊब गया हो ! वैसे उसे और भी घुटने-कोहनियां देखनी होती हैं ! खाली-पीली मेरे यहां जमे रह कर उसकी दाल-रोटी भी तो नहीं चलने वाली, सो अब पूर्णतया तो नहीं पर काफी कुछ आराम है। 

वर्णमाला के रोमों में लिपटी...

दूसरी ओर .. सर्वविदित है कि पौधों की गतिशीलता सीमित होती है और वे अपने बीजों के परिवहन यानि फैलाव के लिए अपने बीजों के कम वजन, उसके रोएँदार या काँटेदार बनावट के साथ-साथ फैलाव में सहायता करने वाले विभिन्न प्रकार के कारकों पर निर्भर होते हैं। जिनमें हवा, पानी जैसे अजैविक कारक और पशु, पक्षी जैसे जीवंत कारक दोनों ही शामिल हैं। 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


बुधवार, 20 सितंबर 2023

3886.. बिखरे हुए शब्द...

 ।। प्रातः वंदन।।

क्षितिज पर देखो धरा ने

गगन को चुम्बन दिया है,

पवन हो मदमस्त बहकी

मेघ मन व्याकुल हुआ है !

मंदिरों की घंटियों से

मन्त्र झर-झर झर रहे है,

नयन मलती हर कलि का

सुबह ने स्वागत किया है..!!

अनाम

त्योहारों के मौसम से कुछ पल बिताए चुनिंदा लिंकों पर..✍️

गणेशोत्सव सामाजिक एकाकार का उत्सव है

हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है,

बारिश का मौसम आ गया



बहुत अरसों से पहली बारिश में भीगा करती थी 

अपने चेहरे को ऊपर करके

दोनो हथेलियों को खोल कर 

पता नहीं क्यों वो भीगना

मुझे बहुत ही सुकून देता 

वो भीगने का सिलसिला




तेरी ख़ामोशी में 

बिखरे हुए लिहाफ

अब भी सिसकते हैं

घर के किसी कोने..

🌟

एक एहसास ...

सुबह की चाय में इलायची सी तुम,

दिन भर छूती हो ज़िस्म हवा की मानिंद,

रात होते ही उतर आती हो खुमारी सी,..

🌟

ये कैसी बारिश है?

पीले पत्ते शाख़ों पर हैं,

हरे झर रहे हैं,

पके फल पेड़ों पर हैं,

🌟

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 19 सितंबर 2023

3885....मैं किसी के लिए बेशकीमती

 मंगलवारीय अंक में आप
 सभी का स्नेहिल अभिवादन।
----------




सुकूनी चादर सा तुम्हारा अहसास,
आसमानी शाल सा तुम्हारा विस्तार,
ज़िंदगी यूँ नहीं गुज़र रही लम्हा-लम्हा,
कुछ तो अच्छा लिखा था मेरे खातों में …
जिनकी एवज़ में तुम मिलीं.


भजन न जोगी सारंगी कै
कुटिया, मठ सन्नाटा हौ 
पक्की सड़क बनल हौ लेकिन
कदम, कदम पर काँटा हौ
नेता डेंगूँ कहैँ धरम के
कवन देश कै हाल बा.



मैं निराकार मे भी आकार भर दूँ 
मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ 
मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं 
मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं
 
मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को 
हर पल रहता तैयार हूँ 
मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद 
किसी के लिए बेकार हूँ...


इस अजनबी दुनिया में अकेला ख़्वाब हूँ मैं
दूसरे से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझे न मुझे उनके लिए कौन समझा
जो समझ गया उनकी खुली किताब हूँ मैं..

और चलते-चलते

कभी पौधा उखाड़ो दिवस भी...

यह साधारण-सी दिखने वाली खरपतवार आज हमारे लिए और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी कई दशकों से एक जानलेवा समस्या बनी हुई है। परन्तु हमारी हर समस्या के लिए सरकार पर निर्भर रहना या उस पर दोषारोपण करना हमारी निष्क्रियता को उजागर करता है। हमारी अपनी समस्याओं के हल के निष्पादन के लिए हम सभी को जागरुक रहना है और दूसरों को भी समय-समय पर करते रहना चाहिए। जैसे भूकंप आने पर हम किसी की मदद के लिए आने की प्रतीक्षा किए बग़ैर फ़ौरन घर से निकल कर अपनी बचाव के लिए खुले स्थान की ओर तेजी से भागते हैं। .. नहीं क्या ? .. तभी तो हम, हम से हमारा समाज, हमारे समाज से हमारा देश .. एक उज्ज्वल भविष्य की कामना कर सकता है .. बस यूँ ही .. शायद

-----
आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।






सोमवार, 18 सितंबर 2023

3884 ,,,,देश में कितनी अदालतों की जरूरत, यह पता चलेगा


सादर अभिवादन
जीवन की किताबों पर,
बेशक नया कवर चढ़ाइये;
पर बिखरे पन्नों को,
पहले प्यार से चिपकाइये !!

अब देखिए रचनाएं ...


आज फिर मैं जो सफर पर चला
किसी ने लौट कर आने को ना कहा
ना माथा चूमा ना दोनो हाथ उठा आशीष भरा 
किसी ने आंचल से नाम आंखे पोछते विदा
ना किया आज फिर जो मैं सफर पर चला।।





"घुघूती-बासूती… क्या खांदी?
दुधु-भाती!
मैं भी दे…..
जुठू छ
कैकू?
मेरू!
तेरी ब्वै कख?




मिला कुण्डली ब्याहते, ग्रह गुण मेल आधार ।
अजनबी दो एक बन, बसे नया घर - बार ।


निकले दिन हफ्ते गये,  गये मास फिर साल ।
कुछ के दिल मिल ही गये, कुछ का खस्ताहाल।


दिल मिल महकी जिंदगी, घर आँगन गुलजार।
जोड़ी जो बेमेल सी, जीवन उनका भार ।





पिछली बारिश की बूँदों
के निशान को मिटाने
गुज़रे हुए लम्हों को मिट्टी में दबाने
नई बूँदें आयी हैं
बारिश का मौसम आ गया।




इसके लागू होने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अदालतों को मैप करते हुए असल में पता करना आसान हो जाएगा कि देश में असल में कितनी अदालतों की जरूरत है. मतलब जब भी केंद्र एवं राज्य सरकारें नीतिगत निर्णय लेना चाहेंगी तो उन्हें मदद मिलेगी. विश्व बैंक ने इसके शुरुआती दिनों में ही भारत के इस प्रोजेक्ट की सराहना की है. जमीन के विवाद देश में बड़ी समस्या हैं. इनके निस्तारण में काफी वक्त लगता है.

आज बस
कल सखी
सादर
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