सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...

निवेदन।
---
फ़ॉलोअर
सोमवार, 25 सितंबर 2023
3891 ..राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया निर्मल और निष्पाप बनाया
रविवार, 24 सितंबर 2023
3890.....कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।
अब पेश है.....
कुछ चुनी हुई रचनाओ के अंश.....
तुम्हारे बंद दरवाज़े पर❣️
दस्तक देते हुए इंटरव्यू लेने वाली महिला अभिभूत है और प्रश्न पुछती है कि आप इतने पॉजिटिव कैसे है ? सामने वाला व्यक्ति बोलता है कि अपनी माँ की वजह से
आत्मीय जन और मित्रों की
कई दुआएं,पूजा, भक्ति मुझे छीन कर मृत्यु मुख से
फिर से वापस ले आई थी
और चिकित्सक की मेहनत भी
धीरे-धीरे रंग लाई थी
रूखी सूखी में कटे, जिनके बीते साल,
सत्ता मिलते ही हुए, कैसे मालामाल,
नेता बनते ही हुए, तेवर बड़े अजीब, कुर्सी पाते ही चलें, ये शतरंजी चाल
सब करते हैं जग में अपने ही मन की
कोई किसी का यहाँ गुनहगार नहीं है तुम जीयो, मरो या पा जाओ पुरस्कार कोई
हमें रत्ती भर भी तुमसे कोई सरोकार नहीं है
मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।* कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।
पीते हैं जब चाय तब कहीं।*
कहते हैं आराम बहुत है।।*
बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*
फोनों पर पैगाम बहुत है।।
धन्यवाद....
शनिवार, 23 सितंबर 2023
3889... पतझड़ के फूल
बहुत दुखद घटना हो गई। राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के सुपुत्र श्री केदार नाथ सिंह जी का निधन,बिहार के बेगुसराय के सिमरिया गाँव में कल हो गया है।
विनम्र श्रद्धांजलि
एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुँचे। सीढ़ियों से उतरते वक्त वो अचानक लड़खड़ा गए, इसी बीच दिनकर ने उनको सहारा दिया। नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा। इस पर दिनकर तपाक से बोले-जब जब राजनीति लड़खड़ाएगी, तब-तब साहित्य उसे सहारा देगा। रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है। इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना 'मित्र' बताया है।
विभा रानी श्रीवास्तव: कोई एक ऐसी बात जो आपको इनकी सदैव याद रहती हो?
[22/09, 12:40 pm] राजेन्द्र पुरोहित : समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!
(दिनकर)
[22/09, 12:44 pm] मधुरेश नारायण : जब नाश मनुष्य पर छाता है।
पहले विवेक मर जाता है।
[22/09, 12:57 pm] एकता कुमारी : कर्ण कुंती संवाद
हैं आप कौन? किसलिए यहाँ आयी हैं?
[22/09, 12:44 pm] वर्षा गर्ग: दिनकर जी का नाम सुनते ही उनकी पंक्तियां..
समर शेष है,नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा उनके भी अपराध!
मस्तिष्क में कौंध जाती हैं,हमेशा ही।
[22/09, 1:04 pm] मीरा श्रीवास्तव: महान कवि श्री दिनकर जी की याद हमेशा ही आती है और आती रहेगी ।
शूरमा नहीं विचलित होते,
छण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटो में राह बनाते हैं
और .....
कृष्ण की चेतावनी
याचना नहीं अब रण होगा,
जीवन जय या की मरण होगा।
'रश्मि रथि' की इन स्मरणीय पंक्तियाँ
जो मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं
[22/09, 1:33 pm] राजकांता राज : दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार।
[22/09, 8:19 pm] प्रवीण कुमार श्रीवास्तव: मन कटु वाणी से आहत हो,
भीतर तक छलनी हो जाये।
फिर बाद कहे प्रिय वचनो का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
[22/09, 8:13 pm] अपराजिता रंजना: सौभाग्य न सब दिन सोता है।
देखें आगे क्या होता है।
[22/09, 1:23 pm] प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र':
मेंहदी जब सहती है प्रहार
बनती लालनाओ का श्रृंगार
जब फूल पिरोए जाते हैं
हैं उनको गले लगाते हैं।
[22/09, 11:07 pm] पूनम कतरियार: अब तो भूलने की बीमारी-सी हो गई है, पहले इनके हिमालय, कलम या कि तलवार,आदि कई कविताएँ,रश्मिरथी एवं कुरूक्षेत्र की बहुत सारी पंक्तियाँ अक्सर गुनगुनाया करती थी।
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
धरा पर क्यों बिखर गये, तोड़ के साँठगाँठ
पत्ते नए सिरे से कहे अन्त का कथा पाठ
रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है।संस्कृति के चार अध्याय राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की एक बहुचर्चित पुस्तक है जिसे साहित्य अकादमी ने सन् १९५६ में न केवल पहली बार प्रकाशित किया अपितु आगे चलकर उसे पुरस्कृत भी किया। इस पुस्तक में दिनकर जी ने भारत के संस्कृतिक इतिहास को चार भागों में बाँटकर उसे लिखने का प्रयत्न किया है। वे यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारत का आधुनिक साहित्य प्राचीन साहित्य से किन-किन बातों में भिन्न है और इस भिन्नता का कारण क्या है ? उनका विश्वास है कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रान्तियाँ हुई हैं और हमारी संस्कृति का इतिहास उन्हीं चार क्रान्तियों का इतिहास है।
सुकून --- अरसे बाद देखकर सुकून मिला
मानो पतझड़ में कोई फूल खिला।
रिश्तों में अब भी वही गर्माहट संजो रखा है
जहाँ से राह बदलकर तूने
गुल्ल्क यूं ही आबाद नहीं हुआ पाई पाई को जोड़ा है मैंने,
अरमानो से जाकर पूछना किस कीमत पर उन्हें तोडा है मैंने,
हौसला यूं ही बुलंद नहीं हुआ अपने वजूद को निचोड़ा है मैंने,
दुश्मनों से जाकर पूछना किस हैसियत में उन्हें छोड़ा है मैंने।
अलग है सब से तबीअ'त ही उस की ऐसी है
वो बे-वफ़ा है मगर उस पे ए'तिबार भी है
बहारें जाती हैं जाने दो तुम तो रुक जाओ
बहुत दिनों से तबीअ'त में इंतिशार भी है
मालूम नही क्यों
हैरान था हर कोई मुझे
सोते
हुए
देख कर...
अनुनासिक की स्वयं की कोई मात्रा नहीं होती, तो किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता, जैसे :- शब्द अँगना = अ की मात्रा एक ही रहेगी
शब्द आँगन = आ की मात्राएँ दो ही रहेंगी
शाश्वत दीर्घ की मात्रा को
कभी नहीं गिरा सकते
सब से पहले समझना जरूरी है
कि दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ क्या है
शुक्रवार, 22 सितंबर 2023
3888....इंसान परेशान बहुत है
चाँदनी लगे टहल-टहल रही समंग से।।
वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।
दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।
रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।
दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।
बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।
फोनों पर पैगाम बहुत है।।
आदी हैं ए.सी. के इतने।
कहते बाहर तापमान बहुत है।।
झुके-झुके स्कूली बच्चे।
बस्तों में सामान बहुत है।।
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
गुरुवार, 21 सितंबर 2023
3887...कल आए गजानन गणनायक साथ ले आगत को अपने...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया
पूरे स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन
दिल खोल के
तुम्हारा भी पूजन करवाया साथ में अपने
रख कर
कल आए गजानन गणनायक
साथ ले आगत को अपने
ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष
माँगा वर सर पर रखव़ा कर हाथ।
गणेश उत्सव और महान क्रन्तिकारी तिलक
वर्णमाला के रोमों में लिपटी...
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बुधवार, 20 सितंबर 2023
3886.. बिखरे हुए शब्द...
।। प्रातः वंदन।।
क्षितिज पर देखो धरा ने
गगन को चुम्बन दिया है,
पवन हो मदमस्त बहकी
मेघ मन व्याकुल हुआ है !
मंदिरों की घंटियों से
मन्त्र झर-झर झर रहे है,
नयन मलती हर कलि का
सुबह ने स्वागत किया है..!!
अनाम
त्योहारों के मौसम से कुछ पल बिताए चुनिंदा लिंकों पर..✍️
गणेशोत्सव सामाजिक एकाकार का उत्सव है
हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है,
बारिश का मौसम आ गया
बहुत अरसों से पहली बारिश में भीगा करती थी
अपने चेहरे को ऊपर करके
दोनो हथेलियों को खोल कर
पता नहीं क्यों वो भीगना
मुझे बहुत ही सुकून देता
वो भीगने का सिलसिला
तेरी ख़ामोशी में
बिखरे हुए लिहाफ
अब भी सिसकते हैं
घर के किसी कोने..
🌟
सुबह की चाय में इलायची सी तुम,
दिन भर छूती हो ज़िस्म हवा की मानिंद,
रात होते ही उतर आती हो खुमारी सी,..
🌟
पीले पत्ते शाख़ों पर हैं,
हरे झर रहे हैं,
पके फल पेड़ों पर हैं,
🌟
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
मंगलवार, 19 सितंबर 2023
3885....मैं किसी के लिए बेशकीमती
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
आसमानी शाल सा तुम्हारा विस्तार,
ज़िंदगी यूँ नहीं गुज़र रही लम्हा-लम्हा,
कुछ तो अच्छा लिखा था मेरे खातों में …
जिनकी एवज़ में तुम मिलीं.
मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ
मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं
मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं
मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को
हर पल रहता तैयार हूँ
मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद
किसी के लिए बेकार हूँ...
यह साधारण-सी दिखने वाली खरपतवार आज हमारे लिए और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी कई दशकों से एक जानलेवा समस्या बनी हुई है। परन्तु हमारी हर समस्या के लिए सरकार पर निर्भर रहना या उस पर दोषारोपण करना हमारी निष्क्रियता को उजागर करता है। हमारी अपनी समस्याओं के हल के निष्पादन के लिए हम सभी को जागरुक रहना है और दूसरों को भी समय-समय पर करते रहना चाहिए। जैसे भूकंप आने पर हम किसी की मदद के लिए आने की प्रतीक्षा किए बग़ैर फ़ौरन घर से निकल कर अपनी बचाव के लिए खुले स्थान की ओर तेजी से भागते हैं। .. नहीं क्या ? .. तभी तो हम, हम से हमारा समाज, हमारे समाज से हमारा देश .. एक उज्ज्वल भविष्य की कामना कर सकता है .. बस यूँ ही .. शायद