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गुरुवार, 21 सितंबर 2023

3887...कल आए गजानन गणनायक साथ ले आगत को अपने...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

साथ तुम्हें लाए गणनायक

घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया

पूरे  स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन दिल खोल के

तुम्हारा  भी पूजन करवाया साथ में अपने रख  कर

कल आए गजानन गणनायक

साथ ले आगत को अपने

ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष

माँगा  वर सर पर रखव़ा कर हाथ।

गणेश उत्सव और महान क्रन्तिकारी तिलक

यह सभी लोगों के लिए था बिना किसी भेदभाव के. यह पूजा पहले भी शिवाजी महाराज जैसे कई राजा व्यक्तिगत तौर पर करते थे लेकिन राष्ट्रव्यापी बनाया महान वकील समाज सुधारक क्रन्तिकारी तिलक ने.तिलक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की विफलता के कारणों से अत्यधिक चिंतित थे.

अनवरत यंत्र

माँ आते ही चप्पल-सेंडल-जूते उतारकर, एक्टिवा की चाबी तय जगह कील पर टाँगती थी। फिर बैग ठिकाने पर रखती थी। उसके बाद सलवार-सूट पहना हुआ हो तो चुनरी सोफे पर रखकर या फिर साड़ी सँभालते हुए, वहीं बगल में पंखे के नीचे सोफे पर ही बैठ जाती थी। जब मैं लाकर देती थी तो एक गिलास पानी पी लेती थी वरना अपने से माँगती कभी नहीं थी। 

घुटने में अभी भी हेड़ेक है

अब जैसा कि रिवाज है, तरह-तरह की नसीहतें, हिदायतें तथा उपचार मुफ्त में मिलने शुरू हो गए ! अधिकाँश सलाहें तो दोनों कानों में आवागमन की सुविधा पा हवा से जा मिले, पर कुछ अपने-आप को सिद्ध करने के लिए, दिमाग के आस-पास तंबू लगा बैठ गए ! सर्व-सुलभ उपायों को आजमाया भी गया ! ''फिलिप्स'' की लाल बत्ती का सेक भी दिया गया ! अपने नामों से मशहूर मलहमें भी खूब पोती गईं ! सेंधा नमक की सूखी-गीली गरमाहट को भी आजमाया गया,पर हासिल शून्य बटे सन्नाटा ही रहा ! फिर आए बाबा रामदेव अपनी ''पीड़ांतक" ले कर, उससे कुछ राहत भी मिली, हो सकता है कि शायद अब तक दर्द भी एक जगह बैठे-बैठे ऊब गया हो ! वैसे उसे और भी घुटने-कोहनियां देखनी होती हैं ! खाली-पीली मेरे यहां जमे रह कर उसकी दाल-रोटी भी तो नहीं चलने वाली, सो अब पूर्णतया तो नहीं पर काफी कुछ आराम है। 

वर्णमाला के रोमों में लिपटी...

दूसरी ओर .. सर्वविदित है कि पौधों की गतिशीलता सीमित होती है और वे अपने बीजों के परिवहन यानि फैलाव के लिए अपने बीजों के कम वजन, उसके रोएँदार या काँटेदार बनावट के साथ-साथ फैलाव में सहायता करने वाले विभिन्न प्रकार के कारकों पर निर्भर होते हैं। जिनमें हवा, पानी जैसे अजैविक कारक और पशु, पक्षी जैसे जीवंत कारक दोनों ही शामिल हैं। 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


7 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो..
    शानदार चयन
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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