शुक्रवार अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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श्री कृष्ण एक ऐसा चरित्र है जो बाल,युवा,वृद्ध,स्त्री पुरुष सभी के लिए आनंदकारक हैं।
कृष्ण का अवतरण अंतःकरण के ज्ञान चक्षुओं को खोलकर प्रकाश फैलाने के लिए हुआ है।
भगवत गीता में निहित उपदेश ज्ञान,भक्ति,अध्यात्म,सामाजिक,वैज्ञानिक,राजनीति और दर्शन का निचोड़ है जो जीवन में निराशा और नकारात्मकता को दूर कर सद्कर्म और सकारात्मकता की ज्योति जगाता है।
*बिना फल की इच्छा किये कर्म किये जा।
*मानव तन एक वस्त्र मात्र है आत्मा अजर-अमर है।
*क्रोध सही गलत सब भुलाकर बस भ्रम पैदा करता है। हमें क्रोध से बचना चाहिए।
*जीवन में किसी भी प्रकार की अति से बचना चाहिए।
*स्वार्थ शीशे में पड़ी धूल की तरह जिसमें व्यक्ति अपना प्रतिबिंब नहीं देख पाता।
*आज या कल की चिंता किये बिना परमात्मा पर को सर्वस्व समर्पित कर चिंता मुक्त हो जायें।
और भी ऐसे अनगिनत प्रेरक और सार्थक संदेश हैंं जो भौतिक संसार की वास्तविकता से परिचित कराते हैं।
कर्म के संबंध में श्रीकृष्ण के बेजोड़ विचार अनुकरणीय है। भटकों को राह दिखाता उनका जीवन चरित्र उस दीपक के समान है जिसकी रोशनी से सामाजिक चरित्र की दशा और दिशा में कल्याणकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है उनके गुणों का आस्वादन कर आत्मविभोर होने का आनंद किसी अमृतपान से कम नहीं।
मेरे विचार से कृष्ण जैसे मात्र कृष्ण ही हैं।
जब विप्र सुदामा आया, मैत्री का मान बढ़ाया,
दो मुट्ठी चावल के बदले में राजकोष दे डारा !
द्रौपदी का चीर बढ़ाया, दुर्योधन मान घटाया,
साड़ी का अंत ना आया, तूने क्या जादू कर डारा !
अर्जुन को मित्र बनाया, गीता का ज्ञान सुनाया,
जब अर्जुन हिम्मत हारा, तू बन गया परम सहारा
जब कोई
छुड़ाकर हाथों से हाथ
बहुत दूर चला जाता है
तो छूट जाते हैं
जाने-अनजाने
अपनों से अपने
अपने ही सपने
कांच की तरह
टूटकर बिखर जाता है जीवन
अधरों पर बंसी रहे, मस्तक पंख मयूर,
कान्हा तो चित-चोर है, वासे राहियों दूर.
सजा हुआ है आज फिर, कान्हा का दरबार,
अरजी पर शायद मेरी, चर्चा हो इस बार.
सहज सरल सी बात है कहे सुदर्शन चक्र,
संयम ही अनुकूल है, समय दृष्टि जब वक्र.
एक डगर थी सूनी जिस पर
पनघट नजर नहीं आता था,
काँटों में उलझा था दामन
श्यामल रंग से न नाता था !
भर पिचकारी तन पे मारी
सप्त रंगी सी पड़ी फुहार,
पोर-पोर शीतल हो झूमा
फगुनाई की बहती बयार !
पापी को बचाने के लिए कोई बहाना जिसके आगे नहीं चलता, औचित्य तथा न्याय की रक्षा हेतु स्वयं अपना वचन तोड़ने पर उतारू हो जाए .जीवन का सारा रस जन-जन को बांटकर, निराले रंगों से संसार को रंजित कर के भी जिसकी उज्ज्वल श्यामता जस की तस रही हो ,उस निर्लिप्त को महामानव कहें या देवता? मान-अपमान,,यश-अपयश की प्रचलित अवधारणाएँ जिसे तोलने को अपर्याप्त है ,वह जब स्वयं अपना ही अतिक्रमण करता है तो परिभाषाएँ बदल जाती हैं. भविष्य की अपार संभावनाएँ जिसके कर्मसंदेश में निहित हों , त्रस्त मानवता के त्राण बन कर भूतल पर उतरों
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अंक
आभार आपका
सादर
मनभावन और विचारपरक भूमिका के लिए आपको साधुवाद
जवाब देंहटाएंकृष्ण पर लिखे सुंदर लिंक का संयोजन
सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
'कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है उनके गुणों का आस्वादन कर आत्मविभोर होने का आनंद किसी अमृतपान से कम नहीं।
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से कृष्ण जैसे मात्र कृष्ण ही हैं।'
शानदार अंक के लिए अत्यंत सटीक और सुंदर शब्दों में आपने भूमिका लिखी है, आभार!
कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्ति भावपूर्ण कृष्णमय लाजवाब प्रस्तुति एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाएं ।
जवाब देंहटाएंसही कहा कृष्ण जैसे मात्र कृष्ण ही हैं।
अत्यंत सुंदर कृष्णमय अंक। मनमोहन जैसा ही मनमोहक। मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार और बहुत सारा स्नेह प्रिय श्वेता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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