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सोमवार, 4 सितंबर 2023

3870 ,,,सभी बातें .. सभी के खोपड़ी में समा भी कहाँ पाती है भला

 सादर अभिवादन

कल मैं नही रहूँगी
किसी ने लगा दिया तो पढ़ लीजिएगा
वरना परसों पम्मी दी को पढ़ेगे ही
सादर




क्रांति के बाद क्रांति को आतुर रहना
विकृति है, संस्कृति नहीं  
संस्कृति - विकृति में
अंतर मिटा देना अपराध है
मौन के बाद भी मौन शेष रहे
वही शांत, तरल, व्याप्त व्यापक
देश  की संस्कृति है.




मिली थी जो कल फिर उसी चौराहे
बरगद छाँव तले l
परछाई की उस रूमानी रूह में
कोई रूहानी साँझ थी ll

आकार निराकार था उस
प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l
फिर भी हर अल्फाजों में
उसकी ही बात सगर थी ll




समर कितना शेष मेरा
तुम को तो है सब पता
कौन से दिन किस घड़ी में
होगी पूरी साधना
तुम से निर्मित विचित्र सृष्टि का
अति सूक्ष्म अनुभाग हूँ




समय जरूर बताएगा
समय सबको सब कुछ सही सही बता जाता है
गलतफहमी बनी रहनी भी जरूरी है
भाग्य से ही सही
बन्दर हनुमान जैसा नजर आता है
‘उलूक’ अपनी आँखों से देखना बहुत अच्छा है




वहाँ अन्य बैठे रसिकवा के ग्राहक लोग चाय के साथ-साथ मुहल्ले के दोनों प्रतिष्ठित व्यक्तियों - 'प्रोफेसर' साहब और 'स्टोरकीपर' साहब की वार्तालाप का भी आनन्द मुफ़्त में ले रहे हैं। पर आधी उनकी खोपड़ी में समा रही है और .. आधी ऊपर से निकल जा रही है। वैसे भी दुनिया की सभी बातें .. सभी के खोपड़ी में समा भी कहाँ पाती है भला ? .. बस यूँ ही


आज बस इतना ही
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. नमन संग आभार आपका अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान प्रदान करने के लिए ...
    परन्तु ऊपर बैठा "उलूक" साहिब का बन्दर उर्फ़ हनुमान जो हँस रहा है .. दंतभंजन मंजन से साफ़ किया हुआ दाँत दिखला कर .. वह उनकी अनमोल रचना पढ़ कर नहीं , बल्कि .. मेरी बतकही "पुंश्चली" के नूतन नामकरण - "पूंछ हिली" देख कर खिलखिला रहा है .. शायद ... 😂😂😂

    जवाब देंहटाएं
  2. हाँ पुंश्चली से पूँछ हिली तक | हम सब अपनी बातें अपने अपने आस पास के हिसाब से करते हैं शायद | अब जो मेरे घर में हो रहा है मैं वही बकूंगा | वो आप की समझ में तब तक नहीं आयेगा जब तक आप मेरे आसपास हो रहे को नहीं समझेंगे| देश बहुत बड़ा है | कहीं फूल खिलते हैं तो वो बहार लिखे दिखाई देते हैं | कहीं पतझड़ है तो वो उदास लिखे दुहाई देते हैं | होता ना इसके हिसाब से है ना उसके हिसाब से | होता वही है जो वो चाहता है हो | अब वो सबके अपने अपने हिसाब से अपना अपना वो | फिर नहीं समझ में आयेगा | रहने देते हैं | सिन्हा जी की पूंछ ठीक कर दीजिये बस | आभार 'उलूक' की बकबक को नहीं समझने के बाद भी स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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