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सोमवार, 25 सितंबर 2023

3891 ..राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया निर्मल और निष्पाप बनाया

 सादर अभिवादन

तबियत कुछ दिनों से नरम है
डोर का भरोसा नहीं
पता नहीं क्यूं
ऐसा लगती है
अब टूटे तब टूटे
सुहागन जाऊं
बस यही इच्छा है
अब देखिए रचनाएं ....

राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया
निर्मल और निष्पाप बनाया.
घृणित नहीं वन्दित हुई वो
निन्दित नहीं पूजित हुई वो
भरत-जननी श्रेष्ठ थी नारी
महान विदुषी दशरथ प्यारी
उन्होंने की जग पे एहसान
देकर शुभ-सुन्दर परिणाम.




इंतज़ार में
लौटने की ख़ुशबु होती है
जैसे- लौट आता है सावन
चंग के साथ फागुनी धमाल।
परंतु, पहाड़ के अनुराग में
पगी नदी
ज़मीन पर नहीं लौटना चाहती




मेरे मन, भाव, शब्दों और नदी के भरोसे में।
मेरे पदचिन्ह
नदी के मुहाने तक चस्पा हैं
उसके बाद नदी है
नदी है
और
मेरी आचार संहिता।


दे न सका कुछ दे न सकूँगा
जो अर्पित निज कह न सकूँगा।
किन्तु मुझे इतना अशीष दो
तव चरणों नत रहे शीश दो।
तुझ पर श्रद्धा रहे अटल मम
सुबह शाम तू लिख ले।
निज नामावलि में मेरा भी
एक नाम तू लिख ले।
ओ! सबकी सुधि रखने वाले
एक काम तू लिख ले।


निज-धंधा करे चिकित्सक अब,
हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं,
फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर,
जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग,
वंचित न रहे कोई किंचित।।

.....
आज बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संकलन आदरणीय यशोदा दीदी।
    ख़याल रखे अपना, मंच पर रचना को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरे लिंक को ब्लॉग पर देने के लिए सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय दीदी।पठनीय सूत्रों के साथ भूमिका में आपकी वेदना और कामना परेशान कर गई। कई दिनों के बाद यहाँ आकर अच्छा लगा ! आप का स्वास्थ्य शीघ्र ही अच्छा हो यही दुआ करती हूँ। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। आपको हार्दिक आभार और शुभकामनाएँ 🙏❤️

    जवाब देंहटाएं

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