जय मां हाटेशवरी......
इंसान कहता है कि पैसा आये तो मैं कुछ करके दिखाऊँ,
और पैसा कहता है कि तू कुछ करके दिखा तो मैं आऊँ.
सादर अभिवादन.....
आज अंतिम दिन है.....
इस वित वर्ष का......
सब ओर मंथन चल रहा है.....
इस वर्ष के वित्तीय खर्चों का......
पर यहां तो आज भी चर्चा ही होगी.....
आप की रचनाओं की ही.....
तेरहवें दिन कार्य पूर्ण कर, भरत शोक से उबर न पाए
निकट राम के जाने का जब, मन में वह विचार थे लाये
लक्ष्मण के छोटे भाई ने, आकर वचन कहे ये उनसे
स्वजन हों या अन्य कोई भी, राम सदा सबके दुःख हरते
सत्वगुण से सम्पन्न हैं जो, आश्रय जिनका सब लेते थे
एक स्त्री के द्वारा वे, कैसे जंगल में भेज दिए गये
ज़ख्म देने को नये शिरकत हुई !
हम न उससे फेर कर मुँह जायेंगे
हर सितम उसका उठाते जायेंगे
हो न वो मायूस अपनी चाल में
इसलिए बस दर्द से उल्फत हुई !
गुरु जी का विद्यार्थियों से एक पेचीदा प्रश्न -
'कोई एक 15 लाख, हर खाते में डालने का वादा करे,
कोई दूसरा 6000/- हर महीने खाते में डालने का वादा करे,
कोई तीसरा हरेक को एक बंगला देने का वादा करे
और कोई चौथा उन बंगलों में एक-एक मर्सिडीज़
खड़ी करने का वादा करे ,
तो बताओ - इनमें से किसका ख़याली पुलाव
ज़्यादा स्वादिष्ट होगा?'
एक विद्यार्थी -
'गुरु जी, आपके इस सवाल का जवाब तो 23 मई को सारा देश देगा.'
उसका साया भी पुरगुनाह
वह मेरा रहनुमा नहीं, हरगिज़ नहीं
लोभ लालच का फंदा
सुलह या सौगात नहीं
वो लूटते रहें वैखौफ
यह तो खुशनुमा मंजर नहीं है
जो दिखता है बाहर
यकीनन वह अंदर नहीं है
अल्फाज़ हैं भटके हुए-से
नीयत भी साफ नहीं है
कायम की राय गर समझ बूझ ,
परिणाम मेरे अपने ही हैं ।
फिसल गया कभी पैर कहीं ,
तो टूटन का फिर दुख क्यों है ।
अरे हाँ, एक और बंदा जिसके बिना टीवी देखने की ये पूरी परिकल्पना ही निरर्थक सिद्ध होती! वो था एंटीना ठीक करने वाला लड़का। ये घर के सबसे छोटे पर सक्रिय बच्चे
हुआ करते थे। जिनका बचपन एंटीना घुमाते-घुमाते ही जवानी की दहलीज़ तक पहुँचा है। इन्हें न दिन का होश, न रात का। न कड़ी धूप, न बारिश का। ठिठुरती सर्द रातों में
भी कम्बल ओढ़े छत तक जाना ही इनका प्रारब्ध रहा। उस पर बोरी भर-भर लानतें भी इनके ही हिस्से आतीं। ध्यान से देखियेगा यदि आपको अपने आसपास कोई जलकुकड़ा, बात-बात
में भिनकने वाला, पतला-दुबला, सुराहीदार गर्दन धारण किये पुरुष दिखाई दे तो समझ जाइये कि ये वही एंटीना ठीक करने वाला बालक है जो अब तक इस अभिशाप से मुक्त नहीं
हो सका है। उसकी गर्दन को ये कमनीयता एंटीना को महबूबा की तरह देखने से प्राप्त हुई है और अगरबत्तीनुमा काया उस यात्रा का प्रमाण हैं जो उसे घरवालों के कहने
पर एंटीना ठीक करने के लिए अरबों-ख़रबों बार सीढ़ियों से चढ़ने-उतरने के कौशल के चलते हासिल हुई है। 'स्किल इंडिया' का कॉन्सेप्ट तो तबका है जी।
धरती चाहती थी
कि
उसकी गोद में
लुटेरों, डाकुओं, चोरों, और बलात्कारियों
को न ज़बरन दफ़नाया जाए,
चाहती तो
सुनरकी भी थी
ब्याह हो जाए बड़के बखरिया में
पर
चाहने से क्या होता है
तन से मनचाहा हमसफ़र तो नहीं मिलता
उसके लिए पैदा होना पड़ता है
कुलीन बनकर,
आज बस इतना ही......
कल यहां फिर सजेगा......
आप की प्यारी-प्यारी रचनाओं से.....
हमकदम का और एक अंक.....
धन्यवाद।