बादशाह की जान को खतरा न हो
उसे जंग नहीं सियासत कहते हैं...
कितना सच... ?
सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
सदा रहा, एक आँख से हँसना,
एक आँख से रोना
अभिनन्दन का वंदन
अनेकानेक शहीदों को खोना युद्ध
धृतराष्ट्र की तरह जो अन्धे होंगे
सारी दुनिया के झंडे उनके हाथों में होंगे
जिनका अपराध बोध मर चुका होगा
वे वैज्ञानिक होंगे जो कम से कम मेहनत में
ज्यादा से ज्यादा अकाल मौतों की तरकीबें खोजेंगे
युद्ध
कुछ अनजाने भटके चेहरे मासूम जो अंजान है
मृग -तृष्णा के भंवर में छल्ले जाते है
बिना सोचे बिना समझे एक कारवां को बढ़ाते हो
क्यों तुम इस आँधी दौड़ की भेड़ चाल में खो जाते हो
युद्ध
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
जनगाथा
सैंकड़ों सूर्यों का तेज लिए, अद्धभुत तेरा कपाल है.
सहस्र भुझाओं के बल से बनी, कठोर तेरी ढाल है.
रक्त से सींची हुई तेरी जो तलवार है.
तेरी रूह से ही चंचल चपल, तेरे बाण हैं, कमान है.
मंथन
याद है माँ ने कहा था पीठ दिखलाना नहीं।
दूध की सौगंध तुमको हारकर आना नहीं।
शान हिन्दुस्थान की बेटा तुम्हारे हाथ है।
हौसले से युद्ध लड़ना माँ तुम्हारे साथ है।
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फिर मिलेंगे...
अभिशाप
रचनाकार
पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी
प्रकाशन तिथि- 04 मार्च 2019
युद्ध पर व्यापक दृष्टिकोण,बेहद सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रणाम।
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसदा की तरह युद्ध का वृहद और विहंगम दृष्टि
सादर नमन
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतुति
सुन्दर और सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर पठनीय लिंक्स
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति ,सादर नमन आप को
जवाब देंहटाएं
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