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सोमवार, 25 मार्च 2019

1347..हम-क़दम का तिरसठवाँ अंक

स्नेहिल अभिवादन
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वसंत धरा पर ऋतुचक्र परिवर्तन कै अंतर्गत प्रकृति को नवीन रुप से श्रृंगारित करने का वार्षिक त्योहार है। 
वसंत
 जीवन की खुशहाली है,आशा है यौवन और 
श्रृंगार  का अद्भुत राग है। 

वसंत पर लिखी गयी अनगिनत रचनाओं में से कुछ 
प्रसिद्ध रचनाकारों की लेखनी से उदृत बंध 
मेरी पसंद के आप भी आनंद लीजिए-
सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी--
पिक-स्वर नभ सरसाया ।
सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"
★★★★★
चैन मिटायो नारि को मैन सैन निज साज ।
याद परी सुख देन की रैन कठिन भई आज ।।

परम सुहावन से भए सबै बिरिछ बन बाग ।
तृबिध पवन लहरत चलत दहकावत उर आग ।।

कोहल अरु पपिहा गगन रटि रटि खायो प्रान ।
सोवन निसि नहिं देत है तलपत होत बिहान ।।
★★★★★
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
★★★★★
धूप बिछाए फूल-बिछौना,
बगिय़ा पहने चांदी-सोना,
कलियां फेंके जादू-टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना!
गोपालदास "नीरज"
★★★
रंग-बिरंगी खिली-अधखिली
किसिम-किसिम की गंधों-स्वादों वाली ये मंजरियां
तरुण आम की डाल-डाल टहनी-टहनी पर
झूम रही हैं...
चूम रही हैं--
कुसुमाकर को! ऋतुओं के राजाधिराज को !!
इनकी इठलाहट अर्पित है छुई-मुई की लोच-लाज को !!
तरुण आम की ये मंजरियाँ...
उद्धित जग की ये किन्नरियाँ
नागार्जुन
★★★★★
पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
और चलिए अब हमारे प्रिय रचनाकारों
की लेखनी से निसृत बसंत की रचनाओं का
आस्वादन करते हैं-
★★★★★
आदरणीय विश्वमोहन जी

मिलिन्द उन्मत्त मकरन्द मिलन मे,  
मलयज बयार   मदमस्त मदन  में/  
चतुर  चितेरा  चंचल  चितवन  में,  
कसके   हुक    वक्ष-स्पन्दन   में//

प्रणय  पाग  की  घुली  भंग,  
रंजित पराग पुंकेसर   रंग/
मुग्ध मदहोश सौन्दर्य सुधा,  
रासे  प्रकृति  पुरुष  संग //

★★★★
आदरणीया साधना वैद
(दो रचनाएँ)

वसंतागमन
नवयौवना धरा 
इठला कर
कोमल दूर्वादल से
अपने अंग-अंग में
पीली सरसों का उबटन लगा 
अपनी धानी चूनर को
हवा में लहराती है
पंछियों के स्वर मधुर खोने लगे
चाँद तारे क्लांत हो सोने लगे    
क्षीण होती प्रिय मिलन की आस है  
मलिन मुख से जा रहा मधुमास है ! 

वन्दना के स्वर शिथिल हो मौन हैं
करें किसका गान अतिथि कौन है
भ्रमित नैनों में व्यथा का भास है
भाव विह्वल जा रहा मधुमास है !
★★★★★

आदरणीया आशा  सक्सेना
वसंत पंचमी
आई वसंत ऋतू सर्दी को देती विदाई 
तन मन में हर्ष भरती 
फूली सरसों पीली पीली 
लेकर आई  वासंती बयार
मौसम परिवर्तन का
करती आगाज
धरती ने किया नव श्रृंगार |
★★★★★

आदरणीय रवीन्द्र भारद्वाज
बसंत
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दिन और अवधि के हिसाब से 
हो जाता हैं अंत बसंत का 
प्रत्येक वर्ष 

लेकिन सच पूछो तो 
बसंत छाया रहता हैं 
एक उम्मीद की तरह 
वर्षभर 
हमारे अंदर 
★★★★★

आदरणीया कुसुम कोठारी जी की
दो रचना
 ऋतु बसंत
हरित धरा मुखरित शाखाएं
कोमल सुषमा बरसाई है
वन उपवन ताल तड़ाग
वल्लरियां मदमाई है।

कुसुम कलिका कल्प की
उतर धरा पर आयी हैं
नंदन कानन उतरा है
लो, वसंत ऋतु आयी है।

सुमन भये सौरभ विहीन
रंग ना भावे सुर्ख चटकीले
खंजन नयन बदरी से सीले
चाँद लुटाये चांदनी रुखी
कैसो री अब वसंत सखी।
★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान
वसंत हो मेरे जीवन में
वसंत  हो तुम मेरे जीवन में,
जीवन के हर पलछिन में।

कितने मौसम आएं-जाएं,
कितने दुख के बादल छाएं।

चाहे बेमौसम हों बरसातें,
चाहें घिर के आएं काली रातें
★★★★★
ऐ रितुराज वसंत ! तुम तो बहुत खुशनुमा हो न !!!
आते ही धरा में रंगीनियां जो बिखेर देते हो.....
बिसरकर बीती सारी आपदाएं..........
खिलती -मुस्कराती है प्रकृति, मन बदल देते हो,
सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो.........
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।
★★★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार जी

रूप अतिरंजित कली कली मुस्काई,
प्रस्फुटित कलियों के सम्पुट मदमाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

कूक कोयल की संगीत नई भर लाई,
मंत्रमुग्ध होकर भौंरे भन-भन बौराए,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।
★★★★★
आदरणीया अनुराधा जी
ऋतुराज बसंत
 हवाओं में
झूमतीं फसलें
महकती अमराई
सूरज की किरणों से
धरती इठलाई
पीले लहराते
सरसों के खेत
जैसे पीली चूनर
ओढ़कर गोरी

★★★★★
और चलते-चलते
आदरणीया रेणु जी


ये मन कितना अकेला था 

एकाकीपन में खोया था  , 

 किसी   ख़ुशी  का इन्तजार  कहाँ 
बुझा - बुझा  हर रोयाँ  था ;
बरसे सहसा तपते मन पे  
  शीतल  मस्त फुहार से तुम ! 

 मधु सपना बन  ठहर  गए - 
  थकी  मांदी  सी आँखों में ,
हो पुलकित  मन ने उड़ान भरी -
   थकन बसी थी  पांखोंमें ;
उल्लास का ले आये तोहफा -
  मीठी मन की   मनुहार से तुम !! 
★★★★★
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#श्वेता सिन्हा

13 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    सखि वसन्त आया ।
    भरा हर्ष वन के मन,
    नवोत्कर्ष छाया ।
    किसलय-वसना नव-वय-लतिका
    मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
    मधुप-वृन्द बन्दी--
    पिक-स्वर नभ सरसाया ।
    निराला जी की उत्तम कृति
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    आभार..
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  2. वाहः वाहः
    बेहद सुंदर संग्रहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! वासन्ती मौसम को कितनी सहजता से आपने चारों और बिखेर दिया है..अब वसंत के सिवा कुछ नजर ही नहीं आता..एक खिड़की से कच्ची अमिया की खुशबू आ रही है, दूसरी से निम्बू के फूलों की मदमाती गंध..पहले भी आती थी पर अब बात कुछ और है...बधाई इस सुंदर संकलन के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  4. पपीहे की प्यासी पुकार में,
    चिर संचित अनुराग अनंत है/
    सृष्टि का यह चेतन क्षण है,
    अलि! झूमो आया वसंत है!!!!!!!!!!
    बहुत खूब प्रिय श्वेता - बसंत की विदा की बेला मे हमकदम का बासंती उत्सव बहुत मनभावन है सभी रचनाकारों को सुप्रभात और अभिवादन साथ में हार्दिक शुभकामनायें | सभी को नमन जिन्होंने शब्दों में सजीव बसंत खिलाया है | सब के जीवन में बसंत अमर हो , अटल हो यही कामना है | बसंत पर नयी रचना अधूरी रही जिसका अफ़सोस था लेकिन मंच ने मुझे भुलाया नहीं मेरी पुरानी रचना जोड़कर मुझे अनुगृहित किया जिसके लिए आभारी हूँ |तुम्हे विशेष आभार और मेरा प्यार | कुछ पंक्तियाँ बसंत के नाम मेरी भी --------
    खिलो बसंत -- झूमे दिग्दिगंत --
    सृष्टि - प्रांगण में उतरे
    सुख के सुहाने सूरज अनंत |
    झूमो रे !गली-गली ,उपवन उपवन ;

    लुटाओ नव सौरभ का अतुलित धन

    फैलाओ करुणा- प्रेम उजास .
    ना हो आम कोई ना हो खास ;
    आह्लादित हो ये मन आक्रांत !
    खिलो बसंत-- झूमे दिग्दिगंत !!!!!!!
    पुनः हार्दिक स्नेह के साथ |

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. वसंत की मदमाती, खिलखिलाती, महकती ऋतु में इतनी सुन्दर रचनाओं ने मन सुमन को और कुसुमित कर दिया ! सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन एवं मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! मेरी दोनों रचनाओं को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!श्वेता, फूलों की मीठी खुशबू सा सुगंधित मनभावन अंक !!👌सभी रचनाएँ लाजवाब!

    जवाब देंहटाएं
  8. अप्रतिम सुंदर अभिराम प्रस्तुति श्वेता आपकी,जैसे मन पर ही बसंत आ बैठा इठलाके।
    सभी रचनाएं मधुरस छलकाती।
    सभी रचनाकारों को शानदार सृजन के लिए बधाई।
    मेरी दो रचनाओं को हमकदम के बसंती केनवास पर अकिंत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
    सभी के जीवन में सदा बसंत मुस्कुराता रहे।
    सस्नेह।

    पांच लिंकों पर देखो कैसा मदमाता बसंत छाया
    जैसे आम्र मंजरियों पर उद्धाम यौवन लहराया
    करो कुसुमाकर ऋतु का अब विदाई सोपान आयोजन
    जाओ बसंत¡आना लेकर फिर दीप्त दिशाओं के वातायन।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत-बहुत सुंदर संकलन। बंसत छा गया है।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति वसंत की विभिन्न रंगीनियों
    से महकती सभी रचनाएं बहुत ही सुन्दर और संग्रहणीय.... मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  12. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
    हमकदम का यह अंक बहुत शानदार |

    जवाब देंहटाएं

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