सादर अभिवादन
कहते हैं सोलह की संख्या बड़ी प्यारी होती है, इससे आगे कोई
जाना ही नहीं चाहता...पर मज़बूरी भी कोई चीज होती है
हवा और समय को कोई नहीं रोक सका....
-0-
एक ही विषय पर कविता लिखना जो इस्तेमाल करता है
अपनी सोच का कठिन नहीं उसके लिए....
एक छोटी सी कहानी कि कैसे एक कवि ने चार विषयों पर
दो पंक्तिया की रचना कह दी...
उस समय अमीर खुसरो को ज़ोर से प्यास लगी थी । कुएँ के पास जा पहुँचे । वहाँ चार औरतें पानी भर रही थीं। खुसरो के पानी माँगने पर उन्होंने कविता सुनाने की शर्त रख दी ।
एक ने खीर पर, दूसरी ने चर्खे पर, तीसरी ने कुत्ते पर
और चौंथी ने ढोल पर।
कहते हैं सोलह की संख्या बड़ी प्यारी होती है, इससे आगे कोई
जाना ही नहीं चाहता...पर मज़बूरी भी कोई चीज होती है
हवा और समय को कोई नहीं रोक सका....
-0-
एक ही विषय पर कविता लिखना जो इस्तेमाल करता है
अपनी सोच का कठिन नहीं उसके लिए....
एक छोटी सी कहानी कि कैसे एक कवि ने चार विषयों पर
दो पंक्तिया की रचना कह दी...
उस समय अमीर खुसरो को ज़ोर से प्यास लगी थी । कुएँ के पास जा पहुँचे । वहाँ चार औरतें पानी भर रही थीं। खुसरो के पानी माँगने पर उन्होंने कविता सुनाने की शर्त रख दी ।
एक ने खीर पर, दूसरी ने चर्खे पर, तीसरी ने कुत्ते पर
और चौंथी ने ढोल पर।
वे आज के हमारे जैसे कवि नहीं, अमीर खुसरो ही थे – सार्थक और मौलिक रचने वाले । उन्होंने एक ही पद्य सुनाया और चारों महिलाओं से पानी पाने की शर्त जीत गये :
खीर पकाई जतन से, चर्खा दिया चलाय
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय ।
-0-
चलिए चलें देखें....आपकी लेखनी के द्वारा प्रसवित रचनाएँ...
आदरणीय सखी मीना शर्मा की लेखनी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnkB3lxgGekpyuafSyMq1IcAXDre2-CMmtecUfxI9O1DSV2yRuezLu57JOS8pypmXxZ7Nk2m1_V62xw3Pz8IbQz8FinBdFYatu8GXbaRRxve_3sXaEH9CWsiVcp_9hfg2npDt3BfEN2k4/s320/IMG_20180427_175718.jpg)
अनगिनत जन्मों से जुड़ा है
मेरा अस्तित्व तुम्हारे साथ,
कुछ यूँ....
जैसे साँसों से जीवन
जैसे वसंत से फागुन,
जैसे सूरज से भोर
जैसे पतंग से डोर,
-0-
आदरणीया आशा सक्सेना जी की कलम से
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpc81vfplRcMaKPUSjFb94bc6_pgpsioNW36GO4PwpyViHja6rlyiiLayOhEZ26m_55lnG1aB9p-l6wMr1_O2bwml_vAAOu0RmfDug5XcJp-ki3M88fY8qzhENxsj2sO3E_ikCCJpWR3o/s1600/index.jpg)
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी बातें
जब आती हैं
मन को ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व
अतीत में गुम हो गया है
उसे खोजती है या
अस्तित्व उसे खोजता है
कौन किसे खोजता है
-0-
आदरणीया साधना वैद दीदी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilMjE5kVoT2xwgVAo1BOK2Hzeu1fzCnqSU0yPglrEzOKOxeYRPAG2EfgxXdl-EEbqOiQaRJqUSynwd31AtkPDp13uL_IPXsXFHQvp8gSjZfsXSzZwdp39XGLJ5a5d7w85lTIgenERDKpyh/s400/Existance.jpg)
विवाहोपरांत जब बाहर निकली
उस विराट वटवृक्ष की छाया से
तो मन में अटूट विश्वास था कि
अपने अस्तित्व को अब तो मैं
ज़रूर पा सकूंगी लेकिन
गृहस्थी की शतरंज की बिसात पर
मेरी हैसियत उस अदना से प्यादे की थी
-0-
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा की कलम से
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPfrjQJ9OpsgkUEpi4DCEL3_UymJyNYFAamO-Q6mOiBdppwoamZ5cXOddbVxzRKiwUvVWjmd5OS_-Wm_VOTZHD9WHmcldWz9qObBDFmPbqSaAxNO7OMST5nNN-s3WBc6JgEaTpmDTg6rqg/s320/IMG-20180425-WA0025.jpg)
कैसे भूलूं कि तेरे उस
एक स्पर्श से ही था अस्तित्व मेरा....
शायद! इक भूल ही थी वो मेरी!
सोचता था कि मैं जानता हूँ खूब तुमको,
पर कुछ भी बाकी न अब कहने को,
न सुनने को ही कुछ अब रह गया है जब,
लौट आया हूँ मैं अपने घर को अब!
-0-
आदरणीय सखी सुधा सिंह जी की लेखनी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZwzR57F_AF9SRsruk34xLKmddOMQa4f_K3FgSNaAF7t81dls1KPgU2oHIV_HezeYvR9z-npOOKApj_AsmLBJ1rT4Mb3MC_KisV5hL0ZDxWRbMI0NkLPIkAwzB1nj_-mqzHqyMSgYHlwc/s320/The-Existence-Of-A-Creator.jpg)
क्या जीवित रहना अस्तित्व है?
या कुछ पा लेना अस्तित्व है?
ये अस्तित्व है प्रश्नवाचक क्यों?
और सब है उसके याचक क्यों?
-0-
आदरणीय सखी नीतू जी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRqG0rnQgPKyczlU_8gYs5VkL93sSWlmIT97zWvNxmcK-AehF4uJZVuhCrYfLwKU6ED6aijjmdje2biefHT4KPiN2kPFm4swgAdO9cXU3hn_2KCC5q7gl78lh1qs7JFb4PUeSM0A-77Frc/s320/sawan-shiv-puja-special-11.07.17-1.jpg)
इस दुनिया के नक्शे पर
एक छोटा सा अस्तित्व हमारा
झूठे भ्रम में जिंदा है जो
करता रहता मेरा तुम्हारा
-0-
आदरणीय सखी आँचल पाण्डेय
गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ
और दानव ने मनु को गोद लिया
फ़िर तम का मनु सिरताज बना
तब हनन धर्म अस्तित्व हुआ
घोर कलजुग अस्तित्व से घिरी धरा
ये भूमि असुरों का लोक हुआ
-0-
आदरणीय सखी रेणुबाला
मेरी सीमायें और असमर्थतायें सभी जानते हो तुम ,
सुख में भले विरक्त रहो -
पर दुःख में मुझे संभालते हो तुम ;
ये चाहत नहीं चाहती कि मैं बदलूं
और भुला दूं अपना अस्तित्व !!
-0-
आदरणीय सखी कुसुम कोठारी ने लिखी दो रचनाएँ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkU-df2zl19sOHL2wFZy3gq9o3vpaNpp-MXPyCWBwIIi-N1EH03N3cwJwLIgNMSfJ0HgcSLAjFbQFpbMp0684OeRdlVG6fjJ1xioG01Mydw0cpc0H71WfyMa8Z0hFQ8lolUiL9zP7NDlQ/s1600/KK+KK.jpg)
और अस्मिता बचाने की लडाई
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको
सोचो ये सिर्फ
अस्तित्व की लड़ाई है या
चूकते जा रहे
संस्कारों की प्रतिछाया...
जग में मेरा अस्तित्व
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh53RU8rb1beuM8f_N4BDq9YfXuPoMnWM0QJASfeNW8Tlme3AGfl5iKpwYb8pMeJXn6FlPJv4rwOoGd8Ejql_NTMohKVHBcgespzUaY0JeHk_srZ8hLr81l-77XSbP2MvqfwwhMQxjOS1d0/s320/KKK.jpg)
तेरी पहचान है मां
भगवान से पहले तू है
भगवान के बाद भी तू ही है मां
मेरे सारे अच्छे संस्कारों का
उद्गम है तू मां
-0-
आदरणाय सखी डॉ. इन्दिरा गुप्ता ने भी दो रचना रच दी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_MjGDR4yKBeOyZEsOBNra8DRJe2yWJKlIEMcpPVRLZQL2zxw49bMKG4RvzP8uVB5RPgIgavX1F4p8M9_kIkDqALyj55wHmwsEVRg6LQF_C3z7W0S2OQxJWtKM-xcS-dIn1XFI1RlY_Gc/s320/d1334375d3801c2-a-nw-p.jpg)
अस्तित्व कहाँ तन का रहा
अब केवल परछाई है
हवस मिटाने वाले तन मैं
बदनीयत की बादशाही है
अस्तित्व पा रही माँ तुझ मैं
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSBfe_uBPBW3_lCCVkMKbvhs1w_rcv7C4zXkxeLVHgPPBprKWGwDucT9-u5yKkVlRto-p4zyjoY5Xpf_-Er9_kW7r8eG4Nr-2bBbP2oz1s5ZWece-O9Xk5SaCECcTOkEfsVAuDOPbX0mI/s320/426e78cec6b6210-a-nw-p.jpg)
मेरा विघटन मत करना
श्वास लेऊ और पंख फैलाऊ
इतना बस माँ तुम करना !
-0-
आदरणीय पंकज प्रियम जी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVyZ8cs47Eiff8mR2b3d5JIHBk0XIWG6jc4qf0ZBAdFffcW78PvU0STJ5EDMonkEK0EqLnt_EnUJ17M2s4L7rnVzonO2Accbb457wePEqStxJlCJfJDtfY_5THCnqQoS6fqX14C2FUzBU/s320/3301161_S.jpg)
यहां हर कोई लड़ रहा है
अपने अस्तित्व की लड़ाई।
दुनियां में खुद को बचाने
को खुद से खुद की लड़ाई।
कोई लड़ रहा यहां दो जून
की रोटी जुटाने की लड़ाई।
-0-
बहना सुप्रिया"रानू" की दो रचना
![My photo](//lh5.googleusercontent.com/-EX-_YbC6p6Y/AAAAAAAAAAI/AAAAAAAAAWE/9zN0FdDm4FM/s80-c/photo.jpg)
सृष्टि के अस्तित्व का आधार,
नर नारी के अंतरंग प्रेम का व्यवहार,
आज एक महामारी बना,
समय से पूर्व ही यह शारीरिक भूख
जैसे छुवाछुत की बीमारी बना,
फिर भी मैं नारी हूँ,
![My photo](//lh5.googleusercontent.com/-EX-_YbC6p6Y/AAAAAAAAAAI/AAAAAAAAAWE/9zN0FdDm4FM/s80-c/photo.jpg)
मेरा अस्तित्व संलिप्त है...
असीम प्रेम का सागर है,मुझमे
लुटाती हूँ बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक,
कभी भाइयों के लिए,कभी पति,कभी पुत्र तो कभी पौत्र,
कभी खुद को अलग न सोच पायी,
मैं हूँ सबके लिए बस इसी बात पर जीती आयी,
-0-
आदरणीय भाई सुशील जी जोशी जी का बिल्ला...
किसी की
छाया भी अगर
कहीं पा जायेगा
तेरा अस्तित्व
उस दिन उभर
कर निखर जायेगा
कौड़ी का भाव
जो आज है तेरा
करोड़ों के मोल
का हो जायेगा
-0-
रचनाएँ सुविधानुसार लगाई गई है....
इज़ाज़त दें
यशोदा
-0-
चलिए चलें देखें....आपकी लेखनी के द्वारा प्रसवित रचनाएँ...
आदरणीय सखी मीना शर्मा की लेखनी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnkB3lxgGekpyuafSyMq1IcAXDre2-CMmtecUfxI9O1DSV2yRuezLu57JOS8pypmXxZ7Nk2m1_V62xw3Pz8IbQz8FinBdFYatu8GXbaRRxve_3sXaEH9CWsiVcp_9hfg2npDt3BfEN2k4/s320/IMG_20180427_175718.jpg)
अनगिनत जन्मों से जुड़ा है
मेरा अस्तित्व तुम्हारे साथ,
कुछ यूँ....
जैसे साँसों से जीवन
जैसे वसंत से फागुन,
जैसे सूरज से भोर
जैसे पतंग से डोर,
-0-
आदरणीया आशा सक्सेना जी की कलम से
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpc81vfplRcMaKPUSjFb94bc6_pgpsioNW36GO4PwpyViHja6rlyiiLayOhEZ26m_55lnG1aB9p-l6wMr1_O2bwml_vAAOu0RmfDug5XcJp-ki3M88fY8qzhENxsj2sO3E_ikCCJpWR3o/s1600/index.jpg)
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी बातें
जब आती हैं
मन को ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व
अतीत में गुम हो गया है
उसे खोजती है या
अस्तित्व उसे खोजता है
कौन किसे खोजता है
-0-
आदरणीया साधना वैद दीदी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilMjE5kVoT2xwgVAo1BOK2Hzeu1fzCnqSU0yPglrEzOKOxeYRPAG2EfgxXdl-EEbqOiQaRJqUSynwd31AtkPDp13uL_IPXsXFHQvp8gSjZfsXSzZwdp39XGLJ5a5d7w85lTIgenERDKpyh/s400/Existance.jpg)
विवाहोपरांत जब बाहर निकली
उस विराट वटवृक्ष की छाया से
तो मन में अटूट विश्वास था कि
अपने अस्तित्व को अब तो मैं
ज़रूर पा सकूंगी लेकिन
गृहस्थी की शतरंज की बिसात पर
मेरी हैसियत उस अदना से प्यादे की थी
-0-
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा की कलम से
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPfrjQJ9OpsgkUEpi4DCEL3_UymJyNYFAamO-Q6mOiBdppwoamZ5cXOddbVxzRKiwUvVWjmd5OS_-Wm_VOTZHD9WHmcldWz9qObBDFmPbqSaAxNO7OMST5nNN-s3WBc6JgEaTpmDTg6rqg/s320/IMG-20180425-WA0025.jpg)
कैसे भूलूं कि तेरे उस
एक स्पर्श से ही था अस्तित्व मेरा....
शायद! इक भूल ही थी वो मेरी!
सोचता था कि मैं जानता हूँ खूब तुमको,
पर कुछ भी बाकी न अब कहने को,
न सुनने को ही कुछ अब रह गया है जब,
लौट आया हूँ मैं अपने घर को अब!
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आदरणीय सखी सुधा सिंह जी की लेखनी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZwzR57F_AF9SRsruk34xLKmddOMQa4f_K3FgSNaAF7t81dls1KPgU2oHIV_HezeYvR9z-npOOKApj_AsmLBJ1rT4Mb3MC_KisV5hL0ZDxWRbMI0NkLPIkAwzB1nj_-mqzHqyMSgYHlwc/s320/The-Existence-Of-A-Creator.jpg)
क्या जीवित रहना अस्तित्व है?
या कुछ पा लेना अस्तित्व है?
ये अस्तित्व है प्रश्नवाचक क्यों?
और सब है उसके याचक क्यों?
-0-
आदरणीय सखी नीतू जी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRqG0rnQgPKyczlU_8gYs5VkL93sSWlmIT97zWvNxmcK-AehF4uJZVuhCrYfLwKU6ED6aijjmdje2biefHT4KPiN2kPFm4swgAdO9cXU3hn_2KCC5q7gl78lh1qs7JFb4PUeSM0A-77Frc/s320/sawan-shiv-puja-special-11.07.17-1.jpg)
इस दुनिया के नक्शे पर
एक छोटा सा अस्तित्व हमारा
झूठे भ्रम में जिंदा है जो
करता रहता मेरा तुम्हारा
-0-
आदरणीय सखी आँचल पाण्डेय
गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ
और दानव ने मनु को गोद लिया
फ़िर तम का मनु सिरताज बना
तब हनन धर्म अस्तित्व हुआ
घोर कलजुग अस्तित्व से घिरी धरा
ये भूमि असुरों का लोक हुआ
-0-
आदरणीय सखी रेणुबाला
मेरी सीमायें और असमर्थतायें सभी जानते हो तुम ,
सुख में भले विरक्त रहो -
पर दुःख में मुझे संभालते हो तुम ;
ये चाहत नहीं चाहती कि मैं बदलूं
और भुला दूं अपना अस्तित्व !!
-0-
आदरणीय सखी कुसुम कोठारी ने लिखी दो रचनाएँ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkU-df2zl19sOHL2wFZy3gq9o3vpaNpp-MXPyCWBwIIi-N1EH03N3cwJwLIgNMSfJ0HgcSLAjFbQFpbMp0684OeRdlVG6fjJ1xioG01Mydw0cpc0H71WfyMa8Z0hFQ8lolUiL9zP7NDlQ/s1600/KK+KK.jpg)
और अस्मिता बचाने की लडाई
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको
सोचो ये सिर्फ
अस्तित्व की लड़ाई है या
चूकते जा रहे
संस्कारों की प्रतिछाया...
जग में मेरा अस्तित्व
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh53RU8rb1beuM8f_N4BDq9YfXuPoMnWM0QJASfeNW8Tlme3AGfl5iKpwYb8pMeJXn6FlPJv4rwOoGd8Ejql_NTMohKVHBcgespzUaY0JeHk_srZ8hLr81l-77XSbP2MvqfwwhMQxjOS1d0/s320/KKK.jpg)
तेरी पहचान है मां
भगवान से पहले तू है
भगवान के बाद भी तू ही है मां
मेरे सारे अच्छे संस्कारों का
उद्गम है तू मां
-0-
आदरणाय सखी डॉ. इन्दिरा गुप्ता ने भी दो रचना रच दी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_MjGDR4yKBeOyZEsOBNra8DRJe2yWJKlIEMcpPVRLZQL2zxw49bMKG4RvzP8uVB5RPgIgavX1F4p8M9_kIkDqALyj55wHmwsEVRg6LQF_C3z7W0S2OQxJWtKM-xcS-dIn1XFI1RlY_Gc/s320/d1334375d3801c2-a-nw-p.jpg)
अस्तित्व कहाँ तन का रहा
अब केवल परछाई है
हवस मिटाने वाले तन मैं
बदनीयत की बादशाही है
अस्तित्व पा रही माँ तुझ मैं
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSBfe_uBPBW3_lCCVkMKbvhs1w_rcv7C4zXkxeLVHgPPBprKWGwDucT9-u5yKkVlRto-p4zyjoY5Xpf_-Er9_kW7r8eG4Nr-2bBbP2oz1s5ZWece-O9Xk5SaCECcTOkEfsVAuDOPbX0mI/s320/426e78cec6b6210-a-nw-p.jpg)
मेरा विघटन मत करना
श्वास लेऊ और पंख फैलाऊ
इतना बस माँ तुम करना !
-0-
आदरणीय पंकज प्रियम जी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVyZ8cs47Eiff8mR2b3d5JIHBk0XIWG6jc4qf0ZBAdFffcW78PvU0STJ5EDMonkEK0EqLnt_EnUJ17M2s4L7rnVzonO2Accbb457wePEqStxJlCJfJDtfY_5THCnqQoS6fqX14C2FUzBU/s320/3301161_S.jpg)
यहां हर कोई लड़ रहा है
अपने अस्तित्व की लड़ाई।
दुनियां में खुद को बचाने
को खुद से खुद की लड़ाई।
कोई लड़ रहा यहां दो जून
की रोटी जुटाने की लड़ाई।
-0-
बहना सुप्रिया"रानू" की दो रचना
![My photo](http://lh5.googleusercontent.com/-EX-_YbC6p6Y/AAAAAAAAAAI/AAAAAAAAAWE/9zN0FdDm4FM/s80-c/photo.jpg)
सृष्टि के अस्तित्व का आधार,
नर नारी के अंतरंग प्रेम का व्यवहार,
आज एक महामारी बना,
समय से पूर्व ही यह शारीरिक भूख
जैसे छुवाछुत की बीमारी बना,
फिर भी मैं नारी हूँ,
![My photo](http://lh5.googleusercontent.com/-EX-_YbC6p6Y/AAAAAAAAAAI/AAAAAAAAAWE/9zN0FdDm4FM/s80-c/photo.jpg)
मेरा अस्तित्व संलिप्त है...
असीम प्रेम का सागर है,मुझमे
लुटाती हूँ बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक,
कभी भाइयों के लिए,कभी पति,कभी पुत्र तो कभी पौत्र,
कभी खुद को अलग न सोच पायी,
मैं हूँ सबके लिए बस इसी बात पर जीती आयी,
-0-
आदरणीय भाई सुशील जी जोशी जी का बिल्ला...
किसी की
छाया भी अगर
कहीं पा जायेगा
तेरा अस्तित्व
उस दिन उभर
कर निखर जायेगा
कौड़ी का भाव
जो आज है तेरा
करोड़ों के मोल
का हो जायेगा
-0-
रचनाएँ सुविधानुसार लगाई गई है....
इज़ाज़त दें
यशोदा