आप सभी प्रतीक्षा कर रहे थे.....
आदरणीय यशोदा जी की.....
वे तो आज व्यस्त हैं.....निजी कामों में.....
इस लिये मैं उपस्थित हूं......
आज हिमाचल प्रदेश का स्थापना दिवस है। आजादी के बाद 15 अप्रैल, 1948 को 28 पहाड़ी रियासतों को मिलाकर नया प्रांत बनाया गया था। प्राकृतिक सौंदर्य और लोगों की
सादगी के कारण आज ये प्रदेश अपना विशेष स्थान रखता है।
सभी हिमाचल वासियों को इस दिन की शुभकामनाएं.....
अब पेश है.....मेरी पढ़ी रचनाओं के कुछ अंश पर उससे पहले ये छोटा सा प्रसंग.....
बात तब की है, जब शास्त्रीजी इस देश के प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे थे। एक दिन वे एक कपड़े की मिल देखने के लिए गए। उनके साथ मिल का मालिक, उच्च अधिकारी व अन्य विशिष्ट लोग भी थे।
मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- 'साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?' 'जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1 हजार रुपए की है।' मिल मालिक ने बताया। 'ये बहुत अधिक दाम की हैं। मुझे कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए,' शास्त्रीजी ने कहा। यहां स्मरणीय है कि यह घटना 1965 की है, तब 1 हजार रुपए की कीमत बहुत अधिक
थी। 'जी, यह देखिए। यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की' मिल मालिक ने दूसरी साड़ियां दिखलाते हुए कहा।
'अरे भाई, यह भी बहुत कीमती हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं।' शास्त्रीजी बोले। 'वाह सरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे? हम तो आपको ये साड़ियां भेंट कर रहे हैं।' मिल मालिक कहने लगा।
'नहीं भाई, मैं भेंट में नहीं लूंगा', शास्त्रीजी स्पष्ट बोले।
'क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें', मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा। 'हां, मैं प्रधानमंत्री हूं', शास्त्रीजी ने बड़ी शांति से जवाब दिया- 'पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं। मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।'
मिल मालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियां ही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे शास्त्रीजी, लालच जिन्हें छू तक नहीं सका था।
आदरणीय....मुकेश कुमार सिन्हा
एक प्यारी सतरंगी तितली
जिसका लार्वा बेशक पनपा था
गाँवों के गलियारे में
पर, भटक कर, छमक कर,
धुएं के दावानल में बहकर
पहुंचा शहर की पथरीली नदियों सी सड़क पर
बैठ न पाया कहीं, इस तपती धरती पर
न, ही कर पाया फूलों के निषेचन में
कोई भी सहयोग !!
आदरणीय....अलकनन्दा सिंह
बहरहाल, मीराबाई चानू, संजीता चानू, पूनम यादव, मनु भाकर, हीना सिद्धू , श्रेयसी सिंह, मनिका बत्रा, निक्की प्रधान ने एक ऐसी श्रृंखला बनाई है जिसे लगातार आगे ले जाने की चुनौतियां सबके सामने होंगी।
हम तो इस कामयाबी पर बहज़ाद लखनवी के लफ्ज़ों में इन बच्चियों को आगे बढ़ते देखना चाहेंगे कि-
''ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
आदरणीय....मालती मिश्रा
जीवन में जीता वही, जिसने न मानी हार।
पार हुआ तूफानों से, ले धैर्य की पतवार।।
आदरणीय......दिनेशराय द्विवेदी
आजादी के उपरान्त भारत ने अपना नववर्ष वर्नल इक्विनोक्स वासंतिक विषुव के दिन 22/23 मार्च को वर्ष का पहला दिन मानते हुए एक सौर कलेंडर बनाया जिसे भारतीय राष्ट्रीय पंचांग कहा गया। यह राष्ट्रीय पंचांग सरकारी कैलेंडर के अतिरिक्त कहीं भी स्थान नहीं बना सका। क्यों कि यह किसी व्यापक रूप से मनाए जाने वाले भारतीय त्यौहार से संबंधित नहीं था। यदि बैसाखी के दिन या बैसाखी के दिन के बाद के दिन से हम राष्ट्रीय सौर कैलेंडर को चुनते तो इसे सब को जानने में बहुत आसानी होती और यह संपूर्ण भारत में आसानी से प्रचलन में आ सकता था। यदि हमारी संसद चाहे तो इस काम को अब भी कर सकती है।किसी भी त्रुटि को दूर करना हमेशा बुद्धिमानीपूर्ण कदम होता है जो चिरस्थायी हो जाता है। हम चाहें तो इस काम को अब भी कर सकते हैं।
आदरणीय...श्वेता सिन्हा
बेजुब़ां सैनिक हूँ, वीरगति ही शान है
देशभक्ति से उन्मन्त झूमूँ कहूँ
बन के सैनिक जन्म लूँ फिर
शीश अर्पण मैं करूँ मेरे वतन
आदरणीय...आशा सक्सेना
देखो ना पानी बरसा नाम को
फसल हुई प्रभावित क्या करें ?
सोचना पड़ता है |
अनुसार उसी के चलना पड़ता
जो हो ईश्वर की मरजी |
आज बस इतना ही.....
फिर मुलाकात होगी मंगलवार को....
धन्यवाद।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंकल थामा रहा बुखार हमें
आभार भाई कहलदीप को
उम्दा प्रस्तुति
सादर
सदा स्वस्थ्य रहें
हटाएंशास्त्री जी को शत-शत नमन... उनके जैसा ना भूतो ना भविष्यति...
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी के जीवन का प्रेरणा दायक प्रसंग काश आज देश मे ऐसे नेता होते ज्यादा नही दो चार ही होते, नमन देश के सच्चे सपूत को।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाऐं सारगर्भित, चयनित रचनाकारों को बधाई।
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुलदीप जी, मेरे ब्लॉग को अपने इस नायाब कलेक्शन में शामिल करने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन........
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुलदीप जी -- पूजनीय शास्त्री जी अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं | उनकी सादगी के एक नहीं अनेक प्रसंग हैं जो उन्हें सत्तालोलुप और प्रपंची राजनेताओं से अलग दिखाते हैं | उन दिनों की रा राजनीति में भी कोई ना कोई सादगी रही होगी जो जीवन मूल्यों से भरे इतने सादा आम उन्सान को प्रधान मंत्री बनने का सौभाग्य मिला , आज तो उन जैसाआम इन्सान किसी पद का सपना देख नहीं सकता |उनकी पुण्य स्मृति ओर ऊँचे आदर्शों को कोटि कोटि नमन | आज के सभी लिंक देखे और उन पर अपनी राय भी लिखी | मुझे बहुत पसंद आये सभी | खास बात ये कि गद्य को भरपूर स्थान मिला है आज के अंक में | मिलना भी चाहिए | गद्य में विषय विस्तार पाता है | रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि जो भी उनके ब्लॉग पर आता है लिखता है उसे एक अदद आभार व्यक्त करने में संकोच ना करें | बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं |चयनित रचनाकारों को भी सस्नेह बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
स्व.श्री लालबहादुर शास्त्री
जवाब देंहटाएंभारत के लाल थे...
जबरदस्त प्रस्तुति
सादर
behtreen
जवाब देंहटाएं