सादर अभिवादन।
आजकल हिंसा को हम सहज रूप में स्वीकारने लगे हैं।
देश-दुनिया के समाचार हिंसक गतिविधियों से भरे होते हैं।
खिलौनों में मासूम बच्चे की पहली पसंद गन क्यों बन गयी है?
लगभग एक अरब तीस करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में जनता को नियंत्रित व्यवहार के लिए भावनात्मक मुद्दों के साथ-साथ क़ानूनी सख़्ती का भी पाठ पढ़ाया जाता है।
फ़िर भी
आपाधापी के माहौल में हम एक-दूसरे को
सशंकित भाव से देख रहे हैं।हमें भी इसकी पड़ताल करनी चाहिए.....
आइये अब आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर आपको ले चलें-
आदरणीया रश्मि प्रभा जी की एक प्रभावशाली रचना में निहित सन्देश पर ग़ौर कीजिये-
न्याय जो समय रहते नहीं हुआ
उसका अब औचित्य क्या !
मन के कितने मौसम बदल गए
... अब तो किसी सच के लिए
कुछ कहने का भी मन नहीं होता
हम साथ चल रहे हैं
स्पष्टता गहरी हो गई है
क्या इतना काफी नहीं है ?
अपने लेखन में गंभीर चिंतन को समाहित कर देती हैं आदरणीय साधना वैद जी। उनकी एक रचना जीवन में विकट परिस्थितियों में सार्थक अर्थ तलाशती हुई-
क्या पल भर का भी सुकून
हासिल हो पाता है इतने
विप्लवकारी संघर्ष के बाद ?
फिर किसलिए इतना झमेला !
आदरणीया पूनम मोहन जी अपनी इस रचना में स्त्री जीवन का संघर्षपूर्ण अंतर्द्वंद्व प्रस्तुत कर रही हैं-
मैं तो बस एक साधारण सी बाला
जो सब की, पर कोई नहीं उसका आला।
अपने एकाकीपन को सहलाती
कभी खिलती ,कभी कुम्हलाती
ख्वाबों को निहारती,कुछ रच जाती।
नहीं, मुझे नहीं बनना कवयित्री।
आदरणीया अमृता तन्मय जी की एक ख़ूबसूरत रचना आपकी नज़र-
जो थोड़ा- सा
संसार का एक छोटा- सा कोना
मैंने घेर रखा है
वहाँ मैं ही अंतः रस हूँ
और मैं ही हूँ अंतः सलिला
मैं जो स्वयं को सुख से मिली
तो सब सुख सध कर स्वयं ही मिला
आदरणीय संजय भास्कर जी प्रकाश डाल रहे हैं सुविख्यात कवि एवं लेखक स्वर्गीय डॉक्टर केदारनाथ सिंह जी कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर-
इस शहर में बसंत
अचानक आता है।
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती हैं
आदरणीया प्रियंका "श्री" जी की चन्द प्रभावशाली पंक्तियों पर ग़ौर फरमाइए -
जिस दौड़ में भागा था वो, निकलने को आगे
जान भी न सका ,कब उस दौड़ से गायब हो गया।
और चलते-चलते आदरणीय राही जी की छायाचित्रण कला की
एक बानगी आपकी सेवा में -
हम-क़दम के तेरहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........
आज के लिए बस इतना ही। मिलते हैं फिर अगले गुरूवार।
कल आ रही हैं आदरणीया श्वेता सिन्हा जी अपनी प्रस्तुति के साथ।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संयोजन
सादर
एक से बढ़कर एक रचनाओं की धमक! बधाई और आभार!!!
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्,
जवाब देंहटाएंगंभीर और संवेदनशील भूमिका के साथ बहुत ही सराहनीय रचनाओं का शानदार संयोजन किया है आदरणीय रवींद्र जी ने।
कितना सही कहा आपने हिंसा को सहज रुप से स्वीकारने लगे है हम। शायद हमारी संवेदना धीरे-धीरे शून्य होती जा रही है।
सुंंदर अंक तैयार करने के लिए बधाई बहुत सारा।
वाह हर रचना कुछ कहती सी
जवाब देंहटाएंमन भावों को गुनती सी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर सूत्रो का चयन।
जवाब देंहटाएंBahut bahut abhar ravindra ji meri rachna ko sthan dene ke liya .Bahut hi prabhav purn ank hai
जवाब देंहटाएंBahut bahut abhar ravindra ji meri rachna ko sthan dene ke liya .Bahut hi prabhav purn ank hai
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी, मेरी शौकिया फोटोग्राफी को आज के अंक में चर्चा बनाकर जन-जन तक पहुँचाने के लिए आभार, इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ....सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंमनमोहक प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सारगर्भित संवेदनशील विषय वस्तु
जवाब देंहटाएंसभी रचनाऐं सार्थक। चयनित रचनाकारों को बधाई
बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों का संकलन आज की हलचल ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंवाआआह अनुपम चयन एवं उत्तम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति करण उम्दा पठनीय लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों का संकलन
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