सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
तोड़ हर चीज का होता है...
हर बीमारी का इलाज होता है...
पहले कोशिश की जाती है कि
बीमारी हो ही नहीं
तो
तनाव हो ही नहीं
उसके लिए
क्या-क्या कोशिश की जा सकती है...
मौन हो प्रतीक्षित हूँ
जब तक आप जबाब ढूंढते हैं
अनुभूतिभावाभिव्यक्ति करते हैं
तब तक सीखिए या सिखाइए
महादेवी वर्मा ने भी गद्यकाव्य पर विचार किया. उन्होंने श्रीकेदार द्वारा रचित ‘अधखिले फूल‘
की भूमिका में कहा कि:
पद्य का भाव उसके संगीत की ओट में छिप जाए, परन्तु गद्य के पास उसे छिपाने के साधन कम हैं. रजनीगंधा की क्षुद्र, छिपी हुई कलियों के समान एकाएक खिलकर जब हमारे नित्य परिचय के कारण शब्द हृदय को भाव–सौरभ से सराबोर कर देते हैं तब हम चौंक उठते हैं. इसी में गद्यकाव्य का सौन्दर्य निहित है. इसके अतिरिक्त गद्य की भाषा बन्धनहीनता में बद्ध चित्रमय परिचित और स्वाभाविक होने पर भी हृदय को
छूने में असमर्थ हो सकती है.
अब तो तेरी बर्बरता ने,सारी सीमायें तोड़ी।
देख जरा अब आईना तू,शर्म जरा करले थोड़ी।
लेंगें हम चुन -चुन कर बदला,तेरी सब करतूतों का।
ओ नापाक पाक अब तेरी,बनने वाली है घोड़ी।
ख़्वाब ख़्वाब होते हैं ,सच से कोई खबर नही होता ,
दिल खूं से भरा होता है ,ये कोई शहर नहीं होता ,
अजीज़ इतना ही रखना कि ,मन बहल जाये ,
वरना इश्क़ से विषैला कोई जहर नहीं होता |
सहज प्रभावी, सहज स्मरणीय एवं सूत्र रूप में होने के कारण ही विश्व में सर्वप्रथम साहित्य के अन्तर्गत काव्य को सर्वाधिक प्रश्रय मिला। साहित्य को मुख्यतः तीन रूपों में विभाजित किया जाता है- पद्यात्मक, मिश्रित और गत्यात्मक । पद्यात्मक साहित्य के दो रूप है। या कह सकते है कि रूप रचना या स्वरूप विधान की दृष्टि से काव्य के दो भेद माने गए है- 1. प्रबंध काव्य 2. मुक्तक काव्य.
कबीर के दोहे ( कबीरदास )
मीरा के पद ( मीरा बाई )
बिहारी सतसई ( बिहारी )
रहीम के दोहे ( रहीमदास )
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नभ चेतना भू शून्यों को भर जाती
तंभावती जल मेघ की दरखास्ती
बंद रहे राहों के दरीचों का स्पंदन
प्रस्फुरण प्रेम की डोर की अतिपाती
मुक्त हो जाने का समय निर्धारित
अब बारी है नए विषय की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम सोलहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय रहा
:::: अस्तित्व ::::
:::: उदाहरण ::::
मैं बे-बस देख रहा हूँ
ज़माने के पाँव तले कुचलते
मेरे नीले आसमान का कोना
जो अब भी मुझे पुकारता है
मुस्कुराकर अपनी बाहें पसारे हुये
और मैं सोचता हूँ अक्सर
एक दिन
मैं छूटकर बंधनों से
भरूँगा अपनी उड़ान
अपने नीले आसमान में
और पा लूँगा
अपने अस्तित्व के मायने
आप अपनी रचना आज शनिवार 28 अप्रैल 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी
सोमवारीय अंक 30 अपैल 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
आभार
ज्ञान-दर्शन के लिए
सादर
वाह! ज्ञान की गगरी उलेड़ता उत्तम और उत्कृष्ट संकलन!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंमन में घर कर गई आज की प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर...
मन में घर कर गई आज की प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक विभा दी, एकदम मेरी पसंद का। बहुत बहुत स्नेह व आभार !
जवाब देंहटाएंमनमोहक प्रस्तुति। आदरणीया दीदी को नमन।
जवाब देंहटाएंमनमोहक प्रस्तुति। आदरणीया दीदी को नमन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय विभा दी -- मुक्तक को सिरे से परिभाषित करती औए सभी तरह के काव्य की सारगर्भित जानकारी प्रस्तुतुत करती रचनाये मुझे बहुत भाई | काव्य रसिको और रचनाकारों को इनकी जानकारी होनी ही चाहिए | उम्दा संकलन के सभी सहभागियों को हार्दिक शुभकामनायें |और अत्यंत मेहनत और शोध के बाद संजोये इस विशेष संकलन के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं |
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