निवेदन।


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सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

3563 / गीता को खुद में आत्मसात करना है !!!

 

नमस्कार ......  आज  जब सूरज देवता को अर्घ्य  चढ़ा  छठ संपन्न  हुई होगी तो  कितनी तृप्ति  मिली होगी ......   इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है ........ छठी व्रतियों को बहुत शुभकामनाएँ .....  करीब  चार वर्ष झारखण्ड  में रहने के कारण इस व्रत की महिमा का आभास हुआ ........ बाकी तो जो है सो है , लेकिन ठेकुए  बहुत याद आते हैं ..... चलिए प्रसाद को याद कर ही  समझ लेंगे कि  प्रसाद प्राप्त हुआ .......  आइये चलें  ब्लॉग्स  की सैर पर ...... और इस सैर पर जाते हुए सबसे पहले आप सैर कीजिये ....... 

दिल्ली हाट




हाट” नाम सुनते ही किसी गांव के मेला बाज़ार का दृश्य घूम जाता है , लोकल बाज़ार जिसमे ,स्थानीय चीजे ,वहां के ही लोकल लोंगो द्वारा बनायी हुई और खरीदते हुए खरीद दार मोल भाव करते हुए नज़र आते हैं ,” दिल्ली हाट” इसी प्रकार की एक जगह है ,आज आइये “दिल्ली हाट की सैर” करते हैं


दिल्ली वाले तो शायद घूम ही चुके होंगे दिल्ली हाट . |  बाकी लोग भी  वहाँ की जानकारी के साथ सैर कर लीजिये ...... ऐसी सैर में अक्सर बहुत कुछ यादें भी शामिल हो जाती हैं ....... और ऐसे ही एक पुस्तक के बारे में जानकारी लीजिये ....... जो संस्मरण का लेखा जोखा है ..... 



गरीबी में डॉक्टरी' और 'होंठों पर तैरती मुस्कान' कहानी संग्रह के प्रकाशन के बाद शब्द.इन मंच के 'पुस्तक लेखन प्रतियोगिता' में मेरी यह पुस्‍तक भूली-बिसरी यादों के पिटारे के रूप में प्रस्तुत किया है|

इस पुस्तक की जानकारी के बाद आपको ले जा रही हूँ  ब्लॉग्स पर जहाँ बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा रहा है ..... कुछ अपने अनुभव और कुछ अपने भाव .....   आइये एक और स्मृति की पोटली से पढ़ें 

वाह रे  लड़के..... बचपन की मासूमियत है ......... आपको कैसा लगा ? बताइयेगा .......

बचपन की बातें तो ऐसी बहुत सी होंगी जो अक्सर याद आ जाती होंगी ........ लेकिन कुछ बातें याद करते हुए मन में कहीं कोई  टीस भी उभरती होगी ........ऐसी ही एक कविता ..

मेरे बचपन की बारिशों में 

तब जब मैं बनाती थी पापा के लिए भांग के पकौड़े 

मां के न होने पर या होते हुए भी न होने पर 

निकालूं नानी की दी वो नन्ही बिंदिया 

उन्हें छू कर महसूस करूं, सजा लूं माथे पर 


खुले आकाश  पाने की नन्ही सी ख्वाहिश ......... लेकिन शायद आकाश का दामन भी छोटा  पड़  जाता है .....  तभी न ऐसे भाव भी उमड़ते हैं ......

मेरी दहलीज़ पर

आँचल से लिपटी रातें सीली-सी रहतीं

मेरे दिन दौड़ने लगे थे

उँगलियाँ बदलने का खेल खेलते पहर

वे दिन-रात मापने लगे

सूरज का तेज विचारों में भरता

मेरा प्रतिबिम्ब अंबर में चमकने लगा .


भले ही जीवन में कितनी ही विषमतायें हों  फिर भी उम्मीद की कड़ी जुडी रहती है सपनों से  ......  बस सपने  पूरे हों या नहीं ....लेकिन सपने होने चाहिएँ ....... पढ़िए खूबसूरत रचना ...

सपने .... 


सपने आते हैं जैसे

उकेरती हैं उँगलियाँ गीली माटी में

रूहानी सी लकीरें .

गीला मन माटी सा  .

सपने उस पर लिख देते हैं .

एक और गीत

उम्मीद का , इन्तज़ार का .


सपनों से इतर  ......... जब यथार्थ का सामना होता है तो खुद को तैयार रखना पड़ता है ..... सही गलत का निर्णय भी लेना पड़ता है .......  इसी को समझाते हुए एक रचना ..... 

गीता को खुद में आत्मसात करना है !!!

 

इससे परे _ 
यदि तुम अपनी जगह सही हो
पर बातों, चीजों को 
तुम ही सही करना चाहते हो 
_ तब तुम्हें कृष्ण से सीखना होगा
 पांच ग्राम जैसा प्रस्ताव ही सही होगा
अर्थात बीच का वह मार्ग,
जिसमें सम्मानित समझौता हो,

और आज बस इतना ही ........... मंथन कीजिये  ..कृष्ण बनना सरल नहीं ....... फिर मिलते हैं ...... 

नमस्कार 
संगीता स्वरुप 







रविवार, 30 अक्तूबर 2022

3562 ...हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखनी चाहिए

सादर अभिवादन
कल सुबह अर्घ्य के साथ ही छठ पूजा सम्पन्न हो जाएगी
कल से थकी व अलसाई काया
हाथ-गोड़ दबाने वाले का शरीर भी
आलस से भर गया है....
सब हंसी ठठ्ठा कर के थकावट दूर कर रहे हैं
एक बड़ा परब और निकला

अब चलिए रचनाओं से मन बहलाइए



ऊब और विरक्ति का
दौर नहीं थमता
न कोई मंज़िल है
न कोई रास्ता ही है
न कोई लक्ष्य है
न कोई वास्ता ही है




न जाने कितने टुकड़ों में बटेगा ये चमन,
एक घर से हज़ार रंग के परचम निकले,

रंगीन पैबन्दों से उन्हें ख़्वाबों का गुमां है,
जिस्म पे मेरे बेशुमार दर्दो अलम निकले,

हंगामा क्यूं कर बरपा एक रोटी की चोरी पे,
शहर में न जाने कितने ही जरायम निकले,




कई कई सालों तक मेरी सुबहें अकुलाई हुई होती हूँ।
मैं उठती हूँ और घबराहट होती है।
दिल की धड़कन तेज रहती है।
आँखें थोड़ी थोड़ी नम।
 इतने बड़े शहर बैंगलोर में इतनी तन्हाई कैसे है





जीवन नाम है परिवर्तन का
पल-पल संवरने और मन के जागरण का
उस प्रकाश  में नज़र आता है
प्रेम का तंतु
जो वैसे छुपा रहता है !





नंदी जी का इस जगत को एक संदेश यह भी है कि जिस तरह वह भगवान शिव के वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की दृष्टि शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर ही होनी चाहिए। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखनी चाहिए ! तभी जीवन की सार्थकता है।

आज बस

सादर 

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

3561.. छठ

       

उगते सूरज ढलते सूरज

कदम- कदम संग चलते सूरज

भीतर बाहर जहां देखिए

दिव्य चेतना छठ माई है

सूर्य ज्योति से जग प्रकाशित

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...


उगि हे सुरूज देव /

हे सूर्य, हमने अपने धर्म और शास्त्रों में बताए असंख्य देवियों और देवताओं को नहीं देखा है। हमने अपने जीवन में उनकी उपस्थिति कभी महसूस नहीं की। उनकी कथाएं भर सुनी हैं। एक आप ही हैं जो सदा हमारी आँखों के आगे हैं। उदय होकर भी और अस्त होकर भी। हमें आपका देवत्व स्वीकार करने के लिए किसी तर्क या प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। हमारी यह ममतामयी पृथ्वी आप से ही जन्मी है। यहां जो भी नमी है, उर्वरता है, हरीतिमा है, सौंदर्य है, जीवन है - वह आपकी ही देन हैं। आप न होते तो न यह पृथ्वी संभव थी, न पृथ्वी का अपार सौन्दर्य और न यहां जीवन के पनपने और विकसित होने की असीम संभावनाएं। हमारे प्यारे चांद का सौंदर्य और शीतलता भी आपकी ही अग्नि से है। हमारे ऋग्वेद ने सच ही कहा है - ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च दृ’ अर्थात आप सूर्य ही सृष्टि की आत्मा है। 

हे देव, आपके अनगिनत उपकारों के बदले हम आपको क्या दे सकते हैं ? बस आज से आरंभ छठ के चार पवित्र दिनों में शुद्ध तन-मन से आपके प्रति कृतज्ञता के गीत गाएंगे। आपके अस्ताचलगामी और उदीयमान दोनों रूपों को श्रद्धा के अर्घ्य समर्पित करेंगे। वह भी आपके ही दिए फल-फूल, कंद-मूल, अन्न-जल-दूध से। हमारी श्रद्धा और प्रार्थना स्वीकार करें ! हमें प्रकाश दें, ऊर्जा दें, उर्वरता दें, जीवन दें, स्वास्थ्य दें, हरियाली दें, वृक्ष दें, अन्न-फल-फूल दें, बादल दें, वर्षा दें, नदियां दें ! यह विवेक दें कि हम आपके अंश से बनी इस पृथ्वी और इसकी प्रकृति का सम्मान और संरक्षण कर सकें और अपनी संतानों के लिए इन्हें कुछ और बेहतर बनाकर जाएं ! 

सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के चार-दिवसीय लोकपर्व छठ की आप सबको शुभकामनाएं !ध्रुव गुप्त

सूर्य देवता का है अर्चन
जो करता जीवन का अर्जन
जिसके प्रकाश में सुख शांति मिले
जिसकी उर्जा से कण कण खिले

रवा सब डूबते सूरज को पूजनी
डूबते हुए सूरज के पूजा हमरे यहाँ बिहार में होला
छठ हमनी के पर्व नहीं हमरी के इमोशन है
भला इतनी ख़ुशी कोने त्योहार होला
छठ घाट के पनघट बुला रही
हमनी ऐ बरी छठ में जाए के पड़ी

छठ पूजन का व्रत कर 

सूर्य को अर्घ लगाऊं

माथे पर लगा तिलक

मैं सफल जीवन कर जाऊं

सांझ ढ़ले नितधर्म निभा

पूजन कर व्रत खोल जाऊं।।
इस नदी की साँसें लौट आई हैं
इसकी त्वचा मटमैली है मगर पारदर्शी है
 इसका हृदय इसकी आँखों में कम नहीं हुआ है पानी 
घुटने भर मिलेगा हर किसी को 
पानी लेकिन पूरा मिलेगा
 आकाश छठव्रतियों को
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पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<< 

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

3560 ..लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

 सादर अभिवादन


छठव्रतियों को अग्रिम शुभकामनाएँ
चार दिवसीय छठ आज नहा.-खाय के से शुरु हो गया
लोहांडा और खरना कल होगा, संध्या अर्घ्य 30 अक्तूबर को
और ऊषा अर्घ्य सोमवार 31 अक्तूबर को है
......
भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

कुछ सीमित रचनाएँ

छठ पर्व का अब तक का सबसे सुन्दर गीत




चांद सूर्य की ज्योत तुम्ही हो
तुम हो वीरों की थाती
जड़ जंगम आधार तुम्हारे
सभी रूप में मन भाती
भवप्रीता बन के आ जाना
अब न कभी गात दहेंगे।।




वे प्यार भरी रातें
मनुहार से भरी बातें
मुझे याद रहती हैं
उन्माद भरी सौगातें |
जब मन को सम्हाला था अपने
कितना  अवेरा था उसे बड़े कष्टों के बाद
अब कोई बाधा नहीं चाहती उस अवसाद के वाद |


आज बस
सादर

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

3559...किंतु अभी है शेष उजाला...

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में सद्यरचित पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ें पसंदीदा रचनाएँ-

श्वासों की शुभ दीपावली!...

तब तो तुम मेरे

प्रतिम सुप्रभा से

अप्रतिम चंद्रभा से

रक्तिम आभा में

अकृत्रिम प्रतिभा से

अंतिम प्रतिप्रभा से

प्रकाशित हो रहे हो मुझमें

अणद पिया!

दिवाली की अगली भोर

किंतु अभी है शेष  उजाला

उन दीयों का

जो बाले थे बीती रात

जगमग हुईं थी राहें सारी

गली-गली, हर कोना भू का

चमक उठा था जिनकी प्रभा से

अन्तर प्रवाह--

चंचल समय, हथेलियों
से निकल कर तितलियों के हमराह
उड़ चला है, बहुत दूर, ऊँचे
दरख़्त, जंगल, पहाड़,
ख़ूबसूरत वादियां,
फूलों से लदी
घाटियों,
से हो
कर, अंतहीन है उनका ये अनजान सफ़र,

गिरधर कब अइहैं.. गीत

जब से गए सुधि बिसरि गए हैं

हम उनके बिनु बाँझि भए हैं

ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से

अधर खुश्कअनबोल 

राधिकेमधु बोलो कछु बोल


चलते-चलते एक विशेष प्रस्तुति-

दीपोत्सव : लघुकथा नाटिका

"दीवाली की अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।" संध्या ने कहा।

"धनतेरस पुस्तक मेला शुरू हुआ है। तुम कहो तो ऑन लाइन तुम्हारी पसंद की दो चार पुस्तक मंगवा लूँ?" सुबोध ने कहा।

पुस्तक-चर्चा 

काव्य-संग्रह 'टोह' के अवतरण दिवस पर

मेरी मानस पुत्री के जन्म पर मेरी माँ उतनी ही ख़ुश है जितनी पहली बार वह नानी बनने पर थी। क़लम के स्पर्श मात्र से झरता है प्रेम अब हम दोनों के बीच। माँ के हृदय में उठती हैं हिलोरें भावों कीं जो मेरी क़लम में शब्द बनकर उतर आते हैं।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

3558..कितनी गिरहें खोली ..

 ।।प्रातः वंदन।।

“हमारी दृष्टि भाषित हो रही है, तुमको सूचित हो,
युयुत्सा फिर पिपासित हो रही है, तुमको सूचित हो,
उजाला धर रहा है चन्द्रमा दिन की मुंडेरो पर,
निशा हर दिन प्रकाशित हो रही है, तुमको सूचित हो..!”
अज्ञात
बुधवार की सुबह खास लिकों के संग..

सब दुखों का नाश हुआ ,
सुख समृद्धि का वास हुआ ,
मां #लक्ष्मी का ऐसा #आशीर्वाद हुआ।
आसान सब काज हुआ..
🌸

कितनी गिरहें खोली हैं मैंने

 #फिल्मउत्सव

नवीं दसवीं में सि एस आर, चंदामामा, पराग पढ़ते पढ़ते कब मायापुरी, सिने व्लिटज, स्टार डस्ट , डेबोनेयर, के माया जाल में फंसी पर फंसते हुए मज़ा बखूब आया !!..
🌸

सरोवर

हमारे ग्राम में एक छोटा सरोवर
है जल से लबालव
कभी जल सूखता नहीं उसका
वर्ष भर जल की कमी न होय वहां..
🌸

दिवाली की अगली भोर 


सूर्य ग्रहण लगने वाला है 

किंतु अभी है शेष  उजाला 

उन दीयों का 

जो बाले थे बीती रात 

जगमग हुईं थी राहें सारी 

गली-गली, हर कोना भू ..

🌸

बूढ़ा दीपक







यह बूढ़ा दीपक,

जो काला हो गया है,

जल-जल कर हुआ है,

कहीं-कहीं से टूट भी गया है,

यह ऐसा नहीं था,

जब कुम्हार ने इसे बनाया था..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


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