जय मां हाटेशवरी.......
कल तक जो भगवान थे....
आज इनसान भी नहीं है....
आज वो कैदी नंबर 1997 है....
आज फिर अधर्म पर धर्म की जीत हुई है....
जिसने भी नारी का शोषण किया है....
अंत में उसे अंजाम भुगतना पड़ा है....
चाहे वो रावण हो या दुर्योधन....
आसाराम हो या राम रहीम.....
इन दो साधवियों ने अपनी तपस्या से....
अनेकों निर्दोष बालाओं को भी मुक्त किया होगा....
शोषित होती रही....
जो डेरे के भय से....
कुछ बोल न सकी होगी...
इन न्यायाधीश को नमन.....
पेश है आज के लिये मेरी पसंद....
पर इससे पहले इसी विषय पर....
ये विचार भी अवश्य पढ़ें....
"कौन होते हैं आशाराम बापू के लिए बेसुध होकर रोने वाले.. राम रहीम के लिए कुछ भी फूंकने वाले..
राधे मां का फाइव स्टार आशीर्वाद लेने वाले. राम पाल के लिए अपनी जान तक दे देने वाले. निर्मल बाबा की हरी चटनी खाकर अरबपति बन जाने वाले..?
दरअसल इस भीड़ के मूल में दुःख है.. अभाव है.. गरीबी है.. और शारीरिक मानसिक शोषण है.. अहंकार के साथ कुछ हो जाने की तमन्ना है.
एक ऐसा विश्वास है जिस पर आडंबरों की फसल लहलहाती है.. आप जरा ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि ऐसे भक्तों की संख्या में ज्यादा संख्या महिलाओं, गरीबों, दलितों और शोषितों की है.. इनमें कोई अपने बेटे से परेशान है तो कोई अपने बहू से किसी का जमीन का झगड़ा चल रहा तो किसी को कोर्ट-कचहरी के चक्कर में अपनी सारी जायदाद बेचनी पड़ी है. किसी को सन्तान चाहिए किसी को नौकरी!
यानी हर आदमी एक तलाश में है.. ये भीड़ रूपी जो तलाश है. ये धार्मिक तलाश नहीं है. ये भौतिक लोभ की आकांक्षा में उपजी प्रतिक्रिया है.
जिसे स्वयँ की तलाश होती है वो उसे भीड़ की जरूरत नहीं उसे तो एकांत की जरूरत होती है..
वो किसी रामपाल के पास नहीं, किसी राम कृष्ण परमहंस के पास जाता है.. वो किसी राम रहीम के पास नहीं.. रामानन्द के पास जाता है.. उसे पैसा, पद और अहंकार के साथ भौतिक अभीप्साओं की जरूरत नहीं. उसे ज्ञान की जरुरत होती है..
गीता में भगवान कहते हैं..
न ही ज्ञानेन सदृशं पवित्रम – इह विद्यते
अर्थात ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है.. न ही गंगा न ही ये साधू संत और न ही इनके मेले और झमेले..
लेकिन बड़ी बात कि आज ज्ञान की जरूरत किसे हैं.. ? चेतना के विकास के लिए कौन योग दर्शन पढ़ना चाहता है.. कृष्णमूर्ति जैसे शुद्ध वेदांत के ज्ञाता के पास महज कुछ ही लोग जाते थे.. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं और कितने सिद्ध महात्माओं को तो हम जानते तक नहीं… यहाँ जो चेतना को परिष्कृत करने ध्यान करने और साधना करने की बातें करता है उसके यहां भीड़ कम होती है और जो नौकरी देने, सन्तान सुख देने और अमीर बनाने के सपने दिखाता है उसके यहाँ लोग टूट पड़ते हैं.. वहीं सत्य साईं बाबा के यहाँ नेताओं एयर अफसरों की लाइन लगी रहती थी, क्योंकि वो हवा से घड़ी, सोने की चैन, सोने शिवलिंग प्रगट कर देते थे, राख और शहद बांट रहे थे.
ये धार्मिक गुरु जो होतें हैं.. ये काउंसलर होते हैं. ये धार्मिक एडवारटाइजमेंट करते हैं।..जहां आदमी का विवेक शून्य हो जाता है..और आप वही करने लगतें हैं जो आपके अवचेतन में भर दिया जाता है..
आज जरुरत है जागरूकता की.. विवेक पैदा करने की. जरा तार्किक बनने की और उससे भी ज्यादा ज्ञान की तलाश में भटकते रहने की.. वरना हम यूँ ही भटकते रहेंगे…
“आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी”
ऋते ज्ञानात न मुक्तिः
( अर्थात ज्ञान के बिना कोई मुक्ति नहीं है)"whatsapp से प्राप्त....
भारत की बेटी और प्रधानमंत्री
न्यायलय ने
उस ख़त में लिपटी चीख को
शिद्दत से महसूस किया
सीबीआई जांच का आदेश दिया।
भाई भी खोया इस समर में
संवेदनशील पत्रकार की आहुति हुई
पिता भी चल बसे
एक पीड़ित साथी साथ आयी
केस में और जान आयी
देते-देते गवाही
झेलते-झेलते धमकियाँ
सामाजिक दुत्कार
घायल मन की चीत्कार
पंद्रह वर्ष बीत गए।
25 अगस्त 2017
सुकून का दिन आया
जब माननीय जज़ साहब ने
अपराधी बाबा को
जेल भिजवाया
एक अपराधी को
कोर्ट तक लाने में देश हिल गया
मौत के सौदागरों ने
36 घरों के चराग़ बुझा दिए
ये कैसे इन्होंने आपस में
ख़ूनी सौदे किए ....?
माँ सामने खड़ी है मचल जाइए हुजूर ...
मुद्दों की बात पर न कभी साथ आ सके
अब देश पे बनी है तो मिल जाइए हुजूर
हड्डी गले की बन के अटक जाएगी कभी
छोटी सी मछलियां हैं निगल जाइए हुजूर
बूढ़ी हुई तो क्या है उठा लेगी गोद में
माँ सामने खड़ी है मचल जाइए हुजूर
पति परमेश्वर
उसी रात देव मीनू के पति रात देर से घर पहुंचे ,किसी पार्टी से आये थे वह ,एक दो पैग भी चढ़ा रखे थे ,मीनू ने दरवाज़ा खोलते ही बस इतना पूछ लिया ,''आज देर से कैसे आये ,?''बस देव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ,आव देखा न ताव कस कर दो थप्पड़ मीना के गाल पर जड़ दिए । सुबह जब सोनू ने अपनी मालकिन का सूजा हुआ चेहरा देख अवाक रह गई ।
जिन्दगी और पत्थर
पत्थर की औरत की वो आराधना करते है।
किन्तु घर की औरत पर वो प्रताड़ना करते है।।
आज भी तो मुझे समझ ये राज मे नही आता है।
जिदंगी से है नफ़रत तो फिर पत्थर क्यों भाता है।।
भूख का पलड़ा-लघुकथा
''भूख के मरम हम जानत रहीं मालकिन| केकरो सामने हाथ पसारे के मरम हम जानत रहीं| जी मार के रहे के मरम हम जानत रहीं। आप भी केतना दिन भुखले रहीं| पेट भरल में सब इज्जत-बेइज्जती सोचे के चाहीं| भुख्खल पेट के तो खाली खाना चाहीं|''
इस बार खाने का पैकेट दासी के हाथ मे था और उसे लेने के लिए कौशल्या देवी के हाथ धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे।
स्त्री स्वर्ग का फाटक
सारी निर्दयता का अंत
स्त्री की जांघ पर जा बैठा
अब स्त्री की उतनी ही जरुरत थी
जितनी खाट की ,सवारी की, छत की।
स्त्री अब कोई चीज बड़ी है मस्त मस्त थी।
...धन्यवाद