लगातार..
अनवरत बीतते
वो कहते हैं न....
बस आने को है
सन 2018.....8+1+2 बराबर
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शुभ प्रभात,
जवाब देंहटाएंसामयिक रचनाओं का सुन्दर संकलन। रेल हादसा ,बाढ़ और युद्ध इस वक़्त विशेष रूप से चर्चित हैं। कुछ ह्रदय विदारक दृश्य विवशता , आक्रोश और क्षोभ से भर रहे हैं हमारा ह्रदय ऐसे में युद्ध की विभीषिका / आशंका से उत्पन्न परिस्थितियों की विवेचना करती श्वेता सिन्हा जी की गंभीर रचना। आज एक से बढ़कर एक रचनाओं को बख़ूबी संजोया है आदरणीय बहन जी ने।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आभार सादर।
सुप्रभात दी:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विविधतापूर्ण लिंकों का गुलदस्ता सजाया है आपने।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई,मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय से अति आभार दी।
सुंदर संकलन। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएँ। सुप्रभात....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति
सत्य कहा आपने
समय का पहिया दिन -प्रतिदिन घूम रहा है
जिसे रोका नहीं जा सकता।
आभार ,"एकलव्य"
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंंदर संकलन.....
आभार.....
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया हलचल
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनकारों को बधाई..
आभार
आज की निखरी हुई हलचल में 'उलूक' उवाच को जगह देने के लिये आभार यशोदा जी । हलचल इसी तरह निखरते चली जाये मंगलकामनाएं।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंकों का संकलन...
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