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रविवार, 20 अगस्त 2017

765...शब्दों के बीच दबे हुऐ शब्द कुचलते हुऐ कुछ शब्दों को यूँ ही ।

सादर अभिवादन...
लगातार..
अनवरत बीतते 
जा रहे हैं दिन..
वो कहते हैं न....
निकल गया हाथी...
बाकी है पूँछ....
बस आने को है 
 सन 2018.....8+1+2 बराबर
नौ दो ग्यारह....
आज पढ़ी रचनाओं मे से.........
कुछ बूंद उन शबनमी निगाह के, 
कुछ दर्द मेरे सीने के, यही 
सब तो हैं ख़ूबसूरत 
वजूहात, बिंदास 
मेरे जीने के।
वो आज 
भी है दिलकश ओ हंसीं,

''आशु, यहाँ तुम्हारे और मेरे पापा- मम्मी और सब भाई- बहन मौजूद हैं| मैं सबके सामने तुम्हारी माँग भरना चाहता हूँ,'' कहते हुए आकाश ने डिबिया निकाली किन्तु आशु ने महीन आवाज में धीरे धीरे कहा,''मैं जाते जाते रिश्तों में नहीं बँधना चाहती आकाश| मुझे याद तो रखोगे न'', अब आशु की आँखों में कोई बूँद न थी, बस प्रेम था जो छलक रहा था|

रेलगाड़ी की पटरियां सिखाती हैं 
कि दो लोग कितने ही क़रीब क्यों न हो,
उन्हें इतना क़रीब नहीं होना चाहिए 
कि अपना अलग अस्तित्व ही खो दें.

ऊँचे ओहदों पर आसीन
टाई सूट बूट से सुसज्जित 
माईक थामे बड़ी बातें करते
महिमंडन करते युद्ध का
विनाश का इतिहास बुनते
संवेदनहीन हाड़ मांस से बने 
स्वयं को भाग्यविधाता बताते 

शुष्क हो चलें हैं 
जीवन के विचार 
पत्ते तो लगे हैं 
सूखी डालियों पे 
झड़ रहें हैं 
रह-रह कर 
अश्रु सा !
धरा की कोंख में

महापाश में महानंदा के
कमसीन सी, कोशी खिल गयीI
संग सोन पुन पुन रास में
गाँव गँवई घर झील भईI
बजरी बिजुरी, कपार किसान के!

शब्द बीजों 
से उपजी 
शब्दों की 
लहलहाती 
फसल हो या 
सूखे शब्दों से 
सूख चुके 
खेत में पढ़े हुऐ 
कुछ सूखे शब्द 
बस देखते रहिये 









11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात,
    सामयिक रचनाओं का सुन्दर संकलन। रेल हादसा ,बाढ़ और युद्ध इस वक़्त विशेष रूप से चर्चित हैं। कुछ ह्रदय विदारक दृश्य विवशता , आक्रोश और क्षोभ से भर रहे हैं हमारा ह्रदय ऐसे में युद्ध की विभीषिका / आशंका से उत्पन्न परिस्थितियों की विवेचना करती श्वेता सिन्हा जी की गंभीर रचना। आज एक से बढ़कर एक रचनाओं को बख़ूबी संजोया है आदरणीय बहन जी ने।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात दी:)
    बहुत सुंदर विविधतापूर्ण लिंकों का गुलदस्ता सजाया है आपने।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई,मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय से अति आभार दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर संकलन। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएँ। सुप्रभात....

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय दीदी शुभ प्रभात
    बेहतर प्रस्तुति
    सत्य कहा आपने
    समय का पहिया दिन -प्रतिदिन घूम रहा है
    जिसे रोका नहीं जा सकता।
    आभार ,"एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  6. शुभप्रभात....
    सुंंदर संकलन.....
    आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढिया हलचल
    सभी चयनित रचनकारों को बधाई..
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. आज की निखरी हुई हलचल में 'उलूक' उवाच को जगह देने के लिये आभार यशोदा जी । हलचल इसी तरह निखरते चली जाये मंगलकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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