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सोमवार, 14 अगस्त 2017

759....... ''संविधान की अनिवार्य शिक्षा''

आज एक महत्वपूर्ण विषय आपके सामने रखता हूँ जिसका सम्बन्ध हमारे कर्तव्यों एवं अधिकारों से है। 
हमारा पवित्र 
''संविधान''
हमारे देश की अधिकांश आबादी जिसके नाम से परिचित तो अवश्य है परन्तु पूर्णतः नहीं और न ही इसके तथ्यों को जानने की आवश्यकता समझती है। 
मैं जब ''काशी हिन्दू विश्वविद्यालय'' का छात्र था ,मैंने यह महसूस  किया कि हमारी सरकार स्वच्छता अभियान व पर्यावरण बचाओ अभियान पर पूरे जोर -शोर से जागरूकता फैला रही थी ,यही नहीं पर्यावरण एक वैकल्पिक विषय अनिवार्य कर दिया। और हो भी क्यूँ न, इससे हमारे सरकार को कोई नुकसान नहीं परन्तु फ़ायदा जरूर है देश की नज़र में एक ज़िम्मेदार सरकार !
तो क्या 
संविधान एक अनिवार्य विषय नहीं हो सकता ?
हमारा संविधान हमारे हितों की सुरक्षा हेतु बनाया गया,हम ही नहीं जानते इसमें क्या लिखा है ? यह तो वही बात हुई कि कोई कंपनी खाने की वस्तु बेच रही हो और हमें यही नहीं पता हो कि हम क्या खा रहें हैं। वस्तु हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुँचायेगा अथवा फ़ायदा ये तो वक़्त बताएगा। 
आज बड़े -बड़े प्रतिष्ठित पद पर आसीन व्यक्ति ही संविधान में क्या लिखा है जानता है न कि लोकतंत्र का मिथ्या दम भरने वाली जनता। और हमारी सरकारें कभी नहीं चाहेंगी कि ऐसा हो ! जनसामान्य यदि संविधान में लिखी बातें समझने लगा ! विरोध के स्वर उठने लगेंगे, सामंतवादी हमारे जनप्रतिनिधि  घुटनों पर आ जायेंगे।   
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कौन मारना चाहेगा ?परन्तु हमें आगे आना होगा 'संविधान की अनिवार्य शिक्षा' की बात करनी होगी केवल क़ानूनविद बनने हेतु नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदार भारतीय नागरिक बनने के लिए जिसे लोकतंत्र का असली मक़सद ज्ञात हो। 
बिना ''संविधान की अनिवार्य शिक्षा'' लोकतंत्र की कल्पना बेमानी सी प्रतीत होती है। प्रस्तुत विचार मेरे निजी अनुभव पर आधारित हैं। 
आपके विचारों का स्वागत है क्योंकि आपसभी भारत के एक जिम्मेदार नागरिक हैं और आपकी आवाज़ देश की आवाज़ बने !
"पाँच लिंकों का आनंद" 
परिवार आपका अभिवादन करता 
है। 


आदरणीय ''दिग्विजय अग्रवाल'' द्वारा संकलित एवं  ''मनोहर वासवानी'' द्वारा लिखित 

 कहने लगी, 'न तो मैं अब कोई क़ीमती साड़ियाँ पहनती हूँ,  
न कोई सिंगार-पटार कर सकती हूँ, 
ये लाख रुपये पहले मिल गए होते तो भाई को चिकित्सा और 
दवा के अभाव में यूँ न जाने देती, 
कहते-कहते उनका दिल भर आया।  कौन था उनका वो 'भाई'?  हिंदी के युग-प्रवर्तक औघड़-फक्कड़-महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', 
महादेवी के मुंहबोले भाई थे। 

आदरणीय ''ओंकार'' जी द्वारा कृत 

अभी देखा तो ख़ुशी से पागल था वो,
अभी आँखों में है नमी उसकी,
पल-भर में सब बदल गया ऐसे,
एक पल में छिपे हों जैसे बरस कई.

आदरणीय ''वीर विनोद छाबड़ा'' द्वारा लिखित एक 
'कथा'
  
बिमल रॉय 'दो बीघा ज़मीन' (१९५३) बनाने की योजना बना रहे थे।
कहानी कुछ यों थी। 
लगातार दो साल सूखा पड़ा। 
एक किसान शंभू महतो को दो बीघे का खेत ज़मीदार के पास गिरवी रखने को मजबूर होना पड़ा।

आदरणीय ''पुरुषोत्तम'' जी द्वारा रचित एक 
'कृति'

विरुद्ध उग्रवाद के है यह इक विगुल,
विरुद्ध उपनिवेशवाद के है इक प्रचंड शंखनाद ये,
देश के दुश्मनों के विरुद्ध है हुंकार ये,
यह 15 अगस्त है राष्ट्रगर्व का।


आदरणीय ''ऋतु आसूजा'' की एक 
'कृति' 

फ़कीर ने मुझे एक बीज दिया,
मैंने उस बीज की पौध लगायी
दिन -रात पौध को सींचने लगा
अब तो बेल फैल गयी ।
  
आदरणीय ''सुशील जोशी'' जी की एक 
'रचना'


कोढ़ 
समझ में 
नहीं आया तेरे 
मौत फैला आया 

आक्सीजन से 
कोढ़ भी हो 
सकता था 
तुझे पता 
नहीं था

आदरणीय ''अनुपमा पाठक'' जी की एक 
'कृति' 

हम उन निराश क्षणों में 
एक नन्हे से श्वेत पुष्प में
आशा की किरण देख लेते हैं 
इस त्रासद समय में हम
यूँ अपने सांस लेते रहने की
गुंजाईश
बचा लेते हैं... !!



आदरणीय ''रेणु बाला'' जी की एक 
'कृति'  

 सुना है हिमालय हो तुम !
सुदृढ़ , अटल और अविचल -
जीवन का विद्यालय हो तुम ! ! 
शिव के तुम्ही कैलाश हो - 
माँ जगदम्बा का वास हो , 
निर्वाण हो महावीर का -- 



अंत में आदरणीय राकेश जी ''राही'' का पंक्षी  विहार  

रूफस ट्रीपेई एक वृक्षीय पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के मूल और दक्षिणपूर्व एशिया के आस-पास के हिस्सों में स्थित है। यह कौवा परिवार का एक सदस्य है, कोर्विदे। इसकी लंबी पूंछ एवं तीव्र संगीतमय आवाज़ विशिष्ट है। यह आमतौर पर खुली झाड़ियों, कृषि क्षेत्रों, जंगलों और शहरी उद्यानों में पाया जाता है। अन्य कोर्विड्स की तरह यह बहुत अनुकूलनीय, सर्व-भक्षी एवं अवसरवादी है।
वैज्ञानिक नाम: डेंड्रोकिता वांबुन्डा

अंत में मेरी ''भावनायें'' 
मैं निराला नहीं 
प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ 
दुष्यन्त की लेखनी का 
गुरूर ज़रूर हूँ 
क़तरा बचेगा रक़्त का 
गला फाड़ चिल्लाऊँगा 
सावधान !
वक़्त की आवाज़ 
ज़रूर हूँ 
मैं निराला नहीं 
प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ ..... 
( प्रस्तुत अंश मेरी नवीन 'कृति' के हैं। )

"एकलव्य" 

आपका मात्र पैंतीस सेकेण्ड और जाया करता हूँ....
कौन कहता है कि महिलाएँ कार पार्क नहीं कर सकती..
देखिए....





19 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले साधुवाद
    फिर बाद में शुभ प्रभात
    उपरोक्त अग्रलेख पर..यदि शिक्षा नीति निर्माण समीति
    की नज़र पड़ जाए..और आश्चर्य इस बात पर भी है
    पॉलिटिकल साईंस जैसै विषय पर भी इसका उल्लेख
    नहीं के बराबर है...
    बहस हेतु उत्तम विषय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. देशभक्ति से ओत प्रोत उम्दा प्रस्तुति। मेरी रचना "15 अगस्त" को स्थान देने हेतु धन्यवाद। देश और मातृभूमि का वंदन और नमन। शुभ प्रभात।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं निराला नहीं
    प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ
    दुष्यन्त की लेखनी का
    गुरूर ज़रूर हूँ
    क़तरा बचेगा रक़्त का
    गला फाड़ चिल्लाऊँगा
    सावधान !
    वक़्त की आवाज़
    ज़रूर हूँ
    मैं निराला नहीं
    प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ

    एकलव्य जी की ये पंक्तियाँ उत्कृष्ठ कोटि की हैं। आप वस्तुतः काव्य के एकलव्य प्रतिबिम्ब हैं। दिनानदिन आपकी आभा बढे। मेरी शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात !


    वाह ध्रुव जी आज़ादी के पर्व पर संविधान की शिक्षा पर बहस .....

    तार्किक और शोचनीय बिषय।

    माध्यमिक कक्षाओं में केवल औपचारिकता भर पूरी की गयी है।

    आज ज़रूरत है हमारे संविधान की समाजोपयोगी शिक्षा को

    लोकप्रिय और सुग्राही बनाने की ताकि नई और पुरानी पीढ़ी

    राष्ट्र -निर्माण से लेकर चरित्र-निर्माण तक

    अपने अधिकारों ,कर्तव्यों और दायित्वों को आत्मसात कर सके।

    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं !
    सुन्दर सूत्रों का संजोया गया पठनीय अंक।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तार्किक और शोचनीय बिषय। ..कृपया सुधार करें
      तार्किक और सोचनीय बिषय।

      हटाएं
    2. दयनीय के अर्थ में यहाँ शोचनीय को लाया था किन्तु आपके सुझाव के बाद विचारणीय के अर्थ में सोचनीय ही सटीक है। आदरणीय पाठक हमारा भाव समझ लेंगे। बहुत -बहुत आभार आदरणीय बहन जी भाषा के प्रामाणिक स्तर को दुरुस्त करने के लिए। सादर।

      हटाएं
  5. गहरे विचार मंथन के साथ सुंदर हलचल ...

    जवाब देंहटाएं
  6. शुभप्रभात....
    सुंदर संकलन....
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  7. ध्रुव सिंह एकलव्या जी आज का संकलन सराहनीय ।

    आपका प्रश्न हम सब के लिये संविधान की शिक्षा अनिवार्य
    होनी चाहिये जी बिल्कुल सही बात बिना सविंधान के ज्ञान के प्रजातंत्र अधूरा है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. ध्रुव एकलव्या जी बहुत खूब आप बहुत उच्च कोटि के लेखक हैं ,और एक सच्चा लेखक बहुत बड़ा समाज सुधारक भी होता है वो जो लिखता है ,उसकी आत्मा की आवाज होती है

    जवाब देंहटाएं
  9. आह्वान करती प्रस्तुति..
    बेहद अच्छी...
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  10. गहन विचारणीय तथ्य आज के अंक की, संविधान के नियम कानूनों की जानकारी आम जनमानस को होनी ही चाहिए।ताकि हम अपने अधिकारों के प्रति सजग रहे और साथ ही साथ देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी ठीक प्रकार से कर सके।
    बहुत सुंदर लिंकों का संयोजन सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. भाई ध्रुव जी की "पांच लिंकों का आनंद" में सम्मलित सूत्र, एक से बढ़ एक हैं।इस पोस्ट में सम्मलित सभी रचनाओं के रचनाकार को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई। चर्चा की भूमिका में लिखे गए वाक्य सारगर्भित हैं, परन्तु हम भारतीय बिना एक्सपाइरी डेट देखे, खाने की वास्तु खा सकते है तो आप समझ सकते है कि मैं क्या कहना चाहता हूँ ? अंत में दिया गया ३५ सेकेण्ड का विडिओ अनोखा है।

    जवाब देंहटाएं
  12. आनन्द आ गया। निखरी हुई प्रस्तुति। आभार भी ध्रुव जी अपनी बहुत खूबसूरत कृति के साथ 'उलूक' की बकबक को भी शामिल करने के लिये। साधुवाद इस मेहनत के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय एकलव्य -- सस्नेह बधाई आपको आज के संयोजन के सुघड़ संचालन के लिए | सभी रचनाये पढ़ी | बहुत अच्छी लगी पर ना जाने क्यों सुशील जी की रचना तक पहुँचने में असमर्थ रही-- मैंने कई बार कोशिश की | साहित्य की मीरा और साहित्य के बसंत महाप्राण निराला का स्नेहासिक्त रिश्ता साहित्य जगत में सर्वविदित है | उनके स्नेह से जुड़े भावभीने प्रसंग से उनकी विचारों की ऊँचाई और सादगी सहज ही समझ आ जाती है | दो बीघा जमीन से जुड़े प्रसंग से पता चलता है कि उस समय के कलाकार और निर्देशक अपने काम के प्रति कितने समर्पित थे | तभी उस समुय तकनीक के शिशुकाल में भी फिल्मों ने कलात्मकता के शिखर छुए और कालजयी फिल्मों का निर्माण हुआ | संविधान कि शिक्षा पर चिंतन सचमुच समय की मांग है | अपने अधिकार और कर्तव्यों के अलावा इसका सूक्ष्म ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए | शिक्षा तंत्र में बैठे प्रबुद्धजनों को इसकी पहल के बारे में सोचना होगा | और जो कवि निराला का प्रतिबिम्ब है -- दुष्यंत कुमार की लेखनी का गुरुर है ओर जिसकी आवाज वक्त की आवाज है --उसका भविष्य उज्जवल है | एकलव्य आपको रचनात्मकता के शिखर छूने हैं और आप जरुर कर पाएंगे क्योंकि समय के स्वरों को आप जैसे किसी संवेदनशील कवि की लेखनी ही अभिव्यक्त कर सकती है | शुभकामना व आभार सहित ----------

    जवाब देंहटाएं
  14. संविधान की शिक्षा जनमानस तक ....बिल्कुल सही...सब को ज्ञात हो कि क्या है हमारा संविधान....
    बहुत ही विचारणीय विषय ......
    उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत बढ़िया संकलन ध्रुवजी । समय की कमी कभी आड़े आ जाती है किंतु एक दिन देर से ही सही....
    इतनी सुंदर पठनीय रचनाएँ पढ़नी हैं तो हलचल पर तो आना ही होगा । ध्रुवजी, इतने उम्दा ढ़ंग से प्रस्तुतिकरण के लिए साधुवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह ! बहुत सुंदर लिंक संयोजन ! बहुत खूब आदरणीय ध्रुव सिंह जी ।

    जवाब देंहटाएं

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