हम भारतीय हैं, भारतवासी हैं,
हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है।....
परंतु कभी हमनें यह विचार किया है, कि भारतीय केवल
क्षणमात्र कह देने से कोई भी राष्ट्र यह स्वीकार नहीं कर लेता,
कि हम अपने देश के एक सच्चे नागरिक हैं।
किसी भी राष्ट्र का प्रभुत्व ,यह निर्दिष्ट करता है, कि उसका प्रभाव केवल उसके नागरिक होने से नहीं ,
इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उसकी परम्परा, भाषाशैली एवं संस्कृति का प्रभाव कहाँ तक ,कितनी सीमा तक विस्तारित है।
भारतेंदु के ये वाक्य हमने बचपन में पढ़ा था
"किसी राष्ट्र की भाषा ही ,उस राष्ट्र के उन्नति का मूल है"
परंतु आज स्वयं ही हम इसे काटने पर आमादा हैं।
यदि आप सामाजिक अनुप्रेषण की बात करें ,तो गौर कर सकते हैं, पाश्चात्य राष्ट्र अपनी मातृभाषा का उपयोग
बड़ी ही राष्ट्रभक्ति के साथ कर रहें हैं ,रही-सही कसर हम भारतवासी पूर्ण कर रहें हैं,मैं मानता हूँ भाषाओं की कोई सीमा नही होती, यह विचारों के आदान-प्रदान का एक माध्यम है, तो वही स्नेह हम अपनी मातृभाषा से भी दिखाएं अन्य भाषाओं के साथ इसे मुख्य धारा में जोड़कर विचारों का आदान-प्रदान करें। मेरी लेखनी में यदि कोई मिथ्या हो ,तो आप मेरे वक्तव्य से असहमत हो सकते हैं।
"क्योंकि हमारा राष्ट्र एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है ,
यही हमारी शक्ति का द्योत्तक है"
चंद वाक्य जो आपको सम्प्रेषित कर रहा हूँ ,
जिसका उत्तरदायित्व भी
स्वीकार करता हूँ।
"हिंदी" आज स्वयं में ही अंतर्नाद कर रही है ,अपनों की अनदेखी झेल रही है क्यों ? यह देखा जा रहा है लोग अपनी ही मातृभाषा को लिखने और पढ़ने में लज्जा का अनुभव कर रहें हैं, जबकि किसी देश की
''भाषा ही उसकी उन्नति का मूल है।"
जिसे अग्रसर करने में हमारा
"पाँच लिंकों का आनंद"
परिवार प्रयत्नरत !
आपका सहयोग
अपेक्षित है
सादर अभिवादन
यात्रा का प्रारम्भ
आदरणीय "मीना शर्मा" जी की एक कृति से करते हैं
विकास में विनाश है,तृप्ति में भी प्यास है
वह मार्ग कौन सा कहाँ?
जिसका करूँ मैं अनुगमन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
आदरणीय "विश्वमोहन" जी की एक अनमोल
'कृति'
मै मार्तंड तू ताप सा
मै मृदंग तू थाप सा
मै नींद तू नीरव निशा
तू जीवन मै जिजीविषा
आदरणी "यशोदा अग्रवाल" द्वारा संकलित एवं
"फरिहा नक़वी" द्वारा सृजित एक
रचना
तुम मिरा दर्द क्या समझ पाते
तुम ने तो शेर तक नहीं समझा
क्या किसी ख़्वाब की तलाफ़ी है?
आँख की धज्जियों का उड़ जाना
आदरणीया "रेणुबाला" जी की एक सुन्दर
'रचना'
तन पर अनगिन जख्म सहे -
तब जाकर साकार हुई ,
मंदिर में रखी मूर्त यूँ हुई -
पूज्य पुनीत लिखें हम तुम ! !
हमारे युवा कवि आदरणीय "पुरुषोत्तम सिन्हा" जी की एक नवीन
'कृति'
ओ संगनिष्ठा, मेरे कोरे स्वर तू होठों पे बिठा,
जब ये तेरे रंगरंजित अधरों का आलिंगन ले पाएंगे,
अंबर के अतिरंजित रंग इन शब्दों मे भर जाएँगे!
आदरणीया "साधना वैद" जी की मंथन योग्य
'कृति'
सामने देखो तुम्हें आगे बढ़ना है
वह रास्ता भी तो आगे ही है
जिसका निर्माण तुमने स्वयं किया है
आगे जलसे हैं, जश्न है, जलवा है
मेवा मिष्ठान्न हैं, पूरी है, हलवा है !
तुम्हारे सामने समूचा सुनहला संसार है
जहाँ आनंद ही आनंद है
एक प्यारी रचना बालकवि के द्वारा प्रिय "कवि -देवराज कुमार" ,
कक्षा - 7th को अपना आशीष एवं स्नेह प्रदान करें
अगर पाना चाहते हो अपना पथ |
समय को कभी नहीं करना बर्बाद,
हमेशा रखना यही याद |
जिंदगी का लो पूरा आनंद,
जैसे जिए थे विवेकानंद |
आदरणीया "ऋतु आसूजा" जी की
अत्यंत प्रेरक एक लघु 'कथा'
जब मैं अपनी बाई की झोपड़ी में पहुँची ,तो वो शरीर मे जान न होने पर भी यकायक उठ के बैठ गयी ।
वह बहुत कमजोर हो चुकी थी ,उसे देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा ,मैंने उसे लेट जाने को कहा उसका शरीर बुखार से तप रहा था ,इतने मे कोई कुर्सी ले आया मेरे बैठने के लिये ।
मैंने उससे पूछा तुम्हारे घर में और कौन-कौन है ,बोली मेरे दो बच्चे हैं ,एक लड़का और एक लड़की।
अंत में विचारों से परिपूर्ण आदरणीय "रवींद्र सिंह यादव" जी की सोचने को विवश करती एक
'कृति'
ग़ुलाम थे हम
15 अगस्त 1947 से पूर्व
अपनी नागरिकता
ब्रिटिश-इंडियन
लिखते थे हम आज़ादी से पूर्व।
ऋषि-मुनियों का
दिया परिष्कृत ज्ञान
शोध / तपस्या से
विकसित विज्ञान
राम-कृष्ण का
जीवन दर्शन
अंत में ''मेरी भावनायें''
गूँगे तूँ बोल ! ज़रा मुख से
बहरे क्यूँ नहीं सुनता है ?
करती अंतर्नाद स्वयं
तेरी भाषा क्यूँ ?
लज्ज़ित है
वो पाश्चात्य से आई है
लेकर तेरे मिथ्या सपनें
कहता उसको तूं अपना
अपने तुझसे
आतंकित हैं
लूटेगी बन तेरा, तुझसे
ओ ! पगले अब तो जाग ज़रा
निज-पर ज़ुमले तूं
भाँप ज़रा
आत्मसम्मान बचा अपना !
भाषा की शान
बचा रखना !
( प्रस्तुत अंश मेरे स्वयं के विचार हैं )
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार, आभार और आभार..
आपने परिचय करवाया नवोदित कवि देवराज कुमार से
कहीं से नहीं लगता कि वे नवोदित है..
वे पैदाइशी कवि हैं....
जान लेती है उनकी ये पंक्तियाँ
अगर पाना चाहते हो अपना पथ |
समय को कभी नहीं करना बर्बाद,
बधाइयाँ
सादर
सुप्रभात ध्रुव जी,
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा के उत्थान के संबंध में आपके मतंव्य सटीक एवं सराहनीय है,बहुत उम्दा पठनीय लिंकों का संयोजन, बालकवि का परिचय सबसे सुखद लगा। अंत में आपकी लाज़वाब पंक्तियाँ अति सुंदर।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ मेरी।
विचारणीय गंभीर दृष्टिकोण लिए यह प्रस्तुति बेहद सराहनीय है।
जवाब देंहटाएं"हिंदी" आज स्वयं में ही अंतर्नाद कर रही है ,अपनों की अनदेखी झेल रही है क्यों ? यह देखा जा रहा है लोग अपनी ही मातृभाषा को लिखने और पढ़ने में लज्जा का अनुभव कर रहें हैं, जबकि किसी देश की
''भाषा ही उसकी उन्नति का मूल हैत्
बिल्कुल शत्-प्रतिशत सही।
सुप्रभात....
स्वयं को अधिक से अधिक सेलेबिल बनाने की धुन में और विश्व पटल पर अपने अपरिमित ज्ञान का डंका बजाने की चाह में अति महत्वाकांक्षी आज की पीढी ने अपनी मातृभाषा की यह दुर्गति की है ! आज की प्रस्तुति में बहुत सुन्दर सूत्रों का समावेश ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार एकलव्य जी !
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति जबरदस्त..
जवाब देंहटाएंशीर्षक से लेकर अंत की लाजवाब पंक्तियाँ,
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएँ के साथ-साथ एकलव्य जी को धन्यवाद..
आभार
"स्नातकोत्तर व्यक्तियों को खेती के लिए प्रयोज्य अत्याधुनिक इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी की समुचित शिक्षा दी गई हो. स्नातकोत्तर स्तर पर ऐसा करना और भी महत्वपूर्ण है, जहां उन्हें न केवल अपने विषयों में अत्याधुनिक अनुसंधानों की जानकारी रखने की आवश्यकता है, बल्कि उनके विषयों में आधुनिक और अद्यतन तकनीकों का प्रशिक्षण देना भी अनिवार्य है, ताकि वे अपने अपने क्षेत्रों में विकास और आधुनिकता में योगदान कर सकें. इसलिए पाठ्यक्रम की सामग्री और वितरण प्रणाली को नया रूप देने और संगठित करने की आवश्यकता है, ताकि वे वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धी कार्मिक पैदा कर सकें. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (आईसीएआर/राज्य कृषि विश्वविद्यालय) में रोजग़ार के अवसर सिकुड़ते जाने को देेखते हुए ऐसे विद्यार्थी तैयार करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव है, जो निजी क्षेत्र की मांग पूरी कर सकें. कृषि इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में नए और पुनर्गठित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैं, जिनमें निजी क्षेत्र की मांग को ध्यान में रखा गया है. इसमें अन्य बातों के अलावा वाणिज्यिक पहलुओं, आधुनिक अनुसंधान उपकरणों और उनके अनुप्रयोगों, अपेक्षित पूरक कौशलों का दोहन करने और विद्यार्थियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा तथा रोजग़ार सक्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है."
जवाब देंहटाएंसाभार : रोज़गार समाचार (भारत सरकार / 19 -25 अगस्त 2017 / EDITION 21 / संपादकीय )
सरकारी हिंदी की नीरसता और घिसे-पिटे तयशुदा खाँचे में ढलकर आगे बढ़ते रहने की प्रवृत्ति ने हिंदी को सहज भाषा बनने से रोका है। ज़रा सोचिये उपर्युक्त संपादकीय लेख का अंश किस कक्षा तक के विद्यार्थी पूर्णतः समझ पायेँगे। आम भारतीय नागरिक को यह भाषा-शैली क्या आकृष्ट कर सकती है ? यह तो मानक हिंदी की दशा और दिशा है जोकि एक सरकारी रोज़गार समाचार पत्र का संपादकीय लेख का अंश है लेकिन जब हम किसी बैंक ( अधिकोष ) का हिंदी में मुद्रित फॉर्म पढ़ते हैं तो उसका अँग्रेज़ी तर्ज़ुमा ही हमारी मदद करता है।
भाषा में नए प्रयोग आवश्यक हैं। विश्व स्तर पर प्रचलित भाषाओँ के लोकप्रिय शब्दों को अपनाकर हमें भाषा को प्रवाहमयी और लोगों के वैचारिक आदान-प्रदान का आसान माध्यम बनाना चाहिए न कि उसमें जहाँ ज़रूरत न भी हो वहाँ भी अनावश्यक रूप से अप्रचलित लाक्षणिक शब्दावली का प्रयोग किया जाय।
भारत में हिंदी का विरोध भी सामने आता रहता है तो उसकी वजह जानें न कि उसे जबरन लोगों पर थोपने के यत्न किये जायें। हिंदी आज भी राजभाषा है ( जोकि उत्तर भारत के राज्यों में लोकप्रिय है वहीँ भारत की संपर्क भाषा भी है ) राष्ट्रभाषा नहीं। अँग्रेज़ी के विस्तार की वजह उसका विश्व स्तरीय प्रभाव और रोज़गार से जुड़ा होना है।
ध्रुव जी आज के बिषय पर आपने विचारोत्तेजक बहस को आमंत्रित किया है। विचारणीय ,चिंतनशील भूमिका। मैंने आज फिर टिप्पणी की मर्यादा तोड़कर अपनी बात कही है जिसके लिए क्षमा।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। बालकवि देसराज कुमार को ढेरों बधाइयाँ और मंगलकामनाऐं।
बेहतरीन अंक प्रस्तुतीकरण के लिए आपको बधाई और मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर।
बहुत ही सुंदर विचार एकलव्या जी ।
जवाब देंहटाएंऔर आज का संकलन
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन....
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेहनत दिख रही है । साधुवाद।
जवाब देंहटाएंवाह ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब संकलन । मेरी रचना को मान देने हेतु सादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रिय एकलव्य -------आज के अन्योजन की सभी रचनाएँ पढ़ी | बहुत अच्छा संकलन है | मातृभाषा की अनदेखी की तीस का जवाब आज के संयोजन में ही छुपा है -- नए कर्णधार दस्तक दे रहे हैं | जरूरत है उन्हें पहचानने की और उत्साहवर्धन करने की |आज चिर परिचित साहित्य मित्रों के साथ मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार आपका ------- सभी साथी रचनाकारों को बधाई और शुभकामना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण...उम् लिंक संकलन...
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