निवेदन।


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सोमवार, 31 जुलाई 2023

3835 ..विकास के बढ़े चरण सभ्यता है बलवती

 सादर अभिवादन

मेरी पसंद शायद सबसे अलग ही है
व्यू तो बराबर है खैर...
आज की रचनाएं देखें ....




क्या चाहिए तुम्हें?
विलंब
किस बात का?
निशा के पारण का
क्यों?
नदी के उस पार कोई मेरी प्रतीक्षा में है।
प्रभात फेरी के समय नौका का आगमन है





अच्छा मुहूर्त निकलने पर ढ़ाई माह बाद तेज प्रकाश जी ने बड़ी धूमधाम के साथ अनामिका  की शादी रुद्र के साथ करवा दी। बारात के साथ अनामिका वीरमपुर में अपने नये घर आ गई। ससुराल में सब ने उसे हाथोंहाथ लिया। जो भी उसे देखता, उसकी बलाइयां ले रहा था। नई जगह, नये वातावरण में आ कर भी वह खुश थी।… लेकिन सब-कुछ इतना सहज नहीं था। रुद्र ने प्रथम रात्रि को ही उससे वह बात कही, जिसकी कल्पना वह स्वप्न में भी नहीं कर सकती थी।




सावन में जब आ जाती  
ससुरे से सारी सखियाँ .
पनघट पर हँस हँसकर करती थी
मधुभीगी बतियाँ .
बहिन बेटियाँ सबकी साझी
एक सभी का घाट . बदरिया




एक पिता ने कहा खेद से
विषम बहुत है सूनापन
नीरव-नीरव वृद्ध नयन यह
खोज रहा है अपनापन.
भूल गया क्या, याद है कुछ भी
था तेरा भोला सा बचपन



कभी ना कहा  'प्यार करते हैं तुमसे '
हमेशा ही की है खिलाफत हमारी ।

ये अहसान मानो, छिपा करके दिल में
करी है हमीं ने हिफाजत तुम्हारी ।



विकास के बढ़े चरण
सभ्यता है बलवती
दुराचार के राज में गौण हो गई
संस्कृति कौन जाने किस घड़ी
तन को कौन नोच ले
गिद्ध मोर एक से कैसे मन ये सोच ले
घात में सियार भी
ये समाज की गति..
युगों-युगों से चल रही
रीति एक बस यही
नारी तन को भोग लो
लक्ष्य एक बस यही




दो विवाहित औरतें
भारत के विखंडन को
आईना दिखा रही हैं,
इतिहास
इन्हें अवश्य याद रखे

आज बस
कल फिर आऊँगी
सादर वंदे

रविवार, 30 जुलाई 2023

3834 ..शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को

 सादर अभिवादन

श्रावण मास की विदाई चालू आहे
बस यादों को संजो कर रखिए
रचनाएं ....

स्मृति क्या है?
बीते हुए कल के शोर की प्रतिध्वनि
शोर क्यों स्वर क्यों नहीं?


नदियां इन दिनों
झेल रही हैं
ताने
और
उलाहने।
शहरों में नदियों का प्रवेश
नागवार है
मानव को
क्योंकि वह
नहीं चाहता अपने जीवन में 


बढ़ती जाये ज्यों आबादी,
घटते कारोबार हैं,
तुष्टिकरण के आज सामने,
सरकारें लाचार हैं,
पास नहीं इक रोजगार है,
बच्चों की पर फौज सी,
आज़ादी के सात दशक यूँ,
कर दीन्हे बेकार हैं।


युद्धों का जन्म ऐसे ही होता है
सिकुड़ी संकुचित चेतना का परिणाम है क्रोध !
जब फैल जाता है मन का कैनवास
जिसमें समा जाते हैं धरती और आकाश


उसने दूरी बनायी
और दिल सबसे दूर हो गया
वो लोग हैं
जो मेरे बिना अकेले से थे
उनसे दूर
किसी के चले जाने का ग़म सींच रही थी


पहुँच है तो
एक मार्ग के साथ
और एक ही भाषा
होती ही नही मार्ग की
मौन होते हैं कई
बोलिया भी है कई
और अंततः
यही होता है
ज्ञान...

आज बस इतना ही
सादर

शनिवार, 29 जुलाई 2023

3833... लघुकथा

लघुकथा में जो कहना हो वह या तो पात्र कहें या फिर परिस्थितियाँ। किन्तु जब इन्हें पीछे धकेल कर लेखक स्वयं व्याख्यान देने लगे तो उसे रचना में लेखक का अनाधिकृत प्रवेश माना जाता है। लघुकथा के अंत में चौंका देने वाली स्थिति आने के बाद लघुकथा का विस्तार करना लेखकीय प्रवेश है।

लघुकथा : विजेन्द्र जेमनी

“सर , कुछ लोग जो बहुत निराशा से घिरे थे , उनकी सफलता के सारे रास्ते बंद हो गये थे , मैं फिर भी उन्हें आशा की सीढ़ियाँ चढाती रही परिणाम वे गिर गये और जो चोट लगी उससे वे कभी नहीं उभरे | सो उनके परिजन ने मुझे बहुत अपमानित कर निकाल दिया |”

 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

बढ़ती आबादी पर कौन विचार करे... 

शीर्षक पर भी तो श्रम नहीं होता

लघुकथा : पूनम कतरियार

अब वहाँ कौन मेरे स्वागत को तैयार है? मुझे कौन बुलाता है? ये गारे-सीमेंट के स्पन्दनहीन अट्टालिकाएँ मुझे क्या पहचानेंगी? मेरे शीशम- देवदार, पीपल-बरगद जैसे कद्दावर वृक्ष, फल-सब्जियों के सारे द्रुम इन कंक्रीट के जंगलों की सड़कों और इमारतों ने खा लिया है। मेरे लिए कोई बाँह फैलाए है भला, बता जरा?

लघुकथा

बयालिस (42) साल में क्या बदला...

लघुकथा : डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सुना जाता है, उसी दिन से दोनों पक्ष अख़बार और संविधान पढ़ पढ़ कर लड़ रहे हैं। नेता-वेशधारी भगवान विष्णु शेष शय्या छोड़कर आनंद से कुर्सी पर सोए हुए हैं। लोग कहते हैं, युग बदल रहा है। (1.12.1981)

लघुकथा : डॉ. चन्द्रेश छतलानी

जिस तरह (आरम्भ) और (प्रारम्भ) शब्द दोनों एक से दीखते हैं मगर दोनों में अंतर है वे कभी एक नहीं कहे जा सकते। ठीक उसी प्रकार कथा और लघुकथा कभी एक नहीं हो सकतीं, दोनों विधाओं की कसौटी अलग है।

लघुकथा : कृष्णलता यादव

वैसे तो लेखिका ने लगभग सभी विषयों पर लेखनी चलाई है लेकिन कुछ विषयों पर बहुत कम लिखा है जैसे पंडे-पुजारियों के आचरण पर, आत्मविश्वास, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। कुछ विषय लेखिका की नजरों से छूट गये


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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

3832.....मैं.आपसे बात करना चाहता हूँ....

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जब नकारात्मकता मन पर हावी होने लगे,जब परिस्थितियों के चक्रव्यूह से आपा खोने लगे,जब दूर तलक अंधेरा ही अंधेरा दिखलाई दे,जीवन में निराशा का कोहरा घना हो जाए तब विचारों की 
महीन रोशनी की मद्धिम झलक 
ढ़ाढ़स बँधाती है,विश्वास दिलाती 
जीवन का मूल्य समझाती है।

“आपके जैसा इंसान दुनिया में कभी नहीं होगा , दुनिया में अभी आपके जैसा दूसरा इंसान कहीं नहीं है, और ना ही आपके जैसा कभी भविष्य में कोई होगा।”

आपके अलावा कोई  आपकी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है। कोई आपको गुस्सा नहीं दिला सकता और कोई आपको खुश भी नहीं कर सकता।”

“ज़िंदगी अपने आप में ही बहुत सुन्दर है, इसीलिए जीवन के महत्त्व को पूछना ही सबसे बड़ी मुर्खता होगी।”

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आइये आज की रचनाओं के संसार में-

ऐ जिंदगी तू इतना भी मेरे सब्र का 
इम्तिहान ना लें ...
लगता तो है इम्तिहान के दिन है
 गुजर जायेंगे 
सब्र कर बन्दे 
आज जो तुझ पर हँसते हैं कल वो 
तुझे देखते रह जायेंगे।  

इस पर मृत्यु
बस मुस्कुराई और बोली
अधूरे प्रेमियों को ले जाने में मेरे कंधे दुखते हैं

मैं उसके साथ चल पड़ा चुपचाप
जब पीछे मुड़कर देखना बंद किया मैंने



मन के  सूक्ष्म रंध्रों में 
बूँद-बूँद जमा होती रहती हैं मौन पीड़ाएँ 
और किसी दिन फूट पड़ती हैं
बनकर सिसकता संगीत...।
अधरों पर मुस्कान सजाए हरपल जो खुश दिखते हैं,
हो सकता है उनके भीतर कुछ अनकहे जख्म हर पल चुभते रिसते हैं।
जरूरी नहीं कि हर मुस्कान के पीछे खुशियों की फुलवारी हो,
गुलाब तभी मुस्काता है जब कंटक से उसकी यारी हो।


तुम्हारी जीवन की नदी में
बूँद बूँद समर्पित मैं,
सिर्फ तुम्हारी इच्छा अनिच्छा
के डोर में झुलती कठपुतली भर नहीं
"तुम भूल जाते हो क्यों मैं मात्र एक तन नहीं,
नन्हीं इच्छाओं से भरा एक कोमल मन भी हूँ।"

कमला जी

कब उन्होने अपनी पसंद से कुछ किया था ,कभी अपनी पसंद की सब्जी बनाई या अपनी मरजी से कहीं घूमनें गई....
कितना पसंद था उन्हे घूमना -फिरना ,पेंटिंग तो वो इतनी अच्छी करती थी कि बस ..सालों बीत गए रंग और कूची हाथ में लिए जिदंगी के सारे रंग मानों कहीं खो गए है .


मन का मौन कोलाहल चाहता तो 
है जोर से चीखना,दूसरों की पीड़ा से तटस्थ 
निर्विकार लोगों को आईना दिखाना पर...
 आप भले ही कराह सुनाना चाहते हों
पर प्रश्न तो यह है कि आपको सुनना कौन चाहता है? 


मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है

इस सिकोड़ का रिश्ता मेरे इलाके में

रह रह कर पेट में उठनेवाले ममोड़ से कितना और कैसा है

कह नहीं सकता लेकिन, मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है


और चलते-चलते
आइये प्रकृति को और थोड़ा समझने का 
प्रयास करें,पर्यावरण के प्रति थोड़ा सजग हो जाये।
प्रकृति की चर्चा के बहाने अनेक विषयों पर ध्यानाकर्षित
समाजोपयोगी, ज्ञानवर्धक लेख। 


कहते हैं कि सुसवा नदी कभी अपने पौष्टिक व स्वादिष्ट सुसवा साग और मछलियों के साथ-साथ देहरादून में उपजने वाले अपने विशेष सुगंध के कारण विश्व भर में लोकप्रिय बासमती चावल के खेतों में अपने पानी की सिंचाई से उस चावल विशेष में सुगंध भरने के लिए जानी जाती थी। वही सुसवा नदी की स्वच्छ धार आज हम बुद्धिजीवियों के तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढ़ कर, अल्पज्ञानियों की बढ़ती जनसंख्या की तीक्ष्ण धार वाली भुजाली से क्षत-विक्षत हो कर सिसकी लेने लायक भी शेष नहीं बची है .. शायद ...

 आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।




गुरुवार, 27 जुलाई 2023

3831...पीड़ा जिसकी वो ही जाने...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

कल दिल्ली में भोर से पहले तेज़ बारिश हुई। ऑनलाइन समाचार पढ़ा: ...भीगी बिल्ली! ग़ौर से पढ़ा तो 'बारिश से भीगी दिल्ली!' दोष नहीं शब्दों का बल्कि है दृष्टि का क्योंकि दिल्ली में डेंगी (प्रचलित नाम डेंगू) और आई फ़्लू तेज़ी से फैल रहा है। सावधानी रखिए।  

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

आंसू और पसीना परदोनों पानी हैं- सतीश सक्सेना

पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो

पुरुषों की नजरों में,  सब पानी पानी है!

इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये

नारी इन नज़रों में,  बस बच्चे दानी है!

आजा घर परदेशी करती निहोरा

सावन की पिहके पिरितिया पिया 

संवेदना

हालत पतली जीवन जर्जर

पीड़ा जिसकी वो ही जाने

पर हित धर्म की बातें झूठी

सभ्य समाज का लगा मुखौटा

जाने कितनी नींदें लूटी

सुख की सब परिभाषा भूले

हालत पतली जीवन जर्जर....

विजय दिवस

ऋणी शहीदों के सभीरक्षा का लें भार।

व्यर्थ नहीं बलिदान होलेते शपथ हजार।।

 वीरों के बलिदान सेनतमस्तक हैं आज।

उनके ही सम्मान में ,करें नया आगाज।।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


बुधवार, 26 जुलाई 2023

3830..तेरा पता मिला है...

।।प्रातः वंदन।।

 सूरज की- 

एक किरण पीपल के पत्ते पर ठहरी है !

एक किरण बेले के फूलों पर फिसली है !

एक किरण ताल की तरंगों पर थिरकी है !

एक किरण शिशु की दाँतुलियों पर बिहँसी है..!!

त्रिलोचन 

चलिए नियत समयानुसार आज की प्रस्तुति में..✍️

पुरनम सी यह हवा


तेरा पता मिला है औरों से क्या मिलें

पहुँचेंगे तेरे दर अरमान ये खिलें


तुझे छू के आ रही पुरनम सी यह हवा

सब को मेरी दुआ से मिलने लगी शफा..


चंद क्षणिकाएँ

 



•प्रेम

ऐश्वर्य के पाँव में पड़े

छालों का नाम है


•नदियाँ धरा का सौंदर्य हैं

और पड़ाड़ो तक पहुँचने का

सुगम मार्ग

  खेल तू बस खेल 

हार भी जीत होगी 

जब तुम तन्मयता से खेलोगे 

खेल में खेल रहे हैं सब 

खेल - खेल में खूब तमाशा 

छूमंतर हुई निराशा 



सम्मोहन /अनीता सैनी 'दीप्ति'

जब कभी भी मैं 

कल्पना के एक छोर को 

अफलातून की

कल्पना शक्ति से बाँधती हूँ..

.उड़ान


लड़कियों,

जितना आसमान तुम्हें दिखता है,

आसमान उतना ही नहीं है,

जितना दूर तुम्हें दिखता है,

उतना दूर भी नहीं है। 

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


मंगलवार, 25 जुलाई 2023

3829 इश्क़ में रोज़ वजूहात बदल जाते हैं

 

सादर नमस्कार ..
बोर  हो गया मैं
अपनी देवी जी से
कभी शिव मंदिर
कभी बजरंग मंदिर
तो कभी गणेश मंदिर
ये सावन भी ना
डबल क्यों आता है
खैर खुश रखना है तो
सहना भी होगा
रचनाएं देखिए ....

आग उगलते शब्द स्वयं के

दूजे के लगते अंगार।

आह कराह दिखे बस संगी

निर्मल जल भी लगता खार।

है खटास की नदी बह रही

बीच भंवर में डोले नाव,

ऊपर से आती लहरों का

अपनी धुन पर अपना नर्तन॥






दुशासन के पंजों में
सहमी बेसुध मर्यादा 
सहस्त्र बाहु दुशासनकी 
अट्टहास ,भद्दी टिप्पणियों से
जलती उसकी रूह
पथराई आंखों में 
खौफ का तांडव 
ऐसा भी होगा
सोचा तो न था...??




आपका घूरना, फिर देखना, फिर शरमाना,
देखते देखते ख़तरात बदल जाते हैं.

इश्क़ तसलीम तो कर लेंगे नज़र से पर फिर,
होंठ से कहते हुए बात बदल जाते हैं.




कविता है बड़ी छोटी सी
अर्थ गूढ समझ से बाहर
जब भी गहन अध्यन किया
बड़ा आनन्द  आया |
खेल खेल में ले किताब  हाथ में
पढ़ने का शौक पनपा
धीरे धीरे  बढ़ने लगा 


आज नींद मुझसे खफा सी है, 
क्या मैंने कोई खता की है 
आंखों के बहते पानी की  
क्या कोई दवा भी हैं 





बोधि वृक्ष कहते इसे, पूजन अलग विधान।
दूध धूप दीपक जले, मंत्र का हो अभ्यास।।

दिवस अमावस सोम हो, करते विधि विधान।
परिक्रमा होती फलित, भरता घर उल्लास।।

आज बस इतना ही
सादर
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