सादर अभिवादन
प्रभात फेरी के समय नौका का आगमन है
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर अभिवादन
सादर अभिवादन
“सर , कुछ लोग जो बहुत निराशा से घिरे थे , उनकी सफलता के सारे रास्ते बंद हो गये थे , मैं फिर भी उन्हें आशा की सीढ़ियाँ चढाती रही परिणाम वे गिर गये और जो चोट लगी उससे वे कभी नहीं उभरे | सो उनके परिजन ने मुझे बहुत अपमानित कर निकाल दिया |”
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
बढ़ती आबादी पर कौन विचार करे...
शीर्षक पर भी तो श्रम नहीं होता
अब वहाँ कौन मेरे स्वागत को तैयार है? मुझे कौन बुलाता है? ये गारे-सीमेंट के स्पन्दनहीन अट्टालिकाएँ मुझे क्या पहचानेंगी? मेरे शीशम- देवदार, पीपल-बरगद जैसे कद्दावर वृक्ष, फल-सब्जियों के सारे द्रुम इन कंक्रीट के जंगलों की सड़कों और इमारतों ने खा लिया है। मेरे लिए कोई बाँह फैलाए है भला, बता जरा?
बयालिस (42) साल में क्या बदला...
सुना जाता है, उसी दिन से दोनों पक्ष अख़बार और संविधान पढ़ पढ़ कर लड़ रहे हैं। नेता-वेशधारी भगवान विष्णु शेष शय्या छोड़कर आनंद से कुर्सी पर सोए हुए हैं। लोग कहते हैं, युग बदल रहा है। (1.12.1981)
जिस तरह (आरम्भ) और (प्रारम्भ) शब्द दोनों एक से दीखते हैं मगर दोनों में अंतर है वे कभी एक नहीं कहे जा सकते। ठीक उसी प्रकार कथा और लघुकथा कभी एक नहीं हो सकतीं, दोनों विधाओं की कसौटी अलग है।
वैसे तो लेखिका ने लगभग सभी विषयों पर लेखनी चलाई है लेकिन कुछ विषयों पर बहुत कम लिखा है जैसे पंडे-पुजारियों के आचरण पर, आत्मविश्वास, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। कुछ विषय लेखिका की नजरों से छूट गये
आपके अलावा कोई आपकी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है। कोई आपको गुस्सा नहीं दिला सकता और कोई आपको खुश भी नहीं कर सकता।”
“ज़िंदगी अपने आप में ही बहुत सुन्दर है, इसीलिए जीवन के महत्त्व को पूछना ही सबसे बड़ी मुर्खता होगी।”
मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है
इस सिकोड़ का रिश्ता मेरे इलाके में
रह रह कर पेट में उठनेवाले ममोड़ से कितना और कैसा है
कह नहीं सकता लेकिन, मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
कल दिल्ली में भोर से पहले तेज़ बारिश हुई। ऑनलाइन समाचार पढ़ा: ...भीगी बिल्ली! ग़ौर से पढ़ा तो 'बारिश से भीगी दिल्ली!' दोष नहीं शब्दों का बल्कि है दृष्टि का क्योंकि दिल्ली में डेंगी (प्रचलित नाम डेंगू) और आई फ़्लू तेज़ी से फैल रहा है। सावधानी रखिए।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
आंसू और पसीना पर, दोनों पानी हैं- सतीश सक्सेना
पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो
पुरुषों की नजरों में, सब पानी पानी है!
इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये
नारी इन नज़रों में, बस बच्चे दानी है!
पीड़ा जिसकी वो ही जाने
पर हित धर्म की बातें झूठी
सभ्य समाज का लगा मुखौटा
जाने कितनी नींदें लूटी
सुख की सब परिभाषा भूले
हालत पतली जीवन जर्जर....
ऋणी शहीदों के सभी, रक्षा का लें भार।
व्यर्थ नहीं बलिदान हो, लेते शपथ हजार।।
उनके ही सम्मान में ,करें नया आगाज।।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
।।प्रातः वंदन।।
सूरज की-
एक किरण पीपल के पत्ते पर ठहरी है !
एक किरण बेले के फूलों पर फिसली है !
एक किरण ताल की तरंगों पर थिरकी है !
एक किरण शिशु की दाँतुलियों पर बिहँसी है..!!
त्रिलोचन
चलिए नियत समयानुसार आज की प्रस्तुति में..✍️
तेरा पता मिला है औरों से क्या मिलें
पहुँचेंगे तेरे दर अरमान ये खिलें
तुझे छू के आ रही पुरनम सी यह हवा
सब को मेरी दुआ से मिलने लगी शफा..
⭐
ऐश्वर्य के पाँव में पड़े
छालों का नाम है
•नदियाँ धरा का सौंदर्य हैं
और पड़ाड़ो तक पहुँचने का
सुगम मार्ग
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हार भी जीत होगी
जब तुम तन्मयता से खेलोगे
खेल में खेल रहे हैं सब
खेल - खेल में खूब तमाशा
छूमंतर हुई निराशा
आग उगलते शब्द स्वयं के
दूजे के लगते अंगार।
आह कराह दिखे बस संगी
निर्मल जल भी लगता खार।
है खटास की नदी बह रही
बीच भंवर में डोले नाव,
ऊपर से आती लहरों का
अपनी धुन पर अपना नर्तन॥