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सोमवार, 24 जुलाई 2023

3828 ..अंधत्व रहता है यहाँ बारह मास

 

सादर नमस्कार
श्रावण
सबके तन-मन में आग सी लगी है
हर कोई कुछ भी करने- धरने को तैयार
हर मंदिर में सहस्त्रधारा अभिषेक चल रहा है
भीगे वस्त्र में महिलाएं और टॉपलेस पुरुष

बाल्टी भर-भर के जल चढ़ाया जा रहा था
सिंक रही बांटी की महक...
सब प्रतीक्षा में थे कि कब 
मंत्रों का समापन हो तो वो सब
भोग लगाएं,,,,
रचनाएं देखें ......





इससे पहिले कि,
उतरे नेताओ की आंखों का पानी,
उतर गया जमुना का पानी!
अब राहत में राजधानी।
खतरे के निशान से ऊपर है लेकिन,
अभी भी तथाकथित 'संजय उवाच ',
मीडिया की ' लोक' वाणी।
मौसम पसीना पसीना,
जनता पानी - पानी!



वही चिर परिचित द्युतसभा, वीभत्स अट्टहास,
पश्चिमान्त से ले कर उत्तर पूर्वान्त,
अंधत्व रहता है यहाँ बारह मास,
भीड़ के चेहरे भिन्न रंगों में
हैं सरोबार, कभी गेरुआ
कभी तीन रंगों में
है वो एकाकार,
भीष्म हो
या धृतराष्ट्र, हर युग में द्रौपदी का ही होता है - -
निर्मम शिकार,





अलसायी सी रात
व्यथित हो चौखट पर बैठी
पोपल मुख निस्तेज
करे यादों में घुसपैठी
काँप उठी फिर श्वास
तभी बंधन को बहलाती।।




उस ''नए आइटम'' को अपने हाथ में लेते ही मेरी हंसी निकल गई ! युवक मेरे मुंह की तरफ देख रहा था ! तभी श्रीमती जी भी वहां आ गईं ! मैंने उनको इंगित करते हुए उस युवक से कहा, पैंतालीस साल पहले, तुम्हारे इसी नए आइटम के किसी पूर्वज को पहन मैं इनके घर गया था ! तब इसे ''स्ट्रेचलॉन'' कहा जाता था ! पर जब इसमें बेल्ट के लिए लूप लगे हैं तो इसमें यह ''नाड़ा'' क्यों डाल दिया है, बेचारा न पैंट रह गया ना हीं पायजामा ! पहनने वाले को एक और अतिरिक्त क्रिया को अंजाम देने के लिए समय निकालना होगा ! अब वह बेचारा क्या बोलता, उसने तो बनाया नहीं था, यह सब !



पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी!! 

आज बस
कल फिर

2 टिप्‍पणियां:

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