शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जब नकारात्मकता मन पर हावी होने लगे,जब परिस्थितियों के चक्रव्यूह से आपा खोने लगे,जब दूर तलक अंधेरा ही अंधेरा दिखलाई दे,जीवन में निराशा का कोहरा घना हो जाए तब विचारों की
महीन रोशनी की मद्धिम झलक
ढ़ाढ़स बँधाती है,विश्वास दिलाती
जीवन का मूल्य समझाती है।
“आपके जैसा इंसान दुनिया में कभी नहीं होगा , दुनिया में अभी आपके जैसा दूसरा इंसान कहीं नहीं है, और ना ही आपके जैसा कभी भविष्य में कोई होगा।”
आपके अलावा कोई आपकी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है। कोई आपको गुस्सा नहीं दिला सकता और कोई आपको खुश भी नहीं कर सकता।”
“ज़िंदगी अपने आप में ही बहुत सुन्दर है, इसीलिए जीवन के महत्त्व को पूछना ही सबसे बड़ी मुर्खता होगी।”
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आइये आज की रचनाओं के संसार में-
ऐ जिंदगी तू इतना भी मेरे सब्र का
इम्तिहान ना लें ...
लगता तो है इम्तिहान के दिन है
गुजर जायेंगे
सब्र कर बन्दे
आज जो तुझ पर हँसते हैं कल वो
तुझे देखते रह जायेंगे।
इस पर मृत्यु
बस मुस्कुराई और बोली
अधूरे प्रेमियों को ले जाने में मेरे कंधे दुखते हैं
मैं उसके साथ चल पड़ा चुपचाप
जब पीछे मुड़कर देखना बंद किया मैंने
मन के सूक्ष्म रंध्रों में
बूँद-बूँद जमा होती रहती हैं मौन पीड़ाएँ
और किसी दिन फूट पड़ती हैं
बनकर सिसकता संगीत...।
अधरों पर मुस्कान सजाए हरपल जो खुश दिखते हैं,
हो सकता है उनके भीतर कुछ अनकहे जख्म हर पल चुभते रिसते हैं।
जरूरी नहीं कि हर मुस्कान के पीछे खुशियों की फुलवारी हो,
गुलाब तभी मुस्काता है जब कंटक से उसकी यारी हो।
तुम्हारी जीवन की नदी में
बूँद बूँद समर्पित मैं,
सिर्फ तुम्हारी इच्छा अनिच्छा
के डोर में झुलती कठपुतली भर नहीं
"तुम भूल जाते हो क्यों मैं मात्र एक तन नहीं,
नन्हीं इच्छाओं से भरा एक कोमल मन भी हूँ।"
कमला जी
कब उन्होने अपनी पसंद से कुछ किया था ,कभी अपनी पसंद की सब्जी बनाई या अपनी मरजी से कहीं घूमनें गई....
कितना पसंद था उन्हे घूमना -फिरना ,पेंटिंग तो वो इतनी अच्छी करती थी कि बस ..सालों बीत गए रंग और कूची हाथ में लिए जिदंगी के सारे रंग मानों कहीं खो गए है .
मन का मौन कोलाहल चाहता तो
है जोर से चीखना,दूसरों की पीड़ा से तटस्थ
निर्विकार लोगों को आईना दिखाना पर...
आप भले ही कराह सुनाना चाहते हों
पर प्रश्न तो यह है कि आपको सुनना कौन चाहता है?
मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है
इस सिकोड़ का रिश्ता मेरे इलाके में
रह रह कर पेट में उठनेवाले ममोड़ से कितना और कैसा है
कह नहीं सकता लेकिन, मेरे मन में भयानक सिकोड़ हो रहा है
और चलते-चलते
आइये प्रकृति को और थोड़ा समझने का
प्रयास करें,पर्यावरण के प्रति थोड़ा सजग हो जाये।
प्रकृति की चर्चा के बहाने अनेक विषयों पर ध्यानाकर्षित
समाजोपयोगी, ज्ञानवर्धक लेख।
कहते हैं कि सुसवा नदी कभी अपने पौष्टिक व स्वादिष्ट सुसवा साग और मछलियों के साथ-साथ देहरादून में उपजने वाले अपने विशेष सुगंध के कारण विश्व भर में लोकप्रिय बासमती चावल के खेतों में अपने पानी की सिंचाई से उस चावल विशेष में सुगंध भरने के लिए जानी जाती थी। वही सुसवा नदी की स्वच्छ धार आज हम बुद्धिजीवियों के तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढ़ कर, अल्पज्ञानियों की बढ़ती जनसंख्या की तीक्ष्ण धार वाली भुजाली से क्षत-विक्षत हो कर सिसकी लेने लायक भी शेष नहीं बची है .. शायद ...
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
जी ! .. सुप्रभातम् युक्त नमन संग आभार आपका .. मेरी साग-पात वाली बतकही को इस मंच की अपनी अनुपम प्रस्तुति में टाँकने के लिए .. साथ ही दर्शनशास्त्र का पुट लिए आपकी आज की भूमिका के लिए यशोदा जी की भाषा में साधुवाद ! ... पर आपकी भूमिका वाले कथन को कोई "जन्मजात अपंग" या "बलात्कृत बाला या महिला" भी हूबहू सोच सकती हैं क्या ? .. आज भी अपनी USP के अनुरूप हर रचना की भूमिका में रचना से सारोकार रखती हुई, अपने मन की बातों को बहुत ही इत्मिनान से परोसा है आपने .. पुनः साधुवाद ...
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
“आपके जैसा इंसान दुनिया में कभी नहीं होगा, दुनिया में अभी आपके जैसा दूसरा इंसान कही नहीं है, और ना ही आपके जैसा कभी भविष्य में कोई होगा।”
जवाब देंहटाएं"आपके अलावा कोई भी आपकी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है। कोई आपको गुस्सा नही दिला सकता और कोई आपको खुश भी नही कर सकता।”
-सहमत हूँ
बढ़िया लिक्स चयन
सुंदर भूमिका ...सच ही है हमारे जैसा दूसरा कोई नहीं होगा ....मेरी रचना का समावेश करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता
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