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शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

3825.....नमक छिड़कते हैं कुछ लोग...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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धिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर
घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर,
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री 
स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर। 

गौरवशाली देश हमारा,
झूठ यह हर दिन दोहराता है।
नारी जननी ,पूजनीय देवी,
कह-कहकर बरगलाता है।
झूठे प्रलाप सारे छद्म सेवी ,
स्त्री अस्तित्व पल में रौंदा जाता है।
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
क्यों हैरान नहीं कोई हैवानगी पर....।
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मेरी इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य किसी समूह 
विशेष का अपमान करना नहीं है,कुछ बातें, किसी
घटना पर न चाहते हुए भी कुछ कहना जरूरी होता है।
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आइये आज की रचनाओं की दुनिया में
बिना किसी विशेष विश्लेषण के- 

अपने भीतर के उस अट्टहास
लगाते दुशासन को
जो तुम में समा गया है
और डराता है तुम्हारे आस पास 
रहती मां बहन और बेटियों को
जानती हूं कृष्ण अब नहीं आते 




वह चाहे बेटी हो, पत्नी हो या माँ, सभी की नजर में बेचारी ही रहती है. आज एक ओर सरकारी योजनाओं में मिशन शक्ति, विधिक सेवा प्राधिकरण आदि माध्यम से सरकार नारी को सशक्त किए जाने का अथक प्रयास कर रही है किन्तु यह प्रयास भी भारतीय पुरातन सोच को परिवर्तित करने में विफल ही नजर आते हैं.



नमक छिड़कते हैं कुछ लोग घाव पर अक्सर,

कहीं वो खुद से न पट्टी उतार बैठा हो.

यकीं नहीं तो यकीनन भरम रहेगा उसे,
भले ही पास में परवर-दिगार बैठा हो,

फ़क़ीर दिल से मुकद्दर की भेंट देता है,
गरीब हो के कहीं माल-दार बैठा हो.


वादे, जुमले, मुस्कानें और कुछ नकली आँसू
ऐसा करके लोगों ने फिर  से सरकार बनाई है 

आपस में मिलकर रहने वाले अब लड़ते हैं
पता नहीं बस्ती में किसने आ कर आग लगाई 

और चलते-चलते आज के मुख्य विषय से अलग कुछ रोचक
 पढ़िए साप्ताहिक धारावाहिक



चाय की दुकान में ग्राहकों के लिए ही रोज की तरह आये आज के अख़बार के अलग-अलग पन्ने दोनों भद्र (?) पुरुष अपने-अपने दोनों हाथों में पकड़ कर पढ़ते हुए और बीच-बीच में आपसी बहस के दौरान अपने-अपने आवेश के आवेग में अपने-अपने अख़बार वाले पन्ने को झटकते और हवा में लगभग लहरा कर फड़फड़ाते हुए एक दूसरे पर बारी-बारी से तार सप्तक में प्रतिक्रिया दे रहे हैं। मानो राष्ट्रीय स्तर के किसी भी टी वी न्यूज़ चैनल पर एक समाचार उद्घोषक के द्वारा सार्वजनिक सर्वेक्षण ('पब्लिक पोल') के आधार पर तय किए गये किसी वर्तमान ज्वलंत समस्या जैसे विषय पर दो-चार प्रतिभागियों के बीच बहस छिड़ी हुई हो या फिर लोक सभा या विधान सभा में सत्र के दौरान यदाकदा होने वाले जूतम-पैजार हो रहे हों। 


 आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।


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10 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. किसी गम्भीर विषय वाली अपनी भूमिका और तदनुसार प्रतिष्ठित रचनाकारों के मध्य हमारी बतकही को स्थान प्रदान करने के लिए .. आज भूमिका के अंतर्गत उठाए गये प्रश्न या विषय कोई नया तो नहीं है वैसे .. इस तरह की सोशल मीडिया पर चिपकी तमाम प्रतिक्रियाएँ ठीक श्मशान या क़ब्रिस्तान से तत्काल बाहर आयी बोझिल मन लिए भीड़-सी ही है, जो तदोपरान्त अपनी दिनचर्या की हड़बौंग में गुम हो जाता है .. इन प्रकार की घटनाओं से हर राज्य, शहर, गाँव, मुहल्ला, कॉलोनियां, देश, विदेश .. कमोबेश समस्त विश्व जूझता आया है, जूझ रहा और .. शायद ... आगे भी ... तमाम तथाकथित पौराणिक कथाओं, महाभारत, रामायण में नारी शोषण आम है। लोगबाग पक्षपात वाली मानसिकता लिए एक राज्य विशेष की घटना पर हायतौबा मचाए हुए दिख रहे हैं, पर अन्य कई राज्यों में इससे भी घृणित कुकर्म पर मुँह पर 'सेलोटेप' साट कर मूक-बहरे और धृतराष्ट्र बने बैठे अपनी दिनचर्या में मशगूल हुए दिखते हैं .. वाह री !!! महान और दोहरी मानसिकता ... इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के समाज की ...
    प्रसंगवश .. चार-पाँच दशक पहले जिन दिनों समाज में गर्भपात आज की तरह आसान नहीं था, तब शहर-गाँव की दीवारों पर इसके लिए एक विज्ञापन पृष्टभूमि के गहरे-हल्के रंगानुसार गेरुए या सफ़ेद रंग से लिखे हुए आम नज़र आते थे - "वरदान जब बन जाए अभिशाप" .. ठीक इसी विज्ञापन की तरह हम प्रकृति प्रदत महिलाओं को मिली सौगातों को वर्षों से अभिशाप बनाते आ रहे हैं .. इसके विरोध में चंद पंक्तियाँ लिख कर हम स्वयं कलंक मुक्त होने की ढोंग नहीं रचा सकते .. क्योंकि हम भी इसी कलुषित समाज के एक लिजलिजे अंश- अंग हैं .. शायद ... हम ही तथाकथित कर्ण जैसे उपजे पात्रों को महिमामंडन करने में नहीं चूकते हैं .. और नाज़ायज होने पर बिदकते भी हैं .. शर्मिन्दा तो हमें अपने आप पर होना चाहिए कि आज युगों बाद भी हमारी बुद्धिमता बस .. और बस सोशल मीडिया की दीवारों में क़ैद हो कर सिसक रही है और आज युगों बाद भी सूरज और भी मुखर हो कर अनगिनत कुन्तियों को रौंद रहा है .. बस देर किस बात की .. आइये नए कर्णों के स्वागत की तैयारी करें .. बस यूँ ही ...

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  2. गौरवशाली देश हमारा,
    झूठ यह हर दिन दोहराता है।
    नारी जननी ,पूजनीय देवी,
    कह-कहकर बरगलाता है।
    शानदार अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वीडियो प्रसारित नहीं होता तो कितनों का खून उबलता•••
    घटना तीन महीने पुरानी है•••
    ज्वलंत प्रश्न है पुलिस की भूमिका क्यों ऐसी रही•••
    बहुत सारे सवाल हैं•••

    जवाब देंहटाएं
  4. महिलाओं की स्थिति दयनीय ही है आरंभ से..... आलेख को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. धिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर
    घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर,
    भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
    स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर। //
    हैरानी और परेशानी से कहीं ज्यादा है भुगतभोगी स्त्रियों का दर्द।नर पिशाचों के हाथों नुचती स्त्री देह और मौन भीड तंत्र! लानत है उन आँखों पर जो ये दृश्य देख कर झुकी नहीं और धिक्कार है उन बाहों पर जो भीड़ से नोची जा रही इन निरीह औरतों की रक्षा ना कर पाई।
    सभी रचनाएँ अच्छी लगी पर भूमिका ने निशब्द कर
    दिया 😔😔😔

    जवाब देंहटाएं
  8. सार्थक और सामयिक भूमिका के साथ सशक्त प्रस्तुति🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. इस दरिंदगी इस कृत्य पर भाव स्तब्ध, हृदय दुखी तथा शर्मसार हैं , क्या हमारी सभ्यता संस्कृति इतनी नीचे गिर चुकी है

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