सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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फ़ॉलोअर
सोमवार, 10 नवंबर 2025
4567 ..तुम्हारे चित्र, तुम्हारी मूर्ति से शोभायमान। पर वे हैं तुम्हारे दर्शन से अनभिज्ञ,
रविवार, 9 नवंबर 2025
4566 ..बड़ी- बड़ी आँखों में दो जून की रोटी का रोना है नियति, ईंट- गारा और बालू ही ढोना है
शनिवार, 8 नवंबर 2025
4565 ..अरे ये तो फिश पेडीक्योर है"... बहुत पहले इसके बारे में पढ़ा था
सादर नमस्कार
शुक्रवार, 7 नवंबर 2025
4564.... अंकुरित होने की आशा...
जीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?
उपरोक्त कथन
किसी भी महान उपदेशक,विचार या चिंंतक का हो,
किंतु इन पंक्तियों में निहित संदेश
की सकारात्मकता आत्मसात करने योग्य है।
स्कूटर भाई, अब चलते हैं,
किसी कबाड़ी के यहां रहते है,
तुम भी पुराने, मैं भी पुराना,
बीत चुका है हमारा ज़माना।
क्योंकि ..
ब्याह लाए हो उसे तुम
साथ इक भीड़ की गवाही के,
तो तुम बन गए हो उसके ..
तथाकथित पति परमेश्वर,
या ख़ुदा जैसे ख़ाविंद।
है ना ? ..
हे चराचर के स्वघोषित सर्वोत्तम चर जीव- नर !
गुरुवार, 6 नवंबर 2025
4563...सोन, नर्मदा, चंबल, क्षिप्रा, सिंचित प्यारा मध्यप्रदेश...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कविता रावत जी की रचना से।
सादर
अभिवादन।
पढ़िए
आज की पसंदीदा रचनाएँ-
बाग घर आँगन लिपवा लो,
भाभी यह दालान लिखवा लो
पर अपने हिस्से भैया का प्यार नहीं दूँगा
दीवाली में लपट लाँघते खुब बजाए ताशे
यह माँ का कंगन बिकवा लो
भाभी यह अनबन मिटवा लो
पर इस आँगन में बनने दीवार नहीं दूँगा।
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मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण
हृदय देश का मध्यप्रदेश: महेश सक्सेना
बुधवार, 5 नवंबर 2025
4562..भला हुआ कब ऐब से?
प्रातःवंदन
उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है,
वतन के फकीरों का फेरा हुआ है।
जगो तो निराशा निशा खो रही है
सुनहरी सुपूरब दिशा हो रही है
चलो मोह की कालिमा धो रही है,
न अब कौम कोई पड़ी सो रही है।
तुम्हें किसलिए मोह घेरे हुआ है?
उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है।
अज्ञात
देव दीपोत्सव की शुभकामना के साथ,चलिए आज शुरुआत करते हैं ब्लॉग नया सवेरा की खास पेशकश...
ना आँखों में पानी,
ना लफ्ज़ों में शिकवा…
बस एक ख़ामोश देख लेना है तुम्हें
जैसे रूह देखती है
अपना छूटा हुआ शरीर…
✨️
जेब में रूमाल, हाथ में घड़ी, और
पैंट की बैक पॉकेट में पर्स नजर आए,
तो समझ जाओ कि बंदा हिंदुस्तानी है।
ऊंची बिल्डिंग को ऊंट की तरह सर उठाकर देखे,
और उंगली हिलाकर मंजिलें गिनता नजर आए,
तो समझ जाओ कि.... भाई..
✨️
फिर झुंझलाकर मैने पूछा
अपनी खाली जेब से
क्या मौज कटेगी जीवन की
झूठ और फरेब से
जेब ने बोला चुप कर चुरूए
भला हुआ कब ऐब से ..
✨️
चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी
माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी
तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे
करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '
मंगलवार, 4 नवंबर 2025
4561...इतना ऊब गया हूॅं अब ज़िंदगी...
बस पग गिन-गिन कर सफ़र कर पार रहा हूँ मैं।
इतना ऊब गया हूँ अब ज़िंदगी के ऊहापोह से,
शांति की ख़ातिर ख़ुद को न्यौछार रहा हूँ मैं।
मिलते हैं अगले अंक में।












