सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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शनिवार, 21 जून 2025
4426 ..ये बच्चे को बाँध दो बहुत गर्मी है
शुक्रवार, 20 जून 2025
4425...तुम से तुम तक
अधिक हो धन-दौलत तो
अभिमानी हो जाता है आदमी
कम हो धन तो तनाव से भर जाता है
संपन्नता भी हो और श्रम भी जीवन में
संतोष से भर जाता है
किंतु धन बेहिसाब हो फिर भी
सदा खुश नहीं रह पाता
शायद हाईलाइटस से दूर है वे आवाज जिनकी
पहचान इस नई चकाचौंध में धुँधलकी पड़ गई है
और स्वर भीतर ही सिमटकर चुप हो गया है
कभी अपने आसपास के शोरगुल से दूर जाकर
तुम अपने को उस स्थान पर जानकर किसी दूसरे के
दुख - दर्द को भी शांति से सुनना जैसे माता सुनती
बहू दीपा ऑफिस के काम में व्यस्त रहती थी तो सरिता जी ने ही उससे यह ज़िम्मेदारी ले ली थी ! अंधा क्या चाहे दो आँखें ! बहू को तो जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी थी ! उसने सुबह किचिन में आना ही बंद कर दिया ! संकोच के मारे दरवाज़ा खटखटा के बुलाना सरिता जी को उचित नहीं लगता था ! अब अगर वो टिफिन नहीं बनाएँगी तो श्रेया क्या खायेगी स्कूल में !
गुरुवार, 19 जून 2025
4424...आज विश्व सिकल सेल दिवस (World Sickle Cell Day) है...
सादर अभिवादन
आज विश्व सिकल सेल दिवस (World Sickle Cell Day) है।
Sickle Cell अर्थात हँसिया/दराँती के आकार की कोशिका।
रक्त में प्रमुखतः तीन प्रकार की कोशिकाएँ (Cells) पायी जाती हैं:
1. RBC (Red Blood Cells) लाल रक्त कणिकाएँ
2. WBC ( White Blood Cells) श्वेत रक्त कणिकाएँ
3. Platelets / प्लेटलेट्स
कुछ लाल रक्त कणिकाएँ (RBC) अपने सामान्य आकार (Disc Like) और बनावट से अलग हँसिया जैसी शक्ल में
परिवर्तित होकर स्वभाव में लचीली होने की बजाय सख़्त और दाँतेदार हो जाती हैं तब वे
रक्त संचरण तंत्र में रक्त प्रवाह में रुकावट और दर्द पैदा करती हैं और शरीर के
महत्त्वपूर्ण अंगों (फेफड़े, किडनी,मस्तिष्क अदि) को नुकसान पहुँचाती हैं। सिकल सेल सामान्य
आरबीसी की तुलना में अपना जीवन-चक्र पहले ही समाप्त कर लेती है जिससे व्यक्ति में
रक्त की कमी हो जाती है। सिकल सेल आरबीसी के ऐसा बनने के लिए 'हीमोग्लोबिन प्रोटीन एस' ज़िम्मेदार है। यह बीमारी अनुवांशिक है जो
माता-पिता से बच्चों में आती है जिसे पूरी तरह ठीक करने हेतु जींस पर शोध जारी है
फिलहाल तो चिकित्सा परामर्श एवं उपचार से आंशिक तौर पर राहत मिल सकती है जिससे
जीवन लंबा और कम कष्टकारी हो सकता है।
*****
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पांच पसंदीदा रचनाएँ-
कविता | पुराना गोपन प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उन तहों के बीच
कुछ यादें
मिल जाती हैं अचानक
भीग जाता है मन
छूते ही
पुराने रुमाल में लिपटे
कागज की तहों में
कुछ रूमानी शब्दों को
जो है अब बेमानी
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पूर्व पीठिका:Reason
behind book creation
फूल लाया हूँ कमल के।
क्या करूँ' इनका,
पसारें आप आँचल,
छोड़ दूँ;
हो जाए जी हल्का!
किन्तु होगा क्या
कमल के फूल का?
*****
अमानवीयता के जंगल में यदि हां ?
आजकल मैं ना कोई
काम करता हूं,
बस दिन भर केवल
आराम करता हूं।
जब आराम करते करते
थक जाता हूं,
तो सुस्ताने को
फिर से आराम करता हूं।
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बुधवार, 18 जून 2025
4423..मसाल लिए बैठा हूं..
।। भोर वंदन ।।
"निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे "
रघुवीर सहाय
सहज भाव से सामाजिक जीवन की संपूर्णता को इंगित करतीं पंक्तियों के साथ चलिये अब नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर..
....ज्वलंत प्रश्न — खामोशियों को चीरती आवाज़"
बोलो सरकारें क्यों सोई हैं ?
जनता की पीड़ा समझा कब कोई है?
हर कोना जलता है चुपचाप,
सच को सुनता भी अब कहा कोई है।
शहरों में सांसें बिकती हैं,..
✨️
शांति का प्रवाह शीतलता की मंद बयार मिलती है
जो आज के ए०सी० कूलर पंखों से कई बढ़कर होती है
भावनाओं से भरा वह वृक्ष सजीव
ममत्व सुकोमल गुण से संपन्न
बिना किसी भेदभाव के अपना र्स्वस्व देता..
✨️
उठा के हाथ में कब से मशाल बैठा हूँ ...
किसी के इश्क़ में यूँ सालों-साल बैठा हूँ.
में कब से दिल में छुपा के मलाल बैठा हूँ.
नहीं है कल का भरोसा किसी का पर फिर भी,
ज़रूरतों का सभी ले के माल बैठा हूँ...
✨️
ईश्वर ने भगवद्गीता बचा ली
सच कितना बड़ा चमत्कार ईश्वर का!
ईश्वर ने भगवद्गीता बचायी
मगर इंसानों को
ऊँचाई पर ले जाकर
पहले तो नीचे पटका
फिर आग के हवाले कर दिया
यह कोई कविता नहीं पीड़ा है..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति '..✍️
मंगलवार, 17 जून 2025
4422....ज़िंदगी यही तो है
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
धुकधुकाती साँसों से,
जग से साँसों का नाता टूटने तक की यात्रा सृष्टि के
प्रत्येक जीव की ज़िंदगी है।
जितने प्रकार का देह का आवरण, उतनी विविधता,
"जितने जीव उतनी ज़िंदगी।"
★
हर उम्र में ज़िंदगी का रूप-रंग
अलहदा होता है
सुख-दुख,धूप-छाँव,हर क़दम
दूसरे से जुदा होता है
बंद मुट्ठियों की चाह,पहेलियों में उलझे
फिरते हैं उम्रभर
पर रिक्त हथेलियों से आदि और अंत
सदा होता है
रौशनी हर
किसी
ने समेट ली, कदाचित मैं जीवनोत्सव में कुछ
देर से आया, आलोकित पोशाक के अंदर
है आदिम काया । ज़रूरी नहीं कि
स्वर्ण प्याले से ही प्यास बुझे,
अंजुरी भर जल ही
काफ़ी है ताज़ा -
दम होने के
लिए, हार
जीत
राख़ में शोला दबा हैं,
तमस से दीपक डरा हैं
असत्य जब सौ धर्म से बड़ा हैं
परशुराम का गांडीव उठाके
इंद्रा का सिंहासन हिला के
भागीरथी से धरा धुला के
अब मैं क्या करूँगा....
पहले अपना ख्याल रखना।।
हर कोई कतरा के चल दे
नहीं ऐसा अभिमान करना।
मिलते हैं अगले अंक में।