सादर अभिवादन
अच्छी थी, पगडंडी अपनी।
सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।
सबके पास, काम बहुत है।।
नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब।
हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।
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रूबरू होने पर
छुईमुई सी सकुचाकर
नज़र झुकाकर -
पैरो के अंगूठे से जमीन पर
जो कुछ लिखती थी तुम
मिट नही पाई वह लिपि
मैं अब भी उसे
पढने की फिराक मे हूँ
(एक धारावीहिक उपन्यास का तीसरा अंक)
अफवाहों के अनुसार, मेरे पति का हमेशा किसी न किसी के साथ संबंध रहा है। मुझे इस पर कभी यकीन नहीं हुआ। मैंने अंशुमन से भी नहीं पूछा, क्योंकि ऐसा करना हमारी शादी का अपमान जैसा लगता। और पूछने का मतलब हो सकता था एक ऐसा जवाब सुनना जो मेरा दिल तोड़ सकता था। जब मेरी आँखें भारी हो गईं तो मैंने कार की खिड़की नीचे कर दी, ताकि ठंडी हवा मुझे जगा सके। मैंने साउंड सिस्टम की आवाज़ बढ़ा दी और जितना हो सके उतनी ज़ोर से गाना गाया। "सब कुछ खो दिया...." हाँ, मेरे लिए यह गाना बहुत उपयुक्त था, क्योंकि मैंने सब कुछ खो दिया था, ताकि खुद को पा सकूं।
कभी-कभी
हवा के हल्के झोंके से
भाव
मन की भीतरी डोर कस लेते हैं
और भीतर के समंदर में
एक सूक्ष्म कंपन उठता है,
बिना शोर, बिना संकेत
जैसे चेतना के तल पर
किसी ने धीरे से
उँगली रख दी हो।
धर्मेंद्र अनन्त- यात्रा पर जा चुके हैं।
हेमा से शादी सही या गलत …इसकी अदालत सोशल मीडिया पर आज तक जारी है।
हेमा व धर्मेंद्र कभी मेरे फ़ेवरेट स्टार नहीं रहे। बहुत लाउड एक्टिंग मुझे पसंद ही नहीं । लेकिन उनकी सत्यकाम, अनुपमा, मीरा, दुल्हन, किनारा, खुशबू जैसी कुछ फिल्में पसंद हैं ।
स्क्रीन पर उनकी जोड़ी बहुत जमती थी। शादीशुदा आदमी से शादी करने के पक्ष में मैं कभी नहीं रही। लेकिन प्यार में कौन क्या चुनता है यह बहुत निजी फैसला है।
कोई एकाकी जीवन चुनता है, तो कोई सारी कीमत चुका कर दूसरी पत्नी बनना। प्रेम के विभिन्न रूप हैं तो फैसले भी अलग- अलग तो होंगे ही।
अच्छा हो कि हम अब फालतू बकवास छोड़ , धर्मेंद्र की पुरानी फिल्में देखकर उनको सच्ची श्रद्धांजलि दें।
एक में दर्द है, इलाज है, धीरज है,
दूसरी में उम्मीद, रोशनी और जीवन का शोर।
मैं रोज़ इस खिड़की से
थोड़ी-सी दुनिया उधार लेता हूँ,
और दुनिया
थोड़ी-सी हिम्मत मुझे लौटा देती है।
चराग़दान था, कन्दील थी, सुराही थी
दुलाईयाँ थीं, रजाई थी, चारपाई थी
एक इत्रदान था, एक पानदान, एक गुलदान
एक आफ़ताबा, नमकदान, एक दस्तर-ख़्वान
अँगीठी, सनसी, उलटनी और एक दस्त-पनाह
रकाबियां थी बड़ी छोटी, तश्तरी, लुटिया
दो चार प्यालियाँ, सिल-बट्टा, घोंटनी, चमचे
नमक-शकर की अलग बरनियाँ, अचार का जार
आज बस
सादर वंदन

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