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गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

4598....दिल का बोझ उतार सको

 गुरूवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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दिसंबर

वर्ष के कैलेंडर पर

आख़िरी पन्ना है

सर्र सर्र सीतलहरी की आड़

सुनहरी खिली हुई है धूप

टहनी से टूटकर

तने पर अटका हुआ पीले पत्ता

सिकुड़े दिन और कंपकंपाती रात

किसी के लिए रूई की गर्माहट

किसी के लिए फटी हुई चादर

किसी के कटोरे में ठंडा भात है

किसी के गर्म दूध  

एक तारीख़ से दूसरे की यात्रा  

निर्विघ्न,अनवरत

क्या फर्क पड़ता है

दिसंबर हो या जनवरी।

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आज की रचनाऍं- 

वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव
 को l
ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम
 को ll
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात 
को l
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात 
को ll




कुछ ही सब सुन पाते हैं 
कुछ ही सब कह पाते हैं,
सुनकर कुछ भी जज न करना,
तसल्ली से कह भर देना,
दिल का बोझ उतार सको तो 
ये कंधा हर बार मिलेगा,

रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब



'रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब' उस दरगुजर होती कश्मीर की खूबसूरती को, उस ख़ुशबू को सहेजता है। 8 एपिसोड की यह सीरीज देख लीजिये। देख लीजिये कि कश्मीर के नाम पर नफ़रत का समान बहुत परोसा गया है,  लेकिन यह प्यार है। जब-जब लगता है कि अरे, यह तो सीरीज है, ऐसा होता भी काश, तब तब ध्यान आता है कि यह सच्ची कहानी पर आधारित है। यानि हैं कुछ दीवाने लोग जो नफरत की आंधियों में मोहब्बत का दिया जलाए हुए हैं।



रामजन्म भूमि परिक्रमा मार्ग पर बनने वाले मंदिर, वहां बनी गिलहरी की मूर्ति भी अत्यंत सुंदर है।अब हम वहां से सरयू घाट के लिए निकल पड़े थे। वहां पर कार्ट चल रहीं थीं और ई रिक्शा व आटो की भी कमी नहीं थी। यहां भी नवीनीकरण का कार्य चल रहा था।सरयू की कल-कल धारा निर्बाध गति से बह रही थी। बहुत सुंदर है सरयू घाट...




इन सारी बातों के अलावा शादी विवाह में इतना दिखावा और फिजूलखर्ची का चलन हो गया कि आम औसत आमदनी के व्यक्ति के लिए ऐसी आडम्बरपूर्ण शादियाँ करना बिलकुल बस के बाहर हो गया ! लेकिन बेटी के ससुराल पक्ष के लोगों की डिमांड्स पूरी करने के लिए उन्हें इस तकलीफ से भी गुज़रना पड़ता है जो कि बहुत ही शर्मनाक एवं कष्टप्रद अनुभव होता है !


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आज के लिए इतना ही
मिलते है अगले अंक में।
सादर आभार।



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