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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

4606....मैं पेड़ होना चाहती हूॅं...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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दिसंबर की हाड़ कँपाती सर्दियों में
अनगिनत ठिठुरते दृश्यों के साथ
कुछ अनदेखी कल्पनाएँ
मेरे मन को बैचेन करती है 
क्या आपने सोचा है कभी
सरहद के रखवालों की बर्फीली रातों के बारे में
उन्हें हृदय से नमन करती हूँ-

हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों 
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य

आज की रचनाऍं- 

https://ghazal-geet.blogspot.com/2025/12/blog-post_17.html?m=1




















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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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