सादर अभिवादन।
2018 से न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर बीमारी से जूझ रहे संवेदनशील अभिनेता इरफ़ान का कल दुखद निधन हो गया। उन्हें सुपुर्द-ए-खाक़ के वक़्त लोगों को भावविह्वल होते देख उनके प्रशंसकों में शोक की लहर उमड़ आयी।
हमारी ओर से उन्हें भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि!
आइए अब पढ़ते आज की चयनित रचनाएँ-
सन 2004 में एक फिल्म आई थी 'मक़बूल', जिसमें मक़बूल का किरदार इरफ़ान खान ने निभाया था। बड़ी अच्छी लगी थी फिल्म। यूँ अब फिल्म की कहानी याद नहीं, बस इतना याद है कि क्राइम पर आधारित फिल्म थी और इरफ़ान के साथ तब्बू के कुछ सीन याद रह गए मुझे। मुझे उनका असली नाम कभी याद नहीं रहता है, तो जब भी इरफ़ान कि कोई फिल्म आई और देखने जाना हो तो कोई पूछे कि फिल्म में कौन-कौन एक्टर है, तो मैं मक़बूल ही बोलती हूँ। इरफ़ान की लगभग सभी फिल्में देखी है मैंने और अब भी मक़बूल ही बोलती हूँ, जाने क्यों।
स्मृतियों में बसी होती है
गोधूली बेला
और
गोधूली बेला में
स्मृतियों के सिवा कुछ नहीं बचता....।
आम ज़िंदगी के किरदारों से
रु-ब-रु होकर,
उसमें निहित संदेश आत्मसात करके
विचारों का एक अलग ब्रह्मांड रचकर,
उसमें विचरकर, भावों के सितारे तोड़कर
उसे कोरे पन्नों पर सजाना
बहुत अच्छा लगता है।
ओ री माई!
सुना है आज,
कल मुनिया बस्ती में मर गई!
कहते हुए एक बालकविता
रोटी की ख़ातिर
मंच से कहते हुए
उन कवियों ने अपने लिये
रोटियाँ बटोरीं!
उठ री माई
कुछ नहीं है शेष
अब पानी पिला दे!
आज जनता प्रत्यक्ष हर चीज देखना चाहती है चाहे वह छूट हो, सहायता हो या फिर दंड ! दोषी को दंड मिलता देख ही दूसरे दोषियों को सबक मिलेगा और भय रहेगा कुकर्म करते समय और समाज को संतोष और विश्वास की प्राप्ति होगी व्यवस्था के प्रति !!
प्रभु आपसे मेरा एक विनम्र और करबद्ध निवेदन है। कृपया इसपर आप अवश्य ध्यान दें। हमारे यहाँ जो व्यक्ति या समूह अपने घर-बार, परिवार से दूर रहकर कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए, कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए , कोरोना संक्रमितों के परीक्षण के लिए और लॉक डाउन के नियमों के पालन करवाने के लिए, गरीबों - भूखों के लिए भोजन या भोजन सामग्री को उपलब्ध कराने के लिए जुटे हैं, जूझ रहे हैं, उनके पास आप अपने यमदूतों को नहीं भेजें। अर्थात डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मियों, लैब टेक्नीशियनों, पुलिस, आशा वर्करों, फ़ूड सप्लाई और उसके चेन में काम पर जाने वाले ट्रांसपोर्ट में लगे लोगों, कोरियर और दवा उपलब्ध कराने वालों के पास अपने यमदूत न भेजें।
निजी अस्पतालों पर तो वैसे भी कोई बस नही है - सब बंद है, डॉक्टर्स घरों में है और मेडिकल कॉलेजेस का धंधा वाया व्यापमं फिर पनपेगा - जहाँ क्रोसीन देने की सुविधा नही वहां मेडिकल कॉलेज चल रहे है
दुर्भाग्य यह है कि इस पूरे विधायक दल में एम्स के डॉक्टर्स भी है पर वे भी स्वार्थी बनें रहें और सत्ता सुख में लिप्त रहें - खेल करते रहें
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव