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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
1728...फिर झूठी माला क्यों फेर रहे?
12 टिप्पणियां:
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कोरोना के माध्यम से प्रकृति ने मनुष्य को यह आभास कराया है कि सर्वशक्तिमान तुम्हारा विज्ञान नहीं मैं हूँ। लोग एक दूसरे को देखकर कतराते थे, समयाभाव बताते थे, आज कोरोना ने उनकी यह भी इच्छा पूर्ण कर दी। उसने मनुष्य को भरपूर समय दे दिया है, परंतु वह चाह कर भी एकदूसरे के करीब नहीं जा पा रहा है।
जवाब देंहटाएंसच कहूँ, तो भूमिका ऐसी ही होती है -" गागर में सागर।"
आज की इस सारगर्भित व सार्थक प्रस्तुति हेतु आदरणीय रवीन्द्र जी को शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन है यह। इसी मध्य मेरी रचना भी रखने हेतु आभार।
आजकल मैं फेसबुक से दूर हूँ । वस्तुतः मैंने कतिपय कारणों से अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सिर्फ ब्लॉग या मेरे whatsapp no.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
सहयोग हेतु आभारी हूँ ।
व्हाट्सअप नंबर देने के लिए आभार,भैया जी।
हटाएंबिल्कुल शशी जी, खुशी होगी आपसे वार्तालाप कर।
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभारत का बच्चा-बच्चा जान गया है कोरोना को बारे में
अब उनको भय नहीं लगता
सादर
सभी शब्दों में कहते थे सब एक से हैं लेकिन जो जिस पद पर था उसी मद में था.. प्रकृति समझा रही है वक़्त है प्रायश्चित कर लो..
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
सुधार....
जवाब देंहटाएंआजकल मैं फेसबुक से दूर हूँ । वस्तुतः मैंने कतिपय कारणों से अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ ब्लॉग या मेरे whatsapp no.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
वाह!रविन्द्र जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंआपने तो चंद पंक्तियों में कोरोना का पूरा हाल बयां कर दिया। लाजवाब भूमिका संग शानदार प्रस्तुति 👌
सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उत्क्रष्ट। सभी को हार्दिक बधाई। इन लाजवाब रचनाओं के मध्य मेरी पंक्तियों को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार।