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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

1728...फिर झूठी माला क्यों फेर रहे?

सादर अभिवादन। 

करोना काल गति 
मेलजोल की क्षति 
उलझन में है मति 
आर्थिक अवनति
पतझड़ ऋतुगति 
है मानव दुर्गति। 
-रवीन्द्र 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

 
एक बार बुद्ध अपनी आंख बंद किये बैठे हुए थे, उन्हें किसी की आवाज़ सुनाई दी, ‘बचाओ, बचाओ उन्हें समझ गया कि ये आवाज़ किसी मनुष्य की थी जो नर्क के किसी गड्ढे में था और पीड़ा भोग रहा था। बुद्ध को ये भी समझ में आया कि उसे ये दंड इसलिये दिया जा रहा था क्योंकि जब वो ज़िंदा था तब उसने बहुत सी हत्यायें और चोरियां की थीं। उन्हें सहानुभूति का एहसास हुआ और वे उसकी मदद करना चाहते थे।


 
बदली सी, है छाई,
चलता-रुकता हूँ, कोशिश करता हूँ!
बुन लूँ, परछाईं!


 

अब मूरत में भगवान खड़े,
अंतर में रावण राज करे।
श्री राम चरित सब भूल रहे,
फिर झूठी माला क्यों फेर रहे?


 
यह वक़्त हमें वो सिखाने आया है जो सीखने को लोग जाने कितने पुस्तकालयों की ख़ाक छानते रहे, कितने वृक्षों के नीचे धूनी जमाने को भटकते रहे. मनुष्यता का पाठ.


 

मेरी और सब भाई-बहनों की उपलब्धियों पर जी भर कर सराहते। जब भी मैं कोई पेंटिंग बनाती तो शाबाशी देते,कोई कहानी या कविता छपती तो बहुत खुश होते थे। पता नहीं क्यों मैं पहले जब कुछ बड़ी हुई तो डरती थी आपसे फिर सब डर निकल गया जब अम्माँ ने उनको बताया तो आप मुझसे ज्यादा बातें करने लगे, प्राय: हम भाई-बहनों को खुद पढ़ाते भी थे



                          हम-क़दम का नया विषय

                                             यहाँ देखिए

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

12 टिप्‍पणियां:

  1. कोरोना के माध्यम से प्रकृति ने मनुष्य को यह आभास कराया है कि सर्वशक्तिमान तुम्हारा विज्ञान नहीं मैं हूँ। लोग एक दूसरे को देखकर कतराते थे, समयाभाव बताते थे, आज कोरोना ने उनकी यह भी इच्छा पूर्ण कर दी। उसने मनुष्य को भरपूर समय दे दिया है, परंतु वह चाह कर भी एकदूसरे के करीब नहीं जा पा रहा है।

    सच कहूँ, तो भूमिका ऐसी ही होती है -" गागर में सागर।"

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की इस सारगर्भित व सार्थक प्रस्तुति हेतु आदरणीय रवीन्द्र जी को शुभकामनाएँ ।
    बेहतरीन संकलन है यह। इसी मध्य मेरी रचना भी रखने हेतु आभार।
    आजकल मैं फेसबुक से दूर हूँ । वस्तुतः मैंने कतिपय कारणों से अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सिर्फ ब्लॉग या मेरे whatsapp no.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
    सहयोग हेतु आभारी हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुति
    भारत का बच्चा-बच्चा जान गया है कोरोना को बारे में
    अब उनको भय नहीं लगता
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी शब्दों में कहते थे सब एक से हैं लेकिन जो जिस पद पर था उसी मद में था.. प्रकृति समझा रही है वक़्त है प्रायश्चित कर लो..

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. सुधार....

    आजकल मैं फेसबुक से दूर हूँ । वस्तुतः मैंने कतिपय कारणों से अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ ब्लॉग या मेरे whatsapp no.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!रविन्द्र जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति रविन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    आपने तो चंद पंक्तियों में कोरोना का पूरा हाल बयां कर दिया। लाजवाब भूमिका संग शानदार प्रस्तुति 👌
    सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उत्क्रष्ट। सभी को हार्दिक बधाई। इन लाजवाब रचनाओं के मध्य मेरी पंक्तियों को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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