आपसभी का
स्नेहिल अभिवादन
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इस बार हमक़दम का विषय था
एक चित्र
कुछ नहीं होता
चूल्हे जलते हैं
संसार की क्षुधा मिटाने के लिए।
★
भूख के एहसास पर
आदिम युग से
सभ्यताओं के पनपने के पूर्व
अनवरत,अविराम
जलते चूल्हे...
जिस पर खदकता रहता है
अतृप्त पेट के लिए
आशाओं और सपनों का भात,
जलते चूल्हों के
आश्वासन पर
निश्चित किये जाते हैं
वर्तमान और भविष्य की
परोसी थाली के निवाले
उठते धुएँ से जलती
पनियायी आँखों से
टपकती हैं
मजबूरियाँ
कभी छलकती हैं खुशियाँ,
धुएँ की गंध में छिपी होती हैं
सुख-दुःख की कहानियाँ
जलती आग के नीचे
सुलगते अंगारों में
लिखे होते हैं
आँँसू और मुस्कान के हिसाब
बुझी आग की राख में
उड़ती हैंं
पीढ़ियों की लोककथाएँ
बुझे चूल्हे बहुत रूलाते हैं
स्मरण करवाते हैं
जीवन का सत्य
कि यही तो होते हैं
मनुष्य के
जन्म से मृत्यु तक की
यात्रा के प्रत्यक्ष साक्षी।
#श्वेता
....
कालजयी रचनाएँ
उदाहरणार्थ दी गई रचना
कुमार कृष्ण
जलता है मानचित्र
लोकतन्त्र का
फ्रेम से गिरकर
बाहर निकल आती
आजादी की उपेक्षित तस्वीर।
बहुत बार देखा है उसने देश को
रोटी की तरह रंग बदलते
बौनी दीवारों पर उसके
पकता है हर रोज
पूरा देश
देश....
जो नहीं कुछ और
रोटी के ठण्डे टुकड़ों की
बाबा नागार्जुन
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
ऋषभ देव शर्मा
चिकनी पीली मिट्टी को
कुएँ के मीठे पानी में गूँथ कर
बनाया था माँ ने वह चूल्हा
और पूरे पंद्रह दिन तक
तपाया था जेठ की धूप में
दिन - दिन भर
★★★★★
चिट्ठाजगत
से कालजयी रचनाएँ
★
आदरणीय ज्योति खरे सर
कोई आयेगा
आदरणीय विश्वमोहन जी
गरीबन के चूल्हा चाकी
ब्रह्मपिशाच!
गोबर्द्धन-बिलास!अबकी गले
का अटकाये हो!
सखी सलेहर संग,गरीबन के चूल्हा चाकी
दिखाने आये हो।
...............
नियमित रचनाएँ
..................
आदरणीय आशा सक्सेना
गृहणी
सांझ उतरते ही आँगन में
दिया बत्ती करती
और तैयारी भोजन की |
चूल्हा जलाती कंडे लगाती
लकड़ी लगाती
आदरणीय शुभ मेहता
आग
आग चूल्हे की हो
या पेट की...
एक जलती है
तब दूसरी बुझती है
और चूल्हा जलता कब है?
पूछो उन मजदूरों से .. ....
आज बोल कर गया था
आदरणीय साधना वैद
चूल्हा
चूल्हे के नाम से ही
माँ याद आ जाती हैं
रसोईघर में चूल्हे के पास पटे पर बैठीं
साक्षात अन्नपूर्णा सी माँ !
जलती लकड़ियों की आँच से तमतमाया
उनका कुंदन सा दमकता चेहरा,
माथे पर रह रह कर उभरते श्रम सीकर,
आँखों में अनुपम अनुराग और
चहरे पर तृप्ति की अनुपम कांति !
आदरणीय सुजाता प्रिय
बेचारा चुल्हा
चुल्हे में आग जलता है और चुल्हे को जलाता है।
पर, बेचारा चुल्हा कुछ भी तो नहीं कह पाता है।
क्योंकि उसे जलना है बस भोजन पकाने के लिए।
और उसे तपना है सभी चीजों को तपाने के लिए।
आदरणीया रितु आसुजा जी
जीवन का सार अग्नि
अभिलाषा चौहान
हे मजदूर
दबा के चंद सिक्के मुट्ठी में
बिना किसी चाह व शंका के
तुम अपना चूल्हा जलाते हो
न तुम्हें चिंता पद की न रूतबे की
न दिखावे की न किसी चोरी की
दिनभर अथक परिश्रम बस
बिना किसी तृष्णा के
बिना किसी लोभ के
कितनी मीठी नींद सो जाते हो
★★★★★★★
भूख के एहसास पर
जवाब देंहटाएंआदिम युग से
सभ्यताओं के पनपने के पूर्व
अनवरत,अविराम
जलते चूल्हे...
जिस पर खदकती रहती हैं
अतृप्त पेट के लिए
आशाओं और सपनों की भात,
जलते चूल्हों के
आश्वासन पर
शानदार लेखन..
साधुवाद..
सादर.
बेजोड़ भूमिका के संग सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसदा स्वस्थ्य रहें
स्वेता जी नमन सुन्दर संकलन चूल्हा और चूल्हे में जलती अग्नि ,चूल्हा में आग जलती है जब तब पेट की आग बुझती है । सभी रचनाएं सर्वोत्तम ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरे द्वारा लिखित रचना को अपने लिंक में स्थान देने के लिए
" बुझे चूल्हे बहुत रूलाते हैं " - जैसी पंक्तियों से गुँथी रचना के आगाज़ संग चंद कालजयी रचनाओं से सुसज्जित हमक़दम अंक के आज की कई अन्य इंद्रधनुषी रचनाओं वाली चौंकाती प्रस्तुति के साथ मेरी रचना/विचार को साझा करने के लिए आपका आभार ...
जवाब देंहटाएंहम कदम की उम्दा लिंक्स|मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंवाह!श्वेता ,बहुत खूबसूरत भूमिका संग सुंदर प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार सखी 🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को इसमें स्थान दिया, आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे सखी !
जवाब देंहटाएंहमकदम का लाज़बाब अंक ,बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबुझी आग के राख में
जवाब देंहटाएंउड़ती है
पीढ़ियों की लोककथाएँ
बुझे चूल्हे बहुत रूलाते हैं
स्मरण करवाते हैं
जीवन का सत्य .....सुंदर भूमिका से सजा संकलन।
बेहद सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन व उम्दा प्रस्तुति
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