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रविवार, 12 अप्रैल 2020

1731...खिंच गयी थी मेरे दिल पर भी एक गहरी लकीर...

सादर अभिवादन। 


करोना काल है 
विकट महामारी 
भारत के 
मीडिया में 
छायी 
फ़र्ज़ी ख़बरों से 
दुनिया भी हारी। 
-रवीन्द्र 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-


निज स्वार्थ 
सिद्धि में 
जब भाई को मारने 
भाई ही लाक्षागृह 
सजायेगा 




खिंच गयी थी मेरे दिल पर भी एक गहरी लकीर
जब बँटवारे के प्रस्ताव को अंजाम देने की खातिर


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इस स्थिति में समाज में एक सकारात्मक पक्ष बड़ी तेज़ी से उभरता है - बीमारी से लड़ने के लिए हर स्तर पर अनुसंधान, शोध, अन्वेषण और नवाचार तथा नये प्रयोगों की दिशा में तेज़ी। समाज में  वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, रसायन-शास्त्रीऔर तकनीशियन जैसे शिक्षित विशेषज्ञ वर्ग अपने क्षेत्र में नेतृत्व की कमान सम्भाल लेते हैं और आम तौर पर रोड़े अटकाने वाला लालफ़ीताशाह वर्ग सहयोगी की भूमिका में जाता है। समाज के दबाव के आगे रोड़े  अटकाने वाले जो नौकरशाही के नुस्ख़े होते हैं, बेअसर हो जाते हैं।




इस बार यह तय पाया गया था कि होटल में ''चेक इन'' करने से पहले कोचीन दर्शन किया जाएगा ! यह शायद हमारे ट्रिप आयोजक #Riya_Travel की चूक थी कि उनको इस बात का ध्यान नहीं रहा कि शुक्रवार होने की वजह से सारे मुख्य चर्च और सिनागॉग बंद थे ! मायूसी होना लाजिमी था, कुछ गर्माहट भी आई इस लापरवाही पर, परंतु जल्दी ही सब नॉर्मल हो गया और कोचीन तट पर पुराने समय से प्रयोग में चले रहे मछलियां पकड़ने वाले जालों को देखने अग्रसर हो गए !



प्रकाश ने अपना पक्ष रखा। दर्द भी रुतबे से बाँटना चाहा। नम आँखों का पानी आँखों को ही पिला दिया। 
"पत्नी,बच्चे,परिवार और समाज हमारी ज़िंदगी नहीं, हम देश के सिपाही हैं; वो आप से जुड़े हैं और आप देश से। समझना-समझाना कुछ नहीं, विचार यही रखो कि हम चौबीस घंटे के सिपाही हैं और परिवार हमारा एक मिनट!"



     सचमुच वह बहुत काली अंधेरी रात थी जब भूख से आतंकित कई गाँव मजबूरी और बेबसी की गठरी उठाए पलायन कर गए। दिल्ली के अमीर घरों ने प्रधानमंत्री फ़ंड में पैसा जमा करवाया और चादर तान ली, यह भी नहीं सोचा कि उस पैसे की रोटी बनने में वक्त लगेगा, और बन भी गई तो कितने दिन लगेंगे भूखे पेट तक पहुंचने में... भूख कब तक बर्दाश्त होगी? कोई तो बताए?




अब बारी है विषय की
हम-क़दम का 15 वाँ अंक 
लघुकथा
आपको लघुकथा लिखनी है। 
प्रेरणा इस अंक की पहली रचना पढ़कर लें
अंतिम तिथिः 11 अप्रैल 2020
प्रकाशन तिथिः 13 अप्रैल 2020
ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा ही मान्य। 


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आभार भाई
    बढ़िया रचनाए चुनी
    जल्दबाजी में
    भा गई...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. हर कोई प्रयत्नशील है मुकाबले के लिए
    दिल्ली का दिल हुआ लॉक डाउन
    एक अभिनव प्रयास
    सादर नमन सुनीता दीदी को
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सबको नमस्कार बहुत अच्छा लग रहा है एक अरसे बाद लौट कर जैसे मायके आ गए हैं 🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमन सर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन ! मेरी रचना को आज की हलचल का हिस्सा बनाने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  6. करोना काल है
    विकट महामारी
    भारत के
    मीडिया में
    छायी फ़र्ज़ी ख़बरों से
    दुनिया भी हारी!
    बहुत खूब आदरणीय रवीन्द्र भाई ! सच है जितना कोरोना खतरनाक है उतनी ही ये फेक खबरें | पर खाली दिमाग शैतान का घर | ये फर्ज़ीवाडे उन्हीं खाली दिमागों की उपज हैं | पर लोग बहुत समझदार हो गये हैं | उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान है | आज के सुंदर संकलन की सबसे बड़ी खूबी है, दमदार गद्य रचनाओं का एक मंच पर एक साथ संकलन | आखिर कविता से कमतर आंका जाता है प्राय गद्य को जबकि गद्य लिखना और पढ़ना रचनात्मकता और चिंतन को विस्तार देता है | पर इसका अर्थ ये नहीं कवितायेँ अच्छी नहीं | दोनों काव्य रचनाएँ बेमिसाल हैं | पर आग्रह है इस प्रतिष्ठित मंच पर -- गद्य विधा को भी समानांतर महत्व मिलना चाहिए | इस दिशा में हमकदम का लघु कथा के रूप में नया कदम सराहनीय है |सभी रचनाकारों को सादर नमन और आपको बधाई इस प्रस्तुती के लिए | सादर --

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति में मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर.
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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