यों तो किसी भी विधा को ठीक-ठीक परिभाषित करना कठिन ही नहीं लगभग असंभव होता है, कारण साहित्य गणित नहीं है, जिसकी परिभाषाएं, सूत्र आदि स्थायी होते हैं। साहित्य की विधाओं को परिभाषा स्वरूप दी गयी टिप्पणियों से विधा के अनुशासन तक पहुँचा जा सकता है किन्तु उसे उसके स्वरूप के अनुसार हू-ब-हू परिभाषित नहीं किया जा सकता। लघुकथा भी इस तथ्य से भिन्न नहीं है। इसका कारण यह है कि साहित्य की कोई भी विधा हो समयानुसार उसमें परिवर्त्तन होते रहते हैं, यह परिवर्तन विधा के प्रत्येक पक्ष के स्तर पर होते हैं। लघुकथा की भी यही स्थिति है। फिर भी लघुकथा के अनुशासन तक पहुँचने हेतु अनेक विद्वानों ने इसे परिभाषित करने का सद्प्रयास किया है। ★★★★★
एक जनहित की संस्था में कुछ सदस्यों ने आवाज उठाई, 'संस्था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए।
शेखर भाई ,मेरा तो अंत समय आ गया हैं.....तुम मुझ पर एक एहसान करना ...तुम मेरी माँ तक मेरा एक संदेश पहुँचा देना....माँ से कहना - तुम ने सच कहा था माँ - " आज मातृभूमि पर न्योछावर होकर... उसकी गोद में सोकर... जो सुख मिल रहा हैं उस पर कई जीवन कुर्बान हैं " - दीपक गहरी साँस लेते हुए बोला।
दोनों दल ने जमकर मार- पीट एवं हाथा-पाई हुई।किसी ने पुलिस को फोन कर दिया।पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लियाऔर सभी ने बचाने वाले लड़के को शाबाशी दी।
मानसी ने देखा उन्हें बचाने वाले लड़के कोई और नहीं मयंक और उसके साथी थे। वह अजीव उलझन में पड़ गईं।जिसे वह वहसी हैवान समझती थीं,वह उनका रखवाला बना और जिसपर पूरा विश्वास करती थी वह बहसी और दरिंदा निकला।
मानसी ने रुंधे गले से कहा-मैं तुम्हारा कर्ज जीवन भर नहीं चुका सकती मयंक।
मास्टर जी का नाम सुनकर रानी की मुट्ठियाँ भिंचने लगी ,क्रोध से चेहरा तमतमा उठा । बोली ..उसे कैसे भूल सकती हूँ ...बदमाश कहीं का । कैसी -कैसी हरकतें करता था ..हमेशा मुझे छूने की कोशिश रहती थी उसकी ,मन करता है जाकर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करूँ ..
“जाने कौन सी किस्मत लिखा कर लाये हैं अपने कपाल पर ! ना काम का ठिकाना ना रोटी का, ना दवा दारू की कोई जुगत ना बच्चों के सर पे छत ! ऐसी जिंदगानी से तो मौत ही भली ! कोई गाड़ी ही ठोक जाए तो शायद कुछ दिन के लिए बच्चों के लिए रोटी पानी का जुगाड़ हो जाए !”
पूरी दुनिया और उसके कायदे जानते हो ... हां ... हां ... बोलो ना... प्रो.साहब ने सोचा...ससुर क्या पूछेगा... कोरोना महामारी से कब मुक्ति मिलेगी...या...यूनिवर्सिटी कब खुलेगी...वगैरह...वगैरह...आप हर सब्जी और फल की गारंटी तो पूछ रहे हो... प्रो.साहिब इंसान की भी आज कोई गारंटी है क्या...यह सुनते ही प्रोफेसर त्रिपाठी नि:शब्द हो गए... आनन - फानन में एक झ्टके में थैला उठाया और घर की ओर तेज - तेज कदमों से कूच कर गए
खिंच रही थी घर में दीवार। पर बटवारा होता कैसे संभव। अचानक बटवारा रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था तब।एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे।
उस दिन सच्चाई सामने आई। घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से आश्रित थे। बिलकुल असमर्थ कोई काम न कर पाते थे। बुढ़ापे से जूझ रहे थे। प्रश्न था कौन उन्हे सम्हाले ?
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
''क्या बताऊं बेटा, उसकी सास तो बहू को नौकरानी से भी बदतर समझती हैं। अब कामवाली नहीं आ रही हैं तो अकेली जान कितना काम करेगी?'' इतना बोलते ही शायद सास को अपनी गलती का एहसास हो जाता हैं। इसलिए विषयांतर करते हुए वो प्रमोद से बोली, ''आलूओं में स्टार्च होता हैं इसलिए उनको काटने के बाद पानी में डालना। शिल्पा, आज पोहे मैं बनाती हूं। वैसे भी तेरे ससुरजी कह रहे थे की आज उन्हें मेरे हाथ के बने पोहे खाना हैं।'' मम्मी में आया सुखद बदलाव देख कर प्रमोद शिल्पा की ओर देख कर मंद-मंद मुस्कराने लगा।
" हेलो .. सर ! एक वेब सीरीज बनने वाली है .. आप इसमें ... चाय वाले चाचा का रोल किजिएगा .. !? " - लगभग एक साल पहले एक दिन शाम के लगभग 8.15 बजे आम दिनचर्या के अनुसार ऑफिस से आकर फ्रेश हो कर अगले रविवार को होने वाले एक ओपेनमिक (Openmic) के पूर्वाभ्यास करने के दौरान ही बहुत दिनों बाद ओपेनमिक के ही युवा परिचित 18 वर्षीय आदित्य द्वारा फोन पर यह सवाल सुन रहा था।
उसके सवाल में एक हिचक की बू आ रही थी। उसके अनुसार शायद एक मामूली चाय वाले के अभिनय के लिए मैं तैयार ना होऊं। पर मेरा मानना है कि अभिनय तो बस अभिनय है, चाहे वह किसी मुर्दा का ही क्यों ना करना हो।
अब वह घर के अंदर घुसा, वहां उसका पोता अकेला खेल रहा था, देखते ही जीवन में पहली बार उसकी आँखें क्रोध से भर गयीं और पहली ही बार वह तीक्ष्ण स्वर में बोला, "कहाँ गये सब लोग? कोई बच्चे का ध्यान नहीं रखता, छह महीने का बच्चा अकेला बैठा है।"
और उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके पैरों में उसके पिता के जूते हैं।
वाह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति श्वेताा । विधा बदलने से अंक में निखार गया। बहुत ही सराहनीय प्रणाम। सभी रचनाएँ बेहतरीन लग रही हैं । बारी-बारी से सभी को बढ़ता हूँ।धन्यवाद।
देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ प्रिय श्वेता | इतना सुंदर अंक था कि लिखे बिना ना रह सकी | चन्द्रेश जी की लघुकथा के हुनर से आज परिचय हुआ वाचन कला और कथा के भाव मनको छूने वाले थे| सभी रचनाकारों ने खूब लिखा | सुबोध जी का प्रयास कमाल है | विभादीदी का शोध परक लेख लघुकथा के जिज्ञासुओं के लिए अमृत तुल्य है | मैं भी खूब ध्यान से एक बार और फुर्सत में पढना चाहूंगी | सभी को जरुर पढ़ना चाहिए | सभी रचनाकारों को सादर नमन | और सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
टिप्पणीकारों से निवेदन
1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं। 2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें। ३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें . 4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो। प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।
वाह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति श्वेताा । विधा बदलने से अंक में निखार गया। बहुत ही सराहनीय प्रणाम। सभी रचनाएँ बेहतरीन लग रही हैं । बारी-बारी से सभी को बढ़ता हूँ।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ सभी को
जवाब देंहटाएंबदलाव अच्छा है
अभी शान्ति के आसार नहीं है
जो हुआ अच्छा हुआ
जो होगा इससे अच्छा ही होगा
शुभ हो मंगल हो
सादर
मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता दी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्वेता जी मेरी रचनाओं को शामिल करने के लिए आज के अंक में |
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत अंक । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार । अब बारी-बारी से सभी रचनाओं को पढने की बारी ....।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन ! मेरी लघुकथा को आज की हलचल में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंहमकदम का एक सुंदर प्रयास ,बेहतरीन लिंकों से सजा सुंदर प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया विशेषांक ! मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभारी हूं!
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक!
जवाब देंहटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ प्रिय श्वेता | इतना सुंदर अंक था कि लिखे बिना ना रह सकी | चन्द्रेश जी की लघुकथा के हुनर से आज परिचय हुआ वाचन कला और कथा के भाव मनको छूने वाले थे| सभी रचनाकारों ने खूब लिखा | सुबोध जी का प्रयास कमाल है | विभादीदी का शोध परक लेख लघुकथा के जिज्ञासुओं के लिए अमृत तुल्य है | मैं भी खूब ध्यान से एक बार और फुर्सत में पढना चाहूंगी | सभी को जरुर पढ़ना चाहिए | सभी रचनाकारों को सादर नमन | और सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लघुकथाओं से सजा विशेषांक ।
जवाब देंहटाएंसभी लघुकथाएं बही सुन्दर...।मुझे तो पढते-पढते दो दिन लग गये
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।