शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का
स्नेहिल अभिवादन
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सुनो कवि!
मात्र दुःख शब्द
छू भर देने से
दर्द भरे पके घावों से
नहीं टपकते आँसू,
न ही मापी जा सकती है
और न गढ़ी जा सकती है
दुःख की पूरी परिभाषा...
और न ही सुख कहने से
जीवन के बुझे रंग
खिलखिला उठते हैं,
न ही तृप्त हो जाते हैं
तृषित हृदय,
क्योंकि संसार के
प्रत्येक प्राणी के द्वारा
दुःख-सुख की परिभाषा
परिस्थितियों के आधार पर
अनुभूति की जाती हैं
परंतु
विशेषज्ञों द्वारा
वर्गीकृत होती है
अलग-अलग
समय पर महसूस की गयी
भावनाओं के
विश्लेषण के
आधार पर...
हर बार गढ़ी जाती है
सुख-दुःख की
नवीन परिभाषा।
©श्वेता
★★★★
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते है-
★
हर राह पर मैंने
अपना कद नापा है
मापा है अपना वजन
मेरी उपस्थिति से ज्यादा
भयावह है
मेरा अहसास
पर मैं कभी नहीं समा पायी
लोगों के दिलों की
छोटी सी जिन्दगी में
मुझे हमेशा
फेंक दिया गया
अफसोस की खाई में
★
हत्यारे के घर में चाय-पानी
उस घर में दिखी
पूछ रही थी-
★
देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हो नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं।
देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हो नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं।
★
बरखान ने हवा को इस बार उसी दिशा में धकेल दिया फिर उसी दिशा में जिधर से वह आयी थी, ग़ुस्से में हवा ने अपना रुख़ बदला। बालू को आग़ोश में लिए एक बवंडर उठा,अब गर्त को अपना स्वरुप प्राप्त हुआ वह भी सभा में सहभागिता जताता है।
"समझ के वारे-न्यारे पट खुले हैं मानव के।क्या दिखता नहीं रण को कैसे हवा हमें खिसकाती है
★
और चलते-चलते
वाह .. वाह ...
वाह्ह्ह्ह् री .. हवा !!! ...
हवा निकाल दे कोई बुद्धिजीवी किसी की
अतः उनके हवा से बातें करने से पहले
सोचा क्यों ना आज तुम्हीं से
बात कर लें हम रूबरू .. आमने-सामने
ऐ री हवा ! .. बतला ना जरा ..
अपनी दास्तान .. अपनी पहचान भला
जाति-धर्म बतला और .. अपना ठौर-ठिकाना
या है तू नास्तिक-अधर्मी या .. कोई बंजारा ? ... "
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आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया मनोबल
बढ़ा जाती है।
हमक़दम का विषय
कल का अंक पढ़ना न भूलें
कल आ रही हैं विभा दी
अपनी विशेष
प्रस्तुति के साथ।
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमात्र दुःख शब्द
छू भर देने से
दर्द भरे पके घावों से
नहीं टपकते आँसू,
न ही मापी जा सकती है
और न गढ़ी जा सकती है
दुःख की पूरी परिभाषा...
सादर....
दुख की घड़ी में भी किसी की चाँदी है
जवाब देंहटाएंतो सुख में भी कोई रो रहा होता है।
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
वाह!!श्वेता ,बहुत ही सुंदर भूमिका सह लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं"सुनो कवि!
जवाब देंहटाएंमात्र दुःख शब्द
छू भर देने से
दर्द भरे पके घावों से
नहीं टपकते आँसू,"
से लेकर
"हर बार गढ़ी जाती है
सुख-दुःख की
नवीन परिभाषा।"
तक ...
एक दर्शननुमा भूमिका के उपकर्म के साथ कई स्तरीय रचनाओं के बीच मेरी रचना/विचार को स्थान देने और उसकी किसी पंक्ति को आज की प्रस्तुति का उन्वान बनाने के लिए मन से आभार ...
खूबसूरत प्रस्तुति ! बेहतरीन लिंक संयोजन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा. धन्यवाद श्वेताजी.
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर उम्दा लिंक संकलन शानदार प्रस्तुतीकरण... सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंवाह! कवि को संबोधित विचारणीय भूमिका के साथ शानदार रचनाओं का संकलन. सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंआज की सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार प्रिय श्वेता दीदी.
बहुत कमाल की भूमिका के साथ रचनाओं का सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मिलित करने का आभार
विचारणीय एवं विमर्शयोग्य भूमिका के साथ सामयिक चिंतनशील रचनाओं से सुसज्जित सराहनीय प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को इस प्रतिष्ठित पटल पर प्रदर्शित करने हेतु सादर आभार श्वेता जी।
सार्थक भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुती प्रिय श्वेता | सार्थक रचनाओं का संकलन बढ़िया है | सभी रचनाकारों को नमन | सस्नेह -
जवाब देंहटाएंभूमिका में श्वेता आपकी रचना लाजवाब है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंक चयन।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।