निवेदन।


फ़ॉलोअर

मंगलवार, 31 मई 2022

3410 ...व्यथा का तम और कितना सघन होगा?

सादर अभिवादन.....
आज मई माह का आखिरी दिन
आज धूम्रपान निषेध दिवस
आप इस दिवस को पूरे 365 दिन मनाइए
शर्तिया आप कैंसर से बचे रहेंगे
अब रचनाएँ ......



व्यथा का तम
और कितना
सघन होगा?
अँधेरे-उजाले के मध्य
प्रतीक्षा के पर्वत के छोर पर





किसी पर भी उठ जाते है
ये अपने हाथ संभाल लो

दूर तलक जाने से पहले
घर पे ही बात संभाल लो




प्रकाश और रंगों के फ़रेब से
बनी हुई कोई कलाकृति या धीरे – धीरे
कोई क़ातिल सीने में उतार रहा हो
खंजर कोई प्रतिबिम्ब सुनहरा सा -




बनारस की एक गली में चीखते-चिल्लाते लड़कों का एक झुण्ड करीब आ रहा था। आगे-आगे एक विक्षिप्त बुढ़िया भागे जा रही थी। लड़के पास आते तो वह जमीन से उठाकर झुण्ड की ओर एक पत्थर फेंकती, लड़के बचते हुए जोर से चीखते...आधी रोटी चोर




पीत वर्णी पुष्प दल से
वृक्ष दल शोभित भले
रम्य मोहक रूप मंजुल
काँति पट दीपक जले।
ग्रीष्म ऋतु में मुस्कुराते
सूर्य सी आभा झरे
जब चले लू के थपेड़े
आँख शीतलता भरे
राह चलते राहगीर को
धूप में पंखा झले।।
.....
आज बस
सादर

सोमवार, 30 मई 2022

3409...../ वक़्त का जवाब ...

 

नमस्कार !   आपकी ख़िदमत  में  हाज़िर हूँ , आखिर आज सोमवार है न  । आज आप सबके लिए एक सूचना ले कर आई हूँ । रविन्द्र प्रभात जी एक जाने माने ब्लॉगर रहे हैं । उन्होंने परिकल्पना की शुरुआत  की थी । प्रति वर्ष किसी न किसी ब्लॉगर को अलग अलग विधा में अलग अलग पुरस्कार भी मिलते रहे हैं । अब उनकी योजना है कि एक परिकल्पना कोश बनाया जाय जिसमे ब्लॉग और ब्लॉगर्स के नाम दर्ज़ हों , यानि कि ऐसा कोश जहाँ सभी ब्लॉगर्स  का  अता- पता मिल जाये । रश्मि प्रभाजी  को ब्लॉग्स के लिंक इकट्ठे करने का काम सौंपा गया है । उनकी तरफ से ये सूचना मैं यहाँ लगा रही हूँ -


परिकल्पना कोश के निर्माण के प्रथम चरण में 
पिछले तीन दशक में ब्लॉग पर शानदार उपस्थिति दर्ज कराने वाले ब्लॉगर बंधुओं को रेखांकित करने का कार्य शुरू करते हैं।

इसमें शामिल होने के लिए कृपया अपने नाम के साथ ब्लॉग का नाम,कब बनाया, उद्देश्य क्या था लिखकर और साथ में ब्लॉग के किसी खास पोस्ट के साथ rasprabha@gmail.com पर यथाशीघ्र भेजें ।

यहाँ कुछ बातें स्पष्ट कर दूँ कि

 1 -ये कार्य ब्लॉग्स को एक जगह एकत्रित करने का है । 
2- पोस्ट जो भेजी जाय वो छोटी होनी चाहिए । यदि लम्बी पोस्ट है तो केवल लिंक भेजें । 
3 - प्रयास करें कि 10 दिन के अंदर ही अपने ब्लॉग के बारे में जानकारी दे दें । 
यदि किसी को और कुछ जानकारी चाहिए तो कमेंट में पूछ सकते हैं । जवाब भी आपको  अगले दिन यहीं कमेंट में मिलेगा । 

चलिए अब चलते हैं आज की प्रस्तुति पर ---

सबसे पहले एक प्रश्न  - अपने समाज से ...... शहीदों की शहादत पर हम देते उनको सम्मान , करते  नमन लेकिन उसकी मन से वीर पत्नी  का ये कैसा तिरस्कार ?   अनीता जी प्रश्न कर रही हैं ....... 

आख़िर क्यों ?


अकेलेपन के माँझे में उलझी
 ज़िंदगी   से   करती  तक़रार
नहीं  वह  लाचार, 
समाज  के  साथ  चलने   का,
हुनर  तरासती  शमशीर  रही वह |


सोच कर देखिएगा तो पायेंगे  कि ये वीर पत्नियाँ ही सैनिकों की वीरता की धुरी हैं .... वैसे ही शहीद की पत्नी के लिए जीवन में रिक्तता आ जाती है ...... समाज और उसे रिक्तता की और धकेल देता है .......जीवन में न जाने  कहाँ कहाँ  रिक्तता  का एहसास हो जाये ये कहा नहीं जा सकता .... अब देखिये पुरुषोत्तम जी को की उनको क्या रिक्त दिख रहा है .....


रिक्त क्षणों में, संशय सा ये जीवन,
उन दिनों में, सूना सा आंगन,
लगे गीत बेगाना, हर संगीत अंजाना,
इक मूरत सा, आकाश!

जहाँ तक रिक्त होने की बात है तो बहुत से लोग सोच से भी खाली होते हैं ..... जैसे वो वक़्त को झुठला देना चाहते हैं ....... लेकिन  कुछ बिना कुछ कहे अपने दृढ निश्चय पर अडिग रहते हैं  , और वक़्त ही अपने आप जमाने को जवाब दे देता है ........ आप भी पढ़िए कैसे ?  उषा जी की लघुकथा में .... 

बाबूजी के सामने पेशी हुई- " अरे बहू , हमारी सात पुश्तों में किसी बहू ने नौकरी नहीं की,क्या कहेंगे सब कि बहू की कमाई खा रहे हैं, नाक कट जाएगी !” शुभदा ने किसी तरह उनको समझाया कि नहीं कटेगी नाक।

आज स्त्री सशक्तिकरण  का ज़माना है और  फिर भी ये नाक कटने की बात  ............... नहीं जी आज तो स्त्री  वेद पुराणों   में भी परिवर्तन  की अभिलाषी है ..... नहीं है क्या ऐसा ?   हाथ कंगन को आरसी क्या ?  पढ़िए    ऋता शेखर  मधु की ये रचना .....



इतने सारे रूप हैं
सिर्फ़ नारियों के लिए
किन्तु ये सारे रूप
कहाँ तय किए गए
वेद-पुराण और ग्रंथों में !!
किसके द्वारा तय किए गए
पुरुषों के द्वारा न !!

वैसे कहा तो आपने सच ही है ..... पुरुषों ने अपना वर्चस्व ही कायम किया है ..... अब सच और झूठ में भला कौन अंतर कर  पाता है ?  क्यों की  झूठ  ही तो सच का बाना पहन सामने आता है ........ नहीं विश्वास न तो लीजिये पढ़िए .....विभा नायक जी की रचना .... 


बहुत घमंड है न सच के अमर होने का तुम्हें?

तुम देखना मैं उसे कुछ ऐसा कर जाऊँगा

कि वो ज़िंदा तो रहेगा पर कर कुछ नहीं पाएगा

पंगु कर जाऊँगा मैं उसे ऐसा

कि अपने अस्तित्व को वो समझ ही नहीं पाएगा | 


यहाँ तो झूठ   ही सच को धमका रहा ....... यूँ ज़िन्दगी में न जाने कब और कौन कौन सी घटनाएँ  घटित होती हैं जो धमकियों से कम नहीं होतीं ......  ऐसे  ही ब्लॉगस  पर  घूमते घूमते एक पोस्ट मिली थी .........  जिसे मैंने सहेज लिया था  आप सबको पढवाने के लिए ...... पोस्ट थोड़ी लम्बी होते हुए भी ज़िन्दगी को समझने के लिए  ज़रूरी है ........ लेखन इतना कमाल का है कि  आप बीच में तो छोड़ ही नहीं सकते ...... अब इसके लेखक कौन हैं आप उनके ब्लॉग पर ही जा कर देखें .... 

स्कैच -- तीन मित्र तीन बात


कुछ रुकने के बाद वह फिर बोली --- भैया ! एक क्लब भी हमारे बीच झगड़े का बहुत बड़ा कारण है |  सच मेरी क्लब विलब में कोई रूचि नहीं है | पर ये अपना स्टेट्स बढ़ाने के लिए मुझे रोज अपने साथ क्लब ले जाना चाहते हैं | कहते हैं जब तुम धारा प्रवाह इंगलिश में सबसे बात  करती हो ना तो कुछ अधिकारियों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है |


देखिये किस तरह से पति लोगों पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए पत्नी को एक औज़ार की तरह प्रयोग करता है ...... 
अब विवाद कहीं भी हो .... घर में ...... या राजनीती के गलियारे में  या फिर कोई धार्मिक विवाद ही क्यों न हो  उसका असर और लोगों पर भी पड़ता है ...... आज कल तो वैसे भी किसी ने मुँह खोला नहीं कि झट से अंधभक्त होने का तमगा मिल जाता है ....... फिर भी कुछ लोग खरी खरी कह ही देते हैं ...... और ये खरी खरी पढने के लिए  बस्तर  की अभिव्यक्ति जैसा कोई ब्लॉग नहीं ....... आइये देखते हैं आज क्या  और किसका समाधान लाये हैं .....

सुश्री अम्बर जैदी ने अपने खुले मंच पर “मंदिर-मस्ज़िद विवाद के समाधान” पर लोगों के विचारों का आह्वान किया है। भारत के गिने-चुने राष्ट्रवादी मुसलमानों में सौम्य स्वभाव वाली अम्बर जैदी का अपना एक अलग स्थान है। बहुत से लोग उन्हें परिवर्तनकारी मानते हैं जो भारत के लिए आवश्यक है। 

धार्मिक-स्थलों का विवाद एक वैश्विक समस्या है। येरुशलम को लेकर यहूदियों और मुसलमानों में एक बार फिर ठन गयी है। हमें धार्मिक स्थलों के स्पिरिचुअल या रिलीजियस नहींबल्कि सांसारिक स्वरूप पर विचार करना होगा।

इतनी बड़ी समस्या का यदि इतनी सरलता से समाधान हो जाए तो बात ही क्या ? ..... अब आप लोग दिए हुए लिंक्स पर पहुँच मेरी  मेहनत  को सफल करें ..... और यदि कोई सुझाव हो तो अवश्य दें ...... स्वागत है ..... 

मिलते हैं फिर ......... अगले सोमवार को .... तब तक के लिए  नमस्कार .....

संगीता  स्वरुप 











रविवार, 29 मई 2022

3408....तुमने मुझको जन्म दिया "माँ" इस मिट्टी ने पाला है। 



जय मां हाटेशवरी ......

सोचा,बेटी,जो बड़ी हो गई थी,
उससे ख़ूब बातें करूंगा,
सालों बाद फ़ुर्सत मिली थी,
सालों की क़सर पूरी करूंगा.
अचानक वह अंदर से आई
और सर्र से निकल गई,
अब जब मेरे पास फ़ुर्सत थी,
उसके पास वक़्त नहीं था.

 


बोली, माटी का कर्ज़ चुकाओ
मातृभूमि के लाल कहलाओ।
आँचल तेरा छूट गया "माँ"
छूटा गाँव, घर और चौबारा।
रोया था मैं फूट-फूट के
जिस दिन छूटा था साथ तुम्हारा।
तुमने मुझको जन्म दिया "माँ"
इस मिट्टी ने पाला है।
मातृभूमि का कर्ज़ चुकाना
तुमने ही तो सिखलाया है।


फिर उस लम्बी रस्सी पर फंदा बनने लगा और उस फंदे के बीच में अचानक से एक गर्दन आ गई और फंदे के नीचे एक शरीर बना और वह शरीर दर्द के मारे छटपटाने लगा।
“सत्यानाश हो उसका” , वह फंदे से लटकती आकृति को देखकर बुदबुदाया। वह कुछ इस तरह उस आकृति को देख रहा था जैसे वह खुद ही अपने हाथों से उस आकृति का गला दबा देना
चाहता हो। "क्या यह हमेशा मेरा पीछा करेगा? अच्छा हुआ उस मार दिया। इस कमीने की यही सजा होनी चाहिए थी। इसने मार्गरेट को  जान से...”
पर वह अपना वाक्य खत्म न कर सका। वह सफेद बलूत का पेड़ जो उसके सामने खड़ा था अब  वह ऐसे बढ़ता जा रहा था जैसे वह कोई ज़िंदा प्राणी हो। अचानक से तेज चटकने की आवाज़
हुई और फिर एक धमाका सा हुआ और कुछ देर बाद उस बड़े बलूत के पेड़ के नीचे वाल्टर स्टेडमैन का कातिल कुचला जा चुका था। उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
कुछ ही देर बाद टूटे हुए तने और ठूँठ के बीच से एक धुँधली सी मानव आकृति बाहर को कूदी । फिर वह आकृति उस आदमी की लाश के पास से भागती हुई उस रात के अँधेरे में
कहीं गुम हो गई।


 

कल क्या होगी कल पर छोड़ती हूँ । 
मगर आज मेरे हाथों  बक्से
में बन्द होती मेरे एकान्तिक क्षणों की  
संगिनी अपनी समग्रता के साथ 
उपालम्भ भाव से जैसे मुझ से सवाल करती  हैं -
बोली अबोली  ~
काहे चली बिदेस
निष्ठुर संगी ।

फिर शांति अचम्भित,विस्मित है
हो गयी
अहिंसा खण्ड-खण्ड
हे बामियान के बुद्ध देख,
स्त्री,बच्चों
लाचारों से
अब कापुरुषों का युद्ध देख,
बन शुंग,शिवाजी
गोविन्द सिंह,रण में
दाहिर को करो याद ।
बीजिंग,लाहौर
कराची का फिर
आँख मिचौनी खेल शुरू,
घर में सोए
गद्दारों का
षणयंत्र शत्रु से मेल शुरू,
इस बार
शत्रु का नाम मिटा
हो अंतरिक्ष तक सिंहनाद।


तुम्हारे पैरों की उंगलियों का चुंबन लेने के लिए मैं तड़प रहा हूं.
तुम कहती हो कि अगर कोई हमारे पत्र पढ़ ले तो क्या हो? 
ठीक है, पढऩे दो लोगों को और जलन महसूस करने दो।


सर्वप्रथम हम शब्दों पर ही गौर करेंगे। नारी को नारी, 
महिला और स्त्री इत्यादि शब्दों से नवाजा जाता है।   
नारी =  न + आ + र + ई ,  
नारी शब्द दो व्यंजन  न और र एवं दो स्वर आ एवं ई से बना है।
जब कि,
नर   =  न + र , नर शब्द सिर्फ दो व्यंजनों से बना है।
महिला  = मह + इला  से बना है। मह का अर्थ श्रेष्ठ या पूजा है। 
जो श्रेष्ठ और पूज्य है वो महिला है।
स्त्री - भाष्यकार महर्षि पतंजलि के अनुसार,
 'स्तास्यति अस्था गर्भ इति स्त्री'
अर्थात - "उसके भीतर गर्भ की स्थिति होने पर उसे स्त्री कहा जाता है।"

धन्यवाद।









शनिवार, 28 मई 2022

3407... वर्तिका

ई बुक 170 में उपलब्ध है

मैन बुकर पुरस्कार फ़ॉर फ़िक्शन जिसे लघु रूप में  बुकर पुरस्कार भी कहा जाता है, राष्ट्रकुल या आयरलैंड के नागरिक द्वारा लिखे गए मौलिक अंग्रेजी उपन्यास के लिए हर वर्ष दिया जाता है।

बुकर पुरस्कार की स्थापना सन् 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई थी। इसमें 60 हज़ार पाउण्ड की राशि विजेता लेखक को दी जाती है।
2008 वर्ष का पुरस्कार भारतीय लेखक अरविन्द अडिग को दिया गया था।

2022 का हिन्दी की जानी मानी लेखिका *गीतांजलि श्री* को इंटरनेशनल *बुकर* प्राइज़ मिला है।

वो हिन्दी की *पहली* लेखिका हैं जिन्हें ये पुरस्कार मिला है। ये पुरस्कार उनके उपन्यास ‘रेत समाधि‘ के *अंग्रेज़ी* अनुवाद ‘Tomb of sand’ के लिये मिला है। अनुवाद *डेज़ी रॉकवेल* ने किया है।


हाज़िर हूँ...! पुनः 
उपस्थिति दर्ज हो...

आओ खेलें खेल—-
41 वर्ष बाद हम फिर ले आए सोना।
नीरज चोपड़ा ने भाला फेंका
पुलकित हो गया कोना कोना।
इस ग्रह के हर हिस्से में औरत किसी न किसी
अपराध की शिकार होती ही है।
ज्यादा बड़ा अपराध घर के भीतर का जो
अमूमन खबर की आंख से अछूता रहता है।
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
तुम चप्पू भले चलाओ
घाट से बंधन नहीं खोल सकोगे 
उड़ान कितनी ऊँची कर लो
चरखी से डोर नहीं खोल सकोगे

>>>>>><<<<<<
पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

गुरुवार, 26 मई 2022

3405...ऊँची उड़ान है ध्येय मेरा...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में मेरी पसंदीदा पाँच रचनाएँ आपकी नज़र-

किसी से कुछ न चाहिए

ऊँची उड़ान है ध्येय मेरा

उसमें सफल रहूँ

हार का मुँह न देखूँ

बस रहा यही अरमान मेरा।

 बूंद

बूंद

तृप्त कर देती है अतृप्त मन को

सींच देती है

अपनत्व का बगीचा

बूंद

तुम्हारे कारण ही

धरती पर जिंदा है हरियाली

जिंदा है जीवन---

अमी प्रेम का

स्मृति इक जंजीर है

विकल्प इक आवरण

रिक्त हुआ जब घट बासी जल से

तब भर देता है अस्तित्व

अमी प्रेम का सुमधुर

एक घूँट पर्याप्त है

अलंकार

चीटीं को भी सरकने में दम घूंट रहा होगा इंसानों के बीच से। पहला दिन जेनरल फिजिशियन ने कार्डियोलॉजी में रेफर कर दिया। भीड़ के कारण नम्बर नहीं लग पाया। दूसरे दिन जाने पर चिकित्सक से भेंट हुई और जाँच शुरू हुआ। एक परेशान हितैषी का प्रवेश हुआ


दोस्ती किताबों से

मैं उनकी प्रतिक्रिया से बहुत प्रसन्न हुआ और आज मैंने उन्हें मुंशी प्रेमचंद जी का ही दूसरा उपन्यास "कर्मभूमि"और अपना ग़ज़ल-संकलन "दर्द का एहसास" पढ़ने के लिए दिए।

वह मुस्कुराते हुए मुझे धन्यवाद देकर चले गए।

*****

फिर मिलेंगे 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

बुधवार, 25 मई 2022

3404...क्यों रूठ गये सपने...

 ।।प्रातः वंदन ।।

"हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के

ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की

मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की

जो पूजा के फूल बेच दे खुले आम बाजारों में

मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ |

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ"

हरिओम पंवार

हिंदी साहित्य के वीर रस के सुप्रसिद्ध कवि आ० हरिओम पंवार जी के 71 वीं जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ..

चलिए प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते  हुए ..✍️













टूटे सपने

मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में,
रोज-रोज आ जाते थे तुम, अब क्यों रूठ गये सपने बोले ,तब पूरे होने की आशा थी ,
अब आने से क्या होगा, जब तुम ही टूट गये

एक उम्र होती थी जबकि मन यह कहता था,
ये भी कर ले वो भी कर ले सब कुछ हम कर ले आसमान में उड़े ,सितारों के संग खेल करें,..
🔶🔶

स्नेह की डोर (लघुकथा) 

साथ - साथ गिरते - दौड़ते, चौकड़ी भरते दोनों पिछले दो फागुन से एक दूसरे के जीवन मेंअपने स्नेह और अपनापन का रंग भर रहे थे। यह देख-महसूस कर उसका बाल मन अघा जाता कि पिता ने भी उन दोनों पर अपने प्राण निछावर कर दिए थे। ..

🔶🔶

कुछ हो अनूठा कुछ नवल हो

कविमन सृजन में तब लगे जब, शब्द का शृंगार हो। 
कुछ हो अनूठा कुछ नवल हो, भाव में कुछ सार हो।। 
आरम्भ हो सुन्दर सुरीला, रागिनी उर में बजे। 
भारत वतन के ही लिए तो, लेखनी में धुन

🔶🔶




 



अतरंगी इश्क 

अतरंगी है तेरा इश्क ,

ज़िस्मानी से रूहानी ,

काले से सफ़ेद तक ,

हर रंग में सजा है तेरा इश्क ...

हाँ, सतरंगी है तेरा इश्क |

कभी हरे रंग में भीग

🔶🔶

लाखों क़िस्म के दायरे हमने बनाए हैं

लाखों क़िस्म के दायरे हमने बनाए हैं 

अपने उसूल-औ-ख़्वाब के द्वीप बनाए हैं 


नग़मे भी चाँदनी के, कुर्बत भी चाँद की बस चाँद, चाँद, चाँद ही हमको लुभाएँ है 

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'



मंगलवार, 24 मई 2022

3403 ...वक़्त के संग कुछ तज़ुर्बे ज़िन्दगी में आये

सादर अभिवादन.....
आज मई माह का आखिरी सप्ताह
कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, 
दिलो-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर, 
जहाँ ज़िन्दगी का हवा न हो
रचनाएं देखिए




इसके लिए भी
क्या निकालना कोई मुहूर्त है
की माँ को मेरी ज़रूरत है
अब मुझे चलना चाहिए।




बड़े प्रेम से ब्याह के लाया   
साड़ी औ कपड़े, गहने दिलाया ।   
सज के पड़ोसी के ठाढ़ हो, रोजय ताना मारे  
ई बीवी....




अपनी दादी से पूछा,''दादी माँ आप टें कब बोलोगी? (टें बोलने का मतलब मर जाना होता है)
टें बोलो न! दादी माँ प्लीज टें बोलो न!''
दादी बेचारी सन्न रह गई कि आज मेरे पोते को क्या हो गया है...वो ऐसा क्यों बोल रहा है? 
''क्यों बेटा, तु मुझे टें बोलने क्यों बोल रहा है?''




वक़्त के संग कुछ तज़ुर्बे ज़िन्दगी में आये
वक़्त ज़ाया न करो इन में ये समझ आये

जिसका होना है वो हर हाल में हो जाये
दोस्त इन चोचलों के झांसे में क्यों आये?

ज़िन्दगी कई मौके दे -दे कर यूँ समझाये
खुद की ख़ुशी की खुदखुशी न हो जाये

.....
आज बस

सादर 

सोमवार, 23 मई 2022

3402 ....... / हर पल फूलों सा खिल महके

 

नमस्कार !  आज वार के अनुसार बहुत दिनों बाद सोमवार की प्रस्तुति लगा रही हूँ  .  उम्मीद है इतने दिनों में भूले तो न होंगे ? वैसे याद दिलाने के लिए पिछले सप्ताह ही एक प्रस्तुति लगायी थी ...... वैसे कितना अपनापन सा मिलता है न जब कोई ये कहे कि आप हमें भूले तो न होंगे ........  खैर ...... हम तो इसी उम्मीद  में गुज़ार देते हैं वक़्त कि   ----

रहें ,  न रहें  इस जहाँ में हम 

करोगे  अक्सर  हमें  याद  तुम |

ब्लॉगिंग का जहाँ ज़िक्र होगा , 

उनमें एक नाम मेरा भी होगा ..|


एक बात बताइए कि यदि कोई आपसे आपका परिचय पूछे तो क्या जवाब होगा आपका ?  नाम , काम , धाम , घर गृहस्थी  आदि या ज्यादा से ज्यादा अपनी पढाई और उम्र  बता कर सोच लेंगे की परिचय  का आदान प्रदान हुआ ..... लेकिन कभी कभी इतना गूढ़ , और बिंदु बिंदु छूता हुआ , अपने आप को हर कसौटी पर उतारते हुए जो परिचय मिले तो बस उसमें डूब कर ही जाना जा सकता है ........ बानगी देखिये ... 

'अमृता तन्मय' : अपनी अन्तर्दृष्टि में


 "अपेक्षाकृत वह एक धीर-गंभीर श्रोता ही है और अपने समभागियों की निजी अनुभूतियों के भेद को भी स्वयं तक रखती है। वह निजता की मर्यादा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए खींची गई सीमा तक अस्पृश्य ही रहती है। वह न तो अन्य के जीवन में हस्तक्षेप करती है और न ही किसी को स्वयं के जीवन में हस्तक्षेप करने देती है। वह जितनी स्वतंत्रता औरों से चाहती है, उससे कहीं अधिक औरों को देती भी है। "

परिचय पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा की बहुत कुछ  " गीता "  के ज्ञान से प्रभावित  व्यक्तित्त्व  है ..... काश ऐसा कुछ  रंच मात्र भी जीवन में अपना लें तो जीवन सरल हो जाए ..... लेकिन कर्मों  का हिसाब तो होना ही है ........ जब गीता ज्ञान की बात चली है तो कृष्ण का होना तो ज़रूरी है ......... महाभारत के सभी पात्र मुझे बहुत आकर्षित करते रहे हैं ........ विशेष रूप से   "कर्ण .  '  लेकिन आज तक कभी कर्ण  पर कुछ लिख  नहीं पायी ......  आज आपके समक्ष  लायी हूँ कर्ण और कृष्ण   का वार्तालाप ...... 


कल रात

दिखा कुरुक्षेत्र का शमशान

कर्ण की रूह

अश्रुयुक्त आँखों से

धंसे पहिये को निहारती

जूझ रही थी

ह्रदय में उठते प्रश्नों के अविरल बवंडर से ...

- ऐसा क्यूँ . क्यूँ , क्यूँ ???


रश्मि प्रभा जी का लेखन बहुत गहन चिंतन की मांग करता है ....... कोई भी बात या काम अकारण नहीं होता ,  श्री कृष्ण का यही सन्देश है ..... तो यही मानते हुए कि जो हो रहा है सही है  --  बेचैन आत्मा उर्फ़ देवेन्द्र जी  भी अपनी बात रख रहे हैं ..... 

सत्ता



आम आदमी 
चिड़ियों की तरह
चहचहाता है..
वो देखो
चांद डूबा,
वो देखो
सूर्य निकला!

जहाँ सत्ता  की बात आती है  वहीँ न जाने कितनी प्रकार की  चिंगारियाँ प्रस्फुटित होने लगती हैं ....... अब इनको कुछ लोग  हवा देते हैं तो कुछ बुझा देते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो ऐसा ही छोड़ देते हैं ...... तो  कवि  दीपक जी ऐसे लोगों को सन्देश दे  रहे हैं  कि या तो हवा दो या बुझा दो ..... 

यूं ही #बेपरवाह न छोड़े #चिंगारी को !


र कहीं कुछ सुलग रहा है ,

तो उसे हवा दो या बुझा दो ।

यूं ही बेपरवाह न छोड़े #चिंगारी को ,

पर उसे उसका सबब बता दो । 

चलिए चिंगारी का तो इलाज  हो जाएगा लेकिन जो लोग निराशा के सागर में डूबते -उतरते रहते हैं उनका क्या ?  उनके लिए भी एक सार्थक सन्देश है .... मन की  वीणा  पर एक सुर मुखर हुआ है  -----

निराशा को धकेलो।



चारों ओर जब निराशा

के बादल मंडराए

प्रकाश धीमा सा हो

अंधेरा होने को हो

कुछ भी पास न हो

किसी का साथ न हो. 

 कुसुम जी --- माना कि  निराशा को हम धकेल दें लेकिन जो कुछ समाज में हो रहा है क्या उसे भी बदल सकते हैं .....  बराबरी की होड़ में कौन कहाँ पहुँच रहा जरा देखिये इस लघु कथा में ----

तीक्ष्ण दृष्टि


यहाँ घर में,कांता के मोबाइल में भी आठ आँखें बड़े गौर से उस वीडियो को देखने में व्यस्त हैं ।

ये लघु कथा इतनी लघु है कि इससे ज्यादा पंक्तियाँ मैं दे नहीं सकती ...... हाँ एक बात कि पढ़ते हुए कांता की जगह शांता पढियेगा ...... 

आज समाज में इतनी विसंगतियां देखने को मिलती हैं  कि सीधा साधा व्यक्ति तो स्वयं  ही  कीचड़ से किनारा करके  चलता है .....  गिरीश पंकज जी अपनी रचना से दूसरों को भी सन्देश दे रहे हैं ..... 



ऊपर उठने की ख्वाहिश में कुछ नीचे गिर गए
मन है मैला लेकिन बंदा तन को सजा रहा

जो सत्ता में आया समझो तानाशाह बना
हर कोई चमड़े का अपना सिक्का चला रहा|

इस सन्देश के साथ एक और सलाह ........ बहुत खूबसूरत सलाह दे रही हैं अनिता जी ...... काश सब उपवन सा खिले रहें .... 


उलझ न जाएँ किसी कशिश में 

नयी ऊर्जा खोजें भीतर,

बहती रहे हृदय की धारा 

अंतर में ही बसा समुन्दर !




दो दिन पूर्व चाय दिवस था ...... विभा जी ने बहुत खूबसूरत प्रस्तुति लगायी थी ........ उस दिन चाय दिवस  मनाते  हुए बहुत  सारी  पोस्ट  आयीं   पढने में बहुत आनंद आया और पढने से  ज़्यादा  यादों    को सहेजने में  आया ....... अब कुछ ने तो यादों की गुल्लक ही फोड़  दी ......... वैसे गुल्लक सोनी टी वी पर एक अच्छी सिरीज़ भी है ....... वो भी यादों की गुल्लक है ....... खैर ..... हम   अभी  बात कर रहे हैं ज्योति  खरे  जी की  , उन्होंने गुल्लक में से क्या  निकाला  है  ---


हांथ से फिसलकर
मिट्टी की गुल्लक क्या फूटी
छन्न से बिखर गयी
चिल्लरों के साथ
जोड़कर रखी यादें 

इन यादों के साथ चलते चलते  ज़रा   बच्चों की सोच पर भी ध्यान दे लिया जाय ........ बड़े लोगों की बड़ी बातें तो हम समझना चाहते हैं लेकिन बच्चों के मनोभाव पर भी थोडा सोचें ......... 

बिटियानामा


बिटिया हिंदी की एक कहानी पढ़ते जब चौरासी लाख योनि पढ़ी तो उसका मतलब पूछने लगी | हमने तमाम जीव  जंतु कीड़े मकोड़े की प्रजाति का नाम लेते ,  बात का मतलब बताते एक छोटा सा  लेक्चर भी  साथ दिया कि मनुष्य के रूप मे जन्म लेना कितना महान हैं | 


अब  सोचिये   कि मनुष्य जन्म कितना महान है .............   और  अभी अभी एक पोस्ट आई है  जिसे आप लोगों के साथ बाँट कर मुझे ख़ुशी होगी ........ परिचय से बात शुरू हुई थी और जिस शख्स  के बारे में पोस्ट है वो किसी परिचय का मोहताज नहीं ....... गगन शर्मा जी  लाये हैं कुछ अलग सा ..... 

रुस्तम ए हिंद गामा, कुश्ती का पर्याय, जीत की मिसाल


आज एक ऐसे भारतीय पहलवान का जन्म दिन है जो अपने जीवन काल में कभी भी कोई कुश्ती का मुकाबला नहीं हारा ! विश्व विजेता गामा एक ऐसा नाम, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है, जो जीते जी किंवदंती बन गया था। कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है। 


आज की शीर्ष पंक्ति  अनीता जी की कविता का शीर्षक है ....

आज बस इतना ही ............ मिलते हैं अगले सोमवार को इसी मंच पर कुछ नए और पुराने  सृजन  ले कर .......  तब तक के लिए  इजाज़त दें ......
नमस्कार 

संगीता  स्वरुप 



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...