प्रेम के पड़ते सीले से पदचाप वह माँझे में लिपटा पंछी होता मुक्ति से अनजान मुक्त स्वयं से करता मैं उसमें और उलझती कौन समझाए उससे सहना मात्र ही तो था ज़िंदगी का शृंगार
अंदर जा कर कह रही हैं बाकी मेहमान कहा हैं , पार्टी कहाँ हैं | हमलोगों के ये कहने पर की यही पार्टी हैं तो वो नाराज हो गयी की तुम लोग तो सुबह से कह रहें थे पार्टी हैं ये तो हम लोग बस बाहर खाना खाने आये हैं | ये कोई पार्टी नहीं हैं , तीन लोगों की कहीं पार्टी होती हैं |
शहर में में 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति की चिंगारी उस वक्त फूटी थी, जब देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ जनता में गुस्सा भरा हुआ था। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तय की गई थी। एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाना था, लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।
बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन। प्रस्तुति बनाने का अंदाज गज़ब है श्वेता दी सराहनीय 👌 समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी। हृदय से आभार मंच पर स्थान देने हेतु। सादर
तूफां से लड़कर कुछ तिनके बटोरे हैं, खुशबुओं से भींगे कुछ इत्र के कटोरे हैं, आओ कुछ पल सुकूं से बैठो मिटा लो तृषा हौले-हौले घूँट भरो अमिय प्रेम के सकोरे हैं।
आज की हलचल पर ज्यादातर लिंक्स प्रेमपगे मिले । इसलिए ये तुम्हारे द्वारा प्रेषित ये चार पँक्तियाँ सटीक और सार्थक हैं । हमने तो घूँट घूँट पी लिया। बाकी तो कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है ....बेहतरीन नज़्म गुलज़ार की । उषाजी का लेख बेहतरीन लगा । अच्छे लिंक्स का समायोजन ।
तूफां से लड़कर कुछ तिनके बटोरे हैं, खुशबुओं से भींगे कुछ इत्र के कटोरे हैं, आओ कुछ पल सुकूं से बैठो मिटा लो तृषा हौले-हौले घूँट भरो अमिय प्रेम के सकोरे हैं। प्रेमिल भाव लिए सुंदर भूमिका के साथ , प्यार के अलग-अलग रूपों पर आधारित रचनाओं से सुसज्जित भावपूर्ण अंक प्रिय श्वेता | गुलज़ार साहब की शायरी ने मन मोह लिया | सभी सम्मिलित रचनाकारों के साथ तुम्हें भी बधाई और शुभकामनाएं |
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वाह! लाजवाब प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक..
जवाब देंहटाएंसादर
गजब अंदाज में प्रस्तुति श्वेता जी। खूब बधाई और आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन। प्रस्तुति बनाने का अंदाज गज़ब है श्वेता दी सराहनीय 👌
जवाब देंहटाएंसमय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।
हृदय से आभार मंच पर स्थान देने हेतु।
सादर
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंथा तकाजा ज़ुबां का
फिर इल्ज़ाम दिल पे क्यूँ
इस बंजर मौसम में
इन आँखों से झरना क्यूँ
सादर..
तूफां से लड़कर कुछ तिनके बटोरे हैं,
जवाब देंहटाएंखुशबुओं से भींगे कुछ इत्र के कटोरे हैं,
आओ कुछ पल सुकूं से बैठो मिटा लो तृषा
हौले-हौले घूँट भरो अमिय प्रेम के सकोरे हैं।
आज की हलचल पर ज्यादातर लिंक्स प्रेमपगे मिले ।
इसलिए ये तुम्हारे द्वारा प्रेषित ये चार पँक्तियाँ सटीक और सार्थक हैं । हमने तो घूँट घूँट पी लिया।
बाकी तो कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है ....बेहतरीन नज़्म गुलज़ार की ।
उषाजी का लेख बेहतरीन लगा ।
अच्छे लिंक्स का समायोजन ।
बहुत सुन्दर संकलन ।मेरे आलेख को संकलन में सम्मिलित करने का बहुत धन्यवाद।बीच-बीच में गुलजार की नज्म ने आनन्द दुगना कर दिया।
जवाब देंहटाएंतूफां से लड़कर कुछ तिनके बटोरे हैं,
जवाब देंहटाएंखुशबुओं से भींगे कुछ इत्र के कटोरे हैं,
आओ कुछ पल सुकूं से बैठो मिटा लो तृषा
हौले-हौले घूँट भरो अमिय प्रेम के सकोरे हैं।
प्रेमिल भाव लिए सुंदर भूमिका के साथ , प्यार के अलग-अलग रूपों पर आधारित रचनाओं से सुसज्जित भावपूर्ण अंक प्रिय श्वेता | गुलज़ार साहब की शायरी ने मन मोह लिया | सभी सम्मिलित रचनाकारों के साथ तुम्हें भी बधाई और शुभकामनाएं |
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