जय मां हाटेशवरी ......
सोचा,बेटी,जो बड़ी हो गई थी,
उससे ख़ूब बातें करूंगा,
सालों बाद फ़ुर्सत मिली थी,
सालों की क़सर पूरी करूंगा.
अचानक वह अंदर से आई
और सर्र से निकल गई,
अब जब मेरे पास फ़ुर्सत थी,
उसके पास वक़्त नहीं था.
बोली, माटी का कर्ज़ चुकाओ
मातृभूमि के लाल कहलाओ।
आँचल तेरा छूट गया "माँ"
छूटा गाँव, घर और चौबारा।
रोया था मैं फूट-फूट के
जिस दिन छूटा था साथ तुम्हारा।
तुमने मुझको जन्म दिया "माँ"
इस मिट्टी ने पाला है।
मातृभूमि का कर्ज़ चुकाना
तुमने ही तो सिखलाया है।
फिर उस लम्बी रस्सी पर फंदा बनने लगा और उस फंदे के बीच में अचानक से एक गर्दन आ गई और फंदे के नीचे एक शरीर बना और वह शरीर दर्द के मारे छटपटाने लगा।
“सत्यानाश हो उसका” , वह फंदे से लटकती आकृति को देखकर बुदबुदाया। वह कुछ इस तरह उस आकृति को देख रहा था जैसे वह खुद ही अपने हाथों से उस आकृति का गला दबा देना
चाहता हो। "क्या यह हमेशा मेरा पीछा करेगा? अच्छा हुआ उस मार दिया। इस कमीने की यही सजा होनी चाहिए थी। इसने मार्गरेट को जान से...”
पर वह अपना वाक्य खत्म न कर सका। वह सफेद बलूत का पेड़ जो उसके सामने खड़ा था अब वह ऐसे बढ़ता जा रहा था जैसे वह कोई ज़िंदा प्राणी हो। अचानक से तेज चटकने की आवाज़
हुई और फिर एक धमाका सा हुआ और कुछ देर बाद उस बड़े बलूत के पेड़ के नीचे वाल्टर स्टेडमैन का कातिल कुचला जा चुका था। उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
कुछ ही देर बाद टूटे हुए तने और ठूँठ के बीच से एक धुँधली सी मानव आकृति बाहर को कूदी । फिर वह आकृति उस आदमी की लाश के पास से भागती हुई उस रात के अँधेरे में
कहीं गुम हो गई।
कल क्या होगी कल पर छोड़ती हूँ ।
मगर आज मेरे हाथों बक्से
में बन्द होती मेरे एकान्तिक क्षणों की
संगिनी अपनी समग्रता के साथ
उपालम्भ भाव से जैसे मुझ से सवाल करती हैं -
बोली अबोली ~
काहे चली बिदेस
निष्ठुर संगी ।
फिर शांति अचम्भित,विस्मित है
हो गयी
अहिंसा खण्ड-खण्ड
हे बामियान के बुद्ध देख,
स्त्री,बच्चों
लाचारों से
अब कापुरुषों का युद्ध देख,
बन शुंग,शिवाजी
गोविन्द सिंह,रण में
दाहिर को करो याद ।
बीजिंग,लाहौर
कराची का फिर
आँख मिचौनी खेल शुरू,
घर में सोए
गद्दारों का
षणयंत्र शत्रु से मेल शुरू,
इस बार
शत्रु का नाम मिटा
हो अंतरिक्ष तक सिंहनाद।
तुम्हारे पैरों की उंगलियों का चुंबन लेने के लिए मैं तड़प रहा हूं.
तुम कहती हो कि अगर कोई हमारे पत्र पढ़ ले तो क्या हो?
ठीक है, पढऩे दो लोगों को और जलन महसूस करने दो।
सर्वप्रथम हम शब्दों पर ही गौर करेंगे। नारी को नारी,
महिला और स्त्री इत्यादि शब्दों से नवाजा जाता है।
नारी = न + आ + र + ई ,
नारी शब्द दो व्यंजन न और र एवं दो स्वर आ एवं ई से बना है।
जब कि,
नर = न + र , नर शब्द सिर्फ दो व्यंजनों से बना है।
महिला = मह + इला से बना है। मह का अर्थ श्रेष्ठ या पूजा है।
जो श्रेष्ठ और पूज्य है वो महिला है।
स्त्री - भाष्यकार महर्षि पतंजलि के अनुसार,
'स्तास्यति अस्था गर्भ इति स्त्री'
अर्थात - "उसके भीतर गर्भ की स्थिति होने पर उसे स्त्री कहा जाता है।"
धन्यवाद।
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंपेड़ का इंतकाम निम्न लिंक पर पढ़ें..
सादर..
https://www.duibaat.com/2019/05/hindi-translation-of-vengeance-of-a-tree-by-elanor-f-lewis.html
बहुत सुन्दर लिंकों से सजी बेहतरीन प्रस्तुति । ‘किताबें’ को संकलन में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंइतनी जूनी रचना को ढूंढकर उसे पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कुलदीप भाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर... इन रोचक लिंक्स को देखकर आनंद ही आ गया। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स अच्छे लगे । लेकिन दो लिंक्स पर अभी पोस्ट नहीं मिलीं । शायद लेखक ने हटा दीं हैं ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो देर से उपस्थित होने के लिए क्षमा चाहती हूं सर, आप ने मेरी रचना का मान बढ़ाया और मुझसे ये गुस्ताखी हो गई, अपनी रचना की पंक्ति को शीर्षक में देख इतनी खुशी हुई कि वया नहीं कर सकती। आप का हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार सर, सादर नमन 🙏
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