शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अमित निश्छल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ
हाज़िर हूँ-
नीति के दोहे मुक्तक
पशु भी खुश हो जाते हैँ, पाकर अपना झुण्ड।
जो खुश होते नहि दिखें , वे हैं शिला खण्ड।।
एक गीत माँ तुम गंगाजल
होती हो
पल-पल जगती सी आंखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती
जब-जब ये आंखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
मैं, अगर मिल भी गया किंवदंतियों में
मैं, बिखरकर नित स्वयं को कोसता हूँ।
पक्षपाती एक सरिता,
द्विगुणित होकर ढुलकती
अंतःकरण के काननों से;
जलमग्न हो कर
तृप्त होते अक्षि के त्रिकोण,
जिनमें अश्रु के गोले
खुले सैलाब का आह्वान करते
सिंधु के हर मानकों को तोड़कर।
एक अनुरोध माँ का---बच्चों से
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में पड़ कर जीवन बर्बाद न करें .....अभी आप जिस
चकचौन्ध के भरम में जी रहे हो यह एक मृगमरीचिका की तरह है। उसके भरम जाल को तोड़
अपने संस्कारों की तरफ़ मुड़ कर देखिए जो आपके खून में रचा बसा है,अपने भविष्य के आप स्वयम जिम्मेदार हैं, आंखे खोलिए नई दुनिया में फूंक फूंक के कदम बढाइये,जीवन बनाने के लिए संभावनाओं का
भण्डार हैं तो दूसरी तरफ दुनियाँ की रंगीनियां।
रैटटौइल
आज एओएल के दिनेश गोखले द्वारा बनाया गया ‘नारद भक्ति सूत्र’ का परिचयात्मक वीडियो देखा। अगले पंद्रह दिन
अवश्य ही काफ़ी भरे-पूरे होंगे, परमात्मा की भक्ति
से भरपूर ! आज दोपहर वाली नैनी काम पर नहीं आयी, हर हफ़्ते वह किसी न
किसी बहाने से छुट्टी ले लेती है। सुबह वाली ऐसा नहीं करती, आज उसके बेटे का फ़ोन आ गया, दोनों बहुत खुश थे।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत अच्छे लिंक्स ।सादर अभिवादन के साथ हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! नीति सूत्र, माँ की महिमा और बच्चों को उसके संदेश देने वाली पठनीय रचनाओं के पाँच लिंक्स देती हलचल, आभार मुझे भी आज के अंक में स्थाने देने हेतु !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतीकरण सराहनीय.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक की प्रस्तुति।
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