।।प्रातः वंदन ।।
शाम को गिरता है तो सुब्ह सँभल जाता है
आप सूरज की तरह गिर के सँभलते रहिए...
कुँवर बेचैन
साकारात्मक आशा की रश्मियों के साथ आइए
अब नज़र डालें चुनिंदा लिंकों...✍️
चित्र सभार गूगल |
गालों पर गेसू बिखरे हैँ आँखों में कुछ ख़्वाब
खिड़की में हैँ चांद चांदनी दरिया में सुर्खाब
देख रहे थे हम भी जादू मंतर महफ़िल में
उसकी मुट्ठी में सिक्का था कैसे हुआ गुलाब..
🌼
कुछ अपने साथ भी...
🌼
देश के बाजार पर हलाल
इकॉनॉमी का कब्ज़ा...सभी को ये सच जानना जरूरी है
🌼
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२४)
🌼
पिछले दो वर्ष से अधिक समय से कोरोना के मारे घर में मुर्गा-मुर्गियों के दबड़े की तरह उसमें दुबक कर रह गए थे। अभी मौसम का मिजाज क्या गर्मियाया कि अब हर सुबह-शाम घूमने-फिरने की आदद पड़ गई है। हर दिन
कौन सुनेगा किसको सुनाये
कौन सुनेगा किसको सुनाये
इस लिए चुप रहते हैं..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
सुंदर अंक..
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाओं का गुलदस्ता
आभार..
सादर..
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएं