निवेदन।


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बुधवार, 30 नवंबर 2016

502....कभी होता है पर ऐसा भी होता है

सादर अभिवादन..
चालू हो गई फिर से गिनती.....
01,02,03
चलना है...चलते रहना है
रुक गया जो.. 
श्रेणी बदल जाती है उसकी
स्वतः ही...
चरैवेति - चरैवेति
मत पलट के देख..
क्या छूट गया पीछे
वो देख सामने खड़ा है
सत्रह तेरे इन्तज़ार में...

सपनों में जीने वालों का
एक यही तो हासिल है   
दिन भी बीता रीता-रीता
रात बिलखते बीत गयी !

आज मेरी लेखनी ने राजनीति की तरफ देखा,
आँखें इसकी चौंधिया गयी मस्तक पर छायी गहरी रेखा।
                                                                               
संसद भवन मे जाकर इसने नेता देखे बडे-बडे,
कुछ पसरे थे कुर्सी पर ,कुछ भाषण देते खडे-खडे


भाई, नुक्स निकालना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. देश हो या नियम कायदे, हम तो नुक्स निकालेंगे. 
जल्दी ही चुनाव होंगे लेकिन उसके पहले ही लोगों के हाथों में स्याही लगी होगी, 
कहीं आग लगी होगी तो कहीं धुंआ उठेगा. अब दिल ढूँढता है फिर फुरसत के चार दिन 


मुरारी की तरफ़ मुखातिब होते हुए कहा, "आज तक तुम्हारे खाते में तनख्वाह के अलावा कभी एक धेला भी जमा नहीं हुआ होगा। इस बार उसमें अनायास एक लाख की रकम जमा हो गयी। बदकिस्मती से अगर कोई राजस्व अधिकारी पूछ बैठे कि यह रकम कहां से आई तब क्या स्पष्टीकरण देना होगा इसे भी सोच लेना।


कभी कभी कहानियाँ
यूँ खत्म हो जाती है !
वक़्त का मरहम मिलता नहीं
तो जैसे ज़ख्म हो जाती है !!


महक उठी थी केसर.....स्मृति आदित्य जोशी "फाल्गुनी"
महक उठी थी केसर
जहाँ चूमा था तुमने मुझे,
बही थी मेरे भीतर नशीली बयार
जब मुस्कुराए थे तुम,



देश की धड़कन


एक शहंशाह बहुत समझदार था....ईश मिश्रा
काश चलता होता 
सत्य-अहिंसा से जम्हूरी सियासत का काम
करना पड़े सियासत में कितना भी छल फरेब
खुले न मगर किसी भी चाल का भेद
वह एक भी ऐसा शब्द नहीं बोलता
जो करुणा से हो न ओत-प्रोत
दिखता है वह ऐसे 
हो जैसे मानवीय संवेदनाओं का श्रोत
करता वह शहंशाह रियाया से निरंतर संवाद
बताता है उन्हें गाहे-बगाहे अपने मन की बात
कभी मन-ही-मन शहीदों के साथ दिवाली मनाता
खेलता है होली सरहद पर सैनिकों के साथ
मलाल है उसे इस बात का 
कर न सका सम्मान सैनिक बनने के ख़ाब का
मचा था जब सिक्कों की गफलत से मुल्क में कोलाहल
लगा उसे बह रहा है देशभक्ति का हलाहल 


आज का शीर्षक..

और जिसे 
बस समय 
लिख रहा 
होता है 
समय पढ़ 
रहा होता है 
समय ही 
खुद सब कुछ 
समझ रहा 
होता है ।

आज अति हो गई..
आज्ञा दें यशोदा को
सादर

















मंगलवार, 29 नवंबर 2016

501...बदल जा या बदलाव ला दे। 

जय मां हाटेशवरी...


आज के ही दिन...यानी 29 नवंबर 1901 को...
 सरदार सोभा सिंह....जी का जन्म हुआ था...
आज की प्रस्तुति का....शुभारंभ उनकी कुछ पंक्तियों से....
यह तन आत्मा का मंदिर
सब कुछ इसके भीतर
सिख ,गुरु, देवता, भगवान
कवि ,लेखक, चित्रकार
अरे कोई रूह
कभी तो आए बाहर
मृत हुई तूलिका
मुर्दा रंग
शीत बुढ़ापा
जीने की उमंग
मैं बनाता हूँ चित्र
जिन्हें जीवित आत्माएँ
देती हैं प्राण
मेरी तमन्ना?
कोई न जाने.

पूछने में लगा है जमाना वही सब जिसे अच्छी तरह से सबने समझ लिया है-
कुछ
पहेलियों
को
समझने
सुलझाने
के लिये
जोड़ तोड़
कर
एकत्रित
की गई
कड़ियाँ हैं

मानव नाग...
*******   नाग जाति का अपमान  
करते हो क्यों  
नाग बेवजह नहीं डँसता  
पर तुम?
धोखे से कबतक  
धोखा दोगे  
बिल से बाहर आकर  
पृथक होना ही होगा

नहीं रहे क्यूबा की क्रांति के जनक और वामपंथ के स्तम्भ फिडेल कास्त्रो-
एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसके विरोधियों के पास दो ही रास्ते होते थे या तो वो मारे जायेंगे या क्यूबा छोड़ देंगे...फिडेल कास्त्रो एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसे अमरीका समेत कई ख़ुफ़िया एजेंसिया मिल कर भी नहीं मार पाई..CIA ने फिडेल कास्त्रो को मारने के लिए 650 से ज्यादा बार प्रयास किये मगर अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी हर बार विफल रही..
एक बार नास्तिक वामपंथी फिडेल कास्त्रो ने कहा था की मैं भगवान को नहीं मानता था मगर CIA और अमरीका द्वारा कई दशको तक मुझे मारने के सैकड़ो प्रयास के बाद भी मैं जीवित बचा हूँ,इससे मुझे लगने लगा है की भगवान होता है... खैर आज फिडेल कास्त्रो इस दुनिया में नहीं है और शोक के साथ साथ एक बड़ा हिस्सा हवाना में जश्न भी मना रहा है..आने वाला समय और क्यूबा की अगली पीढी इस वामपंथी कम्युनिष्ट तानाशाह का क्यूबा के निर्माण (या विध्वंस) में योगदान को तय करेगी..

 अगर बदलाव लाना है तो कानून नहीं सोच बदलनी होगी
जब किसी भी कार्य अथवा फैसले पर विचार किया जाता है तो सर्वप्रथम उस कार्य अथवा फैसले को लागू करने में निहित लक्ष्य देखा जाना चाहिए यदि नीयत सही हो तो फैसले का विरोध बेमानी हो जाता है।
यहाँ बात हो रही थी नोटबंदी के फैसले की  । इस बात से तो शायद सभी सहमत होंगे कि सरकार के इस कदम का लक्ष्य देश की जड़ों को खोखला करने वाले भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर लगाम लगाना था।
यह सच है कि फैसला लागू करने में देश का अव्यवस्थाओं से सामना हुआ

वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...
सबसे बड़ा बदलाव जो मुझे दिखाई पड़ रहा है वो इस बात में कि जब कहीं से ये फुसफुसाहट सुनाई देती थी कि ठिकाने लगा आये.. तो सीधे दिमाग में कौंधता था कि जरुर किसी लाश को ठिकाने लगा कर आया है बंदा..आज लाश की जगह १००० और ५०० के अमान्य नोट विराजमान हो गये हैं...उन्हें ही ठिकाने लगा कर आदमी ऐसी चैन की सांस भरता है मानो लाश ठिकाने लगा अया हो.. हालांकि लाश ठिकाने लगा आनें में भी कम ही चांस था कि पुलिस से बच पाते और वही हाल अब इन्कम टैक्स वालों से इस नोट ठिकाने लगा आने में है मगर तात्कालिक सुकून तो मिल ही जाता है..मानो कि आज रात इसबगोल खाकर सो जाये तो जीवन भर के लिए कब्जियत से निजात मिल जायेगी...यह तय है कि कल कब्जियत से आराम तो लगेगा मगर जो कल इसबगोल नहीं खाया तो परसों फिर वही हाल... देखना अब यह है कि इस बड़े बदलाव से जिसने बातों के मायने बदल डाले...वो और क्या क्या बदलता है और कब तक के लिए...

आज के पांच लिंक पूरे हुए....
चलते-चलते...
बन जा पतंगा, जल जा
या बन लौ और सबको जला दे।
बन राहों का पत्थर, खा ठोकरें
या बन मूरत सबको झुका दे।
ले फैसला, कुछ तो कर
बदल जा
या बदलाव ला दे।





सोमवार, 28 नवंबर 2016

500...कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर


हम को मिटा सके, ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना खुद है, ज़माने से हम नहीं
-जिगर मुरादाबादी 


आज अत्यन्त हर्षित हूँ

पाँच लिंकों का आनन्द का पाँच सौवाँ अंक

प्रस्तुत करते हुए..
आप सभी के सहयोग के बिना ये कतई मुमकिन नहीं था
आभार आप सभी को..


चलिए चलते है आज की मिली-जुली रचनाओं की ओर........

पहली बार....

भारत इकलौता ऐसा देश है जहां बड़ीं संख्या में ऐसे लोग रहते हैं जो स्वयं तो बेवकूफ बन जाते हैं 
लेकिन बेवकूफ बनाने वाले को हीरो बना देते हैं!

कहा जा रहा है कि इकॉनमी की सुधार की रफ्तार धीमी पड़ गई है! 
इसका कुछ श्रेय उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए जो संसद नहीं चलने देते!


ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा....शैल सिंह
सबके साथ सबके विकास का
सुर में सुर मिला चलने का
ना खाऊँगा ना खाने दूँगा
इस तर्ज़ पर आगे बढ़ते रहने का ,





...फिदेल कास्त्रो के नाम क्यूबा में मार्ग नहीं हैं और भविष्य में यहाँ मोदी के नाम भी नहीं होंगे। नवोन्मेषी लोग 'मार्ग और मूर्ति' सरीखी बहुजनी कांग्रेसी गतिविधियों में अपनी ऊर्जा नहीं खपाते। हाँ, उन्हें प्रचार तंत्र तगड़ा रखना ही होता है और दण्ड का भी। कौटल्य भी तो यही कह गये हैं, नहीं?



धूर्त मन,मक्कार दिल पर,ओढ़ चादर केसरी
देश पर खतरा बताते,आज भी कुछ लोग हैं !

हमको लड़ना ही पड़ेगा, इन ठगों के गांव में,
कौम को ज़िंदा बताते,आज भी कुछ लोग हैं !




अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा कहती हैं, ‘जिंदगी हमेशा सुविधाजनक नहीं होती | 
ना ही एक साथ सभी समस्याएं हल हो सकती हैं | इतिहास गवाह है कि साहस दूसरों को प्रेरित करता है 
और उम्मीद जिंदगी में अपना रास्ता स्वयं तलाश लेती है |’ 

काली भयानक रात,
चारों ओर झंझावात,
पर, जलता रहेगा - दीप---मणिदीप
सद्भाव का / सहभाव का।

किसी ने बर्फ से पूछा कि, आप इतनी ठंडी क्यूं हो ? .बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया :-" मेरा अतीत भी पानी; मेरा भविष्य भी पानी..." फिर गरमी किस बात पे रखूं ?? क्या इंसान की भी यही स्थिति नहीं है। उसका अतीत भी "खाली हाथ" एवं भविष्य भी "खाली हाथ"फिर....? घमंड किस बात का !!! 


सत् के सम्मुख कब टिक पाया
घोर तमस की कुत्सित चाल,
ज्ञान रश्मियों से बिंध कर ही
हत होता अज्ञान कराल,

उड़ता पंछी.........शुभा मेहता 
मैं , उडता पंछी
दूर....दूर .....
उन्मुक्त गगन तक
फैलाकर अपनी पाँखें
उड़ता हूँ


दो साल पहले
यहां कोई 
बात कर
वहां कोई
बात कर
बाकी पूछे
कोई कभी
कहना ऊपर
वाले से डर ।

आज्ञा दें यशोदा को
डर है कि सीमा न लाँघ जाऊँ
सादर










रविवार, 27 नवंबर 2016

499...जानिए, आज के जमाने की अच्छाइयां...!!!-

जय मां हाटेशवरी....

अभी भी...भाई विराम सिंह जी  छुट्टी पर है...
इस लिये आनंद के इस सफर में....मैं कुलदीप ठाकुर एक बार फिर...
         ''इंसान ने वक़्त से पूछा...
          "मै हार क्यूं जाता हूँ ?" 
                 वक़्त ने कहा..
              धूप हो या छाँव हो,
         काली रात हो या बरसात हो,
         चाहे कितने भी बुरे हालात हो,
           मै हर वक़्त चलता रहता हूँ,
            इसीलिये मैं जीत जाता हूँ,
                तू भी मेरे साथ चल,
             कभी नहीं हारेगा............."
हम भी बिना रुके चल रहे हैं....
और कल 500 अंक पूरे हो जाएंगे...
...ये रहे आज के लिंक...

यादें
दो नन्हे दीप
बिटिया की आँखों के
देते हौसला।
जाड़े की धूप
नर्म -सा एहसास-
बेटियाँ ख़ास।

 जानिए, आज के जमाने की अच्छाइयां...!!!-
बरेली की रहने वाली 14 साल की रेप पीड़िता को कोर्ट ने अबॉर्शन की अनुमती नहीं दी थी। जब लोगों को पता चला कि रेप पीड़िता के आर्थिक हालात ठीक नहीं है और वो खुद
अभी एक बच्ची ही है, ऐसे में उस नाजायज बच्चे का तिरस्कार करने की बजाय, हिंदू-मुस्लिम, अमीर-गरीब, करीब एक दर्जन लोग बच्चे को गोद लेने आगे आएं!
आज भी जब समाज में रेप पीड़िता को ही पुर्णत: दोषी माना जाता है, उसे तिरस्कार भरी नजरों से देखा जाता है, आज भी जब इंसान की ख़्वाहिश यहीं रहती है कि उसके बच्चे
में उसका अपना अंश या खून मौजूद हो, तब इतने सारे लोगों का बच्चे को गोद लेने के लिए आगे आना किस बात का सबूत है? यहीं न, कि आज इंसान दूसरे के दु:ख-दर्द को
समझ रहा है!! आज भी अच्छाई जिंदा है!

 हज़ार के नोट-
अगर टैक्सवालों को पता चल जाय,
तो मेरे लिए बताना मुश्किल हो जाय
कि इतनी संपत्ति मैंने कैसे जमा की
और इसके बारे में अब तक
किसी को बताया क्यों नहीं.

अपने का सपना
ये आंकड़ों का खेल भी बहुत निराला होता है न!
अब जीवन में उस मुकाम तक आ पहुंची हूँ जहां से आगे का रास्ता सीधा है। ..... चलना तो अकेले ही है। ... कोई आगे निकल गए कोई पीछे  छूट जाएंगे। ...
खुद को व्यस्त रखती हूँ। ...ताकि खुद मुझे मुझसे कोई शिकायत न रहे। ... मेरे मन ने कुछ लिखा है पढ़ो --

वो लड़का ~1
एक कोने में
वो उन्हें लेकर
अपनी हथेली में
सुबकता है रात भर
सुबह उठकर
फिर जीने लगता है
कुछ और बोझिल साँसें
होठों पे मुस्कराहट के साथ
वो लड़का बहुत शातिर है !!


आज बस इतना ही...
हर तरफ 500 व 1000 नोट   की ही  चर्चा है....
पर हमे प्रतीक्षा है....अंक पांच सौवें अंक की...
धन्यवाद।


शनिवार, 26 नवंबर 2016

498 .... बदलाव / परिवर्तन





सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

जब तक हम 500 पोस्ट बना पाते
500 में फेरबदल हो गया
जी भर हँसाया रुलाया 500

भगनी की शादी थी .... मामी को कई जगहों पर पैसे देने होते हैं ...
एक 500 की जगह 100 - 100 का 5 नोट देना अच्छा लगता था :P

आज ब्लॉग पर बहुत दिनों के बाद आई तो रूप-रेखा बदला बदला सा लगा
बदलाव बेहद जरूरी होता है .... रुके पानी में काई जम जाता है

क्षण
स मांगे
धैर्य धागे
शौर्य स्रग्धर
दिवा निशा जागे
किलका बदलाव 
गौं
खलु
कालाग्नि
नोटबंदी
चोट आतंकी
जिच्च दिवातन
   असु परिवर्तन


जिच्च=शतरंज के खेल में वह स्थिति जब एक पक्ष के खिलाड़ी को कोई मोहरा चलने की जगह नहीं बचती






बदलते रहने से चीज़े जो मन पर असर करती है सही दिशामें हो तो मन को सही सोच है मिलती फर्क हमें नहीं रुलाता गलत सोच रुलाती है 
जब जब गलत सोच से कोई फर्क जीवन पर असर करता है वह जीवन पर हमेशा गलत असर करता है बदलाव जीवन पर जरूर असर करता है 






वो रात के चमकते हुए सितारे हों.
या दिन में तपता हुआ सूरज. 
वो सुबह की मखमली ओस हो. 
या आसमान से गिरती बारिश.






कौन प्रखर कर पाता
बीते पल  सुमधुर यादों के
शायद विस्मृत हो जाते
परिवर्तन नकार के पन्ने






दुनियां में बदला का ख्याल 
अच्छा लगता है
पर हर सोच पर झगड़ा बढ़ता  है
जिदंगी को अपनी राह पर
अपनी गति 
से चलने दो
सिखाओ लोगों को आंख से देखना
कान से सुनना 
दिमाग से 
सोचना








अब बदलाव ज़रुरी है, बदलने ये रिवाज है,
अरे यही तो बदलते दौर की गूंजती आवाज़ है.

अब तो कह दो वतन के दुश्मनों को ललकार कर,
अगर वो हैं नाग जहरीला तो हम भी भयंकर बाज हैं




फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव






शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

497....सब नहीं लिखते हैं ना ही सब ही पढ़ते हैं सब कुछ जरूरी भी नहीं है लिखना सब कुछ और पढ़ना कुछ भी

सादर अभिवादन
माह नवम्बर समाप्ति की ओर है
साल सत्रहवां आने वाला है
तैय्यारियाँ जोर-शोर से जारी है
कुछेक लोग...
पाँच सौ और हजार के नोंटो का तोरण
बनाने में व्यस्त है....

आज की पसंदीदा रचनाएँ......

वर्तमान साहित्य.......... राकेशधर द्विवेदी

सूर्य हुआ अस्त है, लुटेरा हुआ मस्त है
साहित्यकार आज यश भारती में व्यस्त है  

देश और प्रदेश में लुट रहा इंसान है
न्याय है रो रहा, चीखता हर विद्वान है




दिल में तेरी यादों का गुलाब खिल तो आया है
साथ हिस्से में मगर कुछ कांटे भी मेरे आये हैं

सोचता हूँ क्यों कोई नहीं मिलता अपनों सा यहाँ
फिर याद आता है मुझे हम इस देश में पराये हैं




वह बृद्धा पेन्सन के
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख



मिथ्या बौद्धिकता, 
झूठे अहम और छद्म आभिजात्य 
के मुखौटे के पीछे छिपा 
तुम्हारा लिजलिजा सा चेहरा 
मैंने अब पहचान लिया है 


किसने कहा कि दिल में तू मेहमान बनके आ, 
ये तेरी सल्तनत है, तू सुल्तान बन के आ !
इक दिन तो बोल खुल के, तड़पता मेरे बगैर !
दिल के गरीब एक दिन , धनवान बन के आ।



हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे: गीता सार...स्वामी समीर लाल 'समीर'
कल घूस नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा होगा.
नोटबंदी और नोट बदली का दौर चल रहा है...
तनिक धीरज धरो...हे पार्थ,
वो कह रहे हैं न, बस पचास दिन मेरा साथ दो..दे दो!!
फिर उतनी ही जगह में डबल भर लेना.
१००० की जगह २००० का रखना.


आज का शीर्षक..
बहुत होता है 
खुदा झूठ 
ना बुलाये 

अब खुदा 
बोल गये 
भगवान 
नहीं बोले 
समझ लें

..................
आज्ञा दें यशोदा को..
सादर

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

496...चौदह दिन बाद दर्द और बढ़ता जा रहा है....


जय मां हाटेशवरी...

कल सुबह टीवी के एक चैनल पर   महाभारत देख रहा था...
चैनल बदला तो...निउज़ चैनल पर...
पाकिस्तान की एक और...हरकत सुनाई दी....
मैं सोचने लगा...काश पाकिस्तान वाले भी....
महाभारत से....कुछ शिक्षा ले पाते...
पर महाभारत व रामायण को तो...
धार्मिक ग्रंथ समझकर सीमित कर दिया है...
पर ये ग्रंथ...मानव जाती को रास्ता दिखाने के लिये रचे गये थे...
कहते हैं न...
...जब काल मनुज पर आता है...
...पहले विवेक मर जाता है...
अब पेश है...आज की चुनी हुई रचनाएं....

आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली...-
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

पीले पत्ते............. निशा माथुर-
नई-नई कोंपलों को भी जीवन देते हैं
आंख से मोती बनके टूट बिखर जाते हैं
कुछ ऐसा जिंदगी का इम्तेहान देते हैं
मर के अपनी हस्ती को हौंसला देते है
जब कभी शजर का साथ छोड़ देते हैं
वजूद को लोगों के पैरों में दबा देते है

Hindi English Text to Speech Online Tool-
Text to Speech की जरूरत हमे तब पड़ती है. जब हमे किसी Text को MP3 में बदलना होता है. Text को Mp3 में बदलने का इस्तेमाल सबसे ज्यादा DJ Songs बनाने में किया
जाता है. आप में से बहुत से लोगो ने ऐसे Songs सुने होंगे। जिनके बिच बिच में नाम आते रहते है. DJ Name Songs बनाना बहुत ही आसान है. इस से  जुडी एक पोस्ट मैं
अपने इस ब्लॉग पर दे चूका हु.

चौदह दिन बाद दर्द और बढ़ता जा रहा है....
बैंकों के पास नकदी का संकट बरकरार जो लोग ये कह रहे हैं कि बैंक की लाइनें छोटी हो रही हैं वे पूरा सच नहीं देख पा रहे हैं।  दिल्ली के दिलशाद गार्डन इलाके में मृगनयनी चौक पर एक साथ छह बैंकों की शाखाएं हैं। वहां हर बैंक में हर रोज लाइन लंबी हो रही है। बैंकों से माइक लगाकर उदघोषणा की जा रही है कि नकदी खत्म हो गई है, पैसा आएगा तब मिलेगा। शहर लेकर गांव तक लोग परेशान हैं। आप उन ग्रामीण क्षेत्रों तक जाकर देख नहीं पा रहे हैं जहां 40 गांव के बीच एक बैंक की शाखा है। लोग कई किलोमीटर चल कर बैंक पहुंच रहे हैं। लंबी लाइनें लगी हैं। और बैंक के बाहर बोर्ड लटका दिया जाता है कि नकदी नहीं है। हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र लिखते हैं कि बैंक के अधिकारी करेंस चेस्ट से 25 लाख मांग करते हैं तो 5 लाख मिल रहे हैं वह भी दो दिनों में। लोगों की जितनी जरूरत है उसका 10 फीसदी पैसा भी नहीं पहुंच पा रहा है। आखिर कैसी तैयारी थी सरकार की।


होना तो यही चाहिये..
-हाँ,...आगे तो सुनो-- उसने "मैं अन्ना हूँ" वाली टोपी लगा रखी थी ..
-ओह ! फ़िर ?
-तभी सड़क के किनारे से लाठी टेकते हुए एक दादाजी धीरे-धीरे चलकर उस के पास आये और उससे कहा-"बेटा अभी तो लाल बत्ती है ,तुम कितना आगे आकर खड़े हो".
-फ़िर ?
-....उस लड़के ने हँसते हुए मुँह बिचका दिया जैसे कहा हो -हुंह!!
- ह्म्म्म तो ?

-फ़िर वो दादाजी थोड़ा आगे आए ,अपनी लकड़ी बगल में दबाई और दोनों हाथों से उसके सिर पर पहनी टोपी इज्जत से उतार ली ,झटक कर साफ़ की और उससे कहा - इनका नाम क्यों खराब कर रहे हो? और टोपी तह करके अपनी जेब में रख ली........और मैं जोर से चिल्ला उठी -जे SSSS ब्बात........


आज बस इतना ही...
धन्यवाद।











बुधवार, 23 नवंबर 2016

495.......तालियाँ एक हाथ से बज रही होती हैं उसका शोर सब कुछ बोल रहा होता है

सादर अभिवादन..
पाँच कदम और
फिर चलेगा निन्यानबे का चक्कर

आज की चयनित रचनाएँ.....




शाम का मंज़र कितना सुहाना होता न , 
मन मोह लेता है 
सारे पंछी अपने 
घरोंदों की तरफ 
उड़ान भरते हैं , 

पैसों से हैं, बनते बिगड़ते
रिश्ते ऐसे क्यों मैं निभाऊँ

हैं झूठी तारीफ के भूखे
अब इनको मैं क्या समझाऊँ 


घर का दरवाज़ा तो चौड़ा है बहुत
दिल का दरवाज़ा अगरचे तंग है

आइना काहे उसे दिखलाए हैं
उड़ गया चेहरे का देखो रंग है

जरा सोचो तो आखिर वे हवाएं
जो मौसम के अनुसार
बदल देती हैं अपनी दिशाएं पूर्णतया
ला सकती हैं मानसून


आज का शीर्षक...
कानों 
में अपने 
अपने ही 
हाथ लगाये 
अपना 
ही कहा 
अंधेरे में 
ढूँढने की
खातिर 
डोल रहा 
होता है 
............................

इज़ाज़त दीजिए यशोदा को
सादर


पुनः- क्षमा कीजिएगा अपने आपको रोक नहीं पाई
एक मिनट और दीजिए 









मंगलवार, 22 नवंबर 2016

494...नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है


जय मां हाटेशवरी...

देश में आज के माहौल पर...
किसी ने क्या खूब लिखा है...
कतारें थककर भी खामोश हैं,नजारे बोल रहे हैं।
नदी बहकर भी चुप है मगर किनारे बोल रहे हैं।
ये कैसा जलजला आया  है दुनियाँ में इन दिनों,
झोंपडी मेरी खडी है और महल उनके  डोल रहे हैं।।
परिंदों को तो रोज कहीं से गिरे हुए दाने जुटाने थे।
पर वे क्यों परेशान हैं जिनके घरों में भरे हुए तहखाने थे😊

अब पेश है...कुछ चुनी हुई रचनाएं....

बसंत आ गया ? .......
आया तो आया पर
कौए और कोयल का भेद
बिन कहे ही ऐसे कैसे
सबको बता गया ?
कोयल तो
नाच कर , स्वागत गान कर
चहुँ ओर कूक रही है
और कौए ?
आक्रोश में हैं , अप्रसन्न हैं

महाप्रतिभा मंडित महापुरुष दयानंद
उन्नीसवीं शताब्दी के परार्द्ध भारत के इतिहास का अपर स्वर्ण प्रभात है। कई पावन चरित्र महापुरुष अलग अलग उत्तरदायित्व लेकर इस समय इस पुण्य भूमि में अवतीर्ण होते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती भी उन्हीं में एक महाप्रतिभा मंडित महापुरुष हैं। शासन बदला ,अंग्रेज आये, संसार की सभ्यता एक नए प्रभाव से बही, बड़े बड़े पंडित, विश्व साहित्य, विश्व ज्ञान विश्व मैत्री की आवाज उठाने लगे। पर भारत उसी प्रकार पौराणिक रूप के मायाजाल में भूला रहा। इस समय ज्ञान स्पर्धा के लिए समय को फिर आवश्यकता हुई। और महर्षि दयानंद का यही अपराजित प्रकाश है। वह अपार वैदिक ज्ञान राशि के आधार स्तम्भ स्वरुप अकेले बड़े-2   पंडितों का सामना करते है। एक ही आधार से इतनी बड़ी शक्ति का स्फुरण होता है कि आज भारत के युगांतर साहित्य में इसी साहित्य में इसी की सत्ता प्रथम है, यही जनसंख्या में बढ़ी हुई हैं।

ईमान का उत्सव
तीसरे दिन से सारा देश लाइन में खड़ा है
कि शहंशाह के रंग के चंद
कागज के टुकड़े मिल जाएँ
कुछ चहेतों को मिले
बाकी अभी भी लाइन में खड़े हैं
देश में अमीर भले ही हों
पर देश तो अमीर नहीं है, इसलिए
लाइन में केवल गरीब खड़े हैं

बेवफा
उफ्फ्फ
तुमने अमर प्रेम को कलंकित कर दिया
नहीं नहीं---
अब कोई सफाई नही --
कोई सुनवाई नही होगी अब --
सोनवीर ने कह दिया तुम बेवफा हो तो हो ।

फैज़ अहमद फैज़ की पुण्य तिथि 20 नवम्बर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि / विजय शंकर सिंह
सुबह ए आज़ादी.
ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं।
ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं ।
फ़लक के दश्त में तरों की आख़री मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज् का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़िना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों से ।
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
पुकरती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे

नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है
देशभर में जीएसटी लागू होने वाला है, जिसकी वजह से कर-चोरी पर भी रोक लगेगी। व्यापारी वर्ग भाजपा का राजनीतिक आधार है। नोटबंदी से सबसे ज्यादा नाराज यही वर्ग है। क्या नरेन्द्र मोदी अब ज्यादा बड़े वर्ग की राजनीति करना चाहते हैं? उन्होंने 2014 का चुनाव विकास और युवा आकांक्षाओं और मध्यवर्ग के सपनों के सहारे जीता था। शायद वे आम आदमी पार्टी के हाथों से उसका हथियार छीनने जा रहे हैं। ऐसा है तो राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की जरूरत होगी। इस खेल में उनकी पार्टी को भी धक्का लगेगा। उन्होंने व्यापारियों को नाराज करके अपने राजनीतिक आधार को धक्का पहुँचाया है। पर उन्हें नया जनाधार मिल भी सकता है। क्या वे इसके लिए तैयार हैं?

आज बस इतना ही...
फिर मिलेंगे...
धन्यवाद।















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