दीपावली मन गई
देव भी उठ गए कल
पर हमारे सरदार
विरम सिंह जी
जो बैठे सो बैठें ही हैं
अब तक...
आज की पसंदीदा रचनाएँ..संक्षिप्त में...
फिसलते हुऐ पुराने साल का हाथ छोड़ा जाता नहीं है..डॉ.जोशी
.............
आज्ञा दें दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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सुन्दर हलचल । दिग्विजय जी अभी पचास एक दिन बचे हैं आपको नया साल याद भी आना शुरु हो गया :) आभारी है 'उलूक' सूत्र 'फिसलते हुऐ पुराने साल का हाथ छोड़ा जाता नहीं' को आज के सूत्रों में जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात भैय्या जी
हटाएंपचास ही दिन बचे है..
याद तो किया ही जाएगा
500-1000 के नोट जमा करने को भी
इतने ही दिन बचे हैँ
सादर
बढ़िया सूत्रों से सुसज्जित आज का अंक ! मेरी चिंता 'प्रदूषण घटायें - पर्यावरण बचाएं' को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी !
जवाब देंहटाएंइस साल के बाक़ी बचे पचास दिन तो बैंकों के आगे लाइन में खड़े होने में ही गुज़रने वाले हैं. बैंकों और एटीएम के सामने खाने का टिफन और पानी की बोतल लेकर खड़े नर-नारी की लम्बी कतार देख कर किसी सैनिक अभ्यास का भ्रम हो रहा है. मोदीजी ने आने वाले साल में कुछ और नए शगूफे छोड़ने का संकेत दिया है. अब तो मन कर रहा कि बाकायदा वसीयत करके इस गम की दुनिया को अलविदा कह दिया जाए.
जवाब देंहटाएंसत्य वचन भाई गोपेश जी
हटाएंशुभ प्रभात स्वीकार करें
सादर
बेजोड़ चयन
हटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल. मेरी कविता को जगह दी. शुक्रिया.
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